तुमने हुदहुद से जुड़ी एक कहानी पढ़ी है। उस कहानी को बातचीत के रूप में लिखो। नीचे हमने इस बातचीत को तुम्हारे लिए शुरू कर दिया है–
शाह सुलेमान– अरे भाई गिद्ध! ज़रा मेरी बात तो सुनो।
गिद्ध (उड़ते-उड़ते) – कहिए, मगर ज़रा जल्दी से।
शाह सुलेमान - ..........................................
गिद्ध - ......................................................
तुम अपने दोस्तों के साथ बातचीत को कक्षा में नाटक के रूप में प्रस्तुत कर सकते हो।
शाह सुलेमान– अरे भाई गिद्ध! ज़रा मेरी बात तो सुनो।
गिद्ध (उड़ते-उड़ते)– कहिए, मगर ज़रा जल्दी से।
शाह सुलेमान– देखो मैं धूप से बेहाल हो रहा हूँ। तुम लोग अपने पंखों से ज़रा मेरे सिर पर छाया कर दो।
गिद्ध– हम तो इतने छोटे पक्षी हैं। हमारी गर्दन पर पंख भी नहीं हैं। हम छाया कैसे करें?
शाह सुलेमान– ठीक है। अरे! भाई हुदहुद यहाँ तो आना।
हुदहुद– कहिए महाराज! क्या बात है?
शाह सुलेमान– मैं तपती धूप से परेशान हूँ। क्या मेरी मदद कर सकते हो?
हुदहुद– क्यों नहीं बस कुछ समय दीजिए।
शाह सुलेमान– धन्यवाद मित्र! तुम्हारी वजह से मैं इस भयंकर गर्मी से बच पाया। माँगो क्या माँगते हो।
हुदहुद– आप अगर कुछ देना ही चाहते हैं, तो हमारी कलगी को सोने में बदल दीजिए।
शाह सुलेमान– मित्र तुमने अच्छी तरह से सोच लिया है। जानते हो इसके परिणाम भयंकर हो सकती हैं।
हुदहुद– हाँ बादशाह! बस आप हमारी इच्छा पूर्ण कर दीजिए।
शाह सुलेमान– जैसा तुम चाहते हो अल्ला वैसा करे।
कुछ समय बाद हुदहुद घबराता हुआ आता है।
हुदहुद– बादशाह! हमारी रक्षा करें। जब से हमारी सोने की कलगी आई है। हमारे ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। मेरे सारे घरवाले मारे गए हैं।
शाह सुलेमान– मित्र मैंने तो पहले ही कहा था कि सोच-समझकर माँगना।
हुदहुद– क्षमा करें। मुझे यह नहीं मालूम था कि हमें इस प्रकार का कष्ट आ सकता है।
शाह सुलेमान– ठीक है मित्र! तुमने एक दिन मेरी सहायता की थी। अत: मैं तुम्हें इस वरदान से मुक्त करता हूँ।
हुदहुद– धन्यवाद बादशाह!