विषयसूची:
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08 February 2024 Hindi PIB
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1. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने “प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई)” को मंजूरी दी:
सामान्य अध्ययन: 2
शासन:
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
प्रारंभिक परीक्षा: “प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई)”।
मुख्य परीक्षा: पीएम-एमकेएसएसवाई के लक्ष्य एवं उद्देश्यों एवं इसके महत्वपूर्ण घटकों पर चर्चा कीजिये।
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वित्त वर्ष 2023-24 से 2026-27 तक अगले चार (4) वर्षों की अवधि में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 6,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के साथ प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा के तहत एक केंद्रीय क्षेत्र की उप-योजना “प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई)” को मंजूरी दे दी है।
उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य मत्स्य पालन क्षेत्र को औपचारिक बनाना और मत्स्य पालन से जुड़े सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को समर्थन देना है।
पीएम-एमकेएसएसवाई के लक्ष्य एवं उद्देश्य:
i. नेशनल फिशरीज सेक्टर डिजिटल प्लेटफॉर्म के तहत मछुआरों, मछली किसानों और सहायक श्रमिकों के स्व-पंजीकरण के माध्यम से असंगठित मत्स्य पालन क्षेत्र को क्रमिक रूप से विधिसंगत यानी औपचारिक बनाना, जिसमें बेहतर सेवा वितरण के लिए मछली श्रमिकों की कार्य आधारित डिजिटल पहचान का निर्माण शामिल है।
ii. मत्स्य पालन क्षेत्र से जुड़े सूक्ष्म और लघु उद्यमों को संस्थागत वित्तपोषण तक पहुंच की सुविधा प्रदान करना।
iii. जलीय कृषि बीमा खरीदने के लिए लाभार्थियों को एकमुश्त प्रोत्साहन प्रदान करना।
iv. नौकरियों के सृजन और देखरेख सहित मत्स्य पालन क्षेत्र की मूल्य-श्रृंखला दक्षता में सुधार के लिए प्रदर्शन अनुदान के माध्यम से मत्स्य पालन और जलीय कृषि सूक्ष्म उद्यमों को प्रोत्साहित करना।
v. नौकरियों के सृजन और देखरेख सहित मछली व मत्स्य उत्पाद सुरक्षा और गुणवत्ता का भरोसा दिलाने वाली प्रणालियों को अपनाने तथा उनके विस्तार के लिए प्रदर्शन अनुदान के माध्यम से सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को प्रोत्साहित करना।
विवरण:
शामिल व्यय:
- उप-योजना को 6,000 करोड़ रुपये के अनुमानित परिव्यय के साथ पीएमएमएसवाई के केंद्रीय क्षेत्र के घटक के तहत एक केंद्रीय क्षेत्र उप-योजना के रूप में कार्यान्वित किया जाएगा, जिसमें विश्व बैंक और एएफडी बाहरी वित्तपोषण सहित 50 प्रतिशत यानी 3,000 करोड़ रुपये का सार्वजनिक वित्त शामिल होगा।
- बाकी 50 प्रतिशत यानी 3,000 करोड़ रुपये लाभार्थियों/निजी क्षेत्र से जुड़े प्रत्याशित निवेश के रूप में आएंगे।
- इसे सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में वित्त वर्ष 2023-24 से वित्त वर्ष 2026-27 तक 4 (चार) वर्षों के लिए लागू किया जाएगा।
लक्षित लाभार्थी:
- मछुआरे, मछली (जलीय कृषि) किसान, मछली श्रमिक, मछली विक्रेता या ऐसे अन्य व्यक्ति जो सीधे मत्स्य पालन मूल्य श्रृंखला से जुड़े हुए हैं।
