A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित समाचार उपलब्ध नहीं हैं। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: आज इससे संबंधित समाचार उपलब्ध नहीं हैं। C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आपदा प्रबंधन
D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित समाचार उपलब्ध नहीं हैं। E. संपादकीय: आपदा प्रबंधन
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G. महत्वपूर्ण तथ्य: आज इससे संबंधित समाचार उपलब्ध नहीं हैं।
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित
चेन्नई में तटीय शहरी बाढ़
आपदा प्रबंधन
विषय: आपदाएँ और आपदा प्रबंधन
मुख्य परीक्षा: तटीय शहरी बाढ़ के मुद्दे
सन्दर्भ: 3-4 दिसंबर को चेन्नई के तट पर आए चक्रवात मिचौंग के कारण अभूतपूर्व बारिश हुई, जिसने 2015 में आई विनाशकारी बाढ़ की याद दिला दी। 8 वर्षों में ऐसी 3 घटनाएं हुईं। केंद्र ने चेन्नई बाढ़ के बाद शहरी बाढ़ से निपटने के लिए भारत की पहली शहरी बाढ़ शमन परियोजना को मंजूरी दे दी है।
- इस चक्रवात से हुई बारिश के परिणामस्वरूप बाढ़ आई, जिससे लोगों की जान गई, दैनिक जीवन बाधित हुआ और मौसम की चरम घटनाओं के प्रति शहर की संवेदनशीलता उजागर हुई।
- 2015 के बाद के प्रयासों के बावजूद, हाल के चक्रवात ने बाढ़ शमन और प्रबंधन रणनीतियों में कमियों को उजागर किया, जिससे एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता हुई।
1. तत्काल प्रभाव:
- वर्षा के आँकड़े: नुंगमबक्कम और मीनंबक्कम वेधशालाओं में क्रमशः 46.8 सेमी और 43.8 सेमी बारिश दर्ज की गई।
- लोगों की मृत्यु: 17 लोगों की जान गई, हजारों लोग फंसे, आपूर्ति में व्यवधान और बड़े स्तर पर संपत्ति की क्षति हुई।
- बुनियादी ढांचे में व्यवधान: हवाई अड्डे का बंद होना, ट्रेन रद्द होना और शैक्षणिक संस्थानों का अस्थायी रूप से बंद होना।
2. 2015 पर विचार:
- 2015 के साथ तुलना: इसकी 2015 में आई विनाशकारी बाढ़ के साथ समानता है, जिससे ऐसी आपदाओं की आवर्ती प्रकृति पता चलती है।
- बढ़ी हुई चक्रवाती गतिविधि: जलवायु संबंधित हालिया घटनाक्रमों में उत्तर हिंद महासागर में बढ़ती चक्रवात आवृत्ति और तीव्रता देखी गई है, जिसका कारण समुद्र का गर्म होना है।
3. सरकारी प्रतिक्रिया और शमन प्रयास:
- 2015 के बाद की पहल: एक सलाहकार पैनल निर्देशित, 2015 के बाद शुरू की गई बाढ़ शमन परियोजनाओं के आंशिक परिणाम मिले।
- अधूरी परियोजनाएँ: पोरूर झील के आसपास बाढ़ शमन परियोजना का दूसरा चरण अधूरा, अधूरा चैनल सुधार, और जल निकाय बहाली परियोजनाएँ प्रगति पर हैं।
4. गंभीर मुद्दे और चुनौतियाँ:
- अधूरी बाढ़ प्रबंधन परियोजनाएँ: अधूरी परियोजनाओं के कारण पोरूर झील क्षेत्र में बाढ़ आ गई, जो व्यापक परियोजना निष्पादन की आवश्यकता को दर्शाता है।
- जल निकाय का क्षरण: लुप्त होते जल निकाय और सिकुड़ते झील क्षेत्र बाढ़ में योगदान करते हैं, जिसके लिए तत्काल इस दिशा में प्रयासों की आवश्यकता है।
- उपेक्षित क्षेत्र: बचाव और राहत प्रयासों में विसंगतियाँ संसाधनों के समान वितरण को लेकर चिंताएँ बढ़ाती हैं।
5. नागरिक चिंताएँ और अपेक्षाएँ:
- सामुदायिक परिप्रेक्ष्य: निवासियों की ओर से बचाव कार्यों के दौरान कुछ क्षेत्रों की उपेक्षा पर सवाल उठाया गया है और सरकार से असमानताओं को दूर करने का आग्रह किया गया है।
- सरकारी जवाबदेही: व्यवस्थित बाढ़ नियंत्रण प्रबंधन, एकीकृत जल निकासी प्रणाली और अतिक्रमित स्थानों में सुधार का आह्वान।
6. विशेषज्ञ सिफ़ारिशें:
- जल निकायों का कायाकल्प: लुप्त हो रहे जल निकायों को बहाल करने पर जोर, विशेष रूप से व्यासरपडी, वेलाचेरी, अदंबक्कम, कोरट्टूर, अंबत्तूर, रेटेरी और पल्लीकरनई दलदली भूमि में।
- संरक्षित क्षेत्र घोषणा: बाढ़ की सतत रोकथाम के लिए पुनर्जीवित जल निकायों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव।
7. व्यवस्थित बाढ़ नियंत्रण प्रबंधन की आवश्यकता:
- मैक्रो ड्रेन सुधार: मैक्रो ड्रेन और व्यापक बाढ़ नियंत्रण रणनीतियों पर तत्काल ध्यान देना।
- स्थान को अतिक्रमण-मुक्त करना: जल निकासी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण स्थानों पर अतिक्रमण का समाधान करना।
सारांश: चेन्नई पर चक्रवात मिचौंग का प्रभाव बाढ़ शमन और प्रबंधन के लिए मजबूत और व्यापक दृष्टिकोण की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। 2015 के बाद की पहलों के बावजूद, अधूरी परियोजनाएँ और पर्यावरणीय क्षरण जारी है। |
संपादकीय-द हिन्दू
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित
ग्लेशियरों की स्थिति को लेकर चेतावनी
आपदा प्रबंधन
विषय: आपदाएँ और आपदा प्रबंधन
मुख्य परीक्षा: ग्लेशियरों से उभरते खतरे
सन्दर्भ: ग्लेशियरों की स्थिति जलवायु संकट के प्रभावों का आकलन करने के लिए एक मार्मिक बैरोमीटर के रूप में कार्य करती है, जो बढ़ते वैश्विक तापमान और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के परिणामों को दर्शाती है।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन की हालिया रिपोर्ट, “द ग्लोबल क्लाइमेट 2011-2020”, दुनिया भर में ग्लेशियरों के चिंताजनक रूप से पतले होने पर जोर देती है, जहां 2011 से 2020 तक प्रति वर्ष ग्लेशियरों में औसतन लगभग एक मीटर का नुकसान देखा गया है।
- जैसे-जैसे ग्लेशियर कम होते जा रहे हैं, चक्रवात और भूकंप जैसी अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समान ग्लेशियरों से होने वाले खतरों को पहचानने और उन्हें वर्गीकृत करने की तत्काल आवश्यकता हुई है।
हिमनद स्वास्थ्य अवलोकन:
- दशकीय पतलेपन की स्थिति:
- WMO की रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि 2011 से 2020 तक वैश्विक स्तर पर ग्लेशियरों में सालाना औसतन एक मीटर की कमी देखी गई।
- क्षेत्रीय विविधताएँ मौजूद हैं, लेकिन वृहत स्तर पर देखी जा रही स्थिति दुनिया के सभी हिस्सों में ग्लेशियरों की कमी है।
- संदर्भ ग्लेशियर और उसका विलीन होना:
- दीर्घकालिक मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ वाले ग्लेशियर पहले से ही विलीन हो रहे हैं, जिससे ग्लेशियर स्वास्थ्य के आकलन पर असर पड़ रहा है।
- उल्लेखनीय उदाहरणों में शामिल ग्लेशियर अफ्रीका में हैं, जो रवेनज़ोरी पर्वत और माउंट केन्या के ग्लेशियर हैं और इनके 2030 तक विलीन होने का अनुमान है, तथा किलिमंजारो पर मौजूद ग्लेशियर के 2040 तक विलीन होने का अनुमान है।
उभरते खतरे:
- प्रो-ग्लेशियल झीलें और GLOF:
- इस रिपोर्ट में प्रो-ग्लेशियल झीलों के तेजी से बढ़ने पर जोर दिया गया है, जिससे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) का खतरा पैदा हो गया है।
- 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ जैसे उदाहरण हिमनदों (glacial) के पिघलने के विनाशकारी परिणामों के उदाहरण हैं, जिसके परिणामस्वरूप भयावह बाढ़ आई।
- चुंगथांग बांध का मामला:
- 2023 में सिक्किम में चुंगथांग बांध का विनाश पिघलते ग्लेशियर और अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) आपदा से उत्पन्न GLOF प्रभाव का एक ज्वलंत उदाहरण है।
- त्वरित ग्लेशियर विलीनता:
- पिछले दशक की तुलना में 2010 के दशक में हिंदू कुश हिमालय में ग्लेशियरों के विलीन होने में 65% की तेजी आई।
- वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से ग्लेशियर की मात्रा में 55% से 75% तक कमी आने का अनुमान है, जिससे 2050 तक मीठे पानी की आपूर्ति प्रभावित होगी।
जलवायु संवेदनशीलता और निगरानी:
- कठोर निगरानी की आवश्यकता:
- ग्लेशियर सिस्टम तापन (वार्मिंग) के प्रति उच्च संवेदनशीलता प्रदर्शित करते हैं, जिसके लिए व्यापक निगरानी की आवश्यकता होती है।
- हिमालय में GLOF घटनाओं के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का अभाव बढ़ी हुई निगरानी की तात्कालिकता को रेखांकित करता है।
समाधान:
- व्यापक जोखिम मूल्यांकन:
- कमजोर क्षेत्रों और संभावित GLOF-प्रवण क्षेत्रों की पहचान करने के लिए व्यापक जोखिम मूल्यांकन विकसित करना।
- देखभाल के उच्चतम मानकों के साथ मैपिंग और बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देना।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली:
- GLOF घटनाओं के लिए चक्रवात, बाढ़ और भूकंप के समान प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली की स्थापना करना।
- ग्लेशियर संबंधी आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए तैयारी और प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाना।
सारांश: त्वरित जलवायु परिवर्तन के सामने अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समान ग्लेशियर खतरों को एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक के रूप में समझना जरूरी है। प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को लागू करने, व्यापक जोखिम मूल्यांकन करने और बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देने की तात्कालिकता को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहा जा सकता है। |
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
भारत-श्रीलंका संबंध
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विषय: विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों एवं राजनीति का भारत के हितों पर प्रभाव।
मुख्य परीक्षा: भारत-श्रीलंका संबंध
सन्दर्भ: श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने हाल ही में तमिलनाडु में रामेश्वरम और श्रीलंका के तलाईमन्नार के बीच पुल बनाने के दो दशक पुराने दृष्टिकोण को पुनर्जीवित करते हुए भारत के साथ भूमि संपर्क स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है।
- यह प्रस्ताव दोनों देशों के लिए विकास के अवसरों को बढ़ावा देते हुए क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है।
1. ऐतिहासिक संदर्भ:
- रानिल विक्रमसिंघे ने क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण की कल्पना करते हुए दो दशक पहले चेन्नई में पुल का विचार प्रस्तावित किया था।
- सिंहली-बौद्धों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले समूहों के विरोध में परियोजना के लाभों को लेकर चिंता व्यक्त की गई, जिससे प्रगति रूक गई।
2. हालिया घटनाक्रम:
- विक्रमसिंघे और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बीच जुलाई में एक संयुक्त बयान में व्यवहार्यता अध्ययन का उल्लेख करते हुए भूमि कनेक्टिविटी के प्रति प्रतिबद्धता दोहराई गई थी।
- विक्रमसिंघे ने अपने हालिया बजट संबोधन में भारत की आपूर्ति जरूरतों को पूरा करने के लिए कोलंबो और त्रिंकोमाली बंदरगाहों के उपयोग के लिए परियोजना के महत्व पर प्रकाश डाला।.
