Q. With reference to the temple architecture of the early medieval period, consider the following statements:
Which of the statements given above is/are correct?
Q. प्रारंभिक मध्यकाल के मंदिर वास्तुकला के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Explanation:The period between AD 750 and AD 1200 is referred to as an early medieval period of Indian History. Basically, there are 3 kinds of temple architecture:
Statement 1 is correct: The temples served as representative of the might and glory of the kings who had them built. The loftier the temple, the greater the might reflected. Indeed there was a definite correlation. The construction of large temples and their regular maintenance required the mobilization of huge amounts of resources, both financial and human. This could be possible only when the particular king was wealthy & powerful enough.
Statement 2 is incorrect: The characteristic feature of the Nagara style of temples was the lofty tower or spire called the Shikhara. Temples built in this style were spread over large parts of northern India, particularly in Central India, Gujarat, Rajasthan and Orissa.
Statement 3 is incorrect: The Dravida style of architecture is found in South India. It reached the height of its glory under the rule of the Chola kings. Some of the important characteristics of this style are the garbhagriha, the vimanas, the mandapa and the gopurams.
व्याख्या: 750 ईस्वी और 1200 ईस्वी के बीच की अवधि को भारतीय इतिहास का प्रारंभिक मध्यकाल कहा जाता है। मूल रूप से, मंदिर वास्तुकला 3 प्रकार की होती है:
कथन 1 सही है: मंदिर उन राजाओं के पराक्रम और वैभव का द्योतक था जिन्होंने उन मंदिरों का निर्माण करवाया था। मंदिर जितना ऊंचा होता था, उतना ही अधिक पराक्रम परिलक्षित होता था। वास्तव में दोनों में एक निश्चित सहसंबंध था। विशाल मंदिरों के निर्माण और उनके नियमित रखरखाव के लिए वित्तीय और मानवीय दोनों तरह के संसाधनों को भारी मात्रा में जुटाने की आवश्यकता होती थी। यह तभी संभव हो सकता था जब राजा विशेष धनवान और शक्तिशाली हो।
कथन 2 गलत है: ऊंचा टावर या दुर्ग मंदिरों की नागर शैली की अभिलाक्षणिक विशेषता थी, जिसे शिखर कहा जाता था। इस शैली में बने मंदिर उत्तरी भारत के बड़े हिस्से में फैले हुए थे, विशेषकर मध्य भारत, गुजरात, राजस्थान और उड़ीसा में।
कथन 3 गलत है: वास्तुकला की द्रविड़ शैली दक्षिण भारत में पाई जाती है। चोल राजाओं के शासन में यह शैली अपने गौरव के शिखर पर पहुंच गई थी। इस शैली की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं गर्भगृह, विमान, मंडप और गोपुरम।