The correct option is A Only 1
केवल 1
The writ jurisdiction of the high court (under Article 226) is not exclusive but concurrent with the writ jurisdiction of the Supreme Court (under Article 32). It means, when the fundamental rights of a citizen are violated, the aggrieved party has the option of moving either the high court or the Supreme Court directly. However, the writ jurisdiction of the high court is wider than that of the Supreme Court. This is because, the Supreme Court can issue writs only for the enforcement of fundamental rights and not for any other purpose, that is, it does not extend to a case where the breach of an ordinary legal right is alleged.
In the Chandra Kumar case (1997), the Supreme Court ruled that the writ jurisdiction of both the high court and the Supreme Court constitute a part of the basic structure of the Constitution. Hence, it cannot be ousted or excluded even by way of an amendment to the Constitution.
उच्च न्यायालय का रिट क्षेत्राधिकार (अनुच्छेद 226 के तहत) सर्वोच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार (अनुच्छेद 32 के तहत) के साथ अनन्य नहीं बल्कि समवर्ती है।इसका अर्थ है, जब किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो पीड़ित पक्ष के पास सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में जाने का विकल्प होता है। हालांकि, उच्च न्यायालय का रिट अधिकार क्षेत्र सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में व्यापक है।ऐसा इसलिए है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए हीं रिट जारी कर सकता है, न कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए, अर्थात यह ऐसे मामले तक विस्तारित नहीं होता है जहाँ एक साधारण कानूनी अधिकार का उल्लंघन होता है।
चंद्र कुमार मामले (1997) में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट दोनों के रिट क्षेत्राधिकार संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है। इसलिए, संविधान में संशोधन के माध्यम से इसे बेदखल या बहिष्कृत नहीं किया जा सकता है।