3. बुनियादी ढाँचा अंतराल:
- साझा आकांक्षाओं के बावजूद, बुनियादी ढांचे के विकास में संबंधों की गहराई में कमी है।
- उदाहरण के लिए, दोनों देशों के बिजली नेटवर्क को जोड़ने का विचार 1970 में भी आया था।
- दोनों देशों द्वारा द्विपक्षीय ग्रिड पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हुए 13 साल से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन एक भी यूनिट बिजली पारेषित नहीं की गई है।
- बांग्लादेश के साथ ऊर्जा सहयोग में प्रगति श्रीलंका से अधिक है।
4. व्यापार और आर्थिक संबंध:
- भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते (1998) में बड़ी प्रगति नहीं देखी गई है, और आर्थिक सहयोग वार्ता हाल ही में फिर से शुरू हुई है।
- भारत ने श्रीलंका के लिए आयात के सबसे बड़े स्रोत के रूप में अपनी स्थिति फिर से हासिल कर ली है, जो कुल आयात का लगभग 26% है।
5. संभावनाएं एवं कम प्रदर्शन:
- 2021 में भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय व्यापार $5.45 बिलियन था, जो बांग्लादेश के साथ भारत के व्यापार ($18.14 बिलियन) से काफी कम है।
- पर्यटन, श्रीलंका के लिए एक प्रमुख राजस्व स्रोत है, लेकिन भारत में पर्यटकों के आगमन का सबसे बड़ा स्रोत होने के बावजूद इसकी क्षमता का दोहन नहीं हुआ है।
6. पहल और गति:
- हाल के घटनाक्रम, जैसे हवाई सेवाओं और संयुक्त उद्यमों की बहाली, सकारात्मक गति का संकेत देते हैं।
- यात्री नौका सेवाओं और आर्थिक सहयोग जैसी पहलों को बनाए रखना और बढ़ाना प्रगति के लिए आवश्यक है।
7. बांग्लादेश से सीखना:
- ऐतिहासिक चुनौतियों के बावजूद, श्रीलंका को पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक संबंध स्थापित करने में बांग्लादेश से सीखना चाहिए।
- साझा समृद्धि के लिए राजनीतिक बाधाओं पर काबू पाना और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।
भावी कदम:
- सतत पहल:
- हवाई सेवाओं, संयुक्त उद्यमों और यात्री नौका सेवाओं जैसी हालिया पहलों को जारी रखना और बढ़ाना।
- व्यापार, पर्यटन और बुनियादी ढांचे सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिए नए रास्ते तलाशना।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति:
- बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और सहयोग के संभावित लाभों को प्रदर्शित करके ऐतिहासिक विरोध का समाधान करना।
- राजनीतिक समर्थन हासिल करने के लिए आर्थिक लाभ और रोजगार सृजन की क्षमता पर जोर देना।
- व्यापक आर्थिक समझौता:
- मौजूदा मुक्त व्यापार समझौते को आगे बढ़ाते हुए आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते पर बातचीत में तेजी लाना।
- व्यापार और निवेश बाधाओं को दूर करने हेतु आर्थिक सहयोग के लिए एक व्यापक रूपरेखा स्थापित करना।
सारांश: भारत और श्रीलंका के बीच घाटे को पाटना केवल भौतिक कनेक्टिविटी का मामला नहीं है, अपितु साझा आर्थिक विकास के लिए एक रणनीतिक अनिवार्यता है। |
प्रीलिम्स तथ्य:
1. RBI ने रेपो दर 6.5% पर बरकरार रखा
सन्दर्भ: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने प्रमुख ब्याज दरों को बरकरार रखते हुए रेपो दर को 6.5% पर बरकरार रखा है।
संबोधित मुद्दे:
- अपरिवर्तित रेपो दर:
- MPC ने प्रमुख रेपो दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया, जिससे उधारकर्ताओं को तत्काल कोई राहत नहीं मिलेगी।
- अक्टूबर में खाद्य मुद्रास्फीति के दोहरे अंक के स्तर से घटकर 6.2% होने के बावजूद, अनिश्चितताएँ बनी हुई हैं, विशेष रूप से खाद्य कीमतों से संबंधित अनिश्चितताएँ हैं।
- GDP वृद्धि अनुमान:
- इस समिति ने आर्थिक सुधार में विश्वास को दर्शाते हुए 2023-24 के लिए जीडीपी वृद्धि अनुमान को संशोधित कर 7% कर दिया।
- वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी, उपर्युक्त संशोधन भारत के आर्थिक प्रदर्शन को लेकर आशावाद का संकेत देता है।
- मुद्रास्फीति संबंधित चिंताएँ:
- मुद्रास्फीति को 5% से नीचे लाने में प्रगति को स्वीकार करते हुए, गवर्नर दास ने 4% मुद्रास्फीति लक्ष्य तक पहुंचने की चुनौती पर प्रकाश डाला।
- आपूर्ति के झटकों से प्रभावित मुद्रास्फीति चिंता का विषय बनी हुई है, नवंबर और दिसंबर में संभावित उछाल की उम्मीद है।
निर्णय का महत्व:
- सतर्क दृष्टिकोण: मुद्रास्फीति में वृद्धि पर सतर्क रुख, विशेष रूप से खाद्य मुद्रास्फीति के प्रबंधन में सतर्कता की आवश्यकता पर जोर देता है।
- RBI छिटपुट झटकों के सामान्यीकृत होने और समग्र मुद्रास्फीति प्रवृत्तियों को प्रभावित करने से रोकने के महत्व को पहचानता है।
लंबे समय तक विराम बनाए रखना:
- संभावना है कि RBI अगस्त 2024 तक मौद्रिक नीति दर पर लंबे समय तक विराम जारी रखेगा।
- इसके बाद 4% मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने के सन्दर्भ में सुधार के आधार पर आगामी निर्णय की संभावना है।
स्रोत: The hindu
2. गैर-सरकारी सदस्य विधेयक
सन्दर्भ: एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, भारत में राज्यपालों की जवाबदेही के मुद्दे को संबोधित करते हुए एक गैर-सरकारी सदस्य विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया। CPI(M) सांसद द्वारा पेश किए गए इस विधेयक का उद्देश्य राज्यपालों को पद से हटाने के लिए राज्य विधानसभाओं को शक्तियां प्रदान करना है।
- इस प्रस्ताव पर संसदीय चर्चा से महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपालों की जवाबदेही सुनिश्चित करने वाली प्रणाली की आवश्यकता पर व्यापक चर्चा शुरू हुई।
ऐसे मुद्दे जिन पर चर्चा इसमें शामिल हैं:
- राज्यपालों की जवाबदेही:
- प्राथमिक चिंता राज्यपालों की जवाबदेही तय करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करने के इर्द-गिर्द है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें वैध समर्थन प्राप्त है और वे राज्य के लोगों के प्रति जवाबदेह हैं।
- विधेयक में तर्क दिया गया है कि कार्यकारी आदेशों के माध्यम से राज्य सरकारों के प्रमुख (Head of State governments) की नियुक्ति की वर्तमान प्रथा लोकतांत्रिक और संघीय सिद्धांतों के विपरीत है।
- लोकतांत्रिक नियुक्ति प्रक्रिया:
- इस विधेयक में संविधान में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि राज्यपालों का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाना चाहिए।
- निर्वाचक मंडल में राज्यों की विधान सभाओं के साथ-साथ राज्यों के भीतर ग्राम पंचायतों, नगर पालिकाओं और निगमों के निर्वाचित सदस्य शामिल होंगे।
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व और गुप्त मतदान:
- राज्यपालों के लिए प्रस्तावित चुनाव प्रक्रिया में एकल हस्तांतरणीय वोट प्रणाली के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व पर जोर दिया गया है।
- पारदर्शिता पर जोर देते हुए विधेयक में सुझाव दिया गया है कि ऐसे चुनावों में मतदान गुप्त मतदान के माध्यम से कराया जाना चाहिए।
विधेयक का महत्व:
- संघीय अधिकारों का संरक्षण:
- कई विपक्षी सदस्यों द्वारा समर्थित विधेयक, राज्यों के संघीय अधिकारों की सुरक्षा के लिए संसदीय हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- यह लोकतांत्रिक और पारदर्शी दृष्टिकोण के महत्व पर जोर देते हुए नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित चिंताओं को दूर करने का प्रयास करता है।
- राज्यपाल पद की वैधता और गरिमा:
- विधेयक में निहित उद्देश्यों और कारणों के विवरण में इस बात पर जोर दिया गया है कि राज्यपाल पद के कद और गरिमा के लिए पदधारी को लोगों का वैध समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है।
- निर्वाचक मंडल दृष्टिकोण की बात करके, इस विधेयक का उद्देश्य राज्यपाल पद की वैधता को बढ़ाना है।
- लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बढ़ावा देना:
- प्रस्तावित संशोधन लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप हैं, जिसमें राज्यपालों की नियुक्ति में निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका निभाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व और गुप्त मतदान इस प्रक्रिया में लोकतांत्रिक आदर्शों को और मजबूत करते हैं।
