Q. Consider the following pairs about the Classical Dances of India:
Sr.no | Classical Dance | Characteristic feature |
1. | Mohiniyattam | Graceful, swaying body movements with no abrupt jerks. |
2. | Manipuri | Incorporates both the Tandava and Lasya style; the facial expressions are natural and not exaggerated. |
3. | Odissi | Neo-Vaishnava treasure of dance and drama; governed by strictly laid down principles in respect of hastamudras. |
4. | Sattriya | The Torso movement is a unique feature; almost all leg movements are spiral or circular. |
क्रम संख्या | शास्त्रीय नृत्य | अभिलक्षणिक विशेषता |
1. | मोहिनीअट्टम | बिना किसी अचानक झटके अथवा उछाल के लालित्यपूर्ण, ढलावदार शारीरिक अभिनय। |
2. | मणिपुरी | इसमें तांडव व लास्य दोनों शैली शामिल हैं; चेहरे के भाव स्वाभाविक होते हैं और अतिरंजित नहीं होते हैं। |
3. | ओडिसी | यह नव-वैष्णव नृत्य और नाट्य का कोष है; यह हस्तमुद्रा के संबंध में कठोरता से निर्धारित सिद्धांतों द्वारा संचालित होता है। |
4. | सत्रिया | धड़ संचालन इसकी एक अनूठी विशेषता है; पैर की गतिशीलता सर्पिल या गोलाकार होती हैं। |
Explanation:
Dance in India has a rich and vital tradition dating back to ancient times. Excavations, inscriptions, chronicles, genealogies of kings and artists, literary sources, sculpture and painting of different periods provide extensive evidence of dance. Myths and legends also support the view that dance had a significant place in the religious and social life of the Indian people. However, it is not easy to trace the precise history and evolution of the various dances known as the 'art' or 'classical' forms popular today. Nurtured for centuries, dance in India has evolved in different parts of the country, each with its own distinct style taking on the culture of that particular region, each acquiring its own flavor. Consequently, a number of major styles of 'art' dance are known to us today, like Bharatnatyam, Kathakali, Kuchipudi, Kathak, Manipuri, Odissi and Sattriya.
Pair 1 is correctly matched: Mohiniyattam is characterised by graceful, swaying body movements with no abrupt jerks or sudden leaps. It belongs to the Lasya style, which is feminine, tender and graceful.The movements are emphasized by the glides and the up and down movement on the toes, like the waves of the sea and the swaying of the coconut, palm trees and the paddy fields.
Pair 2 is correctly matched: The origin of Manipuri dance can be traced back to ancient times that go beyond recorded history. The dance in Manipur is associated with rituals and traditional festivals. There are legendary references to the dances of Shiva and Parvati and other gods and goddesses who created the universe. The themes often depict the pangs of separation of the gopis and Radha from Krishna. Manipuri dance incorporates both the tandava and lasya and ranges from the most vigorous masculine to the subdued and graceful feminine. Generally known for its lyrical and graceful movements, Manipuri dance has an elusive quality. In keeping with the subtleness of the style, Manipuri abhinaya does not play up the mukhabhinaya very much — the facial expressions are natural and not exaggerated.
Pair 3 is incorrectly matched: The Sattriya dance form was introduced in the 15th century A.D. by the great Vaishnava saint and reformer of Assam, Mahapurusha Sankaradeva, as a powerful medium for the propagation of the Vaishnava faith. The dance form evolved and expanded as a distinctive style of dance later on. This neo-Vaishnava treasure of Assamese dance and drama has been, for centuries, nurtured and preserved with great commitment by the Sattras, i.e., Vaishnava maths or monasteries. Because of its religious character and association with the Sattras, this dance style has been aptly named Sattriya. Sattriya dance tradition is governed by strictly laid down principles in respect of hasta mudras, footworks, aharyas, music, etc. This tradition, has two distinctly separate streams the Bhaona-related repertoire starting from the Gayan-Bhayanar Nach to the Kharmanar Nach, secondly, the dance numbers that are independent, such as Chali, Rajagharia Chali, Jhumura, Nadu Bhangi, etc. Among them, the Chali is characterized by gracefulness and elegance, while the Jhumura is marked by vigor and majestic beauty.
Pair 4 is incorrectly matched: The Torso movement is very important and is a unique feature of the Odissi style. With the lower half of the body remaining static, the torso moves from one side to the other along the axis passing through the center of the upper half of the body. Great training is required for this control so as to avoid any shoulder or hip movement. There are certain foot positions with flat, toe or heel contact. These are used in a variety of intricate combinations. There are also numerous possibilities for leg movements. Almost all leg movements are spiral or circular, whether in space or on the ground.
व्याख्या:
भारत में नृत्य की एक समृद्ध और महत्त्वपूर्ण परंपरा है जो प्राचीन काल से चली आ रही है। उत्खनन, शिलालेख, इतिहास, राजाओं और कलाकारों की वंशावली, साहित्यिक स्रोत, मूर्तिकला और विभिन्न काल की चित्रकलाएँ नृत्य के व्यापक प्रमाण प्रदान करती हैं। मिथक और किंवदंतियाँ भी इस दृष्टिकोण का समर्थन करती हैं कि भारतीय लोगों के धार्मिक और सामाजिक जीवन में नृत्य का महत्त्वपूर्ण स्थान था। हालाँकि, वर्तमान में लोकप्रिय 'कला' या 'शास्त्रीय' रूपों के नाम से ज्ञात विभिन्न नृत्यों के सटीक इतिहास और विकास का पता लगाना आसान नहीं है। सदियों से परिपोषित हो रहे भारतीय नृत्य देश के विभिन्न हिस्सों में विकसित हुए हैं, प्रत्येक की अपनी विशिष्ट शैली है जो उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति पर आधारित है, प्रत्येक की अपनी विशेषता है। परिणामस्वरूप, आज हमें 'कला' नृत्य की कई प्रमुख शैलियाँ ज्ञात हैं, जैसे भरतनाट्यम, कथकली, कुचिपुड़ी, कथक, मणिपुरी, ओडिसी और सत्रिया।
युग्म 1 सुमेलित है: मोहिनीअट्टम की विशेषता भव्य, बिना किसी अचानक झटके अथवा छलांग के शरीर की लहराती हुई गति है। यह लास्य शैली से संबंधित है, जो स्त्री प्रधान, कोमल और सुंदर है। लय में विसर्पण मुद्रा और पैर की उंगलियों को ऊपर और नीचे की गति पर जोर दिया जाता है, जैसे समुद्र की लहरें और नारियल, खजूर के पेड़ और धान के लहराते खेत जैसे प्रतीत होते हैं।
युग्म 2 सुमेलित है: मणिपुरी नृत्य की उत्पत्ति प्राचीन काल में हुई थी जो अभिलिखित इतिहास से परे हैं। यह नृत्य मणिपुर के अनुष्ठानों और पारंपरिक त्योहारों से संबंधित है। यहां शिव और पार्वती के नृत्यों तथा अन्य देवी-देवताओं, जिन्होंने सृष्टि की रचना की थी, की दंतकथाओं के संदर्भ मिलते हैं। इसके विषय प्रायः गोपियों और राधा के कृष्ण से अलग होने की पीड़ा को दर्शाते हैं। मणिपुरी नृत्य में तांडव और लास्य दोनों का समावेश है और इसकी पहुंच बहुत वीरतापूर्ण पुरुषोचित पहलू से लेकर शांत तथा मनोहारी स्त्रीयोचित पहलू तक है। मणिपुरी नृत्य की एक प्रमुख विशेषता है, जिसे लयात्मक और मनोहारी गतिविधियों के रूप में जाना जाता है। शैली की सूक्ष्मता को ध्यान में रखते हुए, मणिपुरी अभिनय के अंतर्गत मुखाभिनय को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता - चेहरे के भाव स्वाभाविक होते हैं और अतिरंजित नहीं होते।
युग्म 3 सुमेलित नहीं है: सत्रिया नृत्य शैली को 15वीं शताब्दी ईस्वी में महान वैष्णव संत और असम के सुधारक, महापुरुष शंकरदेव द्वारा वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में प्रारंभ किया गया था। कालांतर में यह नृत्य रूप एक विशिष्ट शैली के रूप में और विकसित एवं विस्तारित हुआ। असमिया नृत्य और नाटक का यह नव-वैष्णव कोष शताब्दियों तक सत्रों, यानी वैष्णव मठों या विहारों द्वारा बड़ी प्रतिबद्धता के साथ पोषित और संरक्षित किया गया है। अपने धार्मिक चरित्र और सत्रों के साथ जुड़ाव के कारण इस नृत्य शैली को उपयुक्त रूप से सत्रिया नाम दिया गया है। सत्रीय नृत्य परंपरा हस्त मुद्रा, पैर की मुद्रा, आहार्य, संगीत आदि के संदर्भ में कठोरता से निर्धारित सिद्धांतों द्वारा संचालित होती है। इस परंपरा में दो अलग-अलग धाराएँ हैं-भाओना संबंधित प्रदर्शन – जिसके अंतर्गत गायन बायनार नाच से लेकर खरमार नाच शामिल हैं तथा दूसरे ऐसे नृत्य जो स्वतंत्र है जैसे चाली, राजघरिया चाली, झुमुरा, नादु भंगी आदि। इनमें से, चाली की विशेषता भव्यता और लालित्य है, जबकि झुमुरा की विशेषता ओज और राजसी सुंदरता है।
युग्म 4 सुमेलित नहीं है: धड़ संचालन ओडिसी शैली का एक बहुत महत्वपूर्ण और एक विशिष्ट लक्षण है। इसके अंतर्गत शरीर का निचला हिस्सा स्थिर रहता है एवं धड़ शरीर के ऊपरी हिस्से केंद्र से गुजरने वाली धुरी के समानांतर एक ओर से दूसरी ओर गति करता है। इस नियंत्रण के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है ताकि कंधों या नितम्बों की गति से बचा जा सके। इसके अंतर्गत समतल पांव, पैर की अंगुली या ऐड़ी के मेल के साथ कुछ निश्चित पद-संचालन होते हैं। इनका उपयोग विभिन्न प्रकार के जटिल संयोजनों में किया जाता है। पैरों की गतिविधियों की भी कई संभावनाएँ होती हैं। धरती पर या अंतराल में, पैर की लगभग समस्त गतिशीलता सर्पिल या गोलाकार होती हैं।