विषयसूची:
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1. भारत के पहले शीतकालीन वैज्ञानिक आर्कटिक अभियान का शुभारंभ:
सामान्य अध्ययन: 3
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
विषय: विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी में भारत कि उपलब्धियां; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर)
मुख्य परीक्षा: भारत के पहले शीतकालीन वैज्ञानिक आर्कटिक अभियान के महत्व को रेखंकित कीजिए।
प्रसंग:
- केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री, श्री किरेन रिजिजू ने 18 दिसंबर, 2023 को नई दिल्ली में पृथ्वी विज्ञानं मंत्रालय (एमओईएस) मुख्यालय से आर्कटिक के लिए भारत के पहले शीतकालीन वैज्ञानिक अभियान को हरी झंडी दिखाई।
उद्देश्य:
- आर्कटिक के लिए भारतीय वैज्ञानिक अभियान (नवंबर से मार्च) शोधकर्ताओं को ध्रुवीय रातों के दौरान ऐसे क्षेत्र में अद्वितीय वैज्ञानिक अवलोकन करने की अनुमति देगा, जहां सर्दियों के दौरान लगभग रोज ही 24 घंटों तक कोई सूरज की रोशनी नहीं होती है और तापमान शून्य से नीचे (-15 डिग्री सेल्सियस से कम) होता है।
- इससे आर्कटिक, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष के मौसम, समुद्री-बर्फ और महासागर परिसंचरण गतिशीलता (सी सर्कुलेशन डायनेमिक्स),इकोसिस्टम अनुकूलन आदि ऐसे कारकों की समझ बढ़ाने में मदद मिलेगी, जो मानसून सहित उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मौसम और जलवायु को प्रभावित करते हैं।
विवरण:
- भारत आर्कटिक में 2008 से हिमाद्रि नामक एक अनुसंधान आधार केंद्र संचालित कर रहा है, जो ज्यादातर गर्मियों (अप्रैल से अक्टूबर) के दौरान वैज्ञानिकों की मेजबानी करता रहा है।
- आर्कटिक में शीतकालीन अभियानों को सुविधाजनक बनाने का निर्णय जून 2023 में नॉर्वेजियन आर्कटिक के हिमाद्री, नाय-एलेसुंड, स्वालबार्ड में श्री रिजिजू द्वारा भारत की आर्कटिक गतिविधियों की व्यक्तिगत समीक्षा के बाद लिया गया है।
- आर्कटिक वैज्ञानिक, जलवायु और सामरिक महत्व का क्षेत्र है; इसलिए, वैज्ञानिकों को इस ग्रह पर जीवन और अस्तित्व को प्रभावित करने वाले क्षेत्रों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।”
- भारत के आर्कटिक अभियान के सदस्य 19 दिसंबर, 2023 को नई दिल्ली से हिमाद्रि के लिए प्रस्थान करने वाले हैं।
- पहले आर्कटिक शीतकालीन अभियान के पहले बैच में मेजबान राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशियन रिसर्च- एनसीपीओआर), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी; भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ ट्रॉपिकल मैट्रोलोजी -आईआईटीएम), पुणे; और रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु के शोधकर्ता शामिल हैं।
- शीतकालीन अभियानों का शुभारंभ भारत के आर्कटिक प्रयासों के लिए एक ऐसा महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो पृथ्वी के ध्रुवों में हमारी वैज्ञानिक क्षमताओं का विस्तार करने के लिए हमारे लिए और अधिक रास्ते खोलता है।
- आर्कटिक में शीतकालीन अभियान शुरू करने से भारत आर्कटिक में समय पर संचालन बढ़ाने वाले चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है।
- प्राथमिकता वाले अनुसंधान क्षेत्रों में वायुमंडलीय, जैविक, समुद्री और अंतरिक्ष विज्ञान, पर्यावरण रसायन विज्ञान, और क्रायोस्फीयर, स्थलीय इकोसिस्टम और खगोल भौतिकी पर अध्ययन शामिल हैं।
