20 सितंबर 2022 : समाचार विश्लेषण
A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: राजव्यवस्था:
C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E.सम्पादकीय: राजव्यवस्था एवं शासन:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
F. प्रीलिम्स तथ्य: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। G.महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
स्कैंडिनेवियाई सामाजिक लोकतंत्र:
राजव्यवस्था:
विषय: अन्य देशों के साथ भारतीय संवैधानिक योजना की तुलना।
मुख्य परीक्षा: नॉर्डिक देशों में सामाजिक लोकतंत्र एवं इसकी प्रमुख विशेषताएं और उपलब्धियां।
संदर्भ:
- हाल ही में स्वीडन में हुए चुनावों की पृष्ठभूमि में, इस लेख में सामाजिक लोकतंत्र के नॉर्डिक मॉडल के बारे में बात की गई हैं।
नॉर्डिक देश: Image Source: WorldAtlas |
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हाल के दिनों में समाजवाद और उसका विकास:
- हालांकि स्कैंडिनेवियाई देशों में राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था मुख्य रूप से कल्याण (welfare) पर आधारित है,लेकिन इसे “समाजवादी/समाजवाद” (socialist) के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।
- समाजवाद को आमतौर पर अतीत में कम्युनिस्ट शासन से जुड़ा हुआ माना जाता है, जिसमें राज्य ने उत्पादन के महत्वपूर्ण साधनों के स्वामित्व एवं राजनीतिक जीवन में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी।
- यह “एकदलीय प्रणाली” से भी जुड़ा है,जहाँ शासन संचालन के लिए अपने वैचारिक सिद्धांत मजदूर वर्ग की ओर से ग्रहण किए जाते है।
- गौरतलब है कि सोवियत संघ के पतन के बाद, हाल के दिनों में नई प्रकार की समाजवादी व्यवस्थाएँ उभरी हैं जो एक दलीय व्यवस्था से दूर होती जा रही हैं।
- इन नए समाजवादी शासनों ने बाजार अर्थव्यवस्थाओं के कामकाज को बनाए रखने,धन के पुनर्वितरण पर जोर देने और इस प्रक्रिया में राज्य की अधिक भागीदारी पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है।
- लैटिन अमेरिकी देशों जैसे वेनेजुएला, बोलीविया और चिली में राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था को “लोकतांत्रिक समाजवादी” माना जाता है।
- इन देशों में शासन का लक्ष्य मुख्य रूप से असमान और कुलीन प्रणालियों में औपचारिक लोकतांत्रिक और उदार संस्थानों के पुनर्विभाजन एवं पुनर्गठन के समाजवादी लक्ष्यों तक पहुंचना हैं।
नॉर्डिक देशों में सामाजिक लोकतंत्र:
- हालाँकि, स्कैंडिनेवियाई देशों में शासन व्यवस्था को “सामाजिक लोकतंत्र” के रूप में जाना जा सकता है।
स्कैंडिनेवियाई देशों में सामाजिक लोकतंत्र शासन निम्न के लिए जाना जाता है:
- प्रतिनिधि और सहभागी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर निर्भरता।
- अधिकारों का विभाजन।
- समग्र सामाजिक कल्याण मॉडल।
- सार्वजनिक रूप से प्रदान की जाने वाली सामाजिक सेवाओं जैसे कि बच्चे की देखभाल, शिक्षा और अनुसंधान में निवेश जो प्रगतिशील कराधान द्वारा वित्त पोषित हैं, पर जोर देना।
- सक्रिय श्रमिक संघों और नियोक्ता संघों के साथ मजबूत श्रम बाजार संस्थानों का अस्तित्व सामूहिक सौदेबाजी, वेतन वार्ता एवं शासन व्यवस्था और नीति के साथ समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
नॉर्डिक देशों के सामाजिक लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएं:
- इन देशों में अपेक्षाकृत छोटी और अधिक समरूप आबादी की वजह से यहां केंद्रित शासन सुनिश्चित करने में मदद मिली है जिससे अंततः इन देशों में एक सफल सामाजिक लोकतांत्रिक मॉडल का निर्माण हो पाया है।
- इसके अलावा, ये देश विकास के पूंजीवादी मॉडल का भी पालन करते हैं जो उद्यमिता को बढ़ावा देता है और बदले में कॉर्पोरेट करों के रूप में विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के वित्त पोषण में मदद करता है।
