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09 अगस्त 2023 : PIB विश्लेषण

विषयसूची:

  1. तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023:
  2. भारत को खनिज क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए नवीनतम अभिनव प्रयास
  3. रोबोट ‘बैंडिकूट’ तकनीक:
  4. कॉट-ऐलाई मोबाइल ऐप

1. तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023

सामान्य अध्ययन: 2

राजव्यवस्था:

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

प्रारंभिक परीक्षा: तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023

मुख्य परीक्षा: तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताओं एवं प्रभावों का वर्णन कीजिए।

प्रसंग:

  • तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023, भारतीय संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया है ।

उद्देश्य:

  • भारत सरकार इस बात पर बल देना चाहती है कि तटीय जलकृषि और उससे जुड़ी गतिविधियाँ CRZ अधिसूचनाओं के तहत CRZ के भीतर अनुमत गतिविधियाँ हैं ।
  • संशोधन विधेयक में यह प्रावधान है कि तटीय जलकृषि प्राधिकरण अधिनियम के तहत दिया गया पंजीकरण मान्य होगा और इसे CRZ अधिसूचना के तहत वैध अनुमति के रूप में माना जाएगा, जिससे लाखों छोटे सीमांत जलकृषि किसानों को कई एजेंसियों से CRZ मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी ।

विवरण:

  • इस संशोधन के माध्यम से CAA अधिनियम के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) के नो डेवलपमेंट जोन (NDZ) [HTL से 200 मीटर] के भीतर हैचरी, ब्रूड स्टॉक मल्टीप्लिकेशन सेंटर (BMC) और न्यूक्लियस ब्रीडिंग सेंटर (NBC) जैसी जलकृषि इकाइयों की स्थापना के लिए विशेष छूट दी गई है ।
  • मूल अधिनियम में पंजीकरण के बिना तटीय जलकृषि करने पर 3 वर्ष तक की कैद का प्रावधान है। यह पूरी तरह से नागरिक प्रकृति के अपराध के लिए बहुत कठोर सजा प्रतीत होती है और इसलिए संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि नागरिक अपराधों के गैर-अपराधीकरण करने के सिद्धांत के अनुसार इस अपराध के लिए जुर्माने जैसी उपयुक्त नागरिक अनुकूल प्रणाली अपनाई जाएगी ।
  • संशोधन विधेयक इस अधिनियम के दायरे में तटीय जलकृषि की सभी गतिविधियों को व्यापक रूप से कवर करने के लिए व्यापक आधार वाली “तटीय जलकृषि” का प्रावधान करता है और फॉर्म और तटीय जलकृषि के अन्य कार्यक्षेत्रों के बीच मूल अधिनियम में मौजूद अस्पष्टता को दूर करता है। इससे यह सुनिश्चित होने की संभावना है कि कोई भी तटीय जलकृषि गतिविधि अधिनियम के दायरे से बाहर न रहे और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना संचालित हो ।
  • 2005 में, तटीय जलकृषि गतिविधि मूलतः श्रिम्प फार्मिंग थी। अब पर्यावरण के अनुकूल तटीय जलकृषि के नए रूप जैसे केज कल्चर, सी वीड कल्चर, बाई-वाल कल्चर, मरीन ऑर्नामेंटल फिश कल्चर, पर्ल ऑयस्टर कल्चर आदि सामने आए हैं जो तटीय क्षेत्रों में और अधिकतर CRZ के भीतर किए जा सकते हैं ।
  • इन गतिविधियों में भारी राजस्व उत्पन्न करने और तटीय मछुआरे समुदायों, विशेष रूप से मछुआरा महिलाओं के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करने की भी क्षमता है और इसलिए इसे बढ़ावा देने की आवश्यकता है और यह इन गतिविधियों को तटीय जलकृषि प्राधिकरण अधिनियम के दायरे में लाकर किया जा सकता है।
  • सरकार का उद्देश्य तटीय जलकृषि प्राधिकरण की कुछ परिचालन प्रक्रियाओं को बेहतर बनाकर तटीय जलकृषि में व्यापार सुगमता को बढ़ावा देना है। वर्तमान संशोधन स्वामित्व या गतिविधि के आकार में परिवर्तन के मामले में पंजीकरण प्रमाणपत्र में परिवर्तन करने और प्रमाणपत्र के विरूपण, क्षति या हानि आदि के मामले में नया प्रमाणपत्र प्रदान करने का प्रावधान करता है । इसमें चक्रवृद्धि शुल्क (कमपाऊँडेड फ़ी) के साथ पंजीकरण के नवीनीकरण (रिनीवल) के लिए आवेदन करने में विलंब को माफ करने का भी प्रावधान करता है जो मूल अधिनियम में नहीं था।
  • सीएए के सदस्य सचिव की शक्तियां और अध्यक्ष की अनुपस्थिति में प्राधिकरण के सामान्य कामकाज जैसे कई प्रशासनिक मामले जो अस्पष्ट थे, उन्हें प्रशासनिक दक्षता और जवाबदेही के लिए संशोधित अधिनियम के तहत उपयुक्त रूप से समाधान किया गया है।
  • संशोधन स्पष्ट रूप से प्राधिकरण को समितियों को नियुक्त करने का अधिकार देता है जिसमें अधिनियम के तहत कर्तव्यों के कुशल निर्वहन और कार्यों के निष्पादन के लिए विशेषज्ञ, हितधारक और सार्वजनिक प्रतिनिधि शामिल हो सकते हैं।
  • रोग की रोकथाम तटीय जलकृषि की सफलता की कुंजी है। इसलिए, सरकार ऐसी सुविधाएं बनाने का उद्देश्य रखती है जो तटीय जलकृषि में उपयोग के लिए आनुवंशिक रूप से बेहतर और रोग-मुक्त स्टॉक का उत्पादन करें। ऐसी सुविधाएं, अर्थात् हैचरी, ब्रूड स्टॉक मल्टीप्लिकेशन सेंटर और न्यूक्लियस ब्रिडिंग सेंटर केवल समुद्री जल तक सीधी पहुंच वाले क्षेत्रों में स्थापित किए जा सकते हैं और सरकार का उद्देश्य उन्हें सक्षम और सुविधाजनक बनाना है। इसके साथ ही, सरकार का उद्देश्य अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान बनाकर तटीय जलकृषि में एंटीबायोटिक और फार्माकोलॉजिकल सक्रिय पदार्थों के उपयोग को रोकना भी है।
  • सरकार वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियों (ग्लोबल बेस्ट प्रेक्टिसेस) जैसे जल कृषि क्षेत्रों की मैपिंग और ज़ोनेशन, उत्तम जल कृषि प्रथाओं, गुणवत्ता आश्वासन और सुरक्षित जल कृषि उत्पादों को लाने और अधिनियम में उपयुक्त प्रावधान पेश करके पर्यावरण संरक्षण के मूल सिद्धांतों को कमजोर किए बिना व्यापार करने में सुगमता की सुविधा प्रदान करने की परिकल्पना करती है।
  • इनसे तटीय जलकृषि क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता, ट्रेसेब्लिटी, मूल्य श्रृंखला और निर्यात के साथ प्रतिस्पर्धात्मकता और उद्यमशीलता को स्थायी तरीके से बढ़ावा मिलेगा और तट के साथ लगे ग्रामीण क्षेत्रों में आय और रोजगार में निरंतर वृद्धि होगी।
  • संशोधन विधेयक में तटीय पर्यावरण अनुपालन के लिए तटीय जलकृषि से जुड़ी गतिविधियों को बेहतर ढंग से विनियमित करने के लिए तटीय जलकृषि प्राधिकरण को सशक्त बनाने के लिए नए प्रावधान किए गए हैं। संशोधन विधेयक तटीय जलकृषि इकाइयों से अपशिष्टों (एफ़्लुएंट्स) के उत्सर्जन या निर्वहन (एमिशन ऑर डिस्चार्ज) के लिए मानकों को तय करने या अपनाने का प्रावधान करता है, जिसमें मालिक का उत्तरदायित्व होगा कि डेमोलिशन की लागत या पर्यावरण को नुकसान की लागत, यदि कोई हो, उसका भुगतान करे, जैसा कि प्राधिकरण द्वारा मूल्यांकित किया गया हो और जो प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (पोल्लुटर पेस प्रिंसिपल) की भावनाओं के अनुरूप है, साथ ही विधेयक पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों या भू-आकृति (जियो-मोर्फोलोजिकल) संबंधी विशेषताओं वाले क्षेत्रों में तटीय जलकृषि को प्रतिबंधित करती है।
  • प्रौद्योगिकी और कल्चर पद्धतियों में सुधार के साथ, श्रिम्प कल्चर के प्रदूषणकारी पहलू में काफी गिरावट आई है । तटीय जलकृषि प्राधिकरण अधिनियम 2005 में इन संशोधनों के माध्यम से प्रदान की गई नीतियों से अब यह क्षेत्र प्रजातियों के विविधीकरण और क्षेत्र के विस्तार के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार है।

