The correct option is
C
Aggrieved persons cannot directly move the High Court under Article 226.
पीड़ित व्यक्ति अनुच्छेद 226 के तहत सीधे उच्च न्यायालय का रुख नहीं कर सकता है ।
Explanation:
The Constitution of India originally recognized the ‘Right to Property’ as a fundamental right under Article 31. However, this right ceased to be a fundamental right with the 44th Constitution Amendment in 1978.
Option (a) is correct: Article 300A which provides a legal right to property requires the state to follow due procedure and authority of law to deprive a person of his or her private property.
Option (b) is correct: There is no guaranteed right to compensation in case of acquisition of the private property by the state.
Option (c) is incorrect: Even though Right to property has been made a legal right but it provides individuals to take recourse to Judicial proceedings by way of directly approaching the High Courts.
Option (d) is correct:The implication of Right to Property being a legal right also means that an ordinary Parliamentary law can regulate it.
Explainer’s Perspective : Option (c) cannot be an implication as aggrieved persons cannot directly move the Supreme Court under Article 32 (right to constitutional remedies including writs) for its enforcement. He can move the High Court under Article 226. Thus, the concept of the Supreme court being the guardian of the Fundamental Rights is being tested here. |
स्पष्टीकरण:
भारत के संविधान ने मूल रूप से ‘संपत्ति के अधिकार’ को अनुच्छेद 31 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी थी। हालाँकि, इस मौलिक अधिकार को 1978 में 44 वें संविधान संशोधन के द्वारा समाप्त कर दिया गया था।
विकल्प a सही है: अनुच्छेद 300A जो संपत्ति के अधिकार को कानूनी अधिकार प्रदान करता है, और राज्य को किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति से वंचित करने के लिए कानून में बताई गई उचित प्रक्रिया और अधिकार का पालन करने की आवश्यकता होती है।
विकल्प b सही है: राज्य द्वारा निजी संपत्ति के अधिग्रहण के मामले में मुआवजे के अधिकार की कोई गारंटी नहीं है।
विकल्प c गलत है: भले ही संपत्ति के अधिकार को कानूनी अधिकार बना दिया गया हो, लेकिन यह उच्च न्यायालयों के पास सीधे संपर्क करके व्यक्तियों को न्यायिक कार्यवाही करने के लिए विकल्प देता है।
विकल्प d सही है: संपत्ति के अधिकार का अब एक कानूनी अधिकार होने का अर्थ यह भी है कि एक साधारण संसदीय कानून के द्वारा इसे विनियमित किया जा सकता है।
एक्सप्लेनर परिप्रेक्ष्य : विकल्प (c) का एक निहितार्थ नहीं हो सकता है क्योंकि इसके प्रवर्तन के लिए व्यथित व्यक्ति अनुच्छेद 32 (रिट्स सहित संवैधानिक उपचारों का अधिकार) के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकते हैं। वह अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकते हैं। इस प्रकार, यहाँ सर्वोच्च न्यायालय की मौलिक अधिकारों के संरक्षक होने की अवधारणा का परीक्षण किया जा रहा है। |