विषयसूची:

  1. राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र के नए अध्ययन में अंटार्कटिक में अत्यधिक कम समुद्री बर्फ की परत बनने के रहस्य को सुलझाने का प्रयास:
  2. सी-डॉट और आईआईटी, जोधपुर ने “एआई के उपयोग से 5जी और उससे आगे के नेटवर्क में स्वचालित सेवा प्रबंधन” के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए:
  3. मध्यम दूरी तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल के नए संस्करण का सफल परीक्षण:
  4. सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने सशस्त्र बलों के लिए जैव चिकित्सा अनुसंधान शुरू करने के उद्देश्य से साझेदारी की:
  5. विश्व ऊर्जा कांग्रेस-2024:
  6. टेक्‍नोलॉजी एग्नोस्टिक पीएलआई योजना:
  7. पृथ्वी दिवस मनाने के लिए सीएसआईआर मुख्यालय में भारत की सबसे बड़ी जलवायु घड़ी सक्रिय की गई:

23 April 2024 Hindi PIB
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1. राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र के नए अध्ययन में अंटार्कटिक में अत्यधिक कम समुद्री बर्फ की परत बनने के रहस्य को सुलझाने का प्रयास:

सामान्य अध्ययन: 3

पर्यावरण:

विषय: पर्यावरण संरक्षण,जलवायु परिवर्तन।

प्रारंभिक परीक्षा: नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (एनसीपीओआर)।

मुख्य परीक्षा: जलवायु परिवर्तन के अंटार्कटिक पर प्रभाव।

प्रसंग:

  • नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (एनसीपीओआर) और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण (ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे) ने यूनाइटेड किंगडम के सहयोग से एक अध्ययन किया है, जिसमें नवीनतम जानकारी प्रदान की है।

उद्देश्य:

  • इस अध्ययन के अनुसार, 2023 में अंटार्कटिक में अत्याधुनिक बारिशों के कारण बर्फ के विस्तार में अभूतपूर्व बाधा आई है और इससे अधिकतम वार्षिक बर्फ के पीछे हटने की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

विवरण:

  • पिछले दशक में वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण आर्कटिक में समुद्री बर्फ की मात्रा में कमी आई है, जबकि अंटार्कटिक में मध्यम वृद्धि का अनुभव हुआ और उसके बाद 2016 से बर्फ में कमी दिखाई गई।
  • विशेष रूप से 2016 से 2023 तक प्रत्येक वर्ष में गर्मी के मौसम में बर्फ के विस्तार या वापसी में धीमी गति से वृद्धि हुई।
  • 2023 में अचानक इसमें अभूतपूर्व रूप से कमी आई, जो अंटार्कटिक में बर्फ के विस्तार को 7 सितंबर 2023 को 1 करोड़ 69 लाख 80 हजार वर्ग किमी की सीमा के साथ वार्षिक अधिकतम से पहले ले गई।
  • इस परिवर्तन के अंतर्निहित कारण के बारे में वैज्ञानिक समुदाय और नीति निर्माताओं के बीच महत्वपूर्ण प्रश्न उठ रहे हैं।
  • निष्कर्षों से पता चलता है कि ऊपरी महासागर की अत्यधिक गर्मी (एक्सेसिव अपर ओशन हीट) ने 2023 में बर्फ के विस्तार को कम करने में अपना योगदान दिया, लेकिन वायुमंडलीय परिसंचरण परिवर्तन (एटमोस्फियरिक सर्कुलेशन चेंजेज) भी अत्यधिक थे और उन्होंने एक इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • हवा के प्रारूप (पैटर्न) में बदलाव जैसे कि अत्यधिक गहरे (एक्सट्रीमली डीप) अमुंडसेन सी लो और इसके पूर्व की ओर बदलाव (ईस्टवार्ड शिफ्ट) के परिणामस्वरूप वेडेल सागर में उत्तर की ओर मजबूत प्रवाह (स्ट्रोंग नोर्थेंनली फ्लो) हुआ।
  • उत्तरी हवा ने वायुमंडलीय तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि की और बर्फ के किनारों (आइस- एज) को अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण की ओर रहने के लिए विवश किया।
  • यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि अमुंडसेन सी लो, एक कम दबाव वाली प्रणाली होने के कारण, पश्चिम अंटार्कटिका और आसपास की समुद्री स्थितियों के जलवायु उतार-चढ़ाव पर अत्यधिक प्रभाव डालने के लिए जाना जाता है।
  • रॉस सागर में, बर्फ के विस्तार में तेजी से बदलाव मुख्य रूप से वायुमंडलीय ब्लॉक की रिकॉर्ड मजबूती के कारण हुआ, जिसने रॉस आइस शेल्फ से तेज उत्तरी हवाएं प्रवाहित कर दीं।
  • संक्षेप में, गर्म हवा के थपेड़ों के प्रवाह के साथ असाधारण समुद्री-वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि ने हवाओं में बदलाव के प्रभाव, अत्यधिक हवाओं और ध्रुवीय चक्रवातों (तूफानों) से जुड़ी उच्च समुद्री लहरों के साथ मिलकर, अंटार्कटिक में रिकॉर्ड कम बर्फ की स्थिति में योगदान दिया।
  • विशेष रूप से, चक्रवातों के कारण असाधारण रूप से धीमी गति से बर्फ के विस्तार या यहाँ तक कि इसके पीछे हटने की घटनाएँ हुईं।
    • उदाहरण के लिए, वेडेल सागर में बर्फ का किनारा कुछ ही दिनों में (256 किमी दक्षिण की ओर) तेजी से दक्षिण की ओर खिसक गया, जिससे ब्रिटेन (यूनाइटेड किंगडम) के आकार के बराबर अर्थात ~2.3 × 105 वर्ग किमी के बर्फ क्षेत्र की क्षति हुई।
    • बर्फ-अल्बेडो फीडबैक प्रक्रिया के माध्यम से कम बर्फ की स्थिति का वैश्विक तापमान में वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) की दक्षिणी महासागर में जीवन, क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र, महासागर परिसंचरण, बर्फ शेल्फ स्थिरता और समुद्र के स्तर में वृद्धि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है।
  • उपग्रह अवलोकनों (~45 वर्ष) के अपेक्षाकृत छोटे रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए, यह आकलन करना कठिन है कि क्या पिछले सात वर्षों के दौरान देखी गई बर्फ की मात्रा में कमी और बर्फ की वृद्धि में वर्तमान कमी उस दीर्घकालिक गिरावट का हिस्सा है, जैसा कि जलवायु मॉडल द्वारा अनुमान लगाया गया है।
    • जहां एक ओर प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता हाल ही में बर्फ की मात्रा में कमी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, वहीं मानवजनित कारकों का प्रभाव भी ऐसी विषम घटना को शुरू करने में महत्वपूर्ण है।
    • इस क्षेत्र में मानवजनित दबाव और जलवायु परिवर्तनशीलता के बीच परस्पर क्रिया अस्पष्ट है और जिसकी आगे जांच की आवश्यकता है।

पृष्ठ्भूमि:

राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर):

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), भारत का ऐसा प्रमुख अनुसंधान और विकास संस्थान है जो ध्रुवीय और महासागर विज्ञान में देश की अनुसंधान गतिविधियों के लिए उत्तरदायी है।

प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

1. सी-डॉट और आईआईटी, जोधपुर ने “एआई के उपयोग से 5जी और उससे आगे के नेटवर्क में स्वचालित सेवा प्रबंधन” के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए:

  • भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (डीओटी) के प्रमुख दूरसंचार अनुसंधान एवं विकास केंद्र सी-डॉट और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर ने “एआई का उपयोग करके 5जी और उससे आगे के नेटवर्क में स्वचालित सेवा प्रबंधन” के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • सी-डॉट और आईआईटी-जोधपुर ने बताया कि इस परियोजना के सफल समापन से परिवहन प्रणालियों, स्मार्ट शहरों के क्षेत्रों में नए उपयोग के मामले सक्षम होंगे और इससे भारत को भविष्य के 6जी दूरसंचार मानकों में बेहतर योगदान में मदद मिलेगी।
  • इस समझौते पर डीओटी के टेलीकॉम टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड (टीटीडीएफ) के तहत हस्ताक्षर किए गए हैं, जिसे ग्रामीण एवं सुदूरवर्ती क्षेत्रों में किफायती ब्रॉडबैंड और मोबाइल सेवाओं को सक्षम करने के लिए प्रौद्योगिकी डिजाइन, विकास, दूरसंचार उत्पादों के व्यावसायीकरण और समाधान में कार्यरत घरेलू कंपनियों और संस्थानों को वित्त पोषण सहायता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • इसका मुख्‍य उद्देश्य 5जी जैसे नेटवर्क में सृजित हो रही निरंतर जानकारी का उपयोग करके स्वचालित नेटवर्क प्रबंधन, गलती का पता लगाने और निदान तकनीकों के लिए एआई ढांचे को विकसित करना है।
  • यह सेवा स्मार्ट मीटरिंग, रिमोट से संचालित वाहनों आदि जैसे विशिष्ट एप्लिकेशन के संयोजन में विकसित स्वचालित नेटवर्क प्रबंधन और स्लाइसिंग तकनीकों के प्रदर्शन के लिए एक वास्तविक समय 5जी और उससे आगे टेस्‍टबैड (ओ-आरएएन के अनुपालन में) स्थापित करेगी।