3. केंद्र ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया और गेहूं की स्टॉक सीमा में संशोधन किया
सन्दर्भ: केंद्र सरकार ने बढ़ती स्थानीय कीमतों को नियंत्रित करने के लिए प्याज के निर्यात पर 31 मार्च, 2024 तक प्रतिबंध लगा दिया है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) द्वारा सूचित इस निर्णय के कारण महाराष्ट्र के नासिक में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया है।
- इसके अतिरिक्त, केंद्र ने मुद्रास्फीति और जमाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए गेहूं स्टॉक सीमा को संशोधित किया है। ये घटनाक्रम कृषि नीतियों में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप को दर्शाते हैं, जिससे विभिन्न हितधारकों की ओर से प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।
प्याज निर्यात प्रतिबंध:
- सरकारी निर्देश:
- DGFT ने गुरुवार देर रात एक आदेश में प्याज की निर्यात नीति में संशोधन करते हुए इसे 31 मार्च, 2024 तक मुक्त से निषिद्ध में स्थानांतरित कर दिया।
- यह कदम घरेलू उपलब्धता को बढ़ावा देने और बढ़ती कीमतों को कम करने के उद्देश्य से 31 दिसंबर तक प्याज निर्यात पर 40% शुल्क लगाने के बाद आया है।
- नासिक में विरोध प्रदर्शन:
- नासिक में किसानों ने प्रतिबंध का विरोध किया, मुंबई-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया और प्रमुख बाजारों में प्याज की नीलामी बाधित कर दी।
- किसानों का तर्क है कि प्रतिबंध से उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे ट्रैक्टरों से सड़क अवरुद्ध हो जाएगी और प्याज से लदे वाहन वापस आएँगे।
- किसानों पर प्रभाव:
- प्रदर्शनकारियों का दावा है कि प्रतिबंध असामयिक है, क्योंकि हाल ही में प्याज की कीमतों में गिरावट आई है और इस फैसले से किसानों को नुकसान हो सकता है।
- वे कृत्रिम मूल्य मुद्रास्फीति के लिए बिचौलियों को दोषी ठहराते हुए, मध्यस्थ को शामिल किए जाने के बिना सीधे सरकारी बिक्री की मांग करते हैं।
- सरकारी हस्तक्षेप का आह्वान:
- किसान और व्यापारी संघ अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और प्याज निर्यात प्रतिबंध को रद्द करने हेतु सहयोग मांगने के लिए सरकारी अधिकारियों से मिलने की योजना बना रहे हैं।
गेहूं स्टॉक सीमा संशोधित:
- सरकार का फैसला:
- एक अलग कदम में, केंद्र ने खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने, जमाखोरी रोकने और सट्टेबाजी पर अंकुश लगाने के लिए गेहूं स्टॉक सीमा को संशोधित किया।
- व्यापारियों और थोक विक्रेताओं के लिए सीमा 2,000 टन से घटाकर 1,000 टन कर दी गई तथा खुदरा विक्रेताओं के लिए, संशोधित सीमा प्रति आउटलेट पांच टन है।
- बाज़ार आपूर्ति में वृद्धि:
- सरकार ने खुले बाजार में आपूर्ति तुरंत तीन लाख टन से बढ़ाकर चार लाख टन करने का फैसला किया।
- पंजीकरण और निगरानी:
- गेहूं स्टॉकिंग संस्थाओं को गेहूं स्टॉक सीमा पोर्टल पर पंजीकरण करना और स्टॉक स्थिति को साप्ताहिक रूप से अपडेट करना आवश्यक है।
- अनुपालन न करने पर आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है, जिसमें सख्त प्रवर्तन पर जोर दिया गया है।
- गेहूं की उपलब्धता सुनिश्चित करना:
- देश में गेहूं की कृत्रिम कमी को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारी स्टॉक सीमा के कार्यान्वयन की बारीकी से निगरानी करेंगे।
महत्त्व:
- खाद्य सुरक्षा को संबोधित करना: प्याज निर्यात और गेहूं स्टॉक सीमा पर सरकार के निर्णयों का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा, मूल्य निर्धारण स्थिरता और जमाखोरी की रोकथाम से संबंधित चिंताओं को दूर करना है।
- किसानों की आजीविका: नासिक में विरोध प्रदर्शन प्याज निर्यात प्रतिबंध के समय और किसानों की आजीविका पर प्रभाव को लेकर किसानों की चिंताओं को सामने लाता है।
- संभावित घाटे को कम करने के लिए प्रत्यक्ष सरकारी बिक्री और समर्थन को आवश्यक माना जाता है।
- मुद्रास्फीति प्रबंधन: संशोधित गेहूं स्टॉक सीमा और बढ़ी हुई बाजार आपूर्ति का उद्देश्य मुद्रास्फीति को प्रबंधित करना और आवश्यक वस्तुओं की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
भावी कदम:
- हितधारकों के साथ संवाद
- निर्यात नीतियों को संतुलित करना
4. सिकल सेल रोग के लिए CRISPR जीन थेरेपी
सन्दर्भ: US फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने सिकल सेल रोग के लिए दो जीन थेरेपी को मंजूरी दे दी है, जो इस दर्दनाक और अनुवांशिक रक्त विकार के उपचार में एक महत्वपूर्ण सफलता है।
- ब्लूबर्ड बायो के लाइफजेनिया तथा वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स और CRISPR थेरेप्यूटिक्स के कैसगेवी को मंजूरी दे दी गई है, जिसमें कैसगेवी CRISPR जीन एडिटिंग तकनीक पर आधारित पहला उपचार है।
- दोनों उपचार 12 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए हैं।
निर्णायक उपचार:
- ब्लूबर्ड बायो द्वारा लाइफजेनिया:
- सिकल सेल रोग के लिए अनुमोदित जीन थेरेपी में से एक।
- कमजोरी लाने वाली रक्त विकार के इलाज में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है।
- वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स और CRISPR थेरेप्यूटिक्स द्वारा कैसगेवी:
- इसमें CRISPR जीन एडिटिंग तकनीक का उपयोग होता है, जो एक अभूतपूर्व दृष्टिकोण है जिसे 2020 में नोबेल पुरस्कार से मान्यता मिली है।
- चिकित्सा प्रयोजनों के लिए जीन एडिटिंग के उपयोग में यह एक मील का पत्थर है।
सिकल सेल रोग अवलोकन:
- व्यापकता और प्रभाव:
- एक दर्दनाक, वंशानुगत रक्त विकार, जो अमेरिका में मुख्यतः अश्वेत समुदाय में लगभग 100,000 लोगों को प्रभावित करता है।
- इससे दुर्बल करने वाले लक्षण और समय से पहले मौत हो सकती है.
- सिकल सेल रोग का तंत्र:
- इसके परिणामस्वरूप त्रुटिपूर्ण, सिकल आकार का हीमोग्लोबिन उत्पन्न होता है, जिससे लाल रक्त कोशिकाओं की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता ख़राब हो जाती है।
- सिकल कोशिकाएं आपस में चिपक सकती हैं, जिससे छोटी रक्त वाहिकाओं में रुकावटें, तीव्र दर्द और स्ट्रोक और अंग विफलता जैसी जटिलताएं हो सकती हैं।
थेरेपी एवं अनुमोदन
- लाइफ़जेनिया एवं कैसगेवी अनुमोदन:
- दोनों जीन थेरेपी को 12 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए FDA अनुमोदन प्रदान किया गया।
- सिकल सेल रोग के उपचार में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है।
- CRISPR जीन एडिटिंग तकनीक:
- कैसगेवी जो वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स और CRISPR थेरेप्यूटिक्स के बीच एक सहयोग है, में नोबेल पुरस्कार विजेता CRISPR जीन एडिटिंग तकनीक का उपयोग होता है।
- यह आनुवंशिक विकारों को संबोधित करने के लिए एक अभूतपूर्व दृष्टिकोण का प्रतीक है।
- उपचार आउटलुक:
- वन -टाइम उपचार के रूप में पेश किया गया: दोनों उपचारों को वन -टाइम उपचार के रूप में प्रस्तुत किया गया।
- उनकी प्रभावशीलता की अवधि पर सीमित डेटा, अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण वर्तमान में सिकल सेल रोग के लिए एकमात्र दीर्घकालिक उपचार है।
महत्त्व:
- सिकल सेल उपचार में सफलता: जीन थेरेपी, विशेष रूप से CRISPR-आधारित कैसगेवी की स्वीकृति, सिकल सेल रोग के उपचार में सफलता को दर्शाती है।
- बेहतर प्रबंधन और संभावित परिवर्तनकारी प्रभाव की आशा प्रदान करता है।
- नस्लीय असमानताओं का समाधान करना: उस अश्वेत समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, जो सिकल सेल रोग से असमान रूप से प्रभावित है।
- स्वास्थ्य देखभाल में नस्लीय असमानताओं को दूर करने की दिशा में एक कदम को दर्शाता है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
1. ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOF) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से गलत है/हैं?
1. ये तब घटित होते हैं जब ग्लेशियल झील (glacial lake) बांध टूट जाता है, जिससे विनाशकारी बाढ़ आती है।
2. GLOF केवल भारी वर्षा या पिघले पानी के प्रवाह के कारण झील में पानी के आने के कारण होता है।
निम्नलिखित कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: b
व्याख्या: GLOF केवल भारी वर्षा या पिघले पानी के प्रवाह से नहीं, अपितु ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और अन्य कारकों से भी हो सकता है।
2. गैर-सरकारी सदस्य विधेयक के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. केवल विपक्षी दल के संसद सदस्य को ही गैर-सरकारी सदस्य विधेयक प्रस्तावित करने का अधिकार है।
2. संविधान में एक सीमा का होना यह सुनिश्चित करता है कि सदन का एक सदस्य एक सत्र में अधिकतम चार विधेयक पेश कर सकता है।
3. भारतीय राष्ट्रपति किसी गैर-सरकारी सदस्य के विधेयक को अस्वीकार करने के लिए अत्यांतिक वीटो (Absolute Veto) की शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कितना/कितने गलत है/हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: a
व्याख्या: कथन 1 गलत है. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के सांसद गैर-सरकारी सदस्य विधेयक पेश कर सकते हैं।
3.रेपो दर और रिवर्स रेपो दर के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
1. रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर केंद्रीय बैंक तरलता को विनियमित करने के लिए वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है।
2. रिवर्स रेपो दर वह दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक बाजार में नकदी प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक को पैसा उधार देते हैं।
निम्नलिखित कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: c
व्याख्या: रेपो दर तरलता को नियंत्रित करता है, और रिवर्स रेपो रेट बाजार में नकदी प्रवाह को नियंत्रित करता है।
4. सिकल सेल रोग के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह वंशानुगत लाल रक्त कोशिका विकारों का एक समूह है जो हीमोग्लोबिन को प्रभावित करता है
2. सिकल सेल रोग में, शरीर सामान्य, डिस्क के आकार का हीमोग्लोबिन पैदा करता है।
3. सिकल कोशिकाओं के आपस में चिपक जाने की प्रवृत्ति के कारण सिकल सेल रोग से तीव्र दर्द, स्ट्रोक और अंग विफलता हो सकती है।
उपर्युक्त कथनों में से कितना/कितने सही है/हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: b
व्याख्या: सिकल सेल रोग में त्रुटिपूर्ण, सिकल आकार का हीमोग्लोबिन शामिल होता है जो तीव्र दर्द, स्ट्रोक और अंग विफलता सहित विभिन्न जटिलताओं का कारण बनता है।
5. आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
1. इस अधिनियम में आवश्यक वस्तुओं की स्पष्ट परिभाषा निर्दिष्ट की गई है।
2. केंद्र के पास अनुसूची में वस्तुओं को जोड़ने या इससे हटाने की शक्ति है।
निम्नलिखित कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: b
व्याख्या: इस अधिनियम में आवश्यक वस्तुओं की कोई विशिष्ट परिभाषा प्रदान नहीं की गई है, लेकिन यह केंद्र को अनुसूची को संशोधित करने की शक्ति प्रदान करता है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
1. ग्लेशियरों से होने वाले खतरे को चक्रवात और भूकंप के समान जोखिम श्रेणी में रखा जाना चाहिए। स्पष्ट कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक) (सामान्य अध्ययन – III, आपदा प्रबंधन)
2. बुनियादी ढांचे के विकास, ऊर्जा संपर्क और व्यापार के क्षेत्रों में भारत और श्रीलंका के बीच संबंध अब की तुलना में कहीं अधिक गहरे होने चाहिए। विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक) (सामान्य अध्ययन – II, अंतर्राष्ट्रीय संबंध)
(नोट: मुख्य परीक्षा के अंग्रेजी भाषा के प्रश्नों पर क्लिक कर के आप अपने उत्तर BYJU’S की वेव साइट पर अपलोड कर सकते हैं।)