2. भारत को खनिज क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए नवीनतम अभिनव प्रयास

सामान्य अध्ययन: 3

अर्थव्यवस्था:

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

मुख्य परीक्षा: भारत को खनिज क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए नवीनतम अभिनव प्रयास:

प्रसंग:

  • केंद्र सरकार ने देश में खनिज उत्पादन को बढ़ावा देने और देश को खनिज क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई नीतिगत सुधार किए हैं।

विवरण:

  • इस संबंध में खान और खनिज (विकास और विनियमन) (एमएमडीआर) अधिनियम, 1957 में कई बार संशोधन किया गया है। कुछ महत्वपूर्ण सुधारों का विवरण इस प्रकार है:
  • देश में खनिजों के उत्पादन में गिरावट के मुद्दे का समाधान निकालने के लिए एमएमडीआर अधिनियम को निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ 2015 में संशोधित किया गया था।

(i) बाधाओं को दूर करना;

(ii) खनिज संसाधनों के आवंटन में पारदर्शिता में सुधार;

(iii) प्रक्रियाओं को सरल बनाना;

(iv) प्रशासन में विलम्ब को दूर करना, ताकि देश के खनिज संसाधनों का शीघ्र और अधिकतम विकास संभव हो सके;

(v) सरकार के लिए देश के खनिज संसाधनों के मूल्य में एक बढ़ी हुई हिस्सेदारी प्राप्त करना; और

(vi) निजी निवेश और नवीनतम तकनीक को आकर्षित करना।

  • खनिज क्षेत्र की क्षमता का पूरी तरह से दोहन करने, कोयला सहित खनन क्षेत्र में रोजगार और निवेश बढ़ाने, राज्यों का राजस्व बढ़ाने, उत्पादन बढ़ाने और खानों के समयबद्ध संचालन एवं निरंतरता बनाए रखने के लिए एमएमडीआर संशोधन अधिनियम में 2021 में फिर से संशोधन किया गया था।
  • पट्टेदारी के परिवर्तन के बाद खनन कार्यों, खनिज संसाधनों की खोज और नीलामी की गति को बढ़ाने और लंबे समय से लंबित मुद्दों का समाधान निकालने की आवश्यकता है, जिसके कारण क्षेत्र के विकास की गति धीमी पड़ गई है।
  • इसके अलावा, खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023 को लोकसभा द्वारा 28 जुलाई 2023 को और राज्यसभा द्वारा 02 अगस्त 2023 को पारित किया गया है, यह गहराई में मौजूद महत्वपूर्ण खनिज जैसे सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, सीसा, निकल, कोबाल्ट, प्लैटिनम समूह के खनिज, हीरे, आदि तक के अन्वेषण लाइसेंस को प्रदान करने के लिए एमएमडीआर अधिनियम, 1957 में संशोधन करने का प्रस्ताव करता है, जिसका एमएमडीआर अधिनियम की 7वीं अनुसूची में उल्लेख किया गया हैं।
  • नीलामी के माध्यम से प्रदान किया गया अन्वेषण लाइसेंस, लाइसेंस धारी को अधिनियम की नई सातवीं अनुसूची में उल्लिखित महत्वपूर्ण और गहरे खनिजों के लिए टोही और पूर्वेक्षण संचालन करने की अनुमति देगा। अन्वेषण लाइसेंस महत्वपूर्ण और गहराई में मौजूद खनिजों के लिए खनिज अन्वेषण के सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुविधाजनक बनाते हुए प्रोत्साहन देगा।
  • एमएमडीआर संशोधन विधेयक 2023 अधिनियम की पहली अनुसूची के भाग-B में निर्दिष्ट परमाणु खनिजों की सूची से लिथियम युक्त खनिजों सहित छह खनिजों को बाहर करता है। इन खनिजों का अंतरिक्ष, इलेक्ट्रॉनिक्स, संचार, ऊर्जा, इलेक्ट्रिक बैटरी जैसे क्षेत्रों में विभिन्न अनुप्रयोग हैं और ये भारत की शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्रतिबद्धता में महत्वपूर्ण हैं।
  • परमाणु खनिजों की सूची में शामिल होने के कारण, उनका खनन और अन्वेषण सरकारी संस्थाओं के लिए आरक्षित था। पहली अनुसूची के भाग-B से इन खनिजों को हटाने के लिए इन खनिजों के अन्वेषण और खनन को निजी क्षेत्र के लिए भी खोल दिया जाएगा। जिन खनिजों को कुछ अन्य महत्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों के साथ परमाणु खनिजों की सूची से हटा दिया गया है, उन्हें अब अधिनियम की पहली अनुसूची के नए भाग में शामिल किया गया है और इन खनिजों की नीलामी करने की शक्ति केंद्र सरकार के पास निहित है। हालांकि, ऐसी नीलामियों से राजस्व केवल राज्य सरकार को प्राप्त होगा। परिणामस्वरूप, देश में इन खनिजों के अन्वेषण और खनन में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है।

