10 नवंबर 2022 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

पर्यावरण:

  1. स्वच्छ नीले आसमान की आस में:

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

राजव्यवस्था:

  1. भारत में पुलिसिंग पर सहयोगपूर्ण संबंध:

शासन:

  1. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. भूजल निष्कर्षण का स्तर 18 वर्षों में सबसे कम:अध्ययन
  2. केरल सरकार ने राज्यपाल को चांसलर की भूमिका से मुक्त करने हेतु कदम उठाया
  3. केंद्र ने टीवी चैनलों के लिए नए दिशानिर्देश तैयार किए; सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों का प्रसारण अनिवार्य:
  4. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

स्वच्छ नीले आसमान की आस में:

पर्यावरण:

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण।

प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS), वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI), ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से सम्बंधित तथ्य।

मुख्य परीक्षा: दिल्ली में प्रदूषण के उच्च स्तर के प्रमुख कारण एवं इस समस्या के समाधान के लिए किए गए उपायों का मूल्यांकन।

संदर्भ:

  • देश में सर्दियों के मौसम की शुरुआत के साथ ही दिल्ली में एक बार फिर हवा की गुणवत्ता बहुत खराब होती जा रही है और शहर धुंध की चादर से ढका हुआ है।

चित्र स्रोत: द हिंदू

इस मुद्दे के समाधान हेतु अतीत में किए गए विभिन्न उपाय:

  • वर्ष 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के बारे में एक पर्यावरणविद् एम.सी. मेहता द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1989 की रिपोर्ट के अनुसार परिवेशी वातावरण में सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (suspended particulate matter (SPM)) की सांद्रता के मामले में दिल्ली दुनिया का चौथा सबसे प्रदूषित शहर है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने दो मुख्य प्रदूषणकारी कारकों अर्थात् वाहनों और उद्योगों की ओर इशारा करते हुए अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (लगभग 1,300 ) को चरणबद्ध तरीके से बंद करने और इन्हे दिल्ली के आवासीय क्षेत्रों से दूर स्थानांतरित करने का आदेश दिया था।
  • बाद में वर्ष 1996 में, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने दिल्ली के वायु प्रदूषण के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट (SC) ने दिल्ली सरकार को प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए एक “कार्य योजना” लाने हेतु एक नोटिस जारी किया।
  • दिल्ली सरकार द्वारा एक कार्य योजना प्रस्तुत किये जाने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि प्रदूषण के सम्बन्ध में निर्णय लेने और उसके आदेशों के कार्यान्वयन हेतु तकनीकी सहायता की आवश्यकता थी इसके अलावा तत्कालीन पर्यावरण और वन मंत्रालय से दिल्ली के लिए एक प्राधिकरण स्थापित करने की मांग की गई जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1998 में दिल्ली NCR में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (Environmental Pollution Control Authority of Delhi NCR (EPCA))की स्थापना की गयी।
  • EPCA ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें उसने दो साल की कार्य योजना प्रस्तुत की थी इसके बाद सुप्रीम कोर्ट (SC) ने दिल्ली परिवहन निगम (DTC) के बस बेड़े, ऑटो और टैक्सियों की ईंधन प्रणाली को संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
  • 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में प्रदुषण नियंत्रण हेतु कई उपाय किए गए, जैसे कि लेड वाले पेट्रोल को चरणबद्ध तरीके से हटाना, 15 और 17 साल पुराने वाणिज्यिक वाहनों को संचालन से हटाना, टू-स्ट्रोक इंजन ऑटो रिक्शा पर प्रतिबन्ध जिनकी संख्या 55,000 थी और रूपांतरण कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से लेकर गैस आधारित संयंत्रों तक सभी पर प्रतिबन्ध लगाए गए।
  • इसके अलावा, केंद्र ने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (National Air Quality Monitoring Programme (NAMP)) के तहत निगरानी स्टेशनों का एक नेटवर्क स्थापित किया जो प्रमुख प्रदूषकों जैसे पीएम10, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य प्रदूषकों को मापने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board (CPCB).) द्वारा निर्दिष्ट राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards (NAAQS)) का प्रयोग करेगा।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board (CPCB)) से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:Central Pollution Control Board (CPCB)

प्रदूषण के स्तर में रुझान:

  • NAAQS को वर्ष 2009 में PM2.5 सहित अन्य प्रदूषकों की 12 और श्रेणियों को कवर करने के लिए संशोधित किया गया था।
  • पार्टिकुलेट मैटर या PM मुख्य रूप से परिवहन, ऊर्जा, घरों, उद्योग और कृषि जैसे विभिन्न स्रोतों से ईंधन के दहन के कारण उत्पन्न होता है।
  • PM2.5 एक 2.5 माइक्रोन से कम व्यास वाला कण है जिसे एक हानिकारक प्रदूषक माना जाता है क्योंकि यह फेफड़ों में प्रवेश कर सकता है और यहां तक कि रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाता है जिससे मानव शरीर में गंभीर हृदय और श्वसन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • संशोधित NAAQS के अनुसार PM2.5 के लिए स्वीकार्य वार्षिक सीमा 40 माइक्रोग्राम/घन मीटर (ug/m3) और PM10 के लिए 60 ug/m3 है।
  • अर्बन एमिशन्स डॉट इन्फो (UrbanEmissions.Info ) द्वारा वर्ष 1998 से 2020 तक अखिल भारतीय स्तर पर PM2.5 की सांद्रता पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली को हर साल सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक प्रदूषित पाया गया हैं।
  • अध्ययन में यह भी कहा गया है कि दिल्ली का वार्षिक PM2.5 स्तर लगभग 40% बढ़कर 80 g/m3 से 111 g/m3 हो गया है।
  • इसके अतिरिक्त अमेरिका स्थित स्वास्थ्य प्रभाव संस्थान द्वारा वर्ष 2010 से 2019 के बीच किये गए एक अध्ययन में आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद यह भी कहा गया है कि PM2.5 स्तरों के मामले में दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है।
  • वर्ष 2016 की सर्दियों के मौसम के दौरान दिल्ली में सबसे खराब प्रदूषण-प्रेरित स्मॉग देखा गया, जब दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में PM2.5 और PM10 का स्तर 999 ug/m3 को पार कर गया था।
  • सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और NCR के अधिकारियों को वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक योजना तैयार करने को कहा और MoEFCC ने वर्ष 2017 में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (Graded Response Action Plan (GRAP)) की घोषणा की जिसमें प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने और वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index (AQI) ) के स्तर को बढ़ाने के लिए विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय के महत्व पर प्रकाश डाला गया।

दिल्ली में उच्च प्रदूषण के कारण:

  • IIT दिल्ली और मद्रास के विशेषज्ञों द्वारा दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में PM2.5, PM10, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और ओजोन जैसे वायु प्रदूषकों की उच्च सांद्रता को प्रदुषण के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था:
  • जनसंख्या में तेजी से वृद्धि: वर्ष 2011 तक, दिल्ली और NCR क्षेत्र की जनसंख्या 25.8 मिलियन थी जो भारत की शहरी आबादी का 7.6% है।
  • दिल्ली की जनसंख्या वर्ष 2001 में 1.378 करोड़ से बढ़कर 2011 में 1.678 करोड़ हो गई है।
  • इसके अलावा दिल्ली का जनसंख्या घनत्व वर्ष 2001 में 9,340 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से बढ़कर वर्ष 2011 में 11,320 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी हो गया था।
  • औद्योगीकरण और शहरीकरण: प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को दिल्ली से दूर स्थानांतरित करने के बावजूद, दिल्ली-NCR का क्षेत्र अभी भी लघु उद्योगों के सबसे बड़े जमावड़े में से एक है।
  • निजी वाहनों की संख्या में वृद्धि: दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या वर्ष 2004 में लगभग 4.2 मिलियन मोटर वाहनों से बढ़कर 2018 तक लगभग 10.9 मिलियन हो गई है।
  • अर्बन एमिशन्स डॉट इन्फो (UrbanEmissions.Info ) के अनुसार, PM2.5 प्रदूषण के कारणों में वाहनों से होने वाला उत्सर्जन लगभग 30% ,मिट्टी और सड़क की धूल 20%, बायोमास जलने से 20%, उद्योग 15%, डीजल जनरेटर 10%, बिजली संयंत्र 5% और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने (tubble burning) जैसी प्रथाओं के कारण दिल्ली के शहरी एयरशेड के बाहर से होने वाले प्रदूषण का प्रतिशत भी लगभग 30% बढ़ गया है।

किए गए उपायों का मूल्यांकन एवं भावी कदम:

  • विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि पिछले कुछ वर्षों में केंद्र और राज्य के अधिकारियों द्वारा किए गए नीतिगत दृष्टिकोण और उपाय खंडित और प्रतिक्रियाशील रहे हैं।
  • CNG के उपयोग जैसे उपायों से भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं क्योंकि SPM और PM10 के स्तर में मामूली गिरावट आई है जबकि कार्बन मोनोऑक्साइड के स्तर में वृद्धि हुई है।
  • टू-स्ट्रोक ऑटो रिक्शा पर सुप्रीम कोर्ट का प्रतिबंध भी सफल नहीं रहा है क्योंकि इसने क्षेत्र की वृद्धि के विकास को बाधित किया, परमिट की कालाबाजारी और निजी वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई।
  • विशेषज्ञों ने इसे सम्बंधित नीतियों में खामियों को भी उजागर किया है जैसे कि ऑड-ईवन प्रणाली के नियम केवल निजी यात्री वाहनों पर लागू होते है, जिससे बहुत कम उत्सर्जन होता है जबकि भारी मालवाहक वाहनों से बड़े पैमाने पर प्रदूषण होता है।
  • विशेषज्ञों का सुझाव है कि प्रदुषण को रोकने के लिए समन्वित कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए जो वायु प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली के अपशिष्ट प्रबंधन को ध्यान में रखे। क्योंकि कचरे के संचय और अतिप्रवाह लैंडफिल ने आवासीय क्षेत्रों के आसपास कचरे को जलाने की प्रथा को जन्म दिया है।

सारांश:

  • चूंकि दिल्ली में सर्दियों के महीनों में प्रदूषण का स्तर उच्च हो जाता है, अब यह एक वार्षिक आवर्ती घटना बन गई है,विशेषज्ञों का मानना है कि इस तथ्य को महसूस करना महत्वपूर्ण है कि प्रदूषण के स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा साल भर मौजूद रहता है,जो केवल सर्दियों के महीनों में प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों के कारण और बढ़ जाता है। अतः इस प्रकार की समस्या से निजात पाने के लिए स्टॉप-गैप और मौसमी दृष्टिकोणों को दूर किया जाना चाहिए क्योंकि वे असंतोषजनक परिणाम देते हैं।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

भारत में पुलिसिंग पर सहयोगपूर्ण संबंध:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

विषय : संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियां

मुख्य परीक्षा: प्रतिस्पर्धा और सहयोग जो भारत में संघ की प्रकृति को आकार प्रदान करते हैं।

संदर्भ:

  • राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने हाल ही में कोयंबटूर कार विस्फोट मामले में तमिलनाडु में तलाशी अभियान चलाया।

भूमिका:

  • 23 अक्टूबर, 2022 को तमिलनाडु के कोयंबटूर में एक कार के अंदर एलपीजी सिलेंडर में विस्फोट हुआ। विस्फोट कोट्टई ईश्वरन मंदिर के पास हुआ, जिसमें एक 25 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई, जिसकी पहचान जमीजा मुबीन के रूप में हुई।
  • तमिलनाडु राज्य सरकार ने 27 अक्टूबर, 2022 को मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया।
  • एनआईए ने 2019 में मृतक मुबीन से मोहम्मद अजहरुद्दीन के साथ उसके संबंध के लिए पूछताछ की थी, जो वर्तमान में 2019 में श्रीलंका में घातक ईस्टर संडे बम विस्फोट के आरोप में जेल में है।
  • तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि ने निराशा व्यक्त की कि घटना के चार दिन बाद मामला एनआईए को सौंपा गया।
  • राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने समय की देरी को सही ठहराया क्योंकि, उन्हें एनआईए को मामला सौंपने के लिए प्रारंभिक जांच की आवश्यकता थी।

सरदार वल्लभ भाई पटेल का पुलिसिंग पर दृष्टिकोण:

  • IPS में प्रतिभा के उपयोग और राज्यों में उपलब्ध संसाधनों के बंटवारे को लेकर गृह मंत्रालय और कुछ राज्यों के बीच कुछ टकराव हैं।
  • कार्मिक प्रबंधन से संबंधित मुद्दों ने केंद्र और राज्यों में प्रशासन को समय-समय पर प्रभावित किया है।
  • केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के उपयोग या कथित दुरुपयोग को लेकर राज्यों और केंद्र के बीच अक्सर विवाद होते रहते हैं।
    • राज्य में सीबीआई की कार्यवाई के लिए सहमति को कुछ राज्यों द्वारा वापस लेने से राजनीति की बू आती है और यह प्रतिशोध लोक सेवक के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करता है।
    • छोटी-मोटी तकरार विचारों के आदान-प्रदान को कम करती है और कठिन परिस्थितियों में पुलिस की प्रतिक्रिया को कमजोर करती है जिसके लिए पुलिस सहायता की आवश्यकता होती है।
  • भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की प्रविष्टि 2, सूची II में ‘पुलिस’ को राज्य सूची में रखा गया है, जिसका अर्थ है कि पुलिस से संबंधित सभी मामलों पर राज्य सरकार द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
    • राजनीतिक रूप से संचालित पुलिसिंग प्रक्रिया के प्रभाव और कुछ नहीं बल्कि निष्पक्षता और समानता के लिए एक चुनौती है और स्वाभाविक रूप से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से एक धोखा है।

इस संबंध में आवश्यक परिवर्तन:

  • संवैधानिक व्यवस्था में, अखिल भारतीय सेवाएं केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों की कड़ी थी।
  • यद्यपि ‘पुलिस’ राज्य का विषय है। आतंकवाद और अन्य प्रमुख सार्वजनिक गड़बड़ी से निपटने के लिए पुलिस की क्षमता को तेज करने में बहुत योगदान देता है। यह प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी के मामलों में केंद्र सरकार का कहना है ।
    • हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी एक विश्व स्तरीय संस्थान है जिसके पास संसाधन और पेशेवर उत्कृष्टता है जिसकी सेवाएं राज्य पुलिस बलों के लिए उदारतापूर्वक उपलब्ध है।
  • राजनीतिक नेतृत्व को केंद्र और राज्यों के बीच प्रतिभा और संसाधनों के मुक्त आदान-प्रदान को बढ़ावा देने की दिशा में काम करना चाहिए।
  • मामलों में तेजी लाने के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं की जांच, कमियों की पहचान और सुधारात्मक उपायों की शुरुआत आवश्यक है।
  • केंद्र और राज्य एक सहयोगी संबंध साझा करते हैं। ऐसी स्थितियाँ होंगी जिनमें बड़ी संख्या में प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों की आवश्यकता होगी।
    • केंद्र केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के समर्थन से इसमें शामिल हो सकता है।
    • सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) जैसे संगठन भी राज्य पुलिस के साथ मिलकर काम कर सकते हैं।
  • इसलिए, केंद्र और राज्य प्रशासन को आपस में टकराव से बचना चाहिए और यह पता लगाना चाहिए कि पुलिसिंग में एक मजबूत सौहार्द कैसे कायम किया जाए।

सारांश:

  • पुलिसिंग एक सहयोगात्मक प्रयास है। कोयंबटूर कार विस्फोट के बाद तमिलनाडु राज्य पुलिस और एनआईए के संबंध में हाल की घटनाओं से पता चलता है कि गृह मंत्रालय और कुछ राज्यों के बीच पुलिस में प्रतिभा का उपयोग करने और संसाधनों के बंटवारे को लेकर अभी भी टकराव है। राज्य पुलिस एजेंसियों और केंद्रीय पुलिस संगठनों की जरूरतें अलग और अनूठी हो सकती हैं, परंतु उनका अंतिम साझा लक्ष्य भारत की सुरक्षा होनी चाहिए।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

विषय: विकास हेतु सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप

मुख्य परीक्षा: भारत में आरक्षण हेतु विभिन्न मानदंड

संदर्भ:

  • हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 103 वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान करता है।

भूमिका:

  • उच्चतम न्यायालय ने 3:2 के बहुमत से, शिक्षा और सरकारी नौकरियों में अगड़ी जातियों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले संविधान के 103वें संशोधन की वैधता को बरकरार रखा।
  • पांच जजों की पीठ में तीन जजों ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के आरक्षण का कानून संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन नहीं है और यह मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त आरक्षण संविधान के प्रावधानों का भी उल्लंघन नहीं करता है।
    • मंडल आयोग द्वारा निर्धारित 50% की अधिकतम सीमा के आधार पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण आधारभूत ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है क्योंकि इसकी उच्चतम सीमा में लचीलापन है।
    • एक मत यह भी है कि आरक्षण न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए बल्कि वंचित वर्ग के लिए भी महत्वपूर्ण है।
  • पीठ के अन्य दो जजों ने माना कि आरक्षण को एक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शक्तिशाली तंत्र के रूप में डिज़ाइन किया गया था। आर्थिक मानदंड को शामिल करना और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग को इस श्रेणी से बाहर करना तथा यह मानना कि ये लाभ उन्हें पहले से प्राप्त हैं, अन्याय है और यह समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है और बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है।
    • 50% की अधिकतम सीमा के उल्लंघन की अनुमति देना “भविष्य में भी उल्लंघन के लिये एक कारक बन सकता है जिसका परिणाम कंपार्टमेंटलाइज़ेशन (खंडों में विभाजन) होगा।

