The correct option is D
1, 2 and 3
1, 2 और 3
Explanation:
Statement 1 is incorrect: In the judgment of the Kesavananda Bharati case, it was accepted that the preamble is part of the Constitution. Therefore as a part of the Constitution, the preamble can be amended under Article 368 of the Constitution, but the basic structure of the preamble cannot be amended. So far, the preamble has been amended only once through the 42nd Amendment Act, 1976, which added the words ‘Socialist’, ‘Secular’, and ‘Integrity’ to it.
Statement 2 is incorrect: The Preamble of our constitution is not enforceable by courts. Hence the Preamble is non-Justifiable. This means that courts cannot pass orders against the government of India to implement the ideas in the Preamble.
Statement 3 is incorrect: In the Kesavananda Bharati case, the Supreme Court held that, ‘Preamble is not a source of power nor a source of limitation’. Rather, preamble has a significant role to play in the interpretation of statues, also in the interpretation of provisions of the Constitution.
व्याख्या:
कथन 1 गलत है: केशवानंद भारती मामले के निर्णय में, यह स्वीकार किया गया था कि प्रस्तावना संविधान का भाग है। इसलिए संविधान के एक भाग के रूप में, संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन प्रस्तावना की मूल संरचना में संशोधन नहीं किया जा सकता है। अब तक 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन किया गया है, जिसके तहत 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्द जोड़े गए हैं।
कथन 2 गलत है: हमारे संविधान की प्रस्तावना न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है। अतः प्रस्तावना गैर-वादयोग्य है। इसका अर्थ यह है कि अदालतें प्रस्तावना में विचारों को लागू करने के लिए भारत सरकार के खिलाफ आदेश पारित नहीं कर सकती हैं।
कथन 3 गलत है: केशवानंद भारती मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि, 'प्रस्तावना न तो शक्ति का स्रोत है और न ही सीमा का स्रोत है'। बल्कि, मूल भावना की व्याख्या और संविधान के प्रावधानों की व्याख्या में प्रस्तावना की महत्वपूर्ण भूमिका है।