विषयसूची:
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07 July 2024 Hindi PIB
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1. विश्व जूनोसिस दिवस:
सामान्य अध्ययन: 2
स्वास्थ्य:
विषय: स्वास्थ्य,शिक्षा,मानव संसाधनों से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र /सेवाओं के विकास एवं उनसे प्रबंधन से सम्बंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: विश्व जूनोसिस दिवस।
मुख्य परीक्षा: जूनोसिस रोग।
प्रसंग:
- विश्व जूनोसिस दिवस पर जन-जागरूकता बढ़ाना: सभी पशु रोग जूनोटिक नहीं होते।
उद्देश्य:
- जूनोसिस संक्रामक रोग हैं इनका संक्रमण जानवरों से मनुष्यों में हो सकता है, जैसे रेबीज, एंथ्रेक्स, इन्फ्लूएंजा (एच1 एन1 और एच5 एन1), निपाह, कोविड-19, ब्रुसेलोसिस और तपेदिक।
- ये रोग बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी और कवक फफूंद सहित विभिन्न रोगजनकों के कारण होते हैं।
- यद्यापि, सभी पशु रोग जूनोटिक नहीं होते हैं। कई बीमारियाँ पशुधन को प्रभावित करती हैं किन्तु मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा नही हैं।
- ये गैर-जूनोटिक रोग प्रजाति-विशिष्ट हैं और मनुष्यों को संक्रमित नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए खुरपका और मुँहपका रोग, पी.पी.आर., लम्पी स्किन डिजीज, क्लासिकल स्वाइन फीवर और रानीखेत रोग इसमें शामिल हैं।
- प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों और पशुओं के प्रति अनावश्यक भय और दोषारोपण को दूर करने लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि कौन सी बीमारियाँ जूनोटिक हैं।
विवरण:
- भारत पशुधन की सबसे बड़ी आबादी से सम्पन्न है, जिसमें 536 मिलियन पशुधन और 851 मिलियन मुर्गी हैं, जो क्रमशः वैश्विक पशुधन और मुर्गी आबादी का लगभग 11% और 18% है।
- इसके अतिरिक्त, भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक और वैश्विक स्तर पर अंडों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- अभी कुछ समय पहले, केरल के त्रिशूर जिले के मदक्कथरन पंचायत में अफ्रीकी स्वाइन फीवर (एएसएफ) की पुष्टि हुई थी।
- एएसएफ की पुष्टि सर्वप्रथम भारत में मई 2020 में असम और अरुणाचल प्रदेश में की गई थी। तब से, यह बीमारी देश के लगभग 24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फैल चुकी है।
- विभाग ने वर्ष 2020 में एएसएफ के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की।
- वर्तमान स्थिति के लिए, राज्य पशुपालन विभाग द्वारा त्वरित प्रतिक्रिया दलों का गठन किया गया है, और 5 जुलाई, 2024 को उपरिकेंद्र के 1 किमी के दायरे में सूअरों को न्यूनीकरण के लिए मारने का कार्य किया गया।
- कुल 310 सूअरों को मारकर उन्हें गहरे खोद कर दफना दिया गया। कार्य योजना के अनुसार आगे की निगरानी उपरिकेंद्र के 10 किमी के दायरे में की जानी है।
- यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एएसएफ जूनोटिक नहीं है और मनुष्यों में इसका संक्रमण नहीं हो सकता है। वर्तमान में, एएसएफ के लिए कोई टीका नहीं है।
- जूनोटिक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण टीकाकरण, उत्तम स्वच्छता, पशुपालन पद्धति और रोगवाहक नियंत्रण पर निर्भर करता है।
- वन हेल्थ विज़न के माध्यम से सहयोगात्मक प्रयास, जो मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के परस्पर महत्वपूर्ण संबंध को दर्शाता है।
- पशु चिकित्सकों, चिकित्सा पेशेवरों और पर्यावरण वैज्ञानिकों के बीच सहयोग जूनोटिक रोगों को व्यापक रूप से संबोधित करने के लिए आवश्यक है।
