सुनीता के बारे में पढ़कर तुम्हारे मन में कई सवाल और बातें आ रही होंगी। वे बातें सुनीता को चिट्ठी में लिखकर बताओ।
बी-38, विकास पुरी,
नई दिल्ली।
दिनांकः .................
प्रिय सुनीता,
बहुत प्यार!
तुम कैसी हो, मैंने तुम्हारे बारे में पढ़ा है। मैं तुम्हारी हिम्मत की सराहना करती हूँ कि तुम अपने काम स्वयं करती हो। तुम किसी पर निर्भर नहीं हो। मेरे मन में तुम्हें लेकर बहुत से प्रश्न उठते हैं। तुम जब औरों को खेलते हुए या दौड़ते हुए देखती हो, तो क्या सोचती हो? तुम खेल नहीं सकती। अतः तुम किस प्रकार के खेल खेलती हो? क्या तुम्हारे मित्र हैं? यदि हैं, तो क्या उन्हें तुम्हारे साथ असुविधा महसूस होती है? उस समय तुम क्या करती हो?
सुनीता तुम्हारी तरह और भी ऐसे बच्चे हैं, जो सुन-बोल नहीं सकते या कुछ देख नहीं सकते। उनके लिए तुम क्या कहना चाहोगी? मेरे इन प्रश्नों का उत्तर अवश्य देना। यदि मेरा कोई प्रश्न तुम्हें दुखी करता हो, तो मुझे क्षमा करना और उसका उत्तर मत देना।
तुम्हारी सखी
मोहना