- प्रॉपराइटरी फर्मों, साझेदारी फर्मों और भारत में पंजीकृत कंपनियों, समितियां, सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी), सहकारी समितियों, संघों, स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), मछली किसान उत्पादक संगठनों (एफएफपीओ) जैसे ग्राम स्तरीय संगठनों के रूप में सूक्ष्म और लघु उद्यम और मत्स्य पालन व जलीय कृषि मूल्य श्रृंखला में लगे स्टार्टअप।
- एफएफपीओ में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) भी शामिल हैं।
- कोई अन्य लाभार्थी जिन्हें भारत सरकार के मत्स्य पालन विभाग द्वारा लक्षित लाभार्थियों के रूप में शामिल किया जा सकता है।
रोजगार सृजन की क्षमता सहित प्रमुख प्रभाव:
- 40 लाख लघु और सूक्ष्म उद्यमों को कार्य आधारित पहचान प्रदान करने के लिए एक राष्ट्रीय मत्स्य पालन डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाना।
- मत्स्य पालन क्षेत्र को धीरे-धीरे विधिसंगत बनाना और संस्थागत ऋण तक पहुंच में वृद्धि करना। इस पहल से 6.4 लाख सूक्ष्म उद्यमों और 5,500 मत्स्य पालन सहकारी समितियों को संस्थागत ऋण तक पहुंच प्रदान करने में सहायता मिलेगी।
- मत्स्य पालन में पारंपरिक सब्सिडी से प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन की ओर धीरे-धीरे बदलाव।
- यह कार्यक्रम 55,000 लक्षित सूक्ष्म और लघु उद्यमों का समर्थन करके मूल्य श्रृंखला से संबंधित दक्षता में सुधार और सुरक्षित, गुणवत्ता वाली मछली सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
- पर्यावरण और स्थिरता से जुड़ी पहलों को बढ़ावा देना,
- कारोबारी सुगमता और पारदर्शिता को सुविधाजनक बनाना,
- उत्पादन, उत्पादकता को बेहतर बनाने के उद्देश्य से जलीय कृषि के लिए बीमा कवरेज के माध्यम से बीमारी के कारण जलीय कृषि फसल को होने वाले नुकसान से जुड़े मुद्दों का समाधान करना,
- मूल्यवर्धन, मूल्य प्राप्ति और मूल्य सृजन के माध्यम से निर्यात से जुड़ी प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना,
- मूल्य श्रृंखला दक्षताओं से मिले समर्थन से बढ़े हुए लाभ मार्जिन के कारण आय में वृद्धि,
- घरेलू बाजार में मछली और मत्स्य उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार,
- घरेलू बाजारों का सुदृढ़ीकरण एवं विस्तार,
- व्यवसायों के विकास, नौकरियों के सृजन और व्यावसायिक अवसरों के सृजन को सुगम बनाना।
- नौकरियों और सुरक्षित कार्यस्थल के सृजन के माध्यम से महिला सशक्तिकरण,
- 75,000 महिलाओं को रोजगार देने पर विशेष जोर के साथ इसमें 1.7 लाख नई नौकरियां सृजित होने का अनुमान है और इसका लक्ष्य सूक्ष्म एवं लघु उद्यम मूल्य श्रृंखला में 5.4 लाख निरंतर जारी रहने वाले रोजगार के अवसर पैदा करना भी है।
कार्यान्वयन रणनीति:
- इस उप-योजना में निम्नलिखित प्रमुख घटक हैं:
- घटक 1-ए: मत्स्य पालन क्षेत्र को औपचारिक बनाना और कार्यशील पूंजी वित्तपोषण के लिए भारत सरकार के कार्यक्रमों तक मत्स्य पालन सूक्ष्म उद्यमों की पहुंच को सुविधाजनक बनाना:
- मत्स्य पालन, एक असंगठित क्षेत्र होने के नाते, राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में काम करने वाले सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों सहित मछली उत्पादकों और मछली श्रमिकों, विक्रेताओं व प्रसंस्करणकर्ताओं जैसे अन्य सहायक पक्षों आदि की रजिस्ट्री बनाकर धीरे-धीरे औपचारिक रूप देने की आवश्यकता है।
- इस उद्देश्य के लिए, एक नेशनल फिशरीज डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म (एनएफडीपी) बनाया जाएगा और सभी हितधारकों को इस पर पंजीकरण कराने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
- उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। एनएफडीपी वित्तीय प्रोत्साहनों के वितरण सहित कई कार्य करेगा।
- इसमें प्रशिक्षण और विस्तार के लिए समर्थन, वित्तीय साक्षरता में सुधार, वित्तीय सहायता के माध्यम से परियोजना की तैयारी और दस्तावेजीकरण की सुविधा, प्रसंस्करण शुल्क और ऐसे अन्य शुल्क, यदि कोई हो, की प्रतिपूर्ति एवं मौजूदा मत्स्य पालन सहकारी समितियों को मजबूत करने जैसी गतिविधियां शुरू करने का भी प्रस्ताव है।
- घटक 1-बी: जलकृषि बीमा को अपनाने की सुविधा प्रदान करना:
- उचित बीमा उत्पाद तैयार करने की सुविधा प्रदान करने और संचालन को बड़े स्तर पर बढ़ाने के लिए परियोजना अवधि के दौरान कम से कम 1 लाख हेक्टेयर जलीय कृषि फार्मों को कवर करने का प्रस्ताव है।
- इसके अलावा, 4 हेक्टेयर जल प्रसार क्षेत्र और उससे कम के खेत के आकार के साथ बीमा खरीदने के इच्छुक किसानों को एकमुश्त प्रोत्साहन प्रदान करने का प्रस्ताव है।
- ‘एकमुश्त प्रोत्साहन’ प्रीमियम की लागत की 40 प्रतिशत की दर से होगा, जो जलीय कृषि फार्म के जल प्रसार क्षेत्र के प्रति हेक्टेयर 25000 रुपये की सीमा के अधीन होगा।
- एकल किसान को देय अधिकतम प्रोत्साहन राशि 1,00,000 रुपये होगी और प्रोत्साहन के लिए पात्र अधिकतम खेत का आकार 4 हेक्टेयर जल प्रसार क्षेत्र है।
- केज कल्चर, री-सर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस), बायो-फ्लोक, रेसवे आदि खेतों के अलावा जलीय कृषि के अधिक बड़े रूप के लिए देय प्रोत्साहन प्रीमियम का 40 प्रतिशत है।
- अधिकतम देय प्रोत्साहन 1 लाख है और पात्र इकाई का अधिकतम आकार 1800 एम3 का होगा।
- ‘एकमुश्त प्रोत्साहन’ का उपरोक्त लाभ केवल एक फसल यानी एक फसल चक्र के लिए खरीदे गए जलीय कृषि बीमा के लिए प्रदान किया जाएगा।
- एससी, एसटी और महिला लाभार्थियों को सामान्य श्रेणियों के लिए देय प्रोत्साहन की तुलना में 10 प्रतिशत अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा।
- इससे जलीय कृषि बीमा उत्पादों के लिए एक मजबूत बाजार तैयार होने और बीमा कंपनियों के भविष्य में आकर्षक बीमा उत्पाद लाने में सक्षम होने की उम्मीद है।
- घटक 2: मत्स्य पालन क्षेत्र की मूल्य श्रृंखला दक्षता में सुधार के लिए सूक्ष्म उद्यमों को समर्थन करना:
- यह घटक विश्लेषण और जागरूकता अभियानों के साथ संबद्ध प्रदर्शन अनुदान की एक प्रणाली के माध्यम से मत्स्य पालन क्षेत्र में मूल्य श्रृंखला दक्षता में सुधार करना चाहता है।
- महिलाओं को प्राथमिकता के साथ उत्पादन से जोड़ना और रोजगार के सृजन एवं देखरेख और मापने योग्य मापदंडों के एक सेट के तहत चयनित मूल्य श्रृंखलाओं के भीतर प्रदर्शन अनुदान के प्रावधानों के माध्यम से मूल्य श्रृंखला दक्षता में वृद्धि करने का प्रस्ताव है।
- घटक सी: परियोजना प्रबंधन, निगरानी और रिपोर्टिंग:
- इस घटक के तहत, परियोजना गतिविधियों के प्रबंधन, कार्यान्वयन, निगरानी और मूल्यांकन के लिए परियोजना प्रबंधन इकाइयां (पीएमयू) स्थापित करने का प्रस्ताव है।
पृष्ठ्भूमि:
i. 2013-14 से 2023-24 की अवधि में, मछली उत्पादन के मामले में मत्स्य पालन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं, जिसमें 79.66 लाख टन की वृद्धि हुई है; 2013-14 से 2022-23 तक तटीय जलीय कृषि की मजबूत वृद्धि हुई, जो 43 वर्षों (1971 से 2014) में हुई वृद्धि के बराबर है, झींगा उत्पादन 3.22 लाख टन से बढ़कर 11.84 लाख टन (270%) हो गया, झींगा निर्यात दोगुना से अधिक बढ़कर 19,368 करोड़ रुपये से 43,135 करोड़ रुपये (123%) के स्तर पर पहुंच गया।
