ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती को हम जानें
यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय हैं?
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Solution
कवि का निम्नलिखित पंक्ति में झूठे बंधनों से अभिप्राय है कि झूठे बंधन मनुष्य को अपने मार्ग से विचलित करते हैं। उसकी शक्ति को जकड़ देते हैं। जैसे धरती में व्याप्त पत्थर तथा चट्टानें उसे बंजर बना देते हैं, वैसे ही मन में व्याप्त झूठे बंधन उसकी सृजन शक्ति को विकसित नहीं होने देते।
धरती को जानने से अभिप्राय है कि धरती में इतनी शक्ति होती है कि वह समस्त संसार का भरण-पोषण कर सके। परन्तु उसमें व्याप्त पत्थर और चट्टानें उसे बंजर बना देती हैं। अतः हमें उसकी शक्ति तथा उसके महत्व को समझकर उसे खेती योग्य बनाने की आवश्यकता है। मनुष्य का मन भी इसी धरती के समान है, यदि वह शंकाओं, झूठे बंधनों के जाल में फंसा रहेगा, तो अपनी सृजन शक्ति का नाश ही करेगा। अत: अपने मन का अवलोकन कर उसे अपनी शक्ति को पहचानना चाहिए और सभी प्रकार की बांधाओं को उखाड़ फेंकना चाहिए।