Q69. Consider the following statements regarding Article 13 -
1. A constitutional amendment is not a law and hence cannot be challenged
2. The term “law” as mentioned in Article 13 includes permanent laws enacted by the Parliament only
Which of the above statement(s) is/are correct?
अनुच्छेद 13 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. एक संवैधानिक संशोधन, विधि नहीं है अतः इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है
2. अनुच्छेद 13 में वर्णित "विधि" शब्द में केवल संसद द्वारा अधिनियमित स्थायी विधियाँ शामिल हैं|
उपरोक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
(d) None of the above
(d) इनमें से कोई नहीं
The term ‘law’ in Article 13 has been given a wide connotation so as to include the following:
(a) Permanent laws enacted by the Parliament or the state legislatures;
(b) Temporary laws like ordinances issued by the president or the state governors;
(c) Statutory instruments in the nature of delegated legislation (executive legislation) like order, bye-law, rule, regulation or notification; and
(d) Non-legislative sources of law, that is, custom or usage having the force of law.
Further, Article 13 declares that a constitutional amendment is not a law and hence cannot be challenged. However, the Supreme Court held in the Kesavananda Bharati case (1973) that a Constitutional amendment can be challenged on the ground that it violates a fundamental right that forms a part of the ‘basic structure’ of the Constitution and hence, can be declared as void.
अनुच्छेद 13 में 'विधि' शब्द को व्यापक अर्थ दिया गया है जिससे निम्नलिखित को शामिल किया जा सके:
a) संसद या राज्य विधायिकाएं द्वारा अधिनियमित स्थायी विधि;
b) राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा जारी अध्यादेश जैसे अस्थायी विधि;
c) प्रत्यायोजित विधान (कार्यकारी कानून) की प्रकृति में वैधानिक साधन जैसे आदेश, उप-कानून, नियम, विनियमन या अधिसूचना; तथा
d) कानून के गैर-विधायी स्रोत, अर्थात, कानून की शक्ति वाले परंपरा या उपयोग।
इसके अलावा, अनुच्छेद 13 घोषित करता है कि संवैधानिक संशोधन एक विधि नहीं है और इसलिए इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। हालांकि, केशवनंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने यह माना की संवैधानिक संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह एक मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है जो संविधान की 'मूल संरचना' का हिस्सा है और इसलिए इसे शून्य घोषित किया जा सकता है ।