पारंपरिक रूप से विज्ञान की 3 शाखाएँ हैं – भौतिकी (Physics), रसायन विज्ञान (Chemistry) एवं जीवविज्ञान (Biology) | जैसा कि नाम से स्पष्ट है , “जीव -विज्ञान” सभी प्रकार के जीवों के विषय में अध्ययन का विज्ञान है | लेकिन यह उतना संक्षिप्त नहीं जितनी इसकी परिभाषा लगती है ! यह एक विशद विषय है जिसकी कई शाखाएँ हैं | उदाहरण के लिए, जब हम “जीव” शब्द का प्रयोग करते हैं तो सबसे पहले यह जानना ही आवश्यक है कि जीव की क्या परिभाषा है | या सजीव व निर्जीव के बीच कैसे भेद किया जाए | जीव के क्रमिक विकास की क्या प्रक्रिया रही , उनकी संरचना कैसी है , उनके कार्यकलाप क्या हैं , जैव मंडल में उनकी भूमिका क्या है, इत्यादि कई ऐसे पहलु हैं जो इससे सम्बद्ध हैं | अब पर्यावरण विज्ञान (Environmental Science) भी जीवविज्ञान का एक अभिन्न हिस्सा है जिसका अध्ययन जीवविज्ञान के साथ वांछित है | अंग्रेजी माध्यम में इस विषय पर जानकारी के लिए देखें हमारा लेख What is Biology
जीव की परिभाषा
जीवविज्ञान का अध्ययन शुरू करने से पहले सबसे पहला प्रश्न यह आता है कि जीव क्या है ? हम जानते हैं कि सजीवों (living things) के कुछ सुस्पष्ट लक्षण होते हैं जो उन्हें निर्जीवों (non -living things) से अलग करते हैं | ये लक्षण हैं :
1.वृद्धि (growth) : वृद्धि करना किसी जीव का पहला लक्षण है | सभी जीव वृद्धि करते हैं | यह वृद्धि कोशिका विभाजन के द्वारा होती है | कोशिकाएं ही शरीर की मूलभूत इकाई हैं और विभाजन के द्वारा उनकी संख्या में वृद्धि से ही जीव की वृद्धि होती है | पौधों में यह वृद्धि जीवन पर्यंत कोशिका विभाजन के द्वारा चलती रहती है | लेकिन जंतुओं में यह वृद्धि एक निश्चित उम्र सीमा तक ही होती है | यहाँ तक की सूक्ष्म व एक -कोशिकीय जीव भी कोशिका विभाजन द्वारा वृद्धि करते हैं | यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कोशिका का विभाजन ही वह मूलभूत क्रिया है जो सजीवों में वृद्धि या अन्य कई जैव – घटनाओं का कारण है | कोशिकाएं एक निश्चित समय अंतराल के बाद नष्ट हो जाती हैं और उनके स्थान पर नई कोशिकाएं जन्म लेती हैं | हमारे शरीर में बालों या नाखूनों की वृद्धि को इससे सरलता से समझा जा सकता है | यदि केवल भार में वृद्धि को जीव एक का अभिलक्षण माना जाए तो यह वृद्धि निर्जीवों में भी देखी जा सकती है | हम जानते हैं कि हिमालय पर्वत की ऊंचाई निरंतर बढती जा रही है | लेकिन यह वृद्धि एक भू-वैज्ञानिक प्रक्रिया का परिणाम है न कि कोशिका विभाजन का !
