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तीसरे छंद में संकेतित कथाएँ अपने शब्दों में लिखिए?

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तीसरे छंद में रावण की पत्नी मंदोदरी ने निम्नलिखित कथाओं का वर्णन किया है-

(क) सिंधु तर्यो उनका बनरा- इस पंक्ति में हनुमान द्वारा समुद्र लांघ कर आने की बात कही गई है। जब सीता की तलाश में हनुमान का वानर दल समुद्र किनारे आ पहुँचा तो, सभी वानर चिंतित हो गए। किसी भी वानर में इतना सामर्थ नहीं था कि समुद्र को लाँघ सके। जांमवत जी से प्रेरणा पाकर हुनमान जी समुद्र पार करके लंका पहुँच गए। मंदोदरी ने यहाँ उसी का उल्लेख किया है।

(ख) धनुरेख गई न तरी- इस पंक्ति में सीता द्वारा रावण का हरण करने की बात कही गई है। स्वर्ण हिरण को देखकर सीता ने राम से उसे पाने की इच्छा जाहिर की। सीता की इच्छा को पूरा करने हेतु राम लक्ष्मण की निगरानी में सीता को छोड़कर हिरण के पीछे चल पड़े। कुटी में सीता और लक्ष्मण को राम का दुखी स्वर सुनाई दिया। लक्ष्मण ने उस मायावी आवाज़ को पहचान लिया। परन्तु सीता द्वारा लांछन लगाए जाने पर उन्हें विवश होकर जाने के लिए तैयार होना पड़ा। वह सीता को लक्ष्मण रेखा के अंदर सुरक्षित करके राम की सहायता के लिए चले गए। रावण ने सीता को अकेली पाकर ऋषि रूप में उसका हरण करना चाहा परन्तु लक्ष्मण की खींची रेखा की प्रबल शक्ति के कारण वह उसे पार नहीं कर पाया। रावण एक शक्तिशाली राक्षस था। उसने सभी देवताओं को अपने घर में कैद किया हुआ था। परन्तु वह उस रेखा को पार न कर सका। आखिर सीता को धर्म तथा परंपराओं का हवाला देकर रेखा को पार करने के लिए विवश किया। जैसे ही सीता ने उसे पार किया रावण ने उसका बलपूर्वक हरण कर लिया।

(ग) बाँधोई बाँधत सो न बन्यो- जब हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया तो उन्होंने बहुत उत्पात मचाया। उनको बलशाली राक्षस तक नहीं बाँध पाए। रावण का पुत्र अक्षत इसी समय हनुमान के हाथों मारा गया।

(घ) उन बारिधि बाँधिकै बाट करी- इस पंक्ति में पत्थरों को बाँधकर लंका आने की बात की गयी है। सीता का पता लग जाने पर राम-लक्ष्मण और सग्रीव सभी वानर सेना सहित समुद्र किनारे आ गए। सुमद्र से जब लंका तक जाने का मार्ग माँगा गया, तो समुद्र इसमें अपनी असमर्थता जताई। तब समुद्र द्वारा बताए गए उपाय से नल तथा नील ने समुद्र के ऊपर सौ योजन लंबा सेतू का निर्माण किया। रावण ने सोचा था कि कोई भी उसकी लंका तक नहीं पहुँच पाएगा। परन्तु राम तथा उनकी सेना ने इस असंभव कार्य को संभव कर दिखाया। मंदोदरी इसी बात का उल्लेख करती है।

(ङ) तेलनि तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी- प्रस्तुत पंक्तियों में उस समय का वर्णन किया गया है, जब अशोक वाटिका में सीता से मिलने के बाद हनुमान जी ने वहाँ कोहराम मचा दिया था। हनुमान जी को पकड़कर सज़ा के तौर पर उनकी पूंछ में रावण ने आग लगवा दी। हनुमान ने उसी जलती पूंछ के सहारे पूरी लंका को स्वाहा कर दिया और रावण कुछ न कर सका। कहा जाता है, सोने से बनी लंका का सारा सोना अग्नि की तपन के कारण सागर में जा मिला। इस तरह मंदोदरी रावण का सत्य से परिचय करना चाहती है। परन्तु हतबुद्धि रावण उसकी बात को समझने से इनंकार कर देता है।


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