समूह दुर्घटना बीमा योजना (जीएआईएस) के तहत प्रति मछुआरे कवरेज को 1.00 लाख रुपये से बढ़ाकर 5.00 लाख रुपये कर दिया गया है।
ii. महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद, इस क्षेत्र में कई क्षेत्रीय चुनौतियां महसूस की जा रही हैं। यह क्षेत्र प्रकृति में अनौपचारिक, फसल जोखिम शमन की कमी, कार्य आधारित पहचान की कमी, संस्थागत ऋण तक खराब पहुंच, सूक्ष्म और लघु उद्यमों द्वारा बेची जाने वाली मछली की सुरक्षा में खामी और गुणवत्ता की कमी वाला है।
- मौजूदा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत नई उप-योजना का लक्ष्य 6,000 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ इन समस्याओं को दूर करना है।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1. वेटलैंड बचाओ अभियान:
- विश्व वेटलैंड दिवस (डब्ल्यूडब्ल्यूडी) 2023 के अवसर पर MoEF&CC द्वारा ‘वेटलैंड्स बचाओ अभियान (एसडब्ल्यूसी)’ शुरू किया गया और यह वेटलैंड्स संरक्षण के लिए “संपूर्ण समाज” दृष्टिकोण पर आधारित है, जो समाज के सभी स्तरों पर वेटलैंड्स संरक्षण के लिए सकारात्मक कार्यों को सक्षम बनाता है और समाज के सभी वर्गों को शामिल करते हुए WWD 2024 उत्साहजनक परिणामों के साथ संपन्न हुआ है।
- इस अभियान में अन्य बातों के साथ-साथ लोगों को आर्द्रभूमि के मूल्य के बारे में जागरूक करना, आर्द्रभूमि मित्रों के कवरेज को बढ़ाना और अन्य लक्ष्यों के साथ आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए नागरिक भागीदारी का निर्माण करना शामिल है।
- पर्यावरण के लिए मिशन लाइफस्टाइल (LiFE) के साथ तालमेल बिठाते हुए और MoEF&CC के मिशन सहभागिता के दर्शन का पालन करते हुए, अभियान को सभी जिलों में अखिल भारतीय स्तर पर लागू किया गया था।
- रामसर साइटों का नेटवर्क उनके संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए मॉडल साइटों या एंकर के रूप में कार्य करता है।
- भारत सरकार ने ‘भागीदारी के माध्यम से संरक्षण और संरक्षण के माध्यम से समृद्धि’ के सिद्धांत के अनुरूप, SWC के भीतर गतिविधियों को जारी रखने का निर्णय लिया है।
- अमृत धरोहर के तहत, MoEF&CC ने रामसर स्थलों के आसपास प्राकृतिक पर्यटन को बढ़ाने के लिए पर्यटन मंत्रालय (MoT), केंद्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान (CIET), मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की एक नोडल एजेंसी के साथ सहयोग किया है।
- विश्व पर्यावरण दिवस 2023 पर अमृत धरोहर के लॉन्च के बाद से, रामसर साइटों के आसपास 600 से अधिक लोगों के जैव विविधता रजिस्टर (पीबीआर) को स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समितियों (बीएमसी) को शामिल करके अद्यतन किया गया था।
- इसके अलावा, अमृत धरोहर के तहत गतिविधियों के हिस्से के रूप में क्रमशः 75 रामसर स्थलों की पुष्प और जीव सूची को भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (बीएसआई) और भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआई) द्वारा विकसित किया गया था।
- पुष्प सूची में 75 रामसर स्थलों के पौधों की सूची शामिल है, जिसमें कई आर्थिक और औषधीय रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों के साथ-साथ वनस्पतियों की कुछ संकटग्रस्त और स्थानिक प्रजातियां भी शामिल हैं।
