'प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै' - इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
प्रस्तुत पंक्तियाँ देवदत्त द्विवेदी द्वारा रचित सवैया से ली गई है। इसमें वसंत रुपी बालक का प्रकृति के माध्यम से लालन पालन करते दर्शाया गया है।
इस पंक्ति का भाव यह है कि वसंत रुपी बालक, पेड़ की डाल रुपी पालने में सोया हुआ है। प्रात:काल (सुबह) होने पर उसे गुलाब का फूल चटकारी अर्थात् चुटकी दे कर जगा रहा है। तात्पर्य यह है कि वसंत आने पर प्रात:काल गुलाब के फूलों का वसंत के समय सुबह चटकर खिलना कवि को ऐसा आभास दिलाता है मानो वसंत रुपी सोए हुए बालक को गुलाब चुटकी बजाकर जगाने का प्रयास कर रहा है।