मानव के जीवन में समाज का विशेष महत्व होता है। मानव ने ही समाज का निर्माण किया है। समाज में रहकर वह स्वयं का विकास करता है इसलिए उसे सामाजिक प्राणी कहा जाता है। समाज में रहकर उसकी हर प्रकार की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं। उसका चरित्र निर्माण होता है। उसको अपने सुख-दुख बाँटने के लिए किसी न किसी की आवश्यकता होती है और समाज इसमें मुख्य भूमिका को निभाता है। पशु-पक्षियों का भी अपना समाज होता है। अतः हम समझ सकते हैं कि समाज कितना आवश्यक है। समाज में रहकर ही वह सभ्य कहलाता है। समाज उसके लिए उचित-अनुचित की सीमा तय करता है। उसके गलत कदमों को रोकता है तथा उसे उचित-अनुचित का ज्ञान करवाता है। जैसे यदि एक मनुष्य एक से अधिक विवाह करता है, तो समाज इसे अनैतिक बताते हुए उसे ऐसा करने से रोकता है। ऐसे बहुत से कार्य हैं, जिसे समाज द्वारा किया जाता है। समाज मानव के विकास के लिए कार्य करता है। यह ऐसी संस्था है, जो मानव द्वारा निर्मित है और मानव ही इसके अंग है। यदि इस पृथ्वी में मानव जाति का अंश न रहे, तो समाज भी नहीं रहेगा। दोनों सदियों से एक-दूसरे में मिले हुए कार्य करते आ रहे हैं।