- सरकार द्वारा मध्यस्थता से पूंजी और श्रम दोनों के हितों को शामिल करने वाले इस “निगमवादी” मॉडल ने इन देशों को कृषि से औद्योगिक तथा उससे ज्ञान या सेवा अर्थव्यवस्थाओं में बदलने (परिवर्तन) में मदद की है।
- इस त्रिपक्षीय सहमति ने उत्पादन के प्रसार को भी सुगम बनाया है,जिससे अधिक और बेहतर भुगतान वाली नौकरियां/रोजगार पैदा करने में मदद मिली है।
- इसके अतिरिक्त,इन देशों ने कीनेसियन युग से लेकर 1970 के दशक तक कुछ सार्वजनिक सेवाओं के उद्योग और निजीकरण को नियंत्रित करने के लिए कई प्रयास किए।
- हालांकि, उन्होंने अन्य देशों की तुलना में कल्याण, कराधान और निवेश को दिए गए महत्व को बरकरार रखा है।
- शिक्षा: सभी नॉर्डिक देशों (डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन) में शिक्षा मुफ्त दी जाती है।
- स्वास्थ्य: डेनमार्क और फ़िनलैंड जैसे देशों में स्वास्थ्य सुविधाएं बिलकुल ही मुफ़्त हैं और नॉर्वे, स्वीडन और आइसलैंड में आंशिक रूप से मुफ़्त हैं।
- सामाजिक लाभ: श्रमिकों को बेरोजगारी बीमा, पेंशन और प्रभावी बाल देखभाल जैसे विभिन्न सामाजिक सुरक्षा लाभ दिए जाते हैं।
- इसके अलावा, इन देशों में पाई जाने वाली अन्य सामान्य विशेषता सामाजिक लोकतान्त्रिक पार्टियों की राजनीतिक उपस्थिति है,जैसे नॉर्वे में लेबर पार्टी, डेनमार्क में सोशल डेमोक्रेट,फिनलैंड की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी और आइसलैंड में लेफ्ट-ग्रीन गठबंधन आदि।
- इन सामाजिक लोकतांत्रिक दलों ने 1930 के दशक में वैश्विक आर्थिक संकट के प्रभाव को कम करके अपने लोकतंत्रों को मजबूत किया तथा अनुकूल कृषि कीमतों के लिए कृषि संगठनों के साथ समझौते कर सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की व स्वामित्व के मुद्दों को कम प्राथमिकता देकर रोजगार सृजन पर अधिक जोर दिया और कर आय में वृद्धि की।
नॉर्डिक देशों में सामाजिक लोकतंत्र मॉडल की उपलब्धि:
- आर्थिक सहयोग और विकास संगठन से जुड़े ( Organisation for Economic Cooperation and Development (OECD)) देशों में, स्कैंडिनेवियाई देशों में ट्रेड यूनियनों से संबंधित कार्यबल का अनुपात सबसे अधिक है।
- जिसमे आइसलैंड में कार्यबल का 90.7%, डेनमार्क में – 67%; स्वीडन में – 65.2%; फ़िनलैंड में – 58.8% और नॉर्वे में- 50.4%है।
- जीडीपी के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिक सार्वजनिक व्यय करने वाले शीर्ष 10 ओईसीडी (OECD ) देशों में पांच नॉर्डिक देश भी शामिल हैं।
- इस तरह इन देशों में एक मजबूत सामाजिक कल्याण मॉडल होने के कारण श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी दुनिया में सबसे ज्यादा है।
- इन देशों में उच्च स्तर का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वैश्वीकरण, आर्थिक प्रगति, असमानता का निम्न स्तर और उच्च जीवन स्तर है।
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme (UNDP)) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, नॉर्वे मानव विकास सूचकांक (0.961) में विश्व में दूसरे स्थान पर है।
- जबकि आइसलैंड चौथे (0.959), डेनमार्क-छठे (0.948), स्वीडन-सातवें (0.947) और फिनलैंड-11वें (0.940) स्थान पर है।
- प्रेस की स्वतंत्रता और लैंगिक समानता जैसे विभिन्न सूचकांकों में नॉर्डिक देशों ने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है।
- विश्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, ये देश प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (क्रय शक्ति समानताएं (पीपीपी), $) में शीर्ष 20 देशों में भी शामिल हैं।
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
सम्पादकीय:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:
राजव्यवस्था:
हिजाब केस और आवश्यक प्रथाओं का सिद्धांत:
विषय: संसद – भारतीय संविधान-ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान और मूल संरचना।