- जीव-जंतु सूची में लुप्तप्राय, स्थानिक और प्रवासी प्रजातियों सहित रामसर स्थलों में उपलब्ध जीव-जंतु प्रजातियों की सूची शामिल है।
- नवंबर 2023 – जनवरी 2024 के दौरान, पांच रामसर स्थलों यानी हरियाणा में सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश में सिरपुर झील और यशवंत सागर, और ओडिशा में भितरकनिका मैंग्रोव और चिल्का झील के 196 स्थानीय समुदाय के सदस्यों को वैकल्पिक आजीविका कार्यक्रम (एएलपी)/पर्यावरण पर प्रशिक्षित किया गया था।
- इस वर्ष के विश्व वेटलैंड्स दिवस (डब्ल्यूडब्ल्यूडी) की थीम ‘वेटलैंड्स एंड ह्यूमन वेलबीइंग’ है।
- आर्द्रभूमि प्रबंधन और संरक्षण पर बढ़ती जन जागरूकता के साथ, भारत ने पहली बार तीन शहरों, मध्य प्रदेश के भोपाल और इंदौर और राजस्थान के उदयपुर को स्वैच्छिक के तहत आर्द्रभूमि शहरों के रूप में शामिल करने के लिए रामसर सचिवालय को नामांकन प्रस्तुत किया है।
मिशन सहभागिता के बारे में:
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) ने 2022 में ‘राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के आर्द्रभूमि का एक स्वस्थ और प्रभावी ढंग से प्रबंधित नेटवर्क जो जल और खाद्य सुरक्षा का समर्थन करता है; बाढ़, सूखे, चक्रवात और अन्य चरम घटनाओं से बचाव; रोजगार सृजन; स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की प्रजातियों का संरक्षण; जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन कार्य; और सांस्कृतिक विरासत की मान्यता, संरक्षण और उत्सव’ के मिशन के साथ मिशन सहभागिता की शुरुआत की।
अमृत धरोहर के बारे मेंः
- अमृत धरोहर पहल, 2023-24 की बजट घोषणा का हिस्सा, जून 2023 के दौरान एमओईएफ एंड सीसी द्वारा रोजगार के अवसर पैदा करते हुए और स्थानीय आजीविका का समर्थन करते हुए देश में रामसर स्थलों के अद्वितीय संरक्षण मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था।
- इस पहल को केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और एजेंसियों, राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरणों और औपचारिक और अनौपचारिक संस्थानों और व्यक्तियों के एक नेटवर्क के साथ मिलकर लागू किया जाना है, जो एक सामान्य उद्देश्य के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।
आर्द्रभूमि शहर प्रत्यायन के बारे मेंः
- शहरी और उप-शहरी वातावरण में आर्द्रभूमि के महत्व को स्वीकार करते हुए और इन आर्द्रभूमि के संरक्षण और सुरक्षा के लिए उचित उपाय करने के लिए, वर्ष 2015 में आयोजित सीओपी 12 के दौरान रामसर कन्वेंशन ने संकल्प XII.10 के तहत एक स्वैच्छिक आर्द्रभूमि शहर प्रत्यायन प्रणाली को मंजूरी दी, जो उन शहरों को मान्यता देता है जिन्होंने अपने शहरी आर्द्रभूमि की सुरक्षा के लिए असाधारण कदम उठाए हैं।
- आर्द्रभूमि शहर प्रत्यायन योजना का उद्देश्य शहरी और उप-शहरी आर्द्रभूमि के संरक्षण और विवेकपूर्ण उपयोग के साथ-साथ स्थानीय आबादी के लिए स्थायी सामाजिक-आर्थिक लाभों को बढ़ावा देना है।
- इसके अतिरिक्त, प्रत्यायन उन शहरों को प्रोत्साहित करना चाहता है जो आर्द्रभूमियों के करीब हैं और उन पर निर्भर हैं, मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियाँ, लेकिन अन्य संरक्षण श्रेणी की स्थिति वाली आर्द्रभूमियाँ भी, इन मूल्यवान पारिस्थितिक तंत्रों के साथ सकारात्मक संबंध विकसित करने और मजबूत करने के लिए।
- औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त होने के लिए, आर्द्रभूमि शहर प्रत्यायन के लिए एक उम्मीदवार को आर्द्रभूमि पर रामसर कन्वेंशन के डब्ल्यूसीए के लिए उल्लिखित छह अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों में से प्रत्येक को लागू करने के लिए उपयोग किए जाने वाले मानकों को पूरा करना चाहिए।
- यह स्वैच्छिक योजना उन शहरों के लिए एक अवसर प्रदान करती है जो अपने प्राकृतिक या मानव निर्मित आर्द्रभूमि को महत्व देते हैं ताकि आर्द्रभूमि के साथ मजबूत सकारात्मक संबंधों को प्रदर्शित करने के अपने प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मान्यता और सकारात्मक ब्रांडिंग के अवसर प्राप्त कर सकें।
2. भूमि बैंकों का गठन:
- वन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के नुकसान की भरपाई के लिए, वन (संरक्षण) कानून, 1980 और उसके तहत नियमों के प्रावधानों के अनुसार गैर-वानिकी उद्देश्य के लिए हस्तांतरित वन भूमि के बदले क्षतिपूरक वनरोपण (सीए) वृक्षारोपण किया जाता है।
- यह उल्लेख करना उचित है कि क्षतिपूरक वनरोपण बढ़ाने के लिए पहचाने गए स्थल अधिकतर दुर्दम्य और क्षत-विक्षत हैं, जिन्हें वनस्पति की तरह जंगल में विकसित होने में लंबा समय लगता है। यदि प्रारंभिक वर्षों में वृक्षारोपण नहीं किया जाता है, तो ऐसे वृक्षारोपण की सफलता सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास किए जाते हैं।
- वनीकरण के लिए भूमि बैंक के सीमांकन के लिए इस मंत्रालय द्वारा कोई विशिष्टता/पद्धति निर्धारित नहीं की गई है।
- ‘भूमि’ राज्य सरकार का विषय है, इसलिए, वनीकरण के लिए भूमि की पहचान और सीमांकन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लागू नियमों और दिशानिर्देशों के अनुसार किया जा रहा है।
- क्षतिपूरक वनरोपण के लिए निर्मित या प्रस्तावित भूमि बैंकों का विवरण संबंधित राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश द्वारा रखा जाता है, न कि इस मंत्रालय के स्तर पर।
3. पीएम-डिवाइन योजना:
- उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री विकास पहल (पीएम-डिवाइन) को केंद्रीय बजट 2022-23 में 100 प्रतिशत केंद्रीय वित्त पोषण के साथ एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में घोषित किया गया और केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 12 अक्टूबर, 2022 को 2022-23 से 2025-26 तक की 4 वर्ष की अवधि के लिए 6,600 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया।
- इसका लक्ष्य राज्यों की महसूस की गई जरूरतों के आधार पर आधारभूत अवसंरचना और सामाजिक विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित करके उत्तर पूर्वी क्षेत्र का तेजी से और समग्र विकास करना है।
- पीएम-डिवाइन योजना के उद्देश्य हैं: (i) पीएम गतिशक्ति की भावना के अनुरूप आधारभूत अवसंरचना को वित्त पोषित करना; (ii) उत्तर पूर्वी क्षेत्र की महसूस की गई आवश्यकताओं के आधार पर सामाजिक विकास परियोजनाओं का समर्थन करना; (iii) युवाओं और महिलाओं के लिए आजीविका गतिविधियों को सक्षम बनाना; और (iv) विभिन्न क्षेत्रों में विकास संबंधी खाई को पाटना।
4. भारतश्री परियोजना:
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा भारतश्री परियोजना के तहत भारतीय पुरालेखों के कुल 67,461 अनुमान लगाए गए हैं। इनमें से 29,260 एस्टाम्पेज का डिजिटलीकरण किया जा चुका है।
