जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?
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आंबेडकर जी ने जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे ये तर्क दिए हैं-
(क) जाति प्रथा श्रम का ही विभाजन नहीं करती बल्कि यह श्रमिक को भी बाँट देती है। आंबेडकर जी के अनुसार एक सभ्य समाज में इस प्रकार का विभाजन सही नहीं है। इसे मान्य नहीं कहा जा सकता।
(ख) जाति प्रथा में श्रम का जो विभाजन किया गया है, वह व्यक्ति की रुचि को ध्यान में रखकर नहीं किया गया है। उनके अनुसार जाति प्रथा में यह गलत सिद्धांत प्रतिपादित हुआ है कि किसी अन्य व्यक्ति की रुचि, योग्तयता तथा क्षमता को अनदेखा कर उसके लिए जीविका के साधन को किसी और व्यक्ति द्वारा निर्धारित करना।
(ग) जाति प्रथा में पेशे का निर्धारण एक मनुष्य को जीवनभर के लिए दे दिया जाता है। फिर चाहे वह पेशा मनुष्य की व्यक्तिगत ज़रूरत पूरी न करता हो। इसका परिणाम यह होता है कि उस मनुष्य को घोर गरीबी का सामना भी करना पड़ सकता है।