प्रारंभिक परीक्षा: आवश्यक प्रथाओं का सिद्धांत।
मुख्य परीक्षा: संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले और आवश्यक प्रथाओं के सिद्धांत से जुडी चिंताएं।
संदर्भ:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ कर्नाटक उच्च न्यायालय जिसमें कर्नाटक में छात्रों द्वारा हिजाब के उपयोग पर प्रतिबंध को बरकरार रखा गया था ,के खिलाफ दलीलें सुन रही है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क:
- याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय छात्रों की अभिव्यक्ति, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है और यह मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा के अधिकार पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
- याचिकाकर्ताओं का यह भी तर्क है कि राज्य सरकार का कानून तटस्थ होने बावजूद, हिजाब मांमले में अलग है इसलिए यह मुस्लिम महिलाओं के लिए भेदभावपूर्ण है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला:
- मार्च 2022 में कर्नाटक उच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखा। पीठ का फैसला निम्नलिखित टिप्पणियों/तर्कों पर आधारित था।
- हिजाब का उपयोग इस्लाम में आवश्यक नहीं है और इस प्रकार हिजाब पहनने पर प्रतिबंध संबंधित लोगों के धर्म और अंतरात्मा की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
- आवश्यक धार्मिक आचरण का सिद्धांत 1954 के शिरूर मठ मामले में सामने आया था।
- अदालत ने कहा कि कक्षाएं सार्वजनिक स्थान होने के कारण इस के अंदर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या गोपनीयता का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए हिजाब पहनने पर प्रतिबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संबंधित छात्रों की निजता के अधिकार के खिलाफ नहीं है।
- इस संबंध में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध आनुपातिक और वैध प्रतीत होता है क्योंकि सार्वजनिक स्थानों पर व्यक्तिगत अधिकारों की बजाय “सामान्य अनुशासन और मर्यादा”की अधिमान दिया जाना को अधिमान दिया जाना चाहिए।
- कोर्ट ने कहा हैं कि राज्य या स्कूल प्रबंधन समितियों द्वारा एक समान ड्रेस कोड निर्धारित करने का आदेश मुस्लिम छात्रों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव नहीं करता है। इसलिए इसे मुस्लिम छात्रों के साथ भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता है।
अनिवार्यता के सिद्धांत के साथ संबंध:
- सभी मामलों का निर्णय संवैधानिक कानून के सामान्य सिद्धांतों के आवेदन के आधार पर किया जाना चाहिए जबकि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े मामलों के सवाल से निपटने के लिए अक्सर तर्क आवश्यक अभ्यास के सिद्धांत की ओर जाता है यह न्याय प्रणाली के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि इस सिद्धांत के अम्ल में लाने के लिए न्यायाधीशों को न केवल कानूनी विश्लेषण बल्कि धार्मिक अध्ययन भी करना पड़ेगा ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि यह प्रथा विश्वास के लिए कितना अनिवार्य है। क्योंकि न्यायपालिका इस संबंध में विशेषज्ञ नहीं है।
- यह सिद्धांत न्यायपालिका को यह तय करने की अनुमति देकर एक चर्च संबंधी शक्ति जैसा है कि कौन सी धार्मिक प्रथाएं संवैधानिक संरक्षण के योग्य हैं। इसने न्यायालय को समूहों की स्वायत्तता का अतिक्रमण करने की अनुमति दी है ताकि वे स्वयं निर्णय ले सकें कि क्या मूल्यवान हैं जोकि नैतिक स्वतंत्रता के उनके अधिकार का उल्लंघन करते है।
- इस सिद्धांत ने कुछ प्रथाओं के औचित्य की अनुमति दी है जिन्हें सामाजिक न्याय के लिए हानिकारक माना जा सकता है। इस सिद्धांत के आधार पर, न्यायपालिका ने बॉम्बे कानून को रद्द कर दिया, जो दाऊदी बोहरा समुदाय के दाई द्वारा किए गए बहिष्कार को प्रतिबंधित करता था।