- आर्कटिक अभियानों को सुविधाजनक बनाने के लिए, एनसीपीओआर आर्कटिक क्षेत्र में अत्याधुनिक अनुसंधान करने के लिए खुले आह्वान (ओपन कॉल) के माध्यम से देश भर से आमंत्रित अनुसंधान प्रस्तावों की समीक्षा करता है।
- राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) निदेशक डॉ. मेलोथ ने बताया “इस वर्ष,पृथ्वी विज्ञानं मंत्रालय (एमओईएस) को शीतकालीन आर्कटिक अनुसंधान के लिए 41 प्रस्ताव प्राप्त हुए, जिनमें से 15 को गहन सहकर्मी समीक्षा और विशेषज्ञ चयन समिति प्रक्रिया के बाद शॉर्टलिस्ट किया गया है ।
- पहले भारतीय आर्कटिक शीतकालीन अभियान के शुभारंभ पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन (बाएं) और भारत का आर्कटिक अनुसंधान आधार हिमाद्रि, उत्तरी ध्रुव से 1231 किमी दक्षिण में 78˚55′ उत्तर(एन), 11˚56′ पूर्व (ई) पर स्थित है। जहां भारतीय आर्कटिक अभियान के सदस्य अवलोकन और प्रयोग करेंगे।
- पृथ्वी के ध्रुवों (आर्कटिक और अंटार्कटिक) पर भारतीय वैज्ञानिक अभियानों को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) एमओईएस की पीएसीईआर (ध्रुवीय और क्रायोस्फीयर) योजना के अंतर्गत सुविधा प्रदान की जाती है, जो पूरी तरह से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के संस्थान राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), गोवा, एक स्वायत्त संस्थान के तत्वावधान में है।
2. यूएन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस (सीओपी 28) के 28वें सत्र के मुख्य फैसले:
सामान्य अध्ययन: 2,3
अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध,पर्यावरण:
विषय: महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, एजेंसियां एवं मंच- उनकी संरचना, और जनादेश ,संरक्षण पर्यावरण प्रदुषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
प्रारंभिक परीक्षा: यूएन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस (सीओपी 28)।
मुख्य परीक्षा: यूएन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस (सीओपी 28) के 28वें सत्र के मुख्य फैसलों पर चर्चा कीजिए।
प्रसंग:
- भारत के एक अंतर-मंत्रालयी प्रतिनिधिमंडल ने 30 नवंबर 2023 से 13 दिसंबर 2023 तक दुबई में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी 28) के 28वें सत्र में भाग लिया।
उद्देश्य:
- सीओपी 28 के प्रमुख नतीजों में दशक के अंत से पहले वैश्विक जलवायु महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देने वाले पहले ग्लोबल स्टॉकटेक के नतीजे पर निर्णय शामिल था।
- इन वैश्विक प्रयासों को देशों द्वारा पेरिस समझौते और उनकी विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित तरीके से उठाया जाएगा।
- सीओपी 28 का एक अन्य प्रमुख परिणाम लॉस एवं डैमेज फंड के संचालन और इसकी फंडिंग व्यवस्था पर समझौता है।
विवरण:
- सीओपी 28 में अपनाए गए लॉस एवं डैमेज फंड पर निर्णय ने लॉस एवं डैमेज फंड के गवर्निंग इंट्रूमेंट को मंजूरी दी है और निर्णय लिया कि सेवा नए, समर्पित और स्वतंत्र सचिवालय द्वारा प्रदान की जाएगी।
- यह भी निर्णय लिया गया कि फंड की देखरेख और संचालन बोर्ड द्वारा किया जाएगा।
- यह फंड पेरिस समझौते (सीएमए) के लिए पार्टियों की बैठक के रूप में कार्यरत पार्टियों के सम्मेलन के प्रति जवाबदेह है और उसके मार्गदर्शन में कार्य करता है।
- निर्णय के बाद से, संयुक्त अरब अमीरात, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ, जापान सहित कई देशों द्वारा अब तक लगभग 700 मिलियन अमरीकी डालर की राशि का वादा किया गया है।
