विषयसूची:
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1. अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से कृषि को प्रोत्साहन
सामान्य अध्ययन: 3
कृषि
विषय: कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग
प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (एटीएआरआई) संबंधित तथ्य
मुख्य परीक्षा: कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग एवं इस क्षेत्र की दशा सुधारने में अनुसंधान एवं विकास की भूमिका
प्रसंग:
- केंद्र सरकार कृषि उत्पादन को और बढ़ाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) तथा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) के माध्यम से कृषि क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) को बढ़ावा दे रही है।
विवरण:
- सरकार द्वारा कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डीएआरई) का बजट 2019-20 में 7846.17 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2023-24 में 9504 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कृषि क्षेत्र में मौजूदा समस्याओं का समाधान प्रदान करने के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर लगातार कृषि अनुसंधान एवं विकास कार्य में संलग्न है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा बीज हब परियोजनाओं, दलहनों व तिलहनों, पोषक-उद्यानों, जलवायु के प्रति लचीली कृषि गतिविधियों तथा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन को बढ़ावा देने के माध्यम से कृषि उत्पादन को प्रोत्साहन हेतु विभिन्न कार्यक्रम संचालित किये जाते है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं (एआईसीआरपी) बहु-स्थलीय परीक्षणों के माध्यम से विभिन्न प्रौद्योगिकियों के विकास/परीक्षण/पहचान के लिए कार्य करती हैं, जबकि कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (एटीएआरआई), कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के माध्यम से कार्यान्वित प्रौद्योगिकी परियोजनाओं के आईसीएआर प्रायोजित हस्तांतरण की योजना, निगरानी, समीक्षा एवं मूल्यांकन के क्षेत्र में काम करते हैं।
- सरकार इसके उपयोग और क्षमता विकास के लिए प्रौद्योगिकी मूल्यांकन एवं प्रदर्शन के अधिदेश के साथ देश के विभिन्न राज्यों में कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) योजना लागू करती है।
- कृषि विज्ञान केंद्र अपनी गतिविधियों के हिस्से के रूप में किसानों, कृषक महिलाओं और ग्रामीण युवाओं को कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण प्रदान करता है।
- इन केंद्रों ने 19.53 लाख किसानों को प्रशिक्षित किया है। इस मामले में ज्ञान व कौशल आंकड़ों को अद्यतन करने के लिए 2022-23 के दौरान फसल उत्पादन, बागवानी, मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता प्रबंधन, पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन, गृह विज्ञान/महिला सशक्तिकरण, कृषि इंजीनियरिंग, पौध संरक्षण तथा मत्स्य पालन पर 2,98,932 फ्रंट लाइन प्रदर्शन आयोजित किए।
2. ज्ञान यात्रा की शुरुआत: भारत मंडपम में तीन दिवसीय जीपीएआई शिखर सम्मेलन शुरू
सामान्य अध्ययन: 3
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
विषय : प्रौद्योगिकी का विकास
प्रारंभिक परीक्षा: कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक साझेदारी (ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-जीपीएआई), एआई और मशीन लर्निंग
मुख्य परीक्षा: वर्त्तमान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अनुप्रयोग, संभावनाएं एवं निहित चुनौतियां
प्रसंग:
- भारत कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक साझेदारी (ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-जीपीएआई) के आगामी समर्थन अध्यक्ष के रूप में नई दिल्ली के भारत मंडपम में गर्व के साथ वार्षिक जीपीएआई शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने में सबसे आगे है।
विवरण:
- जीपीएआई शिखर सम्मेलन में 28 सदस्य देशों और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लगातार विकसित हो रहे परिदृश्य को आकार देने वाले जरूरी मामलों पर गहन चर्चा के लिए एक असाधारण मंच है।
- इस बौद्धिक जमावड़े में, कई समानांतर सत्रों में असंख्य महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श किया गया, जिसने अभूतपूर्व महत्व के शिखर सम्मेलन के लिए मंच तैयार किया।
- ‘प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में एआई के अनुप्रयोग’ शीर्षक के साथ आगे का सत्र प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने, एआई की बाजार क्षमता का पता लगाने और सभी क्षेत्रों में इसके प्रसार को बढ़ावा देने के लिए उद्योगों द्वारा एआई को अपनाने में आने वाली चुनौतियों और अवसरों पर केंद्रित था।
- इस सत्र के दौरान चर्चा में इस बात पर जोर दिया कि अन्य ओमिक्स डेटा के साथ मिलकर मास स्पेक्ट्रोमेट्री डेटा से प्रोटीन की पहचान और परिमाणीकरण कृत्रिम प्रोटीन बनाने का समाधान है।
- एआई-संचालित फार्म मूल्यांकन (खेत स्कोर) और निगरानी (खेत स्कोर नाउ) की सफलता पर चर्चा की गई, जो प्रारंभिक जोखिम पहचान के लिए लाइव मॉनिटरिंग के साथ एआई संचालित ऐतिहासिक फार्म मूल्यांकन है जिसने पारंपरिक ऋण देने वाले बैंक स्कोर के प्रदर्शन को बेहतर किया है।
- इसमें यह बताया गया कि उन्नत एआई और मशीन लर्निंग का लाभ उठाते हुए सुरभि एक अद्वितीय, मालिकाना थूथन-आधारित मवेशी पहचान समाधान प्रदान करती है।
- यह सत्र 2023 में जिम्मेदार एआई समाधानों को बढ़ाने और एआई समाधानों को जिम्मेदारी से बनाने से जुड़ी चुनौतियों पर विचार-विमर्श पर केंद्रित था।
- चर्चाओं में ‘कॉम्प्रिहेंसिव- एट होम यूनिवर्सल प्राइमरी हेल्थ केयर’ परियोजना शामिल थी, जो वैश्विक स्वास्थ्य और जिम्मेदार एआई सार्वजनिक खरीद के लिए सैंडबॉक्स पर केंद्रित है।
- इस सत्र में एआई जनित मूलपाठ का पता लगाने के लिए विश्वसनीय तरीकों की आवश्यकता भी प्रमुख विषय था।
- पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि एआई इकोसिस्टम में व्यवस्थित जेंडर समावेशन बनाना, सार्वजनिक एल्गोरिदम के भंडार स्थापित करना, समुदायों को सशक्त बनाने वाला डिजिटल इकोसिस्टम विकसित करना और लोगों पर एआई प्रभाव के लिए प्रमुख माध्यमों के रूप में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को पहचानना आवश्यक कदम हैं।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ई-संजीवनी और आयुषम डिजिटल भारत मिशन जैसी प्रभावशाली पहलों पर भी चर्चा की गई।
- पैनल ने स्वास्थ्य सेवा के संबंध में नीति पर भी चर्चा की और इस बात पर जोर दिया कि विकसित व विकासशील देशों के बीच अंतर को पाटने के लिए इसे निम्न और मध्यम आय वर्ग के देशों पर केंद्रित किया जाना चाहिए।
- इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की मदद से “सार्वजनिक क्षेत्र के अनुप्रयोगों में जिम्मेदार एआई को आगे बढ़ाना” विषय पर अनुसंधान संगोष्ठी आयोजित की गई।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1. कृषि यंत्रीकरण पर उप-मिशन
- कृषि में ड्रोन के उपयोग से विशिष्ट लाभ होते हैं जैसे किसानों की दक्षता में वृद्धि, छिड़काव की लागत में कमी के कारण लागत प्रभावशीलता, उच्च स्तर के परमाणुकरण के कारण उर्वरकों और कीटनाशकों की बचत, अत्यधिक कम मात्रा में छिड़काव के कारण पानी की बचत आदि के अलावा मानव संसाधन के खतरनाक रसायनों के संपर्क में आने में कमी आती है।
- कृषि में ड्रोन के उपयोग से कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा करने में भी प्रेरणादाई प्रभाव पड़ता है।
- कृषि यंत्रीकरण पर उप-मिशन (एसएमएएम) के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), फार्म मशीनरी प्रशिक्षण और परीक्षण संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) के अंतर्गत संस्थान, राज्य और अन्य केंद्र सरकार के कृषि संस्थान/विभाग और भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) कृषि गतिविधियों में लगे हुए संस्थान द्वारा किसानों के खेतों पर ड्रोन की खरीद और प्रदर्शन के लिए इसकी लागत का 100 प्रतिशत और अधिकतम 10 लाख रुपये प्रति ड्रोन तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को किसानों के खेतों पर इसके प्रदर्शन के लिए किसान ड्रोन की लागत का 75 प्रतिशत तक अनुदान प्रदान किया जाता है।