अनिवार्यता के सिद्धांत के पक्ष में तर्क:
- यह सिद्धांत राज्य को सामाजिक कल्याण के लिए कानूनी रूप से हस्तक्षेप करने और उन मामलों में सुधार करने का अवसर प्रदान करेगा जो धर्म से जुड़े हैं लेकिन वास्तव में धार्मिक नहीं हैं।
भावी कदम:
- सात से अधिक न्यायाधीशों की पीठ द्वारा आवश्यक प्रथाओं के सिद्धांत पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। विशेष रूप से, सबरीमाला मामले में फैसले के खिलाफ दायर समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई के लिए नौ-न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया गया है और इस पीठ को इस सिद्धांत पर गौर करना चाहिए।
- बहिष्करण विरोध का सिद्धांत न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा सबरीमाला मंदिर प्रवेश मामले में प्रस्तावित किया गया था और इसका उपयोग आवश्यक प्रथाओं के परीक्षण के किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को दूर करने के लिए किया जाना चाहिए बहिष्करण विरोधी के इस सिद्धांत के लिए न्यायपालिका को यह मानने की आवश्यकता होगी कि एक धार्मिक समूह द्वारा एक प्रथा को आवश्यक धार्मिक प्रथा माना जाता है। लेकिन इस पर ध्यान दिए बिना, संविधान विचाराधीन प्रथा को वैध नहीं मानेगा यदि उसमें जाति, लिंग या अन्य भेदभावपूर्ण मानदंडों के आधार पर लोगों से भृद्भाव किया जाता है।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:
राजव्यवस्था एवं शासन:
हत्यारे को जानना :
विषय: सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले।
मुख्य परीक्षा: भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार।
संदर्भ:
- सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने एक संविधान पीठ को मृत्युदंड से संबंधित दोषसिद्धि के बाद सजा के सवाल पर दोषियों को एक सार्थक अवसर देने का मामला भेजा है।
पृष्टभूमि:
मृत्युदंड देने की प्रक्रिया:
- सजा के प्रकार पर निर्णय लेते समय, क्या केवल मौत की सजा न्याय के उद्देश्यों को पूरा करेगी, या एक आजीवन अवधि पर्याप्त होगी, न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे केवल “दुर्लभ से दुर्लभतम” मामलों में मृत्युदंड देने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का पालन करें।
- जघन्य अपराध का दोषी साबित होने पर अपराधियों को मौत की सजा देने के लिए न्यायपालिका द्वारा ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस’ सिद्धांत का उपयोग एक उपकरण के रूप में किया जाता है। दुर्लभतम का सिद्धांत बच्चन बनाम पंजाब राज्य के मामले के दौरान स्थापित किया गया था
- साथ ही केवल अपराध की भीषण प्रकृति मृत्युदंड देने का एकमात्र मानदंड नहीं होना चाहिए। अपराधी की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और उसकी मानसिक स्थिति को भी मृत्युदंड देने के संबंध में कम करने वाले कारकों के रूप में माना जाना चाहिए।
बेंच द्वारा की गई टिप्पणी का महत्व:
- व्यवहार में, अदालत द्वारा दोषसिद्धि दर्ज करने के बाद मुकदमे में सजा होती है। आम तौर पर यह उसी दिन होता है जब फैसला सुनाया जाता है, जो अभियोजन पक्ष के खिलाफ ‘सजा कम करने वाली परिस्थितियों’ पर बहस करने के लिए दोषी और उसके वकील को बहुत सीमित समय देता है, जिसे “सजा बढ़ाने वाले कारकों” पर बहस करने के लिए बहुत अधिक समय मिलता है।
- इसलिए सजा के सवाल पर दोषियों को सार्थक अवसर देने के लिए पीठ द्वारा उठाया गया मुद्दा सजा प्रक्रिया को मानवीय बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
सिफारिशें:
- संविधान पीठ को ट्रायल कोर्ट के लिए नए दिशा-निर्देशों को जारी करना चाहिए, जिसके तहत संबंधित ट्रायल कोर्ट को सजा का फैसला करने से पहले अपराधी की परवरिश, शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित शमन कारकों की व्यापक जांच करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। मृत्युदंड न मिलने के पक्ष में संबंधित शमन कारकों पर पर्याप्त रूप से विचार किया जाना चाहिए।