सामाजिक पिछड़ापन:

  • 2015 में, उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा आरक्षण के लाभ हेतु जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की केंद्रीय सूची में शामिल करने के लिए जारी अधिसूचना को खारिज कर दिया।
  • अपने निर्णय में, न्यायालय ने आरक्षण के लाभों के लिए पिछड़े वर्गों की पहचान हेतु नए मानदंड निर्धारित किए और राज्य की सकारात्मक कार्रवाई की अवधारणा को पुनः परिभाषित किया।
  • न्यायालय ने यह भी माना कि जाति, जिसे ऐतिहासिक रूप से देश में अन्याय का एक प्रमुख कारण माना जाता है, पिछड़ेपन का एकमात्र निर्धारक नहीं हो सकता है। पिछड़ेपन की जाति-केंद्रित परिभाषा से हटकर नई प्रथाओं, विधियों और मानदंडों को लगातार विकसित करना होगा।
  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, “सामाजिक पिछड़ापन” में केवल शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन ही शामिल नहीं है, बल्कि यह “एक अलग अवधारणा” है जो सामाजिक और सांस्कृतिक से लेकर आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक तक कई परिस्थितियों से उभरती है।
  • न्यायालय ने माना कि ‘पिछड़ेपन के सुलभ निर्धारण’ के लिए जाति एक प्रमुख कारक हो सकती है, लेकिन निर्णय में “केवल जाति के आधार पर एक समूह को पिछड़ा वर्ग के रूप में पहचानने” की प्रक्रिया हतोत्साहित किया और “नई प्रथाओं, पद्धतियों और मानदंडों” को विकसित करने का आह्वान किया।
  • न्यायसंगत अधिकारों के साथ ट्रांसजेंडरों को एक अलग समुदाय के रूप में मान्यता देने के अपने निर्णय का हवाला देते हुए, न्यायालय ने सरकारी लाभों के लिए पात्रता निर्धारित करने में सामाजिक पिछड़ेपन के एक ऐसे रूप की पहचान करने जिसका जाति या वर्ग से कोई लेना-देना नहीं था के लिए स्वयं को बधाई दी।

2015 के निर्णय के निहितार्थ:

  • न्यायालय के निर्णय ने नीति-निर्माताओं के लिए एक जटिल समस्या खड़ी कर दी कि “सामाजिक पिछड़ापन” क्या है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण के लिए पहचान के आधार के रूप में जाति को खारिज कर दिया।
  • न्यायालय ने पिछड़ेपन के ‘अतीत’ और ‘उभरते’ रूपों के बीच एक रेखा खींचते हुए, इतिहास को एक अपर्याप्त मार्गदर्शक मानकर “सभी मोर्चों पर सभी नागरिकों की प्रगतिशील उन्नति, यानी, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक” अवधारणा को आगे बढ़ाया।
  • आरक्षण हेतु ‘सामाजिक पिछड़ापन’ तय करने के लिए सरकार अभी तक कोई नया मानदंड नहीं बनाया है। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग पर हालिया निर्णय जिसमें भेदभाव के कारण के रूप में गरीबी शामिल है, ‘सामाजिक पिछड़ेपन’ पर उठने वाला प्रश्न महत्वपूर्ण हो गया है।

सारांश:

  • हाल ही में पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण प्रदान करने वाले संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखा। यह सर्वोच्च न्यायालय के 2015 के निर्णय की पुष्टि करता है जिसने आरक्षण के लाभों के लिए पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए नए मानदंड निर्धारित किए और राज्य द्वारा सकारात्मक कार्रवाई की अवधारणा को पुनः परिभाषित किया।

