(क) श्री रामकृष्ण भारते के महान संत और एक विचारक थे। उनका जन्म 18 फरवरी, 1836 में बंगाल के कामारपुकुर में हुआ था। वह बचपन से ही ईश्वर के दर्शन करना चाहते थे। वे काली के बड़े भक्त थे। उन्होंने इस्लाम तथा ईसाई धर्म को भी पढ़ा तथा जाना ये सब धर्म एक ही हैं। ये सब ईश्वर प्राप्ति के साधन हैं मगर इनके तरीके अलग-अलग है। यही कारण है कि वे सब धर्मों का समान रुप से आदर करते थे।
(ख) 7 मई, 1861 को रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म हुआ। इनका जन्म कलकत्ता में सांको भवन पर हुआ। इनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ था। इनका परिवार कलकत्ता के समृद्ध परिवार में से था। ये महान विचारक, कवि, नाटककार, चित्रकार, कहानीकार तथा गीतकार थे। इन्होंने बंगाल साहित्य को अपनी रचनाओं से सजा तथा संवारा है। अपना रचना गीताजंलि के लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया था। यह पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इन्होंने पश्चिमी संस्कृति को भारतीय संस्कृति से साक्षात्कार करवाया। भारत को राष्ट्रगान इन्हीं ने दिया था।
(ग) काज़ी नज़रुल इस्लाम का जन्म आसनसोल के समीप चुरुलिया में 29 अगस्त, 1899 में हुआ था। यह बंगाला साहित्य के उत्तम हीरों में से एक गिने जाते हैं। इन्होंने तकरीबन 3000 गाने लिखे। ये एक लेखक, कवि, अभिनेता, संगीतज्ञ, संगीतकार, गायक तथा दार्शनिक थे। इनकी कविता में विद्रोह का गुण मिलता है। इसी कारण इन्हें विद्रोह कवि भी कहा जाता है। वे प्रायः मनुष्य के ऊपर मनुष्य द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों पर लिखते थे। इनके संगीत को नज़रुल गीती कहकर पुकारा जाता है।
(घ) शरतचंद्र बांगला साहित्य के कई चमकते सितारों में से एक सितारा है। इसकी रचनाओं में जो सच्चाई और सजीवता दिखाई देती है, वह शायद किसी अन्य लेखक के लेखन में देखी जा सकती है। इनका जन्म पश्चिम बंगाल के देवानंदपुर नामक स्थान में 15 सितंबर, 1876 में हुआ था। इनके पिता का नाम मोतीलाल तथा माता का नाम भुवनमोहिनी था। शरत का बचपन घोर गरीबी में गुज़रा मगर इस पर उनकी छाप नहीं पड़ी। वे स्वभाव से उपकारी थे। बांगला साहित्य को इन्होंने देवदास, बड़ी दीदी, परिणीता, चरित्रहीन, श्रीकान्त जैसे उपन्यास दिए। उनके रचनाओं ने बांगला साहित्य को विशाल करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
(ङ) सत्येंद्र नाथ दत्त भी बंगला साहित्य के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। इनका जन्म 11 फरवरी 1882 में हुआ था। इनके पिता का नाम रंजनीकांत दत्त था और वे एक व्यापारी थे। ये बंगाली पत्रिका भारती के लिए कविताएँ लिखते थे। इनकी कविताओं ने बंगला साहित्य को समृद्ध किया।
(च) सुकुमार राय बांग्ला साहित्य के चमकते सितारों में से एक हैं। इनका जन्म 30 अक्टूबर, 1887 में कलकत्ता में हुआ था। ये रवींद्रनाथ ठाकुर के शिष्य थे। इनके पिता का नाम उपेंद्रनाथ चौधरी था। इनके पिता भी बाल-साहित्यकार थे। अतः लेखन इनके खून में था। सुकुमार राय के पुत्र सत्यजित राय थे। इनके पुत्र सिनेमा जगत के प्रसिद्ध फिल्मकार थे। सुकुमार राय ने कविता, लेखन तथा नाटकों की रचना की।
(छ) ऐन फ्रेंक ऐसी ही यहूदी परिवार से थी। वह कोई संत या कवि नहीं थी। वह एक साधारण बच्ची थी। उसे हिटलर की यहूदियों से नफ़रत के कारण के बारे में पता नहीं था। वह अकारण उस यातना को झेल रही थी, जिससे वह अनजान थी। उसे विवश होकर दो साल तक छिपकर रहना पड़ा। उसकी यह तड़प, चिंता, परेशान, आतंक उसकी डायरी में हर जगह दिखाई पड़ता है। एक आम सी बच्ची अपने मन में विद्यमान भय, परेशानी, कमी, व्याकुलता, सपने, इच्छाएँ, दुख, सुख सब एक डायरी में लिखकर संतोष पाती है। इस डायरी को पढ़कर पता चलता है कि किसी मनुष्य की एक बीमार सोच के कारण कितने बेगुनाह लोगों को यातनाएँ झेलने पड़ती है। इस डायरी में विद्यमान यथार्थ उस समय की भयानकता को कितना सरलता से उकेर देता है, देखते ही बनता है। ऐसा कोई मंजझा हुआ कवि या संत भी नहीं कर पाता। इसमें कल्पना या बनावट नहीं है। इसमें जो है वह केवल सत्य है। जो एक मासूम सी बच्ची ने अपनी मासूमियत से उकेरा है। वह अनजाने में ऐसे हज़ारों लोगों का प्रतिनिधित्व करने लगती है, जो उसी के समान इस यातना को झेल रहे हैं।
ऊपर दिए सभी नामों ने साहित्य को कुछ-न-कुछ दिया है। इनकी देन ने साहित्य को विस्तृत बनाया है। इनका योगदान है, जो हमें आज तक जीने की राह दिखा रहा है। साहित्य को यूहीं समाज का दर्पण नहीं कहा जाता है। ऐसे ही महान लोगों के योगदान ने इस साहित्य को मानव के लिए हितकारी और उपयोगी बनाया है।