- साथ ही सुप्रीम कोर्ट को मौत की सजा की वैधता पर भी विचार करना चाहिए।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:
अंतरराष्ट्रीय संबंध:
ये पाकिस्तान के लोग हैं जो पीड़ित हैं:
विषय: भारत और उसके पड़ोस से संबंध।
मुख्य परीक्षा: भारत और पाकिस्तान के बीच आपदा कूटनीति- दायरा और महत्व।
संदर्भ:
- पाकिस्तान में अभूतपूर्व बाढ़ के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ है।
- लगभग एक तिहाई पाकिस्तानी क्षेत्र में पानी भर गया है और 33 मिलियन से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हैं।
- दो मिलियन एकड़ कृषि भूमि जलमग्न हो गई है, बड़ी संख्या में मवेशी मर गए हैं और परिवहन नेटवर्क क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
- खाद्य असुरक्षा और जल जनित बीमारियों का खतरा पाकिस्तानी आबादी विशेषकर बच्चों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
- पाकिस्तान सरकार ने अनुमान लगाया है कि उसे राहत और पुनर्वास के लिए 30 अरब डॉलर की जरूरत है। पाकिस्तान तबाही से उबरने के लिए दूसरे देशों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी मदद मांग रहा है।
भारत की प्रतिक्रिया:
- भारतीय प्रधान मंत्री ने पीड़ितों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की है और सामान्य स्थिति की शीघ्र बहाली की कामना की है।
- भारत द्वारा पाकिस्तान को सहायता भेजने की मीडिया में खबरें आई हैं।
पाकिस्तान का स्टैंड:
- गौरतलब है कि पाकिस्तान ने अब तक मदद नहीं मांगी है।
- पाकिस्तान के वित्त मंत्री ने पाकिस्तान में खाद्य असुरक्षा की स्थिति से निपटने के लिए भारत के साथ सड़क से व्यापार फिर शुरू करने की इच्छा जताई है।
अनुशंसा:
- भारत को पाकिस्तान की तरफ से अनुरोध करने का इंतजार नहीं करना चाहिए। भारत को वही करना चाहिए जो सही हो और संकट के इस समय में पाकिस्तान को हर संभव सहायता देनी चाहिए। भारत सब्जियों, खाद्यान्नों और आवश्यक दवाओं की आपूर्ति कर सकता है।
इस दिशा में तर्क:
- भारत को सरकार और पाकिस्तान के लोगों के बीच अंतर करना चाहिए और पीड़ित पाकिस्तान के नागरिकों की हर संभव मदद करनी चाहिए।
- दक्षिण एशिया में प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति होने के नाते भारत को पाकिस्तान की मानवीय आधार पर यथासंभव शीघ्रता से सहायता करनी चाहिए।
- एक मानवीय कार्य भारत की ओर से स्मार्ट कूटनीति का हिस्सा हो सकता है। यह भारत को पाकिस्तान के साथ अपने तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को ठीक करने का अवसर भी है।
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. छत्तीसगढ़ HC ने कोटा कानून को ‘असंवैधानिक’ बताया:
- छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश ए.के. गोस्वामी और न्यायमूर्ति पी.पी.साहू ने 2012 में राज्य सरकार द्वारा लागू किए गए आरक्षण को रद्द कर दिया है।
- छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं में 58% आरक्षण के राज्य सरकार के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि 50% की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है।
- इंद्रा साहनी के फैसले (Indra Sawhney judgement) में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया था कि केवल असाधारण परिस्थितियों में ही 50% से अधिक आरक्षण दिया जा सकता है।
2. राजनाथ 2 दिवसीय मिस्र दौरे पर रक्षा सह-उत्पादन पर ध्यान देने के लिए सहमत:
- भारत एवं मिस्र अपने सैन्य सहयोग को और अधिक मजबूत करने तथा संयुक्त प्रशिक्षण, रक्षा सह-उत्पादन और उपकरणों के रखरखाव पर ध्यान केंद्रित करने पर सहमत हुए हैं।
- मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने भी आतंकवाद के खतरे का मुकाबला करने के लिए दोनों देशों के बीच विशेषज्ञता और सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान के लिए भारत और मिस्र के बीच प्रगाढ़ सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया हैं।
- भारत के रक्षा मंत्री ने यह भी स्वीकार किया कि मिस्र अफ्रीका में भारत के महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदारों में से एक है और हाल के दिनों में द्विपक्षीय व्यापार में काफी विस्तार हुआ है।
- मिस्र ने स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान ( Light Combat Aircraft (LCA)) जैसे भारत से विभिन्न सैन्य प्लेटफार्मों की खरीद में रुचि दिखाई है।
3. तेल मंत्रालय ने कुछ क्षेत्रों को छूट देने हेतु विंडफॉल कर की समीक्षा की:
- तेल मंत्रालय ने घरेलू रूप से उत्पादित कच्चे तेल पर विंडफॉल लाभ कर (windfall profit tax) की समीक्षा का आग्रह करते हुए कहा है कि यह राजकोषीय स्थिरता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
- मंत्रालय ने उत्पादन भागीदारी अनुबंध (Production Sharing Contract (PSC)) और राजस्व भागीदारी अनुबंध (Revenue Sharing Contract (RSC)) के तहत फर्मों को नई लेवी के हिसाब से बोली लगाने वाले क्षेत्रों के लिए छूट की भी मांग की हैं।
- भारत द्वारा यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर पहली जुलाई को विंडफॉल लाभ कर व पेट्रोल, डीजल और जेट ईंधन (ATF) के निर्यात पर शुल्क और स्थानीय रूप से उत्पादित कच्चे तेल पर एक विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (Special Additional Excise Duty (SAED)) लगाया गया।
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- मंत्रालय के अनुसार पीएससी और आरएससी के मामले में नई लेवी के परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, जहां ऑपरेटर को अप्रत्याशित लाभ से अधिक भुगतान करना पड़ता है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. बाजरा के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. बाजरा प्रकाश-असंवेदनशील और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला होता है।
2. बाजरे के सेवन से एनीमिया और पेलाग्रा से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
3. भारत सरकार द्वारा वर्ष 2020 को बाजरा का राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया है।
4. बाजरे की खेती कम उपजाऊ भूमि, वर्षा सिंचित और पहाड़ी क्षेत्रों में की जा सकती है।
दिए गए कथनों में से कितने कथन गलत हैं/हैं?
(a) केवल एक कथन
(b) केवल दो कथन
(c) केवल तीन कथन
(d) इनमे से कोई भी नहीं
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: बाजरा प्रकाश के प्रति असंवेदनशील होता है(अर्थात पुष्पन के लिए इसे विशिष्ट प्रकाश-काल की आवश्यकता नहीं होती) और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला होता है।
- कथन 2 सही है: बाजरे के सेवन से एनीमिया (आयरन की कमी), बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन की कमी, पेलाग्रा (नियासिन की कमी) से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
- कथन 3 सही नहीं है: भारत सरकार ने वर्ष 2018 को बाजरा के राष्ट्रीय वर्ष के रूप में स्वीकृत किया हैं।
- कथन 4 सही है: बाजरा कठोर एवं लचीली फसल हैं, जिनमें कम कार्बन और पानी के पदचिह्न होते हैं, इसमें उच्च तापमान सहन करने की क्षमता होती हैं साथ ही यह कम या बिना किसी बाहरी निवेश के खराब मिट्टी पर भी उग उग सकता है।
प्रश्न 2. इथेरियम (Ethereum) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. इथेरियम एक विकेन्द्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी है।
2. इथेरियम दुनिया की सबसे मूल्यवान क्रिप्टोकरेंसी है।
3. इथेरियम ने हाल ही में अपने कार्बन पदचिह्न में कटौती करने के लिए ‘मर्ज’ को अंतिम रूप दिया हैं।
दिए गए कथनों में से कितने कथन सही हैं/हैं?