2.प्रजनन (reproduction) : जीवों में वृद्धि 2 प्रकार की हो सकती है | एक उनके भार या अकार में वृद्धि , जिसकी चर्चा उपर की गई है ; तथा दूसरा उनकी संख्या में वृद्धि | इसे ही प्रजनन अथवा जनन कहते हैं | अधिकांश उच्चकोटि के प्राणियों तथा पादपों में वृद्धि तथा जनन पारस्परिक विशिष्ट प्रक्रियाएं हैं | इस प्रकार जनन भी जीवों का एक विशिष्ट अभिलक्षण है | निर्जीव वस्तुओं की संख्या में स्वतः वृद्धि नहीं हो सकती क्योकि वे जनन नहीं कर सकते | बहुकोशिक जीवों में जनन का अर्थ अपनी संतति उत्पन्न करना है जिनकी संरचना,स्वाभाव आकृति व अभिलक्षण उनके जनक के सामान ही होते हैं | प्राकृतिक रूप से, प्रजनन की प्रक्रिया एक प्रजाति के अंदर ही संपन्न होती है | जनन 2 प्रकार का होता है:
क).लैंगिक जनन – जब जनन के लिए दो युग्मक की आवश्यकता होती है, तो ऐसे जनन को लैंगिक जनन (Sexual reproduction) कहते है | लैंगिक जनन में नर और मादा की आवश्यकता होती है तथा इसमें निषेचन की क्रिया आवश्यक होती है | यह एक जटिल प्रक्रिया है | इसका सर्वोत्तम उदाहारण मनुष्यों में जनन है |
ख).अलैंगिक जनन – जिन जीवों में प्रजनन की क्रिया के लिए संसेचन (शुक्राणु का अंडाणु से मिलना) अनिवार्य नहीं है; उनमें आनिषेक जनन या अलैंगिक जनन (Asexual reproduction) पाया जाता है | जनन की यह प्रक्रिया सरल व तीव्र होती है | हम जानते हैं कि किस प्रकार कवक (fungus) लाखों अलैंगिक बीजाणुओं द्वारा गुणन करती है और सरलता से फैल जाती है | निम्न कोटि के जीवों जैसे यीस्ट तथा हाइड्रा में मुकुलन (budding) द्वारा जनन होता है | प्लैनेरिया (चपटा कृमि) में पुनर्जनन होता है, अर्थात् एक खंडित जीव अपने शरीर के लुप्त अंग को पुनः प्राप्त (जीवित) कर लेता है और इस प्रकार एक नया जीव बन जाता है | कवक . तंतुमयी शैवाल, मॉस का प्रथम तंतु ये सभी विखंडन विधि द्वारा गुणन/जनन करते हैं |
3.उपापचयन (metabolism) : उपापचयन जीवों का संभवतः सबसे विशिष्ट लक्षण है | सभी जीव विभिन्न प्रकार के रसायनों से बने होते हैं जिनका निर्माण एवं विघटन शरीर में निरंतर चलता रहता है | इसी प्रक्रिया को उपापचय कहते हैं | उपापचयन के 3 मुख्य घटक हैं : पहला,भोजन में निहित ऊर्जा को उपरोक्त वर्णित रासायनिक ऊर्जा में स्थानांतरित करना ताकि शरीर में आवश्यक कोशिकीय प्रक्रियाएं संपन्न हो सकें ; दूसरा , शरीर में प्रोटीन इत्यादि ‘रचनात्मक पदार्थों’ का संश्लेषण; तथा तीसरा शरीर से अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन | इस प्रकार उपापचयन एक समग्र एवं जटिल प्रक्रिया है | उपापचयन 2 प्रक्रियाओं का संयोजन है – 1.अपचय (catabolism) तथा 2.उपचय (anabolism) | अपचय में जटिल कार्बनिक पदार्थों का सरल कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों में विघटन होता है | इससे उर्जा उत्पन्न होती है | उदाहारण के लिए कोशिकीय श्वसन से ऊर्जा का उत्पादन | जबकि उपचय में ऊर्जा का प्रयोग करके प्रोटीनों और नाभिकीय अम्लों जैसे कोशिकाओं के अंशों का संश्लेषण होता है | सभी जीवों में, चाहे वे बहु- कोशिक हो अथवा एक- कोशिक, अनेक उपापचयी क्रियाएं साथ-साथ अनवरत चलती रहती हैं | सभी पौधों, प्राणियों, कवकों तथा यहाँ तक कि सूक्ष्म जीवों में भी उपापचयी क्रियाएं होती हैं | हमारे शरीर में होने वाली सभी रासायनिक क्रियाएं उपापचयी क्रियाएं हैं | क्योंकि इन रासायनिक क्रियाओं में या तो पदार्थों के संश्लेषण होता है अथवा विघटन | किसी भी निर्जीव में उपापचयी क्रियाएं नहीं हो सकती |