- इन कार्यान्वयन एजेंसियों को 6000 रुपये प्रति हेक्टेयर का आकस्मिक व्यय प्रदान किया जाता है जो ड्रोन खरीदना नहीं चाहते हैं लेकिन कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी), हाई-टेक हब, ड्रोन निर्माताओं और स्टार्ट-अप से प्रदर्शन के लिए ड्रोन किराए पर लेंगे। ड्रोन प्रदर्शनों के लिए ड्रोन खरीदने वाली कार्यान्वयन एजेंसियों का आकस्मिक व्यय 3000 रुपये प्रति हेक्टेयर तक सीमित है।
- किसानों को किराये के आधार पर ड्रोन सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए किसानों, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) और ग्रामीण उद्यमियों की सहकारी समिति के अंतर्गत कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) द्वारा ड्रोन की खरीद के लिए 40 प्रतिशत की दर से अधिकतम 4.00 लाख रुपये तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित करने वाले कृषि स्नातक ड्रोन की लागत का 50 प्रतिशत की दर से अधिकतम 5.00 लाख रुपये प्रति ड्रोन तक वित्तीय सहायता प्राप्त करने के पात्र हैं। व्यक्तिगत स्वामित्व के आधार पर ड्रोन की खरीद के लिए, लघु और सीमांत, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, महिलाओं और उत्तर पूर्वी राज्य के किसानों को लागत का 50 प्रतिशत की दर से अधिकतम 5.00 लाख रुपये और अन्य किसानों को 40 प्रतिशत की दर से अधिकतम 4.00 लाख रुपये तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- कृषि यंत्रीकरण पर उप-मिशन (एसएमएएम) के अंतर्गत किसान ड्रोन प्रचार के लिए 141.39 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है, जिसमें किसान ड्रोन की खरीद और 100 कृषि विकास केन्द्रों (केवीके), 75 भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों और 25 एसएयू के माध्यम से किसानों के खेतों पर उनके प्रदर्शन आयोजित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को 52.50 करोड़ रुपये जारी किए गए।
- देश भर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 193 संस्थानों द्वारा 263 एग्री-ड्रोन खरीदे गए हैं।
- इन संस्थानों के 260 कर्मियों ने ड्रोन पायलट प्रशिक्षण लिया है। कृषि में ड्रोन के लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से, इन संस्थानों ने 16,471 हेक्टेयर क्षेत्र को सम्मिलित करते हुए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) का पालन करते हुए पोषक तत्वों, उर्वरकों, रसायनों (कीट और कीड़े-मकोड़ों) अनुप्रयोगों पर 15,075 ड्रोन प्रदर्शन किए हैं।
- सरकार ने हाल ही में महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को 1261 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ ड्रोन प्रदान करने के लिए केंद्रीय क्षेत्र की योजना को भी स्वीकृति प्रदान की है।
- इस योजना का लक्ष्य कृषि प्रयोजन (उर्वरकों और कीटनाशकों के अनुप्रयोग) के लिए किसानों को किराये की सेवाएं प्रदान करने के लिए 15000 चयनित महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को ड्रोन प्रदान करना है।
- स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के समूह स्तरीय संघ (सीएलएफ) राष्ट्रीय कृषि अवसंरचना वित्तीय सुविधा (एआईएफ) के अंतर्गत ऋण के रूप में शेष राशि (खरीद की कुल लागत घटाकर सब्सिडी) बढ़ा सकते हैं।
- समूह स्तरीय संघ (सीएलएफ) को एआईएफ ऋण पर 3 प्रतिशत की दर से ब्याज में छूट प्रदान की जाएगी।
- यह योजना किसानों के लाभ के लिए बेहतर दक्षता, फसल की पैदावार बढ़ाने और संचालन की कम लागत के लिए कृषि में उन्नत प्रौद्योगिकी को सम्मिलित करने में मदद करेगी।