- फंड का उद्देश्य उन विकासशील देशों की सहायता करना है जो विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से जुड़े आर्थिक और गैर-आर्थिक नुकसान और क्षति का जवाब दिया जा सके, जिसमें चरम मौसम की घटनाएं और धीमी शुरुआत की घटनाएं शामिल हैं।
- लॉस एवं डैमेज से संबंधित एक अन्य प्रमुख परिणाम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जुड़े प्रासंगिक दृष्टिकोणों के कार्यान्वयन के लिए संबंधित संगठनों, निकायों, नेटवर्क और विशेषज्ञों की तकनीकी सहायता को उत्प्रेरित करने के लिए लॉस एवं डैमेज को रोकने, कम करने और संबोधित करने के लिए सैंटियागो नेटवर्क पर निर्णय है।
- सैंटियागो नेटवर्क के लिए सचिवालय के मेजबान को सीओपी 28 में अंतिम रूप दिया गया था।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय और परियोजना सेवाओं के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के संयुक्त संघ को प्रारंभिक पांच साल की अवधि के लिए और पाँच वर्ष की नवीनीकरण अवधि के साथ सैंटियागो नेटवर्क सचिवालय के मेजबान के रूप में चुना गया है।
- कनाडा, जापान, स्पेन, स्विट्जरलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित देशों ने सैंटियागो नेटवर्क के काम में अपने वित्तीय योगदान की घोषणा की है।
3. समुद्री प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रावधान:
सामान्य अध्ययन: 3
जैव विविधता:
विषय: समुद्री जैव विविधता।
प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972
मुख्य परीक्षा: सरकार द्वारा समुद्री प्रजातियों के संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रावधानों के बारे में विस्तार से चर्चा कीजिए।
प्रसंग:
- समुद्री प्रजातियों के संरक्षण के लिए, भारत सरकार ने तटीय राज्यों और द्वीपों में 130 समुद्री संरक्षित क्षेत्र अधिसूचित किए हैं।
उद्देश्य:
- इसके अलावा समुद्री प्रजातियों के संरक्षण की देखभाल के लिए 106 तटीय और समुद्री स्थलों की पहचान की गई है और उन्हें महत्वपूर्ण तटीय और समुद्री जैव विविधता क्षेत्रों (इम्पोर्टेन्ट कोस्टल एंड मैरीन डाइवरसिटी एरियाज -बायोआईसीएमबीए) के रूप में प्राथमिकता दी गई है।
विवरण:
- कई संकटग्रस्त समुद्री प्रजातियों को भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में अनुसूचित जंतुओं के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- वर्तमान में, भारत सरकार ने मूल्यांकन के लिए कुछ दुर्लभ और संकटग्रस्त समुद्री प्रजातियों जैसे समुद्री कछुए (सभी 5 प्रजातियां), हंपबैक व्हेल और डुगोंग को एकीकृत वन्यजीव आवास विकास (इन्टीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ़ वाइल्डलाइफ हैबिटैट-आईडीडब्ल्यूएच) योजना के अंतर्गत देशव्यापी जनसंख्या की स्थिति और निगरानी को प्राथमिकता दी है।
- लुप्तप्राय प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम (एनड़ेंजर्ड स्पीसीज रिकवरी प्रोग्राम – ईएसआरपी) के अंतर्गत डुगोंग के संरक्षण और उनके आवास संरक्षण की दिशा में देशव्यापी प्रयास के साथ ही समुद्री स्तनपायी डुगोंग पर विशेष ध्यान दिया गया है और डुगोंग और समुद्री घास से संबंधित समुद्री प्रजातियों के संरक्षण के लिए पाक की खाड़ी (बे ऑफ़ पीएएलके) में लगभग 450 वर्ग किमी क्षेत्र को डुगोंग संरक्षण रिजर्व घोषित किया गया है।
- मंत्रालय ने भारत में समुद्री कछुओं और उनके आवासों को संरक्षित करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय समुद्री कछुआ कार्य योजना जारी की है।
- इसके अलावा, प्रोजेक्ट डॉल्फिन के अंतर्गत मंत्रालय समुद्री जैव विविधता की प्रजातियों की निगरानी और संरक्षण के लिए समुद्री डॉल्फ़िन को शामिल करने पर खर्च कर रहा है।