- परियोजना के लिए कोई अलग बजट आवंटित नहीं किया गया है और व्यय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को आवंटित धन के माध्यम से किया जाता है।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, पुरालेखविदों की टीम द्वारा किए गए सावधानीपूर्वक गांव-गांव सर्वेक्षण के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों से शिलालेख एकत्र करता है।
- फिर शिलालेखों के शिलालेखों का अध्ययन किया जाता है और विभिन्न पुरालेख शाखाओं में संरक्षित किया जाता है।
- यह जानकारी हर साल भारतीय पुरालेख पर वार्षिक रिपोर्ट, ब्रोशर और “भारतीय पुरातत्व- एक समीक्षा” जैसी पुस्तिकाओं जैसे प्रकाशनों के माध्यम से प्रसारित की जाती है।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, राष्ट्र की पुरालेख संपदा का संरक्षक होने के नाते, इस परियोजना को स्वयं अपने हाथ में लिया है।
5. कैबिनेट ने भारतीय रेलवे की 6 मल्टी ट्रैकिंग परियोजनाओं को मंजूरी दी:
- प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने रेल मंत्रालय की 6 (छह) परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिनकी कुल अनुमानित लागत केन्द्र सरकार के शत-प्रतिशत वित्त पोषण के साथ 12,343 करोड़ (लगभग) रुपये है।
- इन मल्टी-ट्रैकिंग प्रस्तावों से भारतीय रेलवे के सबसे व्यस्त खंडों पर आवश्यक ढांचागत विकास उपलब्ध होगा, जिससे परिचालन में आसानी होगी और भीड़भाड़ कम होगी।
- ये परियोजनाएं क्षेत्र में व्यापक विकास के माध्यम से संबंधित इलाके के लोगों को “आत्मनिर्भर” बनाएगी जिससे उनके रोजगार/स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
- इन परियोजनाओं से विभिन्न खंडों की मौजूदा लाइन क्षमता में वृद्धि होगी जिससे गाड़ियों का परिचालन सुचारु होगा और समय की पाबंदी के साथ-साथ वैगनों के वापस लौटने में कम समय लगना सुनिश्चित होगा।
- इनसे भीड़भाड़ में कमी आएगी और रेल यातायात में वृद्धि होगी
- ये परियोजनाएं निर्माण के दौरान लगभग 3 (तीन) करोड़ कार्य दिवसों के बराबर प्रत्यक्ष रोजगार सृजित करेंगी।
- इन परियोजनाओं का वित्तीय व्यय 12,343 करोड़ रुपये (लगभग) होगा और इनका निर्माण कार्य 2029-30 तक पूरा होने की संभावना है।
- कुल छह राज्यों यानी राजस्थान, असम, तेलंगाना, गुजरात, आंध्र प्रदेश और नागालैंड के 18 जिलों को कवर करने वाली ये 6 (छह) परियोजनाएं भारतीय रेलवे के मौजूदा नेटवर्क में 1020 किलोमीटर तक की वृद्धि करेंगी और इन राज्यों के लोगों को लगभग 3 (तीन) करोड़ कार्य दिवसों के बराबर रोजगार प्रदान करेंगी।
- ये परियोजनाएं मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी हेतु पीएम-गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान का परिणाम हैं जो एकीकृत योजना के माध्यम से संभव हुई हैं और लोगों, वस्तुओं एवं सेवाओं की आवाजाही के लिए निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करेंगी।
- ये खाद्यान्न, खाद्य वस्तुएं, उर्वरक, कोयला, सीमेंट, लोहा, इस्पात, फ्लाई-ऐश, क्लिंकर, चूना पत्थर, पीओएल, कंटेनर आदि जैसी वस्तुओं के परिवहन के लिए आवश्यक मार्ग हैं।
- पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा के मामले में किफायती परिवहन का साधन होने के कारण, रेलवे जलवायु संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने और देश की लॉजिस्टिक्स संबंधी लागत को कम करने, तेल आयात को घटाने और कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने में मदद करेगा।
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