प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

1.भूजल निष्कर्षण का स्तर 18 वर्षों में सबसे कम:अध्ययन

  • केंद्रीय भूजल बोर्ड (Ground Water Board (CGWB)) द्वारा किए गए एक आकलन के अनुसार देश में भूजल निष्कर्षण में 18 साल की गिरावट देखी गई है।
  • इसक अलावा अति-दोहन की जाने वाली इकाइयों की संख्या में समग्र कमी और भूजल निष्कर्षण स्तर के स्तर में कमी की भी सूचना मिली है।
  • वर्ष 2022 की आकलन रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण 437.6 बिलियन क्यूबिक मीटर (billion cubic metres (bcm) ) है और पूरे देश के लिए वार्षिक भूजल निकासी 239.16 bcm है।
  • वर्ष 2020 में, वार्षिक भूजल पुनर्भरण 436 bcm और निष्कर्षण 245 bcm था और वर्ष 2017 में, पुनर्भरण 432 bcm और निष्कर्षण 249 bcm था।
  • 2022 में भूजल निष्कर्षण 2004 के बाद से सबसे कम रहा है, उस वर्ष यह 231 bcm था।
  • इसके अलावा रिपोर्ट में 7,089 मूल्यांकन इकाइयों में से केवल 1,006 इकाइयों को “अति-दोहन” के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • विश्लेषण से पता चलता है कि भूजल पुनर्भरण में वृद्धि मुख्य रूप से नहर के रिसाव से पुनर्भरण में वृद्धि, सिंचाई जल के वापसी प्रवाह और जल निकायों/टैंकों और जल संरक्षण संरचनाओं से पुनर्भरण के कारण हुई है।

2. केरल सरकार ने राज्यपाल को चांसलर की भूमिका से मुक्त करने हेतु कदम उठाया:

चित्र स्रोत: द हिंदू

  • केरल सरकार ने केरल के राज्यपाल को राज्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के पद से हटाने का फैसला किया है और फैसला लिया है कि वह राज्य की यूनिवर्सिटी का चांसलर राज्यपाल के बदले “प्रसिद्ध अकादमिक विशेषज्ञों” को बनाएगी।
  • केरल सरकार द्वारा एक अध्यादेश के प्रस्ताव में विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर राज्यपाल की जगह प्रसिद्ध अकादमिक शिक्षाविदों को लाकर केरल सरकार औपचारिक रूप से तमिलनाडु, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के क्लब में शामिल हो गई है।
  • राज्य मंत्रिमंडल ने उल्लेख किया कि 2007 में स्थापित पुंछी आयोग (Punchhi Commission) ने सिफारिश की थी कि राज्य सरकारें कुलाधिपति की भूमिका के साथ राज्यपालों पर बोझ डालने से बचें और कहा कि सरकार विश्वविद्यालयों की अधिकार क्षेत्र की स्वायत्तता को राज्यपाल के अतिक्रमण से बचाने के लिए किसी भी हद तक जाएगी।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, संविधान की प्रविष्टि 32 के तहत विश्वविद्यालय राज्य का विषय है।
  • इस प्रकार, राज्य मंत्रिमंडल के पास इस मामले पर एक अध्यादेश लाने की शक्ति है जबकि विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता तय करने वाली UGC कुलपतियों की भूमिका पर चुप है।
  • विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की भूमिका से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Role of Governor as Chancellor of Universities

3.केंद्र ने टीवी चैनलों के लिए नए दिशानिर्देश तैयार किए; सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों का प्रसारण अनिवार्य:

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने टीवी चैनलों के अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग के लिए नए दिशानिर्देशों को मंजूरी दे दी हैं, जिसके तहत अनुमति वाले सभी स्टेशनों को हर दिन कम से कम 30 मिनट के लिए राष्ट्रीय महत्व और सामाजिक प्रासंगिकता के मुद्दों पर सामग्री प्रसारित करना होगा।
  • सरकार के ये दिशानिर्देश विदेशी चैनलों और खेल चैनलों को उपरोक्त सामग्री से प्रसारण से छूट प्रदान करते हैं क्योंकि इस तरह की सामग्री को प्रसारित करना संभव नहीं है।
  • यह स्वीकार करते हुए कि एयरवेव्स या फ़्रीक्वेंसी को सार्वजनिक संपत्ति माना जाता है और इसका प्रयोग समाज के सर्वोत्तम हित में किया जाना चाहिए है, इन दिशानिर्देशों ने आठ विषयों को राष्ट्रीय महत्व और सामाजिक प्रासंगिकता के रूप में सूचीबद्ध किया है जिसमें निम्न शामिल हैं:
  • शिक्षा और साक्षरता; विज्ञान और प्रौद्योगिकी; कृषि और ग्रामीण विकास; महिलाओं का कल्याण; समाज के कमजोर वर्गों का कल्याण; स्वास्थ्य और परिवार कल्याण; पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा; और राष्ट्रीय एकीकरण।
  • ये दिशानिर्देश वर्ष 2011 से चालू मौजूदा दिशानिर्देशों की जगह लेंगे और टीवी चैनलों और संबंधित गतिविधियों के अपलिंकिंग-डाउनलिंकिंग के लिए भारत में पंजीकृत कंपनियों और सीमित देयता भागीदारी (limited liability partnership (LLP)) फर्मों को अनुमति के मुद्दे को आसान बनाएंगे।
  • इसके अलावा, कार्यक्रमों के सीधे प्रसारण के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता को हटा दिया गया है और लाइव प्रसारण के लिए केवल कार्यक्रमों का पूर्व पंजीकरण आवश्यक होगा।
  • साथ ही, भाषा बदलने या ट्रांसमिशन के मोड जैसे स्टैंडर्ड डेफिनिशन को हाई डेफिनिशन में बदलने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि अब केवल पूर्व सूचना ही पर्याप्त होगी।

4.डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला:

  • न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में भारत के 50 वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ दिलाई।
  • मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ को “लोकतंत्र के सुरक्षा वाल्व” के रूप में असहमति के वर्णन के लिए जाना जाता है,और वे संविधान की कई पीठों का हिस्सा रहे जिन्होंने अयोध्या भूमि विवाद निर्णय और के.एस. पुट्टस्वामी (K.S. Puttaswamy jugement ) के फैसले ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा।
  • वह उन बेंचों का भी हिस्सा थे जिन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 ( Section 377 of the Indian Penal Code) (समान-सेक्स संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना), आधार योजना की वैधता और सबरीमाला मुद्दे पर पथ-प्रदर्शक निर्णय दिए।
  • न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ दो साल की अवधि के लिए CJI के रूप में काम करेंगे और उनके पिता वाई.वी. चंद्रचूड़ को सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले CJI के रूप में जाना जाता है, जो 22 फरवरी, 1978 से 11 जुलाई, 1985 तक इस पद पर रहे।
  • इस विषय से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए 20 अक्टूबर 2022 का यूपीएससी परीक्षा व्यापक समाचार विश्लेषण देखें।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. ‘विक्रम-S’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – कठिन)

1. यह भारत का प्रथम निजी तौर पर विकसित प्रक्षेपण यान है।

2. यह तीन चरणों वाला एक उप-ध्रुवीय प्रक्षेपण यान है।

3. यह सेमी-क्रायोजेनिक ईंधन द्वारा संचालित सिंगल पीस, पूर्ण 3D प्रिंटेड सेकेंड स्टेज रॉकेट इंजन का उपयोग करता है।

दिए गए कथनों में से कितने गलत है/हैं?

(a) केवल एक कथन

(b) केवल दो कथन

(c) तीनों कथन

(d) इनमें से कोई भी नहीं

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: विक्रम-एस भारत का पहला निजी तौर पर विकसित प्रक्षेपण यान है।
  • कथन 2 सही नहीं है: विक्रम-S रॉकेट एक सिंगल-स्टेज सब-ऑर्बिटल लॉन्च व्हीकल है।
  • कथन 3 सही नहीं है: वर्तमान में, विक्रम रॉकेट को इस तरह से विकसित किया गया है कि वह ठोस और क्रायोजेनिक ईंधन का उपयोग करने एवं लगभग 290 किलोग्राम से 560 किलोग्राम पेलोड को सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षाओं में ले जाने में सक्षम हैं।
  • चेन्नई मुख्यालय वाले स्पेसटेक स्टार्ट-अप अग्निकुल कॉसमॉस ने हाल ही में घोषणा की है कि इसने सेमी-क्रायोजेनिक ईंधन एग्निलेट द्वारा संचालित दुनिया के पहले सिंगल पीस, पूरी तरह से 3डी प्रिंटेड, दूसरे चरण के रॉकेट इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से किस पर कब्ज़ा और बिक्री वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और CITES के तहत निषिद्ध है? (स्तर – कठिन)

1. मगरा ऊन

2. पश्मीना

3. शाहतोश

4. चोकला ऊन

विकल्प:

(a) केवल 2 और 3

(b) केवल 3 और 4

(c) केवल 1, 2 और 4

(d) केवल 3

उत्तर: d

व्याख्या:

  • शाहतोश तिब्बती मृग से प्राप्त एक महीन अंडरकोट (अस्तर) फाइबर है जिसे स्थानीय रूप से “चिरू” (Chiru) के रूप में जाना जाता है, जो मुख्य रूप से तिब्बत में चांगथांग पठार के उत्तरी भागों में रहने वाली मृग प्रजाति है।
  • वर्ष 1979 में CITES (जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन) में तिब्बती मृग शामिल किये गए थे क्योंकि जानवरों के व्यावसायिक शिकार के कारण उनकी आबादी में गिरावट आ रही थी जिसके कारण शाहतोश शॉल और स्कार्फ की बिक्री और व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • वन्यजीव (रोकथाम) अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत मृग को सुरक्षा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 3. भूकंपीय तरंगों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – मध्यम)

1. सतही तरंगें केंद्र पर ऊर्जा की मुक्ति के कारण उत्पन्न होती हैं और पृथ्वी के माध्यम से यात्रा करने वाली सभी दिशाओं में चलती हैं।

2. प्राथमिक तरंगें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं और गैसीय, तरल और ठोस पदार्थों के माध्यम से गुजरती हैं।

3. द्वितीयक तरंगें केवल ठोस और तरल पदार्थों के माध्यम से गुजर सकती हैं।

दिए गए कथनों में से कितने सही है/हैं?

(a) केवल एक कथन

(b) केवल दो कथन

(c) तीनों कथन

(d) इनमें से कोई भी नहीं

उत्तर: a

व्याख्या:

  • कथन 1 सही नहीं है: भूगर्भीय तरंगें (Body waves) केंद्र पर ऊर्जा की मुक्ति के कारण उत्पन्न होती हैं और पृथ्वी के माध्यम से यात्रा करने वाली सभी दिशाओं में चलती हैं।
  • कथन 2 सही है: प्राथमिक तरंगें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं और ये गैसीय, तरल और ठोस पदार्थों के माध्यम से होकर गुजरती हैं।
  • कथन 3 सही नहीं है: द्वितीयक तरंगें केवल ठोस पदार्थों में ही गमन कर सकती हैं।

प्रश्न 4. राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – मध्यम)

1. NAAQS वायु गुणवत्ता के लिए मानक हैं जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा निर्धारित किए जाते हैं जो पूरे देश में लागू होते हैं।

2. NAAQS के अनुपालन की निगरानी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NAMP) के तहत की जाती है।

3. AQI के लिए वायु गुणवत्ता की माप आठ प्रदूषकों पर आधारित है।

दिए गए कथनों में से कितने सही है/हैं?

(a) केवल एक कथन

(b) केवल दो कथन

(c) तीनों कथन

(d) इनमें से कोई भी नहीं

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) वायु गुणवत्ता के मानक हैं जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा निर्धारित किए जाते हैं और पूरे देश में लागू होते हैं।
  • कथन 2 सही है: NAAQS के अनुपालन की निगरानी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NAMP) के तहत की जाती है, जिसे CPCB द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
  • कथन 3 सही नहीं है: NAAQS के लिए वायु गुणवत्ता का मापन 12 प्रदूषकों पर आधारित है।

प्रश्न 5. कभी-कभी खबरों में रहने वाली ‘गाडगिल समिति रिपोर्ट’ और ‘कस्तूरीरंगन समिति रिपोर्ट’ का संबंध किससे है? PYQ-2016 (स्तर-सरल)

(a) संवैधानिक सुधार

(b) गंगा कार्य योजना

(c) नदियों को जोड़ना

(d) पश्चिमी घाटों का संरक्षण

उत्तर: d

व्याख्या:

  • गाडगिल समिति की रिपोर्ट और कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट दोनों पश्चिमी घाट की सुरक्षा से संबंधित हैं।
  • गाडगिल समिति और कस्तूरीरंगन समिति से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Gadgil Committee and Kasturirangan Committee

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यों के राज्यपालों की भूमिका का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस II – राजव्यवस्था)

प्रश्न 2.हालांकि ‘पुलिस’ राज्य का विषय है, लेकिन इसके प्रभावी कामकाज के लिए केंद्र और राज्य के बीच सहकारी संघवाद आवश्यक है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस II – शासन)