टोपी नवीं कक्षा में दो बार फ़ेल हो गया। बताइए −
(क) ज़हीन होने के बावजूद भी कक्षा में दो बार फ़ेल होने के क्या कारण थे?
(ख) एक ही कक्षा में दो-दो बार बैठने से टोपी को किन भावात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
(ग) टोपी की भावात्मक परेशानियों को मद्येनज़र रखते हुए शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक बदलाव सुझाइए?
(क) टोपी बहुत ज़हीन (बुद्धिमान) था परन्तु दो बार फ़ेल हो गया क्योंकि पहली बार जब भी वह पढ़ने बैठता मुन्नी बाबू को कोई न कोई काम निकल आता या रामदुलारी कोई ऐसी चीज़ मँगवाती जो नौकर से नहीं मँगवाई जा सकती। इस तरह वह फेल हो गया। दूसरे साल उसे मियादी बुखार हो गया था और पेपर नहीं दे पाया इसलिए फ़ेल हो गया था।
(ख) पहली बार एक कक्षा छोटे बच्चों के साथ बैठना पड़ा। दूसरे साल सातवीं के बच्चों के साथ बैठना पड़ा था। इसलिए उसका कोई दोस्त नहीं बन पाया था। अध्यापक भी बच्चों को न पढ़ने के कारण फ़ेल होने का उदाहरण टोपी का नाम लेकर देते थे, उसका मज़ाक उड़ाते थे। मास्टर भी उसे नोटिस नहीं करते थे। उससे कोई उत्तर नहीं पूछते बल्कि कहते अगले साल पूछ लेंगे या कहते इतने सालों में तो आ गया होगा। इस तरह सभी उसे भावनात्मक रूप से आहत करते थे। फिर अंत में इन चुनौतियों को स्वीकार कर उसने सफलता प्राप्त की।
(ग) बच्चे फ़ेल होने पर भावनात्मक रूप से आहत होते हैं और मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। वे शर्म महसूस करते हैं। इसके लिए विद्यार्थी के पुस्तकीय ज्ञान को ही न परखा जाए बल्कि उसके अनुभव व अन्य कार्य कुशलता को भी देखकर उसे प्रोत्साहन देने के लिए शिक्षा व्यवस्था में बदलाव किया जा सकता है।