विषयसूची:
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1. खाद्य सुरक्षा और मानक नियमों को सरल और कारगर बनाने के संशोधनों को मंजूरी:
सामान्य अध्ययन: 2
स्वास्थ्य:
विषय: स्वास्थ्य,शिक्षा,मानव संसाधनों से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र /सेवाओं के विकास एवं उनसे प्रबंधन से सम्बंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई),भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ।
मुख्य परीक्षा: खाद्य सुरक्षा और मानक नियमों को सरल और कारगर बनाने के प्रभाव।
प्रसंग:
- भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित 43वीं बैठक में ‘एक राष्ट्र, एक वस्तु, एक नियामक’ की अवधारणा के माध्यम से व्यापार में सुगमता की सुविधा प्रदान करते हुए खाद्य सुरक्षा और मानक नियमों को सरल और कारगर बनाने के लिए विभिन्न संशोधनों को मंजूरी दी।
उद्देश्य:
- बैठक में खाद्य उत्पादों के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) या एगमार्क प्रमाणन को खत्म करने के लिए विभिन्न खाद्य सुरक्षा और मानक विनियमों में विभिन्न संशोधनों को मंजूरी दी गई।
विवरण:
- संशोधनों को अंतिम रूप दिए जाने के बाद, खाद्य व्यवसायों को अनिवार्य प्रमाणीकरण के लिए विभिन्न प्राधिकरणों के पास नहीं जाना पड़ेगा, केवल खाद्य उत्पादों के लिए एफएसएसएआई प्रमाणीकरण अनिवार्य कर दिया जाएगा।
- अन्य स्वीकृतियों में मीड (हनी वाइन) और अल्कोहलिक रेडी-टू-ड्रिंक (आरटीडी) पेय पदार्थों के मानक, दूध वसा उत्पादों के मानकों में संशोधन, हलीम के मानक आदि शामिल हैं।
- खाद्य प्राधिकरण ने खाद्य उत्पादों के नियामक अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए विश्लेषण के तरीकों के अपनी तरह की पहली और विस्तृत नियमावली को भी मंजूरी दी।
- अंतिम रूप देने से पहले हितधारकों की टिप्पणियों को आमंत्रित करने के लिए मसौदा अधिसूचना के लिए बैठक में विभिन्न खाद्य सुरक्षा और मानक विनियमों में संशोधन को मंजूरी दी गई।
- इन विनियमों में दूध वसा उत्पादों के मानकों में संशोधन शामिल था, जिसके हिस्से के रूप में घी के लिए फैटी एसिड की आवश्यकताएं अन्य दूध वसा उत्पादों के लिए भी लागू होंगी।
- खाद्य प्राधिकरण मांस उत्पादों के मानकों के हिस्से के रूप में ‘हलीम’ के लिए भी मानक तय करने जा रहा है।
- हलीम मांस, दाल, अनाज और अन्य सामग्री से बना एक व्यंजन है, जिसका फिलहाल कोई तय मानक नहीं है।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1. डीआरडीओ ने हाई-स्पीड एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट ‘अभ्यास’ का सफल उड़ान परीक्षण किया:
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा 30 जनवरी से 02 फरवरी, 2024 के दौरान ओडिशा के चांदीपुर स्थित एकीकृत परीक्षण रेंज से हाई-स्पीड एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट (हीट) – ‘अभ्यास’ के चार उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक पूरे किए गए।
- संशोधित सशक्त विन्यास में चार अलग-अलग मिशन उद्देश्यों के साथ उड़ान परीक्षण परिचालित किए गए।
- इसके लिए एडवांस्ड सिस्टम्स लेबोरेटरी, हैदराबाद द्वारा डिज़ाइन किए गए एकल बूस्टर का उपयोग किया गया, ताकि निम्न लॉन्च त्वरण प्रदान किया जा सके।
- बूस्टर को सुरक्षित जारी करना, लॉन्चर क्लीयरेंस और आवश्यक लॉन्च वेग जैसे उद्देश्य हासिल किए गए।
- उड़ान परीक्षणों के दौरान, आवश्यक सहनशक्ति, गति, गति-बदलाव, ऊंचाई और सीमा जैसे विभिन्न मापदंडों को सफलतापूर्वक मान्यता दी गयी।
- डीआरडीओ के वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (एडीई) द्वारा डिजाइन किया गया ‘अभ्यास’, हथियार प्रणालियों के अभ्यास के लिए एक यथार्थवादी खतरे का परिदृश्य प्रदान करता है।
- इसे एडीई द्वारा स्वदेशी रूप से निर्मित ऑटो पायलट की मदद से स्वायत्त उड़ान के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- इसमें हथियार अभ्यास के लिए आवश्यक रडार क्रॉस सेक्शन, विज़ुअल और इन्फ्रारेड को बढ़ाने की प्रणाली है।
- इसमें एक लैपटॉप-आधारित ग्राउंड कंट्रोल सिस्टम है, जिसके साथ विमान को एकीकृत किया जा सकता है और उड़ान पूर्व जांच, उड़ान के दौरान डेटा रिकॉर्डिंग, उड़ान के बाद रीप्ले और उड़ान-पश्चात विश्लेषण आदि किये जा सकते हैं।
- ‘अभ्यास’ के लिए न्यूनतम लॉजिस्टिक्स की आवश्यकता होती है और यह आयातित समकक्षों की तुलना में लागत प्रभावी भी है।
- हाल ही में परीक्षण की गई प्रणालियों को उत्पादन एजेंसियों – हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) डिफेंस के माध्यम से साकार किया गया है।
- पहचान की गयी उत्पादन एजेंसियों के साथ, ‘अभ्यास’ उत्पादन के लिए तैयार है। इस प्रणाली में निर्यात क्षमता है और इसे मित्र देशों के सामने पेश किया जा सकता है।
- इस प्रणाली का विकास सशस्त्र बलों के लिए हवाई लक्ष्यों की आवश्यकताओं को पूरा करेगा।
2. मैंग्रोव वनों की पुनःस्थापना के लिए योजनाएँ:
- मैंग्रोव वनों में कार्बन संग्रहीत करने, समुद्री जैव विविधता के लिए प्रजनन आधार प्रदान करने और वैश्विक मछली आबादी का समर्थन करने की अधिक क्षमता होती है।
- सरकार ने प्रचारात्मक और नियामक उपायों के माध्यम से तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मैंग्रोव वनों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए कई कदम उठाए हैं।
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम के तहत ‘मैंग्रोव और कोरल रीफ्स का संरक्षण और प्रबंधन’ नामक एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना के माध्यम से प्रचार उपायों को लागू किया जा रहा है।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986; वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972; भारतीय वन अधिनियम, 1927; जैविक विविधता अधिनियम, 2002; और समय-समय पर संशोधित इन अधिनियमों के अंतर्गत नियमों के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना (2019) के माध्यम से विनियामक उपाय लागू किए जाते हैं।
- केंद्रीय बजट 2023-24 में मैंग्रोव को जैव ढाल के रूप में काम करने के अलावा, बहुत उच्च जैविक उत्पादकता और कार्बन पृथक्करण क्षमता वाले अद्वितीय, प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में बढ़ावा देने और संरक्षित करने के लिए ‘तटरेखा आवास और मूर्त आय के लिए मैंग्रोव पहल (मिश्ती)’ की घोषणा की गई।
- तदनुसार, विश्व पर्यावरण दिवस यानी 5 जून 2023 के अवसर पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा मिष्टी को लॉन्च किया गया था।
- इसके अलावा, मिष्टी गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए परिचालन दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं और योजनाओं की तैयारी के लिए राज्यों को दिए गए हैं।
- मिष्टी ने 2023-24 से शुरू होने वाली पांच वर्षों की अवधि के लिए 9 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में फैले लगभग 540 किमी 2 क्षेत्र में मैंग्रोव की बहाली/ पुनर्वनीकरण की परिकल्पना की है।
- राज्यों को मौजूदा योजनाओं/कार्यक्रमों के साथ समन्वय के माध्यम से मिष्टी के तहत गतिविधियां शुरू करने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया है।
- कुल मिलाकर, 2015 से 2021 के बीच देश के मैंग्रोव कवर में 252 किमी 2 की वृद्धि देखी गई।
3. काली गर्दन वाले सारस:
- भारतीय वन्यजीव संस्थान और भारतीय प्राणी सर्वेक्षण काली गर्दन वाले सारसों का आकलन कर रहे हैं।
- भारतीय वन्यजीव संस्थान की ओर से साल 2016-2017 के दौरान लद्दाख क्षेत्र में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार काली गर्दन वाले सारस की संख्या लगभग 66 से 69 के बीच थी।
- अरुणाचल प्रदेश में सर्दियों के महीनों के दौरान आने वाले इन सारसों की संख्या लगभग 11 है।
पक्षी प्रजातियों की सुरक्षा के लिए उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- काली गर्दन वाले सारस (ग्रस निग्रीकोलिस) को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम- 1972 की अनुसूची- I में सूचीबद्ध किया गया है, जिससे उन्हें सुरक्षा का उच्चतम स्तर प्राप्त है।
- यह प्रजातियों को वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधित कन्वेंशन के परिशिष्ट-Iऔर प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन में भी सूचीबद्ध किया गया है।
- काली गर्दन वाले सारस के महत्वपूर्ण आवासों जैसे कि लद्दाख स्थित चांगथांग अभयारण्य को संरक्षित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
- दिसंबर-2020 में त्सो कर आद्रभूमि परिसर जो काली गर्दन वाले सारस के लिए एक महत्वपूर्ण चारागाह और प्रजनन स्थल है, को रामसर स्थल के रूप में नामित किया गया है।
- मंत्रालय की ओर से अक्टूबर, 2017 में लागू की गई राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2017-2031) में वन्यजीव संरक्षण के विभिन्न पहलुओं जैसे कि संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण, मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना, अंतर्देशीय व तटीय और समुद्री इकोसिस्टम का संरक्षण, भूदृश्य स्तर पर संरक्षण करना आदि के संबंध में विशिष्ट अध्याय और प्राथमिकता वाली कार्रवाइयां करने के प्रावधान किए गए हैं।
- केंद्र सरकार देश में वन्यजीवों और उनके आवासों के प्रबंधन के लिए केंद्रीय प्रायोजित योजना-‘वन्यजीव पर्यावासों का विकास’ के तहत राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- मंत्रालय ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम- 1972 की धारा- 33 में निहित उपबंधों के अनुसार सुरक्षित क्षेत्रों के लिए प्रबंधन योजना बनाने की प्रक्रिया के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हैं।
- भारत सरकार ने मिशन लाइफ (पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली) कार्यक्रम शुरू किया है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण और इसके संरक्षण के बारे में जन-जागरूकता उत्पन्न करना है।
- लोगों को वन्यजीव व जैव-विविधता को लेकर और अधिक जागरूक बनाने के लिए विश्व वन्यजीव दिवस, आद्रभूमि दिवस, प्रवासी पक्षी दिवस आदि जैसे महत्वपूर्ण दिवस और वन्यजीव सप्ताह मनाए जाते हैं।
4. डिजी यात्रा के माध्यम से यात्री की व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी डेटा का कोई केंद्रीय भंडारण नहीं:
- डिजी यात्रा सेंट्रल इकोसिस्टम (डीवाईसीई) डिजाइन/डिफ़ॉल्ट रूप से गोपनीयता के मूलभूत सिद्धांतों पर बनाया गया है और इसमें यात्री की व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी (पीआईआई) डेटा का कोई केंद्रीय भंडारण नहीं है।
- आंकड़ों की गोपनीयता और सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए डिजी यात्रा प्रक्रियाओं को सीईआरटी-इन पैनलबद्ध एजेंसियों द्वारा ऑडिट और प्रमाणन के अधीन किया जाता है।
- डिजी यात्रा सेंट्रल इकोसिस्टम का प्रबंधन डिजी यात्रा फाउंडेशन द्वारा किया जाता है, जो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के तहत बनाई गई एक गैर-लाभकारी कंपनी है और इसलिए यह सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे में नहीं आती है।
- डिजी यात्रा दिशानिर्देश डीजीसीए (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) द्वारा वैमानिकी सूचना परिपत्र 18.04.2022 के माध्यम से जारी किए गए हैं।
- ये डिजी यात्रा दिशानिर्देश विकेन्द्रीकृत मोबाइल वॉलेट-आधारित पहचान प्रबंधन मंच प्रदान करते हैं।
- यात्री की निजी जानकारी यात्री के मोबाइल-वॉलेट में संग्रहित होती है। इसे कूटबद्ध प्रारूप में प्रस्थान हवाई अड्डे के साथ साझा किया जाता है और उड़ान के प्रस्थान के 24 घंटे के बाद डेटा को सिस्टम से हटा दिया जाता है।
- यह डिजी यात्रा के कार्यान्वयन में डेटा सुरक्षा मुद्दों का समाधान करता है।
- इसके अलावा, डेटा गोपनीयता और सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए डिजी यात्रा प्रक्रियाओं को सीईआरटी-इन पैनलबद्ध एजेंसियों द्वारा ऑडिट और प्रमाणन के अधीन किया जाता है।
5. प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता:
- किसी भी क्षेत्र या देश की औसत वार्षिक जल उपलब्धता बहुत हद तक जल-मौसम विज्ञान और भूवैज्ञानिक कारकों पर निर्भर करती है, हालांकि, प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता किसी देश की जनसंख्या पर निर्भर करती है।
- जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता कम हो रही है।
- केंद्रीय जल आयोग द्वारा आयोजित “अंतरिक्ष इनपुट का उपयोग करके भारत में जल उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन, 2019” शीर्षक वाले अध्ययन के आधार पर, वर्ष 2021 और 2031 के लिए औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता क्रमशः 1486 घन मीटर और 1367 घन मीटर आंकी गई है।
- 1700 घन मीटर से कम वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता को जल संकट की स्थिति माना जाता है जबकि 1000 घन मीटर से कम वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता को जल कमी की स्थिति माना जाता है।
- ‘जल’ राज्य का विषय होने के कारण, जल संसाधनों के संवर्धन, संरक्षण और कुशल प्रबंधन के लिए कदम, जो प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता के मुद्दे पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकारों द्वारा उठाए जाते हैं।
- राज्य सरकारों के प्रयासों को पूरा करने के लिए, केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- भारत सरकार, राज्य के साथ साझेदारी में, 2024 तक देश के प्रत्येक ग्रामीण घर में नल के जल की आपूर्ति का प्रावधान करने के लिए जल जीवन मिशन (जेजेएम) लागू कर रही है।
- भारत सरकार ने जल आपूर्ति की सार्वभौमिक कवरेज सुनिश्चित करने और शहरों को ‘जल सुरक्षित’ बनाने के लिए देश के सभी वैधानिक कस्बों को कवर करते हुए 1 अक्टूबर, 2021 को अमृत 2.0 लॉन्च किया है।
- जल का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार 2015-16 से प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) लागू कर रही है।
- पीएमकेएसवाई-त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) के तहत, राज्यों के परामर्श से 2016-17 के दौरान 99 चालू प्रमुख/मध्यम सिंचाई परियोजनाओं और 7 चरणों को प्राथमिकता दी गई थी, जिनमें से 58 प्राथमिकता वाली परियोजनाओं के एआईबीपी कार्यों को वर्तमान तिथि तक पूरा होने की सूचना दी गई है।
- 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिए पीएमकेएसवाई के विस्तार को भारत सरकार द्वारा 93,068.56 करोड़ रुपये के समग्र परिव्यय के साथ मंजूरी दे दी गई है।
- कमांड एरिया डेवलपमेंट एंड वॉटर मैनेजमेंट (सीएडीडब्ल्यूएम) प्रोग्राम को 2015-16 से पीएमकेएसवाई – हर खेत को जल – के तहत लाया गया है।
- सीएडी कार्यों को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य निर्मित सिंचाई क्षमता के उपयोग को बढ़ाना और सहभागी सिंचाई प्रबंधन (पीआईएम) के माध्यम से स्थायी आधार पर कृषि उत्पादन में सुधार करना है।
- सिंचाई, औद्योगिक और घरेलू क्षेत्र में जल के कुशल उपयोग को बढ़ावा देने, विनियमन और नियंत्रण के लिए जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (बीडब्ल्यूयूई) की स्थापना की गई है।
- ब्यूरो देश में सिंचाई, पेयजल आपूर्ति, बिजली उत्पादन, उद्योग आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता में सुधार को बढ़ावा देने के लिए एक सुविधा प्रदाता होगा।
- “सही फसल” अभियान पानी की कमी वाले क्षेत्रों में किसानों को ऐसी फसलें उगाने के लिए प्रेरित करने के लिए शुरू किया गया था जो जल की अधिक खपत नहीं करती हैं लेकिन जल का बहुत कुशलता से उपयोग करती हैं; और आर्थिक रूप से लाभकारी हैं; स्वस्थ और पौष्टिक हैं; क्षेत्र की कृषि – जलवायु-हाइड्रो विशेषताओं के अनुकूल हैं; और पर्यावरण के अनुकूल हैं।
- मिशन अमृत सरोवर को भविष्य के लिए जल संरक्षण के उद्देश्य से आजादी का अमृत महोत्सव के उत्सव के एक भाग के रूप में 24 अप्रैल, 2022 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर लॉन्च किया गया था। इस मिशन का उद्देश्य देश के प्रत्येक जिले में 75 जल निकायों का विकास और कायाकल्प करना है।
- जल शक्ति अभियान : कैच द रेन”( जेएसए : सीटीआर) – 2023 अभियान, जेएसए की श्रृंखला में चौथा, राष्ट्रपति द्वारा 04.03.2023 को देश भर के सभी जिलों (ग्रामीण और साथ ही शहरी क्षेत्रों) में 04 मार्च 2023 से 30 नवंबर 2023 तक मॉनसून – पूर्व और मानसून अवधि में कार्यान्वयन के लिए शुरू किया गया था।
- यह अभियान देश भर में मुख्य थीम “पेयजल के लिए स्रोत स्थिरता” के साथ लागू किया गया था। अभियान की केंद्रित युक्तियों में (1) जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन (2) सभी जल निकायों की गणना, जियो-टैगिंग और सूची बनाना ; इसके आधार पर जल संरक्षण के लिए वैज्ञानिक योजनाएं तैयार करना (3) सभी जिलों में जल शक्ति केंद्रों की स्थापना (4) सघन वनीकरण और (5) जागरूकता पैदा करना शामिल है।
6. देश में पुराने बांधों की सुरक्षा समीक्षा:
- राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण द्वारा संकलित बड़े (विशिष्ट) बांधों के राष्ट्रीय रजिस्टर, 2023 के अनुसार, भारत में 234 बड़े बांध हैं, जो 100 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
- बांधों की सुरक्षा, इसके संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी मुख्य रूप से बांध स्वामियों की है, जो ज्यादातर राज्य सरकारें और केंद्र/राज्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां हैं।
- वर्तमान में बांध स्वामी आमतौर पर अपने बांधों का आवधिक मॉनसून – पूर्व और मॉनसून – पश्चात निरीक्षण के संदर्भ में सुरक्षा ऑडिट करते हैं।
- राज्यों ने अपने बांधों के व्यापक ऑडिट के लिए बांध सुरक्षा समीक्षा पैनल का भी गठन किया है।
- बांध सुरक्षा अधिनियम 2021 के अनुपालन के अनुसार, बांध स्वामी एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान क्रमशः लगभग 6414 और 4150 बांधों के मॉनसून – पूर्व और मॉनसून – पश्चात निरीक्षण की रिपोर्ट दी है।
- भारत सरकार बांध सुरक्षा के लिए संस्थागत मजबूती के साथ-साथ देश भर में कुछ चयनित बांधों की सुरक्षा और परिचालन प्रदर्शन में सुधार के लिए बाहरी वित्त पोषित बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी) भी लागू कर रही है।
- बाह्य रूप से वित्त पोषित डीआरआईपी के तहत, चरण- I कार्यक्रम जो मार्च 2021 में पूरा हुआ, सात राज्यों में कुल 198 बांध परियोजनाओं की सुरक्षा स्थितियों के लिए व्यापक समीक्षा की गई और पुनर्वास और मजबूत किया गया।
- डीआरआईपी, चरण- I कार्यक्रम के पूरा होने के बाद, भारत सरकार ने डीआरआईपी, चरण- II और III योजना शुरू की है, जिसमें विश्व बैंक और एशियाई बुनियादी ढांचे और निवेश बैंक की वित्तीय सहायता से लगभग 736 बांधों का व्यापक ऑडिट और पुनर्वास किया जाएगा।
- इस योजना के तहत राज्यों द्वारा गठित बांध सुरक्षा समीक्षा पैनलों द्वारा लगभग 408 बांधों का व्यापक निरीक्षण और समीक्षा पूरी कर ली गई है।
- इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार ने बांध सुरक्षा अधिनियम 2021 लागू किया है, जो 30 दिसंबर, 2021 से प्रभावी हो गया है।
- यह अधिनियम देश के सभी बड़े बांधों की सुरक्षित कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने के लिए उनकी उचित निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव के लिए और बांध विफलता संबंधी आपदाओं से बचने के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है।
- बांध सुरक्षा अधिनियम 2021 की धारा 38 के तहत प्रत्येक निर्दिष्ट बांध के लिए व्यापक बांध सुरक्षा मूल्यांकन का प्रावधान है।
- हालाँकि, यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि बांधों की उम्र बढ़ना इसके समग्र स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है, बशर्ते इसका उचित रखरखाव किया जाए और संरचना में समय पर मरम्मत की जाए, जिससे इसकी संरचनात्मक अखंडता, सुरक्षा सुविधाओं और संचालन को सुनिश्चित किया जा सके।
7. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए ऋण प्रदान करने के लिए उठाए गए कदम:
- सरकार ने देश में एमएसएमई तक ऋण की पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए चल रही योजनाओं सहित कई उपाय किए हैं। इनमें से कुछ में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) जो एक प्रमुख क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम है और इसका उद्देश्य स्व-रोज़गार पैदा करना है;
- गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु/सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख रुपये तक के ऋण प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई);
- पीएम विश्वकर्मा योजना: 13000 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ 2023-24 से 2027-28 की अवधि के दौरान चलने वाली एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना।
- इस योजना में शामिल 18 व्यवसायों में अपने हाथों से औजारों का उपयोग करके काम करने वाले कारीगरों और शिल्पकारों को ऋण सहायता सहित शुरू से अंत तक समग्र सहायता प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।
- ऋण वितरण प्रणाली को मजबूत करना और सूक्ष्म एवं लघु उद्यम क्षेत्र को कोलेटरल और थर्ड पार्टी की गारंटी की झंझटों के बिना सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी योजना के माध्यम से अधिकतम 5 करोड़ रु. तक ऋण के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने का प्रयास।
- प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यमों (आईएमई) को एमएसएमई के औपचारिक दायरे में लाने के लिए 11.01.2023 को उदयम असिस्ट प्लेटफॉर्म का शुभारंभ;
- प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से खुदरा और थोक व्यापारियों को एमएसएमई के रूप में शामिल करना जो 02.07.2021 से लागू है;
- एमएसएमई के स्टेटस में सुधार के मामले में बिना टैक्स लाभ 3 साल के लिए बढ़ाए गए;
- इलेक्ट्रॉनिक रूप से कई फाइनेंसरों के माध्यम से सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) सहित कॉर्पोरेट और अन्य खरीदारों से एमएसएमई के व्यापार प्राप्तियों के फंडिंग की सुविधा के लिए ट्रेड रिसीवेबल डिस्काउंटिंग सिस्टम (टीआरईडीएस);
- आत्मनिर्भर भारत (एसआरआई) फंड के माध्यम से 50,000 करोड़ रुपए इक्विटी निवेश;
- एमएसएमई में ऋण के अंतर को पूरा करने के लिए कोविड-19 महामारी के दौरान एमएसएमई सहित व्यवसायों के लिए 5 लाख करोड़ की इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) की घोषणा की गई थी। यह योजना 31.03.2023 तक चालू थी।
8. भारत में इस्पात उत्पादन में निरंतर वृद्धि:
- इस्पात एक नियंत्रण-मुक्त क्षेत्र है और भारत सरकार इस क्षेत्र के विकास के लिए अनुकूल नीतिगत वातावरण बनाकर एक सुविधा प्रदाता के रूप में कार्य करती है।
सरकार ने राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 के वांछित अनुमानों को हासिल करने की दिशा में निम्नलिखित उपाय किए हैं:
- सरकारी खरीद के लिए भारत में निर्मित इस्पात को बढ़ावा देने हेतु घरेलू स्तर पर निर्मित लौह एवं इस्पात उत्पाद (डीएमआई एंड एसपी) नीति का कार्यान्वयन।
- देश के भीतर विशेष इस्पात के विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु 6,322 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ विशेष इस्पात के लिए उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना की अधिसूचना।
- इस्पात के उपयोग, इस्पात की समग्र मांग और देश में इस्पात क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने हेतु रेलवे, रक्षा, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, आवास, नागरिक उड्डयन, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, कृषि और ग्रामीण विकास क्षेत्रों सहित संभावित उपयोगकर्ताओं के साथ मेक इन इंडिया पहल और पीएम गति-शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान को आगे बढ़ाया जाएगा।
- भारत के इस्पात क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने हेतु इस्पात के कुछ उत्पादों पर व्यापार उपचारात्मक उपायों के अंशांकन के साथ-साथ इस्पात के उत्पादों और कच्चे माल पर बुनियादी सीमा शुल्क में समायोजन।
- अधिक अनुकूल शर्तों पर इस्पात के निर्माण के लिए कच्चे माल की उपलब्धता को सुविधाजनक बनाने हेतु अन्य देशों के अलावा विभिन्न मंत्रालयों और राज्यों के साथ समन्वय।
- भारत ने वर्ष 2019 से इस्पात उत्पादन में निरंतर वृद्धि दर्ज की है।
- भारत 2018 में जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक बन गया और तब से ऐसा ही बना हुआ है।
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