3. रोबोट ‘बैंडिकूट’ तकनीक

सामान्य अध्ययन: 1

सामाजिक मुद्दे:

विषय: शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।

प्रारंभिक परीक्षा: रोबोट ‘बैंडिकूट’ तकनीक

मुख्य परीक्षा: रोबोट ‘बैंडिकूट’ तकनीक

प्रसंग:

  • बैंडिकूट जैसे उत्पाद मैनहोल के तल पर जमा तलछट को हटाने तक सीमित है, जिसके कारण सीवर बंद पड़ सकता है तथा ऊपर से बहने लगता है।

विवरण:

  • स्थानीय निकायों को उपयुक्त मैनहोल डी-ग्रीटिंग मशीन खरीदने की सलाह दी गई है, जिन्हें मैनहोल में प्रवेश किए बिना संचालित किया जा सकता है तथा समय-समय पर सफाई की उचित व्यवस्था भी की जा सकती है। समय-समय पर की जाने वाली डी-बिटिंग के साथ-साथ मैनहोल की आपातकालीन डी-ग्रीटिंग की आवश्यकता को स्थानीय रूप से आसानी से तैयार सरल मशीनों का इस्तेमाल करके भी पूरा किया जा सकता है। ये मशीनें बेहतर न सही परंतु सफाई कर्मचारियों के लिए सुरक्षा का एक समान स्तर सुनिश्चित करेगी।
  • एमएस अधिनियम, 2013 की धारा 33 के अनुसार, प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी अथवा अन्य एजेंसी द्वारा सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए समुचित तकनीकी उपकरण का उपयोग किया जाना अपेक्षित है। सरकार को वित्तीय सहायता, प्रोत्साहनों और अन्य सुविधाओं के माध्यम से आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रयोग को संवर्धित करना होगा।
  • हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के रूप में नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास नियमावली, 2013 (एमएस नियमावली, 2013)” के अनुसार नियोक्ता द्वारा सुरक्षा गीयर, उपकरण उपलब्ध कराना और नियमावली में निर्धारित सुरक्षा सावधानियों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाना अनिवार्य है।
  • आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय वाले ने सीवरों तथा सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की है। इसके अलावा, निम्नलिखित सुनिश्चित करने के लिए नमस्ते स्कीम देश के सभी शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में कार्यान्वित की जा रही है
    • भारत में स्वच्छता कार्य में शून्य मृत्यु दर ।
    • संपूर्ण स्वच्छता कार्य कुशल कर्मचारियों द्वारा किया जाना है।
    • कोई भी सफाई कर्मचारी मानव मल के प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं आना चाहिए।
    • पंजीकृत तथा कुशल स्वच्छता कर्मचारियों से सेवाओं की चाह रखने वाले स्वच्छता के इच्छुक (व्यक्तियों एवं संस्थान) लोगों के मध्य जागरूकता का संवर्द्धन करना।
    • पंजीकृत सफाई सेवाओं के सुरक्षित वितरण को सुनिश्चित करने के लिए इमरजेंसी रिस्पांस सैनिटेशन यूनिट (ERSU) का शुद्धिकरण तथा क्षमता निर्माण ।
    • सफाई उद्यम चलाने तथा मशीनों की उपलब्धता के माध्यम से सफाई कार्यों के मशीनीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए सफाई कर्मचारियों का सशक्तिकरण।
  • यह योजना मशीनरी के साथ सुरक्षित सफाई सुनिश्चित करने और सीवरेज तथा सेप्टिक टैंक सफाई कर्मचारियों की गरिमा में वृद्धि करने के लिए सीवर तथा सेप्टिक टैंक कर्मचारियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण, सुरक्षा गियर तथा एबी-पीएमजेएवाई के अंतर्गत स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराकर उनके ज्ञान व कौशल को भी बढ़ाती हैं।

प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. कॉट-ऐलाई मोबाइल ऐप
  • सरकार ने कपास क्षेत्र के विकास के लिए कई उपाय किए हैं और सरकार द्वारा विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। कुछ प्रमुख पहल एवं सुविधा इस प्रकार हैं:-
  • कृषि एवं किसान कल्याण विभाग कपास का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से 2014-15 से 15 प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों असम, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के तहत कपास विकास कार्यक्रम कार्यान्वित कर रहा है। किसानों को विभिन्न प्रकार की प्रदर्शनियों, उच्च सघन रोपण प्रणाली पर परीक्षणों, पौध संरक्षण रसायनों और जैव एजेंटों के वितरण तथा राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय प्रशिक्षणों पर सहायता प्रदान की जा रही है।
  • कपास किसानों के आर्थिक हितों की रक्षा करने और वस्त्र उद्योग को कपास की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 2018-19 से न्यूनतम समर्थन मूल्य दरों को घोषित करने के लिए उत्पादन लागत का 1.5 गुना (A2+FL) का फॉर्मूला पेश किया हुआ है। कपास सत्र 2022-23 के लिए उचित औसत गुणवत्ता (एफएक्यू) ग्रेड कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगभग 6 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी, जिसे आगामी कपास सत्र 2023-24 के लिए 9 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है।
  • भारतीय कपास निगम (CCI) को कपास किसानों की विपरीत परिस्थितियों में बिक्री से बचाने हेतु MSP संचालन के लिए एक केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है। यह उस समय विशेष तौर पर कार्य करती है, जब उचित औसत गुणवत्ता ग्रेड बीज कपास की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य दरों से नीचे गिर जाती हैं।
  • भारतीय कपास का ब्रांड नाम “कस्तूरी कॉटन इंडिया” 7 अक्टूबर 2020 को प्रारंभ किया गया था। 2022-23 से 2024-25 के दौरान 3 वर्षों की अवधि में कपास उद्योग एवं वस्त्र मंत्रालय के संयुक्त योगदान से 30 करोड़ रुपए की संयुक्त निधि के साथ कस्तूरी कॉटन इंडिया की ट्रेसेब्लिटी, प्रमाणन और ब्रांडिंग के लिए भारत सरकार तथा टेक्सप्रोसिल की ओर से CCI के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 2023-24 के दौरान NFSM के तहत 41.87 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ कपास क्षेत्र के लिए एक विशेष परियोजना को स्वीकृति प्रदान की है, जिसका शीर्षक है “कृषि-पारिस्थितिकी क्षेत्रों के लिए प्रौद्योगिकियों को लक्षित करना-कपास उत्पादकता बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों का वृहद पैमाने पर प्रदर्शन”। यह परियोजना किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मोड में क्लस्टर-आधारित और मूल्य श्रृंखला दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करते हुए ELS कपास के लिए उच्च घनत्व रोपण प्रणाली (एचडीपीएस), न्यूनतम दूरी व उत्पादन तकनीक जैसी प्रौद्योगिकियों को लक्षित करती है।
  • वस्त्र मंत्रालय ने 25 मई 2022 को एक अनौपचारिक निकाय के रूप में वस्त्र सलाहकार समूह (TAG) का गठन किया था, जो अंतर-मंत्रालयी समन्वय की सुविधा प्रदान करता है और उत्पादकता, कीमतों, ब्रांडिंग आदि के मुद्दों पर विचार-विमर्श व सिफारिश करने के लिए संपूर्ण कपास मूल्य श्रृंखला से हितधारकों का प्रतिनिधित्व करता है।
  • किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य दरों, निकटतम खरीद केंद्रों, भुगतान की जानकारी, सर्वोत्तम कृषि कार्य प्रणालियों आदि के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से कॉट-ऐलाई मोबाइल ऐप विकसित किया गया।
  • सरकार, कपास उत्पादन और उपभोग समिति (COCPC) नामक एक तंत्र के माध्यम से वस्त्र उद्योग को कपास की उपलब्धता सुनिश्चित करती है। यह समिति देश में कपास की स्थिति पर लगातार नजर रखती है और उसकी समीक्षा करती है तथा कपास के उत्पादन एवं खपत से संबंधित मामलों पर सरकार को उचित सलाह देती है।

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