- इसके अलावा, एकीकृत वन्यजीव आवास विकास (इन्टीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ़ वाइल्डलाइफ हैबिटैट-आईडीडब्ल्यूएच) योजना या लुप्तप्राय प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम के अंतर्गत जनसंख्या निगरानी/पुनर्प्राप्ति के लिए समुद्री अकशेरुकी (मैरीन इनवर्टीब्रेट्स) और सहित अधिक प्रजातियों को जोड़ा जाएगा।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के अंतर्गत लागू तटीय विनियमन क्षेत्र (कोस्टल रेगुलेशन जोन-सीआरजेड) अधिसूचना, 2019 में जैविक रूप से मैंग्रोव, समुद्री घास, रेत के टीले (सैंड ड्यून्स), मूंगे (कोरल्स) और मूंगे की चट्टानों (कोरल रीफ्स), जैविक रूप से सक्रिय मडफ्लैट्स, कछुओं के आवास क्षेत्र (टर्टल नेस्लिंग ग्राउंड्स), और राज कर्कट (हॉर्स शू क्रैब्स) के आवास जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (इकोलोजिकली सेंसिटिव एरियाज -ईएसए) के संरक्षण और प्रबंधन योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है और संवेदनशील तटीय पारिस्थितिक तंत्र में विकासात्मक गतिविधियों और कचरे के निपटान पर रोक लगाई गई है ।
- भारत का यथासंशोधित जैविक विविधता अधिनियम, 2002 और जैविक विविधता नियम 2004 एवं उसके दिशानिर्देश जैव विविधता (समुद्री प्रजातियों सहित) की सुरक्षा और संरक्षण, इसके घटकों के स्थायी उपयोग और न्यायसंगत साझाकरण, बौद्धिक संपदा अधिकार आदि सुनिश्चित करते हैं।
देश में समुद्री प्रजातियों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित वित्तीय सहायताएं प्रदान की जा रही हैं :
- i. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) मूंगे (कोरल) और मैंग्रोव के संरक्षण के लिए समुद्री राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अंतर्गत धन दे रहा है।
- ii. डॉल्फिन परियोजना (प्रोजेक्ट डॉल्फिन) 2021 में शुरू की गई समुद्री और नदी दोनों प्रकार की डॉल्फिन प्रजातियों के संरक्षण के लिए सरकार की पहल है।
- iii. डुगोंगों की घटती संख्या के संरक्षण और प्रबंधन के लिए, भारत सरकार के अंतर्गत एमओईएफसीसी ने डुगोंगों के संरक्षण और ‘यूएनईपी’ के कार्यान्वयन से संबंधित सभी मुद्दों पर गौर करने के लिए भारत में डुगोंग संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (युनाइटेड नेशंस एनवार्नमेंट प्रोग्राम – यूएनईपी)/वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (कंजर्वेशन ऑफ़ माईग्रेटरी स्पेसीज ऑफ़ वाइल्ड एनिमल्स – सीएमएस) पर समझौता ज्ञापन के क्रियान्वयन हेतु कार्यबल का गठन किए जाने के साथ ही देश को दक्षिण एशिया उप-क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र के रूप में कार्य करने की सुविधा मिलेगी I
- iv.राष्ट्रीय प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कंपेनसेटरी एफोरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग ऑथोरिटी-सीएएमपीए) के अंतर्गत मंत्रालय भारत में डुगोंग और उनके आवासों के संरक्षण के लिए धन मुहैया कराता है।
- v.मंत्रालय अखिल भारतीय (पैन इंडिया) एकीकृत वन्यजीव आवास विकास (इन्टीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ़ वाइल्डलाइफ हैबिटैट-आईडीडब्ल्यूएच) योजना के अंतर्गत समुद्री कछुओं, समुद्री डॉल्फ़िन और हंपबैक व्हेल की निगरानी और संरक्षण के लिए धन देता है।