(a) केवल एक कथन
(b) केवल दो कथन
(c) केवल तीन कथन
(d) इनमे से कोई भी नहीं
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: इथेरियम (Ethereum) स्मार्ट अनुबंध कार्यक्षमता (smart contract functionality) के साथ एक विकेन्द्रीकृत, ओपन-सोर्स ब्लॉकचेन/क्रिप्टोकरेंसी है।
- कथन 2 सही नहीं है: इथेरियम (Ethereum) दुनिया की दूसरी सबसे मूल्यवान क्रिप्टोकरेंसी है। बिटकॉइन दुनिया की सबसे मूल्यवान क्रिप्टोकरेंसी है।
- कथन 3 सही है: इथेरियम (Ethereum) ने हाल ही में “मर्ज” को अंतिम रूप दिया है जो इथेरियम की ऊर्जा खपत को लगभग 99.95% तक कम करने में मदद करेगा।
प्रश्न 3. निम्नलिखित में से किस देश की सीमा किर्गिस्तान से लगती है?
1. कजाकिस्तान
2. अफगानिस्तान
3. उज्बेकिस्तान
4. ताजिकिस्तान
5. चीन
विकल्प:
(a) केवल 1, 2, 3 और 4
(b) केवल 1, 3, 4 और 5
(c) केवल 3 और 4
(d) 1, 2, 3, 4 और 5
उत्तर: b
व्याख्या:
Image Source: BBC
प्रश्न 4. रेड सैंडर्स के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- यह पूर्वी घाट के लिए स्थानिक है।
- इसका उपयोग अरोमाथेरेपी में तनाव, उच्च रक्तचाप को कम करने ,घावों को ठीक करने और त्वचा के रोगों का इलाज करने के लिए किया जाता है।
- IUCN रेड लिस्ट में इसे लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- यह CITES के परिशिष्ट II के तहत सूचीबद्ध है, एवं इसका अंतरराष्ट्रीय व्यापार करना प्रतिबंधित है।
उपर्युक्त में से कितने कथन सही हैं/हैं?
(a) केवल दो कथन
(b) केवल तीन कथन
(c) चारों कथन
(d) इनमे से कोई भी नहीं
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: रेड सैंडर्स या पटरोकार्पस सैंटलिनस ((Red Sanders or Pterocarpus santalinus)), भारत के पूर्वी घाटों के लिए स्थानिक है।
- कथन 2 सही नहीं है: अरोमाथेरेपी चंदन ((Santalum album) से जुड़ी है।
- अरोमाथेरेपी का रेड सैंडर्स से कोई लेना-देना नहीं है।
- कथन 3 सही है: रेड सैंडर्स को IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- कथन 4 सही है: रेड सैंडर्स सीआईटीईएस (CITES) के परिशिष्ट II के तहत सूचीबद्ध है और इसका अंतरराष्ट्रीय व्यापार करना प्रतिबंधित है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित स्थितियों में से किस एक में “जैवशैल प्रौद्योगिकी (बायोरॉक टेक्नोलॉजी)” की बात होती है? PYQ (2022)
(a) क्षतिग्रस्त प्रवाल भित्तियों (coral reefs) की बहाली।
(b) पादप अवशिष्टों का प्रयोग कर भवन-निर्माण सामग्री का विकास।
(c) शेल गैस की अन्वेषण/निष्कर्षण के लिए क्षेत्रों की पहचान करना ।
(d) वनों/संरक्षित क्षेत्रों में जंगली पशुओं के लिए लवण-लेहिकाएँ (साल्ट लिक्स) उपलब्ध कराना।
उत्तर: a
व्याख्या:
- बायोरॉक तकनीक का इस्तेमाल जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Zoological Survey of India (ZSI) ) द्वारा क्षतिग्रस्त प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित (restore) करने के लिए किया जाता है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न 1. क्या आवश्यक धार्मिक प्रथा सिद्धांत त्रुटिपूर्ण है? समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) (जीएस 2- राजव्यवस्था)
प्रश्न 2. सामाजिक लोकतंत्र का नॉर्डिक मॉडल विविधताओं की अनेक जटिलताओं के बावजूद भारत जैसे देशों सहित विकासशील दुनिया के लिए सबक है। कथन की पुष्टि कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (जीएस 2- अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध)