विषयसूची:
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1. कैबिनेट ने कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II की संदर्भ शर्तों को मंजूरी दी:
सामान्य अध्ययन: 2
शासन:
विषय: संघ एवं राज्यों के कार्य एवं उत्तरदायित्वनसंघिये ढांचे से सम्बन्धित विषय एवं चुनौतियां,स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियां।
प्रारंभिक परीक्षा: कृष्णा नदी का उद्गम, अपवाह क्षेत्र,कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण।
मुख्य परीक्षा: कैबिनेट द्वारा कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II की संदर्भ शर्तों को मंजूरी के प्रभाव की जांच कीजिए।
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच न्यायिक फैसले के लिए आईएसआरडब्ल्यूडी कानून की धारा 5 (1) के अन्तर्गत मौजूदा कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण- II (केडब्ल्यूडीटी-II) की आगे की संदर्भ शर्तों (टीओआर) को मंजूरी दे दी।
उद्देश्य:
- कृष्णा नदी के पानी के उपयोग, वितरण या नियंत्रण पर दोनों राज्यों के बीच विवाद के समाधान से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों राज्यों में विकास के नए रास्ते खुलेंगे और इसका दोनों राज्यों के लोगों को लाभ मिलेगा, जिससे देश को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
विवरण:
- अंतर राज्य नदी जल विवाद (आईएसआरडब्ल्यूडी) कानून, 1956 की धारा (3) के तहत शिकायत में तेलंगाना सरकार (जीओटी) द्वारा उठाए गए मुद्दों पर कानूनी राय लेने और उसी पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है।
- केंद्र सरकार ने आईएसआरडब्ल्यूडी कानून, 1956 की धारा 3 के तहत पक्षकार राज्यों के अनुरोध पर 02.04.2004 को कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II का गठन किया था।
- इसके बाद, 02.06.2014 में तेलंगाना भारत का एक राज्य बनकर अस्तित्व मे आया।
- आंध्र प्रदेश पुनर्गठन कानून (एपीआरए), 2014 की धारा 89 के अनुसार, एपीआरए, 2014 की उक्त धारा के खंड (ए) और (बी) के समाधान के लिए केडब्ल्यूडीटी-II का कार्यकाल बढ़ाया गया था।
- इसके बाद, तेलंगाना सरकार (जीओटी) ने 14.07.2014 को जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प विभाग (डीओडब्ल्यूआर, आरडी और जीआर), जल शक्ति मंत्रालय (एमओजेएस), को एक शिकायत भेजी, जिसमें कृष्णा नदी के पानी के उपयोग, वितरण या नियंत्रण पर विवाद का जिक्र किया गया था।
- इस मामले में तेलंगाना सरकार द्वारा 2015 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका भी दायर की गई थी।
- 2018 में, तेलंगाना सरकार ने डीओडब्ल्यूआर, आरडी और जीआर, एमओजेएस से शिकायत को मौजूदा केडब्ल्यूडीटी-II तक केवल तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों के बीच सीमित करने का अनुरोध किया।
- इस मामले पर 2020 में जलशक्ति मंत्री की अध्यक्षता में शीर्ष परिषद की दूसरी बैठक में चर्चा की गई।
- तेलंगाना सरकार ने 2021 में उक्त रिट याचिका वापस ले ली और बाद में, मामले में डीओडब्ल्यूआर, आरडी और जीआर द्वारा कानून और न्याय मंत्रालय की कानूनी राय मांगी गई।
2.भारत सरकार ने राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड के गठन को अधिसूचित किया:
सामान्य अध्ययन: 2
शासन:
विषय: सांविधिक,विनियामक और विभिन्न अर्ध न्यायिक निकाय, सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड।
मुख्य परीक्षा: राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड हल्दी के बारे में जागरूकता और खपत बढ़ाएगा तथा निर्यात बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए बाजार विकसित करेगा। इस बोर्ड के महत्व पर प्रकाश डालिये।
प्रसंग:
- भारत सरकार ने 04 अक्टूबर 2023 को राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड के गठन को अधिसूचित किया।
उद्देश्य:
- राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड देश में हल्दी और हल्दी उत्पादों के विकास और वृद्धि पर फोकस करेगा।
- राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड हल्दी के बारे में जागरूकता और खपत बढ़ाएगा तथा निर्यात बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए बाजार विकसित करेगा।
- बोर्ड नए उत्पादों में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देगा, मूल्यवर्धित हल्दी उत्पादों के लिए पारंपरिक ज्ञान को विकसित करेगा।
- भारत से हल्दी का निर्यात 2030 तक बढ़कर 1 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद।
विवरण:
- राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड हल्दी से संबंधित मामलों में नेतृत्व प्रदान करेगा, प्रयासों को मजबूत बनाएगा तथा हल्दी क्षेत्र के विकास और वृद्धि में मसाला बोर्ड और अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ अधिक समन्वय की सुविधा प्रदान करेगा।
- हल्दी के स्वास्थ्य और कल्याण लाभों पर विश्व भर में महत्वपूर्ण संभावनाएं और रुचि है, जिसका लाभ बोर्ड जागरूकता और खपत बढ़ाने, निर्यात बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए बाजार विकसित करने, नए उत्पादों में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने तथा मूल्यवर्धित हल्दी उत्पादों के लिए हमारे पारंपरिक ज्ञान के विकास का काम करेगा।
- यह विशेष रूप से मूल्य संवर्धन से अधिक लाभ पाने के लिए हल्दी उत्पादकों की क्षमता निर्माण और कौशल विकास पर फोकस करेगा।
- बोर्ड गुणवत्ता और खाद्य सुरक्षा मानकों और ऐसे मानकों के पालन को भी प्रोत्साहित करेगा।
- बोर्ड मानवता के लिए हल्दी की पूरी क्षमता की सुरक्षा और उपयोगी दोहन के लिए भी कदम उठाएगा।
- बोर्ड की गतिविधियां हल्दी उत्पादकों के क्षेत्र पर केंद्रित और समर्पित फोकस तथा खेतों के निकट बड़े मूल्यवर्धन के माध्यम से हल्दी उत्पादकों की बेहतर भलाई और समृद्धि में योगदान देंगी, जिससे उत्पादकों को उनकी उपज के लिए बेहतर कीमत मिलेगी।
- अनुसंधान, बाजार विकास, बढ़ती खपत और मूल्य संवर्धन में बोर्ड की गतिविधियां यह भी सुनिश्चित करेंगी कि हमारे उत्पादक और प्रोसेसर उच्च गुणवत्ता वाले हल्दी और हल्दी उत्पादों के निर्यातकों के रूप में वैश्विक बाजारों में अपनी प्रमुख स्थिति बनाए रखना जारी रखेंगे।
- बोर्ड में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष, आयुष मंत्रालय, केंद्र सरकार के फार्मास्यूटिकल्स, कृषि और किसान कल्याण, वाणिज्य और उद्योग विभाग, तीन राज्यों के वरिष्ठ राज्य सरकार के प्रतिनिधि (रोटेशन के आधार पर), अनुसंधान में शामिल राष्ट्रीय/राज्य संस्थानों, चुनिंदा हल्दी किसानों और निर्यातकों के प्रतिनिधि होंगे, बोर्ड के सचिव की नियुक्ति वाणिज्य विभाग द्वारा की जाएगी।
- भारत विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है। वर्ष 2022-23 में 11.61 लाख टन (वैश्विक हल्दी उत्पादन का 75 प्रतिशत से अधिक) के उत्पादन के साथ भारत में 3.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हल्दी की खेती की गई थी।
- भारत में हल्दी की 30 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं और यह देश के 20 से अधिक राज्यों में उगाई जाती है।
- हल्दी के सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं।
- हल्दी के विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 62 प्रतिशत से अधिक है। 2022-23 के दौरान, 380 से अधिक निर्यातकों द्वारा 207.45 मिलियन डालर मूल्य के 1.534 लाख टन हल्दी और हल्दी उत्पादों का निर्यात किया गया था।
- भारतीय हल्दी के लिए प्रमुख निर्यात बाजार बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और मलेशिया हैं।
- बोर्ड की केंद्रित गतिविधियों से यह उम्मीद की जाती है कि 2030 तक हल्दी निर्यात 1 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह,दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव,लक्षद्वीप किरायेदारी विनियमन, 2023 को लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने (i) अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह किरायेदारी विनियमन, 2023 (ii) दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव किरायेदारी विनियमन, 2023 (iii) भारत के संविधान के अनुच्छेद 240 के अंतर्गत लक्षद्वीप किरायेदारी विनियमन, 2023 को लागू करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है।
- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह किरायेदारी विनियमन, 2023; दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव किरायेदारी विनियमन, 2023; और लक्षद्वीप किरायेदारी विनियमन, 2023 मकान मालिक और किरायेदार दोनों के हितों और अधिकारों को संतुलित करके केंद्र शासित प्रदेशों अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव और लक्षद्वीप में परिसर किराए पर देने के लिए एक जवाबदेह और पारदर्शी ईको-सिस्टम बनाने में कानूनी ढांचा प्रदान करेंगे।
- विनियम किराये के बाजार में निजी निवेश और उद्यमिता को बढ़ावा देंगे, प्रवासियों, औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों, पेशेवरों, छात्रों आदि सहित समाज के विभिन्न आय वर्गों के लिए पर्याप्त किराये के आवास स्टॉक का निर्माण करेंगे।
- इससे गुणवत्तापूर्ण किराये के आवास तक पहुंच बढ़ाने में भी मदद मिलेगी और किराये के आवास बाजार को धीरे-धीरे औपचारिक बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा जो केंद्र शासित प्रदेशों अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव और लक्षद्वीप में एक जीवंत, स्थाई और समावेशी किराये के आवास बाजार का निर्माण करेगा।
2. कैबिनेट ने तेलंगाना में सम्मक्का सरक्का केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 में संशोधन को मंजूरी दी:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 (2014 की संख्या 6) की तेरहवीं अनुसूची में दिए गए प्रावधान के अनुसार, तेलंगाना राज्य के मुलुगु जिले में सम्मक्का सरक्का केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 में आगामी संशोधन करने के लिए एक विधेयक, अर्थात् केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन), विधेयक, 2023 को संसद में पेश करने की मंजूरी दे दी।
- इसके लिए 889.07 करोड़ रुपये की धनराशि का प्रावधान होगा।
- नया विश्वविद्यालय न केवल राज्य में उच्च शिक्षा की पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ गुणवत्ता में सुधार करेगा और आदिवासी आबादी के लाभ के लिए राज्य में आदिवासी कला, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान प्रणाली में निर्देशात्मक और अनुसंधान संबंधी सुविधाएं प्रदान करके उच्च शिक्षा और उन्नत ज्ञान के उपायों को भी बढ़ावा देगा।
- यह नया विश्वविद्यालय अतिरिक्त क्षमता भी तैयार करेगा और क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने का प्रयास करेगा।
3. बिहार और झारखंड में उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के शेष कार्यों को पूरा करने की संशोधित लागत को मंजूरी:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के शेष कार्यों को संशोधित 2,430.76 करोड़ रुपये (केंद्रीय हिस्सा: 1,836.41 करोड़ रुपये) की लागत से पूरा करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के एक प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है, जबकि अगस्त, 2017 में शेष कार्य के लिए पहले स्वीकृत लागत 1,622.27 करोड़ रुपये (केंद्रीय हिस्सा: 1,378.60 करोड़ रुपये) की थी।
- शेष कार्य पूरा होने पर, यह परियोजना झारखंड और बिहार के चार सूखाग्रस्त जिलों में 42,301 हेक्टेयर क्षेत्र को अतिरिक्त वार्षिक सिंचाई प्रदान करेगी।
- उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना एक अंतर-राज्यीय प्रमुख सिंचाई परियोजना है जिसका कमान क्षेत्र दो राज्यों बिहार और झारखंड में है।
- इस परियोजना में कुटकू गांव (जिला लातेहार, झारखंड) के पास उत्तरी कोयल नदी पर एक बांध, बांध के नीचे 96 किमी एक बैराज (मोहम्मदगंज, जिला पलामू, झारखंड), दाहिनी मुख्य नहर (आरएमसी) और बैराज से बाईं मुख्य नहर (एलएमसी) शामिल हैं।
- बिहार सरकार द्वारा उसके अपने संसाधनों से वर्ष 1972 में बांध के निर्माण के साथ-साथ अन्य सहायक गतिविधियां शुरू की गईं।
- काम 1993 तक जारी रहा और उस वर्ष बिहार सरकार के वन विभाग द्वारा रोक दिया गया।
- बांध में जमा पानी से बेतला नेशनल पार्क और पलामू टाइगर रिजर्व को खतरा होने की आशंका के कारण बांध का काम रुका हुआ था।
- काम रुकने के बाद यह परियोजना 71,720 हेक्टेयर में वार्षिक सिंचाई प्रदान कर रही थी।
- नवंबर 2000 में बिहार के विभाजन के बाद, बांध और बैराज का मुख्य कार्य झारखंड में हैं। इसके अलावा मोहम्मदगंज बैराज से पूरी 11.89 किमी बाईं मुख्य नहर (एलएमसी) झारखंड में है।
- हालांकि, दाहिनी मुख्य नहर (आरएमसी) के 110.44 किमी में से पहला 31.40 किमी झारखंड में है और शेष 79.04 किमी बिहार में है।
- वर्ष 2016 में, भारत सरकार ने परिकल्पित लाभों को प्राप्त करने के लिए परियोजना को संचालित करने के लिए उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के शेष कार्यों को पूरा करने के लिए सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया।
- पलामू टाइगर रिजर्व के मुख्य क्षेत्र को बचाने के लिए जलाशय के स्तर को कम करने का निर्णय लिया गया। परियोजना के शेष कार्यों को 1622.27 करोड़ रुपये के अनुमानित व्यय पर पूरा करने के प्रस्ताव को अगस्त 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था।
- इसके बाद, दोनों राज्य सरकारों के अनुरोध पर, कुछ अन्य घटकों को परियोजना में शामिल करना आवश्यक पाया गया।
- परिकल्पित सिंचाई क्षमता प्राप्त करने के लिए तकनीकी दृष्टि से आरएमसी और एलएमसी की पूर्ण लाइनिंग को भी आवश्यक माना गया।
- इस प्रकार, गया वितरण प्रणाली के कार्य, आरएमसी और एलएमसी की लाइनिंग, रास्ते में संरचनाओं की रीमॉडलिंग, कुछ नई संरचनाओं का निर्माण और परियोजना से प्रभावित परिवारों (पीएएफ) के राहत एवं पुनर्वासन (आर एंड आर) के लिए एकबारगी विशेष पैकेज को अद्यतन लागत अनुमान में प्रदान किया जाना था।
- तदनुसार, परियोजना का संशोधित लागत अनुमान तैयार किया गया था।
- शेष कार्यों की लागत 2430.76 करोड़ रुपये में से केंद्र 1836.41 करोड़ रुपये उपलब्ध कराएगा।
4. भारतीय वायु सेना को ट्विन सीटर एलसीए तेजस सौंपा:
- केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री श्री अजय भट्ट ने बेंगलुरु में भारतीय वायु सेना को एलसीए तेजस ट्विन सीटर सौंपा।
- एलसीए तेजस विमान की शुरुआत भारतीय वायु सेना को एक विश्व स्तरीय स्वदेशी लड़ाकू विमान से लैस करने की थी।
- कार्यक्रम की शुरुआत में मानना था कि यह बहुत महत्वाकांक्षी सपना था, लेकिन हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए), डीआरडीओ प्रयोगशाला, सीईएमआईएलएसी, डीजीएक्यूए, पीएसयू, आईएएफ और अनगिनत अन्य संस्थान इस महत्वपूर्ण उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक साथ आए।
- हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की पहली श्रृंख्ला प्रोडक्शन ट्विन सीटर एलसीए तेजस बहु-उद्देश्यी, चपलता और अत्याधुनिक तकनीकी से सुसज्जित है तथा यह भारतीय वायुसेना के पायलटों को उपयुक्त प्रशिक्षण प्रदान करेगा।
- वायुसेना ने पहले ही हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को 83 एलसीए का ऑर्डर दे दिया है।
5. राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना फंड (एनआईआईएफ) ने भारत-जापान फंड (आईजेएफ) लांच किया:
- राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना फंड (एनआईआईएफ) ने 600 मिलियन डॉलर का भारत-जापान फंड (आईजेएफ) लांच करने के लिए जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन (जेबीआईसी) के साथ साझीदारी की है जिसमें जेबीआईसी और भारत सरकार एंकर निवेशकों के रूप में रहेंगे।
- यह संयुक्त पहल ऐसे साझा प्राथमिकता वाले क्षेत्र अर्थात जलवायु और पर्यावरण में दोनों देशों के बीच सहयोग के एक प्रमुख आयाम का संकेत देती है।
- यह घोषणा एनआईआईएफ के पहले द्विपक्षीय फंड को चिन्हित करती है जिसमें भारत सरकार लक्षित कोष में 49 प्रतिशत का योगदान देगी और शेष 51 प्रतिशत का योगदान जेबीआईसी द्वारा दिया जाएगा।
- इस फंड का प्रबंधन एनआईआईएफ लिमिटेड (एनआईआईएफएल) द्वारा किया जाएगा और जेबीआईसी आईजी (जेबीआईसी की एक सहायक कंपनी) एनआईआईएफएल को भारत में जापान के निवेश के बढ़ाने में सहायता करेगी।
- भारत-जापान फंड पर्यावरणगत स्थिरता और निम्न कार्बन उत्सर्जन कार्यनीतियों में निवेश करने पर ध्यान केंद्रित करेगा और इसका लक्ष्य भारत में जापान के निवेश में और वृद्धि करने के लिए ‘पसंद का भागीदार’ बनने की भूमिका का निर्वाह करना है।
- भारत-जापान फंड का गठन जापान की सरकार और भारत की सरकार के बीच कार्यनीतिक एवं आर्थिक साझीदारी में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि का प्रतीक है।
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