- जूनोटिक रोगों के जोखिम को कम करने के लिए, पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने एनएडीसीपी के तहत गोजातीय बछड़ों के ब्रुसेला टीकाकरण के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया है और एएससीएडी के तहत रेबीज टीकाकरण किया गया है।
- विभाग आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पशु रोगों के लिए एक व्यापक राष्ट्रव्यापी निगरानी योजना भी कार्यान्वित कर रहा है।
- इसके अतिरिक्त, वन हेल्थ विज़न के तहत, राष्ट्रीय संयुक्त प्रकोप प्रतिक्रिया दल (एनजेओआरटी) की स्थापना की गई है, जिसमें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, आईसीएमआर, पशुपालन और डेयरी विभाग, आईसीएआर और पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेषज्ञ शामिल हैं।
- यह स्वास्थ्य दल अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा (एचपीएआई) के सहयोगी प्रकोप जांच में सक्रिय रूप से जुड़ा रहा है।
- जागरूकता रोग की शुरुआती पहचान, रोकथाम और नियंत्रण में सहायक है, जिससे अंततः सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।
- जूनोटिक और गैर-जूनोटिक रोगों के बीच के अंतर के बारे में जनता को शिक्षित करने से अनावश्यक भय को दूर करने में सहयोग मिलता है और पशु स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए अधिक सूचित दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है।
- यद्यपि जूनोटिक रोग महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम की स्थिति को दर्शाते हैं, इसकी पहचान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि कई पशुधन रोग गैर-जूनोटिक हैं और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करते हैं।
- विश्व जूनोसिस दिवस लुई पाश्चर के सम्मान में प्रतिवर्ष मनाया जाता है, जिन्होंने 6 जुलाई, 1885 को एक जूनोटिक बीमारी, रेबीज का पहला सफल टीका लगाया था।
- यह दिन जूनोसिस के बारे में जागरूक करने, साथ ही ऐसी बीमारियाँ जो जानवरों से मनुष्यों में फैल सकती हैं और इनके निवारक और नियंत्रण उपायों को बढ़ावा के प्रति समर्पित है।
2. क्वांटम मानकीकरण और परीक्षण प्रयोगशालाएँ:
सामान्य अध्ययन: 3
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी – विकास एवं अनुप्रयोग और रोजमर्रा की जिंदगी में वैज्ञानिक विकास के प्रभाव।
प्रारंभिक परीक्षा: क्वांटम मानकीकरण और परीक्षण प्रयोगशालाएँ।
मुख्य परीक्षा: क्वांटम प्रौद्योगिकियों के उपयोग द्वारा जीवन स्तर में सुधार।
प्रसंग:
- दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने “क्वांटम मानकीकरण और परीक्षण प्रयोगशालाएँ” शीर्षक से प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं और भारतीय शैक्षणिक संस्थानों या अनुसंधान एवं विकास संस्थानों से व्यक्तिगत या साझेदारी में प्रस्तुतियाँ आमंत्रित की हैं।
उद्देश्य:
- इसका मुख्य उद्देश्य क्वांटम प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान और विकास में गति लाना है, जिससे क्वांटम संचार प्रणालियों की अंतर-संचालनीयता, विश्वसनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
- ये प्रयोगशालाएँ नवाचार केंद्रों के रूप में कार्य करेंगी, जो क्वांटम प्रौद्योगिकी विकासक, परीक्षण उपकरण निर्माताओं और अकादमिक शोधकर्ताओं को एकजुट करेंगी, ताकि सभी नागरिकों के हित के लिए क्वांटम प्रौद्योगिकियों की पूरी क्षमता का पता लगाया जा सके और उसका उपयोग किया जा सके।
विवरण:
प्रतिदिन की दिनचर्या में क्वांटम प्रौद्योगिकियों के उपयोग द्वारा जीवन स्तर में सुधार:
- यह पहल प्रधानमंत्री के ‘जय अनुसंधान’ के विज़न के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य दूरसंचार उत्पादों और प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान और विकास का समर्थन करना है, यह भारतीय नागरिकों के जीवन स्तर को बेहतर बनाती है।