- यह योजना स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को स्थायी व्यवसाय और आजीविका सहायता भी प्रदान करेगी और वे कम से कम 1.0 लाख रुपये प्रति वर्ष की अतिरिक्त आय अर्जित करने में सक्षम होंगे।
2. केंद्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-पौष्टिक अनाज लागू कर रही है
- भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (आईवाईओएम) घोषित किया गया है।
- सरकार इसे एक जन आंदोलन बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मना रही है ताकि मूल्यवर्धित उत्पादों को विश्व स्तर पर स्वीकार किया जा सके।
- केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने बाजरा (श्री अन्न) को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं।
- आईवाईओएम 2023 की कार्य योजना उत्पादन, उत्पादकता, खपत, निर्यात बढ़ाने, मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करने, ब्रांडिंग और स्वास्थ्य लाभ के लिए जागरूकता पैदा करने आदि की रणनीति पर केंद्रित है।
- श्री अन्न की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने हेतु पोषक अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए, केंद्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन – पोषक अनाज (एनएफएसएम-न्यूट्री अनाज) लागू कर रही है।
- एनएफएसएम-न्यूट्री अनाज के अंतर्गत शामिल हस्तक्षेपों में प्रथाओं के बेहतर पैकेज, बीज वितरण और सूक्ष्म पोषक तत्व, जैव उर्वरक, उच्च उपज वाली किस्मों के प्रमाणित बीजों का उत्पादन, पौध संरक्षक रसायन, खरपतवारनाशी, स्प्रेयर, कुशल जल अनुप्रयोग उपकरण, फसल प्रणाली पर आधारित प्रशिक्षण का क्लस्टर फ्रंट लाइन प्रदर्शन शामिल हैं।
- श्री अन्न के लिए बीज हब भी स्थापित किए गए हैं। आगे के हस्तक्षेपों में ब्रीडर बीज उत्पादन, प्रमाणित बीजों का उत्पादन, बीज मिनी किट (एचवाईवी) का वितरण आदि शामिल हैं।
- इसके अलावा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों ने भी बाजरा को बढ़ावा देने के लिए बाजरा मिशन शुरू किया है।
- सरकार राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के माध्यम से किसानों को बाजरा का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित भी करती है। इसने यह सुनिश्चित करने के लिए मुख्य मोटा अनाजों के लिए एमएसपी भी तय किया है ताकि किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके।
- मिलेट्स आधारित उत्पादों का उत्पादन बढ़ाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा जून 2022 में एक उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना अधिसूचित की गई है।
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पोषण अभियान के तहत भी श्री अन्न को शामिल किया गया है।
- इसके अलावा, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस), एकीकृत बाल विकास सेवाओं (आईसीडीएस) और मध्याह्न भोजन के तहत बाजरा की खरीद बढ़ाने के लिए अपने दिशानिर्देशों को संशोधित किया है।
- मंत्रालय ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को बाजरा की खरीद बढ़ाने की भी सलाह दी है।
- केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के उपरोक्त प्रयासों के कारण, श्री अन्न के स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ी है और मांग भी बढ़ी है। सरकार किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि उत्पादन और आपूर्ति बढ़े और कीमतें नियंत्रित रहें।
3. स्मार्ट खेती को बढ़ावा देना
- किसानों द्वारा आधुनिक और स्मार्ट खेती प्रौद्योगिकियों को अपनाना विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि सामाजिक आर्थिक स्थिति, भौगोलिक स्थिति, उगाई गई फसल तथा सिंचाई सुविधाएं इत्यादि ।
- हालांकि, भारत सरकार पूरे देश में कृषि को बढ़ावा देने के साथ ही राज्य सरकारों को कृषि क्षेत्र में आधुनिक और स्मार्ट कृषि प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए समर्थन और सुविधा प्रदान करती है।
- कृषि के मशीनीकरण पर उप-मिशन के अंतर्गत किसान ड्रोन सहित आधुनिक मशीनों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाता है।
- कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एनईजीपीए) कार्यक्रम के अंतर्गत , कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-एआई) और मशीन लर्निंग (एआई/एमएल), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), ब्लॉकचेन आदि जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके डिजिटल कृषि परियोजनाओं के लिए राज्य सरकारों को वित्त पोषण दिया जाता है।
- एक घटक जिसे “नवाचार और कृषि-उद्यमिता विकास” कहा जाता है, को वित्तीय सहायता प्रदान करके और ऊष्मायन पारिस्थितिकी तंत्र (इन्क्यूबेशन इकोसिस्टम) का पोषण करके नवाचार और कृषि-उद्यमिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 2018-19 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई-आरएएफटीएएआर) के अंतर्गत प्रारम्भ किया गया है।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत स्टार्ट-अप्स को कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में आने वाली चुनौतियों के समाधान हेतु नवीन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
- राज्यों को उनके प्रस्तावों के आधार पर धनराशि जारी की जाती है।
4. अंतर्देशीय मछली उत्पादन
- पिछले नौ वर्षों के दौरान देश में अंतर्देशीय मछली उत्पादन में 8.78 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई। इसी तरह 2022-23 में 131.13 लाख टन का उच्चतम अंतर्देशीय मछली उत्पादन दर्ज किया गया।
- भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मत्स्य पालन विभाग ने देश में मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहलें और कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनमें शामिल हैं-
(i) केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) का कार्यान्वयन: नीली क्रांति: एकीकृत विकास और 2015-16 से 2019-20 की अवधि के दौरान मत्स्य पालन का प्रबंधन, जिसकी कुल लागत 3000 करोड़ रुपये होगी।
(ii) प्रमुख योजना “प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई) – भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र के सतत और जिम्मेदार विकास के माध्यम से नीली क्रांति लाने की योजना” का कार्यान्वयन। इस मद में वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक पांच वर्षों की अवधि के लिए 20,050 करोड़ रुपये का निवेश होगा तथा इसके दायरे में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को रखा जाएगा।
- प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई) का उद्देश्य भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना, बेहतर मछली उत्पादन, प्रजातियों के विविधीकरण, निर्यात-उन्मुख प्रजातियों को बढ़ावा देना, ब्रांडिंग, मानक और प्रमाणन, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, मत्स्य उत्पादन के बाद के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सहायता प्रदान करना है।
- निर्बाध शीत श्रृंखला और मछली पकड़ने के आधुनिक बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों के विकास पर जोर
(iii) 7522.48 करोड़ रुपये के कुल निधि आकार के साथ मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (एफआईडीएफ) का कार्यान्वयन, जिसकी अवधि 2018 से पांच साल की होगी, यानी 2018-19 से 2023-24 तक। इसके तहत रियायती दरों पर वित्तपोषण किया जाएगा,
(iv) मछुआरों और मछली पालकों को उनकी कार्यशील पूंजी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए वर्ष 2018-19 में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) सुविधा का विस्तार।
- 2014 के बाद से देश में अंतर्देशीय मछली उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई है, जो 2014-15 के 66.91 लाख टन से बढ़कर 2022-23 में 131.13 लाख टन हो गया है, जो इस अवधि के दौरान कुल अंतर्देशीय मछली उत्पादन में 95.9 प्रतिशत की रिकॉर्ड वृद्धि दर्शाता है।
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