शरत् के अंदर अपने पिता मोतीलाल के स्वभाव की बहुत समानताएँ विद्यमान थीं। वे इस प्रकार हैं-
• शरत् पिता के समान साहित्य पढ़ने और लिखने का शौकीन था। उसने अपने पिता के पुस्तकालय की सभी पुस्तकें पढ़ ली थीं।
• उनके पिता स्वभाव से स्वतंत्र व्यक्ति थे, शरत् भी ऐसा ही था। उसने कभी बंधकर रहना नहीं सीखा था। अतः नाना के हज़ार बंधन उसे रोक नहीं पाए।
• शरत् तथा उसके पिता सभी लोगों को समान दृष्टि से देखते थे। उनके लिए कोई बड़ा-छोटा नहीं था।
• उसका सौंदर्य बोध पिता के समान ही था। जो उनके लेखन में स्पष्ट रूप से झलकता है।
• वह पिता के समान यायावार प्रकृति के व्यक्ति था। एक स्थान पर टिकना उसके लिए संभव नहीं था।