4.गति (movement) : जीवों का एक अन्य सामान्य लक्षण है ‘गति’ | आमतौर पर सभी जीव गति करते हैं | इसके लिए उनके तरीके अलग अलग हो सकते हैं | वनस्पति (पेड़ -पौधे) इसके अपवाद हैं | हालाँकि उनमें भी भिन्न प्रकार की गति (movement) होती है | हम जानते हैं कि कुछ कीट- भक्षी पौधे (insectivorous plants) जैसे वीनस फ्लाईट्रैप, किस प्रकार ‘शिकार’ करते हैं | इसके लिए भी उनमें एक प्रकार की गति होती है |
5.संवेदनशीलता (sensitivity) : संवेदनशीलता वह गुण है जिससे जीव अपने संवेदी अंगों द्वारा अपने पर्यावरण से अवगत होते हैं,उन्हें महसूस कर सकते हैं | हाथ ,पैर ,आँख ,कान ,नाक ,त्वचा इत्यादि हमारे संवेदी अंग हैं | बहुत समय तक यह समझा जाता रहा कि पौधों में संवेदनशीलता नहीं होती | लेकिन प्रसिद्द भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु ने पौधों में भी संवेदनशीलता की खोज की और यह सिद्ध किया कि पौधे भी प्रकाश, पानी, ताप, अन्य जीवों, प्रदूषकों आदि जैसे बाह्य कारकों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं |
जीवविज्ञान की 2 मुख्य शाखाएं |
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जंतु विज्ञान या प्राणी विज्ञान (Zoology) |
वनस्पति विज्ञान (Botany) |
अरस्तू (Aristotle : 384- 322 ई.पू.) जो यूनान के विख्यात विज्ञानी व चिन्तक थे , को “जीव विज्ञान का जनक” (Father of biology) कहा जाता है | उन्होंने ही सर्वप्रथम पौधों एवं जन्तुओ के जीवन के विभिन्न पक्षों के विषय में गहन अध्ययन किया और दुनिया के बीच अपने विचार प्रकट किये | उन्हें प्राणी विज्ञान अथवा जंतु विज्ञान (Zoology) का जनक भी माना जाता है | लेकिन ‘बायोलॉजी’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क, थॉमस बेड्डोज,कार्ल फ्रेडरिक तथा ट्रेविरेनस जैसे वैज्ञानिकों ने सन 1799 से 1802 के बीच किया | |
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विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के जनक
क्र. सं. |
विज्ञान की शाखा |
जनक |
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1 |
जीव विज्ञान (Biology) |
अरस्तु |
2 |
वनस्पति विज्ञान (Botany) |
थियोफ्रेस्टस |
3 |
जीवाश्मिकी या जीवाश्म विज्ञान (Palaeontology) |
लियोनार्डो ड विन्सी |
4 |
आधुनिक भ्रूण विज्ञान (Modern Embryology) |
वान बेयर |
5 |
आधुनिक वनस्पति विज्ञान (Modern Botany) |
लिनियस |
6 |
प्रतिरक्षा विज्ञान (Immunology) |
एडवर्ड जैनर |
7 |
आनुवंशिकी (Genetics) |
ग्रेगर जॉहन मेंडेल |
8 |
आधुनिक आनुवंशिकी (Modern Genetics) |
टी.एच मॉर्गन |
9 |
कोशिका विज्ञान (Cytology) |
रोबर्ट हुक |
10 |
भारतीय शैवाल विज्ञान (Indian Phycology) |
एम. ओ. ए. आयंगर |
11 |
पादप शारीरिकी (Plant Anatomy) |
एन. ग्रिऊ |
12 |
जन्तु विज्ञान (Zoology) |
अरस्तु |
13 |
वर्गिकी (Taxonomy) |
लिनियस |
14 |
चिकित्सा शास्त्र (Medicine) |
हिप्पोक्रेटस |
15 |
भारतीय पारिस्थितिकी (Indian Ecology) |
राम देव मिश्रा |
16 |
उत्परिवर्तन सिद्धांत के जनक (Mutation Theory) |
ह्यूगो डी. व्रीज |
17 |
तुलनात्मक शारीरिकी (Comparative Anatomy) |
जी. क्यूवियर |
18 |
कवक विज्ञान (Mycology) |
माइकेली |
19 |
पादप कार्यकी (Plant Physiology) |
स्टीफन हेल्स |
20 |
जीवाणु विज्ञान (Bacteriology) |
ल्यूवेनहॉक |
21 |
सूक्ष्म जीव विज्ञान (Micro -biology) |
लुई पाश्चर |
22 |
भारतीय कवक विज्ञान (Indian Mycology) |
ई. जे. बटलर |
23 |
भारतीय ब्रायोलॉजी (Indian Bryology) |
एस. आर. कश्यप |