- यह क्वांटम प्रौद्योगिकियों में भारत को आत्मनिर्भर बनाने और इस अत्याधुनिक क्षेत्र में वैश्विक मानक स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करती है।
- यह प्रयास न केवल सुरक्षित, विश्वसनीय और कुशल क्वांटम संचार प्रणालियों के विकास का समर्थन करता है, बल्कि इसका उद्देश्य सभी भारतीय नागरिकों को ऐसी विकसित प्रौद्योगिकी प्रदान करना है जो संचार, डेटा सुरक्षा और समग्र डिजिटल अनुभव में सुधारात्मक रूप से कार्य करे।
प्रस्तावित प्रयोगशालाओं के उद्देश्य:
- 1. क्वांटम मानकीकरण: वर्तमान और भविष्य के संचार नेटवर्क में क्वांटम संचार तत्वों जैसे क्वांटम कुंजी वितरण, क्वांटम स्टेट एनालाइजर, ऑप्टिकल फाइबर और घटकों के सहज एकीकरण के लिए आवश्यक मानक और प्रोटोकॉल स्थापना करना है।
- 2. परीक्षण सुविधाएँ: भारतीय उद्योग जगत के सदस्यों एवं स्टार्टअप, अनुसंधान एवं विकास और शैक्षणिक संस्थानों द्वारा स्थापित की गई क्वांटम अवधारणाओं, प्रक्रियाओं, उपकरणों और अनुप्रयोगों को प्रामाणिक करने के लिए बनाई गई विश्वसनीय परीक्षण सुविधाएँ विकसित करें।
- इसमें विभिन्न स्थितियों में इनके प्रदर्शन की पुष्टि करना और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ उनके अनुपालन को प्रमाणित करना शामिल हैं।
- ये सुविधाएँ क्वांटम प्रौद्योगिकियों के विकास का समर्थन करेंगी जिनका उपयोग स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और वित्त सहित विभिन्न क्षेत्रों में नागरिकों द्वारा सुरक्षित और प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
- इन प्रयोगशालाओं का उद्देश्य नाममात्र शुल्क पर उद्योग, स्टार्टअप और स्थानीय दूरसंचार हितधारकों के लिए आसान पहुँच स्थापित करना है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि विकसित क्वांटम प्रौद्योगिकियों से सभी लाभान्वित हों।
- यह पहल स्वदेशी क्वांटम प्रौद्योगिकी समाधानों के विकास का समर्थन करती है। यह वैश्विक मानकों में भारत को अग्रणी रूप में स्थापित करता है।
परीक्षण के लिए प्रस्तावित प्रौद्योगिकियाँ:
- एकल फोटॉन और उलझे हुए फोटॉन स्रोत।
- सुपरकंडक्टिंग नैनोवायर एस पी डी और हिमस्खलन फोटोडायोड सहित एकल फोटॉन डिटेक्टर।
- क्वांटम मेमोरी और रिपीटर्स।
- क्वांटम संचार मॉड्यूल जैसे कि क्यू के डी, क्वांटम टेलीपोर्टेशन और फ्री-स्पेस क्वांटम संचार।
- विश्वसनीय नोड्स और अविश्वसनीय नोड्स।
- क्वांटम संचार डोमेन से संबंधित कोई अन्य आइटम।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1. आषाढ़ी बिज – कच्छी नव वर्ष:
- आषाढ़ी बिज, कच्छी नव वर्ष के अवसर पर, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को शुभकामनाएं दीं।
आषाढ़ी बिज के बारे में:
- आषाढ़ी बिज उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश, गुजरात और अन्य स्थानों में कृषि समुदायों के लिए एक शुभ दिन है।
- कच्छी नव वर्ष के नाम से जाना जाने वाला यह त्यौहार गुजरात के कच्छ क्षेत्र में बारिश के प्रारंभ से जुड़ा हुआ है।
- यह त्यौहार हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाया जाता है।
- यह त्यौहार, जिसे कच्छी नव वर्ष के रूप में जाना जाता है, गुजरात के कच्छ क्षेत्र में बारिश की शुरुआत से जुड़ा है।
- इस त्यौहार के दौरान, किसान, ज्योतिषी और अन्य लोग मानसून का पूर्वानुमान लगाते हैं ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि आने वाले मौसम में कौन सी फसल सबसे अधिक उत्पादक होगी।
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