- vi. समुद्री जीवन संसाधन और पारिस्थितिकी केंद्र (सेंटर फॉर मैरीन रिसोर्सेस एंड इकोलॉजी -सीएमएलआरई), जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) का एक संबद्ध कार्यालय है, को पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी और मॉडलिंग गतिविधियों के माध्यम से समुद्री जीवन संसाधनों के लिए प्रबंधन रणनीतियों के विकास का काम सौंपा गया है। 24 वर्षों के सर्वेक्षण अध्ययनों के आधार पर, इसने संरक्षण के लिए हॉटस्पॉट सहित भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र के भीतर जैव विविधता पहलुओं पर एक व्यापक ज्ञान आधार तैयार किया है।
- vii. सीएमएलआरई लक्षद्वीप द्वीप समूह के मछुआरों की सहायता के लिए सामाजिक सेवाओं पर एक अंतर्निहित घटक के साथ समुद्री जीवन संसाधनों (एमएलआर) पर एक राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम लागू कर रहा है। सामाजिक सेवा पहल का उद्देश्य वनों में सजावटी (ओर्नामेंटल) और चारा मछली (बैटफिश) के भंडार को बढ़ाना है। कार्यक्रम के अंतर्गत सीएमएलआरई ने “लक्षद्वीप द्वीप समूह में समुद्री सजावटी मछली प्रजनन और पालन” पर व्यावहारिक प्रशिक्षणों की एक श्रृंखला आयोजित की है।
- viii..सरकार समुद्री प्रजातियों के संरक्षण के उद्देश्य से अनुसंधान परियोजनाओं के माध्यम से विश्वविद्यालयों / अनुसंधान संस्थानों को वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है।
- मंत्रालय ने फंसने और उलझने की घटनाओं के दौरान की जाने वाली कार्रवाइयों के साथ-साथ विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वयन में सुधार और इन घटनाओं के लिए बेहतर प्रबंधन के लिए 2021 में ‘समुद्री विशाल जीवों के फंसने पर प्रबन्धन दिशानिर्देश (मैरीन मेगाफौना स्ट्रैंडिंग मैनेजमेंट गाइडलाइन्स)’ जारी किए हैं। आंध्र प्रदेश में, राज्य वन विभाग की टीमें मृत समुद्री जीवों के शव-परीक्षण के माध्यम से उनके फंसे होने और उनकी मृत्यु के कारणों की निगरानी करने के लिए तैनात हैं।
- स्थानीय समुदाय, मछुआरों और अन्य हितधारकों को समुद्री प्रजातियों के बीच छोड़ दिए गए मछली पकड़ने के जालों और उनसे पोतों (जहाजों) की टक्कर के प्रभाव के बारे में शिक्षित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाने के प्रयास किए गए हैं।
- कछुओं को पकड़ने से रोकने के लिए मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर में टर्टल एक्सक्लूडिंग डिवाइस (टीईडी) लगाया गया है।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1. केंद्र ने हाल ही में भारत में कोविड-19 के मामलों में वृद्धि और जेएन.1 वेरिएंट के पहले मामले का पता चलने के मद्देनजर राज्यों को परामर्श जारी किया:
- भारत के कुछ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में हाल ही में कोविड-19 के मामलों में वृद्धि और देश में कोविड-19 के जेएन.1 वेरिएंट के पहले मामले का पता चलने के मद्देनजर केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र भेजकर देश में कोविड की स्थिति पर निरंतर निगरानी बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया है।
- हालांकि, चूंकि कोविड-19 वायरस फैलना जारी है और इसका महामारी विज्ञान व्यवहार भारतीय मौसम की स्थिति और अन्य सामान्य रोगजनकों के प्रसार के साथ व्यवस्थित हो जाता है, इसलिए सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने की गति बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने कोविड नियंत्रण और प्रबंधन हेतु निम्नलिखित महत्वपूर्ण रणनीतियों को रेखांकित किया है:
- 1. आने वाले त्योहारों के मौसम को देखते हुए राज्यों को अपेक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय और अन्य व्यवस्थाएं करने की सलाह दी गई है, ताकि श्वसन संबंधी स्वच्छता का पालन करते हुए बीमारी बढ़ने के जोखिम को कम किया जा सके।
- 2. राज्यों से कोविड-19 के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा साझा किए गए संशोधित निगरानी रणनीति के विस्तृत परिचालन दिशानिर्देशों का प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है।
- 3. राज्यों को नियमित आधार पर एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी) पोर्टल सहित सभी स्वास्थ्य सुविधाओं में इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी (आईएलआई) और गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण (एसएआरआई) मामलों की जिलेवार निगरानी और रिपोर्ट करने के लिए कहा गया है, ताकि ऐसे मामलों की शुरुआती बढ़ती प्रवृत्ति का पता लगाया जा सके।
- 4. राज्यों को सभी जिलों में कोविड-19 परीक्षण दिशानिर्देशों के अनुसार पर्याप्त परीक्षण सुनिश्चित करने और आरटी-पीसीआर और एंटीजन परीक्षणों की अनुशंसित हिस्सेदारी बनाए रखने की सलाह दी गई है।
- 5. राज्यों को आरटी-पीसीआर परीक्षणों की संख्या बढ़ाने और पॉजिटिव नमूने जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भारतीय एसएआरएस सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (आईएनएसएसीओजी) प्रयोगशालाओं में भेजने के लिए प्रोत्साहित किया गया ताकि देश में नए वेरिएंट, यदि कोई हो, तो उनका समय पर पता लगाया जा सके।
- 6. राज्यों को अपनी तैयारियों और प्रतिक्रिया क्षमताओं का जायजा लेने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आयोजित ड्रिल में सभी सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
- 7. राज्यों को सामुदायिक जागरूकता को भी बढ़ावा देना होगा, ताकि श्वसन स्वच्छता के पालन सहित, कोविड-19 के प्रबंधन में उनका निरंतर समर्थन प्राप्त हो सके।
2. वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन:
- नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन के अवसर पर 9 सितंबर, 2023 को 19 देशों और 12 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के समर्थन से वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (जीबीए) का शुभारंभ किया गया ताकि जैव ईंधन को तेजी से अपनाने और उसकी तैनाती के लिए वैश्विक सहयोग को सुदृढ़ किया जा सके।
- वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन दरअसल सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और उद्योगों का एक ऐसा बहु-हितधारक गठबंधन है जो जैव ईंधनों के विकास और तैनाती को अंजाम देने के लिए जैव ईंधन के सबसे बड़े उपभोक्ताओं, उत्पादकों और ग्लोबल साउथ के इच्छुक देशों को एक साथ लाता है।
- इस पहल का उद्देश्य जैव ईंधनों को ऊर्जा परिवर्तन की कुंजी बनाना है। जीबीए का मकसद जैव ईंधन के वैश्विक इस्तेमाल में तेजी लाना है।
- इसके लिए क्षमता-निर्माण को सुगम करने, राष्ट्रीय कार्यक्रमों के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करने, सर्वोत्तम पद्धतियों को साझा करने और कई सारे हितधारकों की भागीदारी के साथ प्रौद्योगिकी में उन्नयन को बढ़ावा देने को माध्यम बनाया जाएगा।
- जीबीए ज्ञान के केंद्रीय भंडार और विशेषज्ञता केंद्र के रूप में काम करेगा।
- जीबीए से भारतीय उद्योगों को प्रौद्योगिकी और उपकरण निर्यात करने, रोजगार पैदा करने और कौशल विकास के रूप में अतिरिक्त अवसर प्रदान करने की उम्मीद है।
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