'पैसा कमाने की लिप्सा ने आध्यामत्मिकता को भी एक व्यापार बना दिया है।' इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
आज के समय में आध्यात्मिकता पैसे कमाने का सरल मार्ग बन गया है। इसे अब तो व्यापार के रूप में लिया जाता है। लोगों के जीवन में व्याप्त अशांति को आधार बनाकर उन्हें लुटा जा रहा है। इसे ही आध्यात्मिक भ्रष्टाचार कहते हैं। आध्यात्मिक भ्रष्टाचार इन दिनों समाज में बढ़ता जा रहा है। भगवान के नाम पर धर्मगुरूओं द्वारा आम जनता की भावनाओं के साथ खेला जा रहा है। आज की भागदौड़ वाले जीवन में मनुष्य के मन में शान्ति नहीं है। वह शान्ति की तलाश में धर्म गुरूओं का सहारा लेता है। यदि कुछ को छोड़ दिया जाए, तो अधिकतर धर्म गुरूओं का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। वह जनता को केवल उनका धन लुटने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। हर कोई धर्मगुरू बन जाता है। समाज के आगे जब इनका झूठ खुलता है, तो जनता स्वयं को ठगा-सा महसूस करती है। गुरू ईश्वर प्राप्ति का मार्ग होता है परन्तु जब गुरू ही भटका हुआ हो, तो जनता को भटकाव और धोखे के अलावा कुछ प्राप्त नहीं हो सकता है। यही आध्यात्मिक भ्रष्टाचार कहलाता है।