शरतचंद्र के बचपन में उन्हें साहित्य दुखदायी लगता था। विद्यालय में उन्हें सीता-वनवास, चारू-पाठ, सद्भाव-सद्गुण तथा प्रकांड व्याकरण जैसी साहित्यिक रचनाएँ पढ़नी पड़ती थी। शरतचंद्र को ये अच्छी नहीं लगती थीं। पंडित जी द्वारा रोज़ परीक्षा लिए जाने पर उन्हें मार भी खानी पड़ती थी। अतः अपने बचपन में साहित्य उन्हें दुखदायी लगा। यही कारण है कि लेखक ने ऐसा कहा। हमारे विचार से साहित्य के बहुत से उद्देश्य हो सकते हैं। वे इस प्रकार हैं-
• साहित्य मनुष्य के मनोरंजन का बहुत उत्तम साधन है। इसको पढ़ने से समय अच्छा व्यतीत होता है।
• यदि मनुष्य अच्छा साहित्य पढ़ता है, तो मनुष्य का ज्ञान बढ़ाता है। उसकी सोच को नई दिशा मिलती है।
• साहित्य में इतिहास संबंधी बहुत से तथ्य विद्यमान होते हैं। साहित्य के माध्यम से इतिहास की सही जानकारी मिलती है।
• साहित्य के माध्यम से मनुष्य अपने देश, गाँव, समाज इत्यादि के समीप आ जाता है। उसमें विद्यमान सामाजिक मान्यताओं, विषमताओं, कमियों, खुबियों इत्यादि को जाना जा सकता है।