2. मध्यम दूरी तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल के नए संस्करण का सफल परीक्षण:

  • स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमान के तत्वावधान में मध्यम दूरी तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल के नए संस्करण का 23 अप्रैल, 2024 को सफल प्रक्षेपण किया गया।
  • इस प्रक्षेपण ने कमान की परिचालन क्षमता साबित की और नई प्रौद्योगिकियों की पुष्टि कर दी है।
  • भारत ने मध्यम दूरी तक मार करने वाले बैलिस्टिक मिसाइल के नए संस्करण का सफल परीक्षण किया है।
  • हवा से सतह तक मार करने वाली यह मिसाइल 250 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य भेदने में सक्षम है।
  • स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमान के तहत बैलिस्टिक मिसाइल के प्रक्षेपण ने परिचालन क्षमता साबित की।
  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भारतीय वायु सेना द्वारा परीक्षण की गई मिसाइल इस्राइल मूल की क्रिस्टल मेज 2 एयर-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल है जिसे रॉक्स (ROCKS) के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस मिसाइल का परीक्षण अंडमान के एक परीक्षण रेंज में एक परीक्षण रेंज में Su-30 MKI फाइटर जेट के जरिए किया गयाा था। भारतीय वायुसेना अब मेक इन इंडिया के जरिए बड़ी संख्या में इस इजरायली मिसाइल को हासिल करने की योजना बना रही है।

3. सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने सशस्त्र बलों के लिए जैव चिकित्सा अनुसंधान शुरू करने के उद्देश्य से साझेदारी की:

  • सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा (एएफएमएस) ने सहयोगात्मक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए 23 अप्रैल, 2024 को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य जैव चिकित्सा अनुसंधान और शैक्षणिक क्षेत्र में सहकारी एवं सहयोगी गतिविधियां संचालित करना है, जिससे देश तथा सशस्त्र बलों के लिए प्रासंगिक बहु-विषयक वैज्ञानिक, तकनीकी व शैक्षिक समस्याओं के समाधान प्राप्त होंगे।
  • सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने अधिकतम ऊंचाई वाले इलाकों, युद्ध संबंधी क्षति/घायल होने के बाद उत्पन्न तनाव विकार, आकाश में चिकित्सा, संक्रामक रोगों तथा सशस्त्र बल कर्मियों के समक्ष आने वाले अन्य स्वास्थ्य मुद्दों का हल ढूंढने के उद्देश्य से स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए साझेदारी की है।
  • इस समझौता ज्ञापन के तहत विभिन्न संयुक्त शैक्षणिक गतिविधियों की भी योजना बनाई गई है, जिसमें सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा अधिकारियों के लिए आईसीएमआर-एसीएसआईआर पीएचडी कार्यक्रम के अंतर्गत पीएचडी करने हेतु पंजीकरण कराने का अवसर प्रदान करना भी शामिल है।

4. विश्व ऊर्जा कांग्रेस-2024:

  • भारत 22 अप्रैल, 2024 से 25 अप्रैल, 2024 तक नीदरलैंड के रॉटरडैम में आयोजित होने वाली 26वीं विश्व ऊर्जा कांग्रेस में अपनी अभिनव प्रौद्योगिकियों और विद्युत उत्पादन संबंधी कार्यप्रणालियों का प्रदर्शन कर रहा है।
  • इस कांग्रेस में भारतीय मंडप का उद्देश्य वैश्विक मंच पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने के साथ अभिनव प्रौद्योगिकियों और विद्युत उत्पादन संबंधी कार्यप्रणालियों को प्रदर्शित करने का केंद्र बनना है।
  • भारत मंडप में विद्युत मंत्रालय, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, कोयला मंत्रालय व पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (सीपीएसयू) हिस्सा ले रहे हैं।
  • ये सीपीएसयू वैश्विक ऊर्जा रूपांतरण में भारत के नेतृत्व को सामूहिक रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं।

26वीं विश्व ऊर्जा कांग्रेस:

  • 26वीं विश्व ऊर्जा कांग्रेस के पूरे विश्व में स्वच्छ और समावेशी ऊर्जा रूपांतरण पर नेतृत्व के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव होने की उम्मीद है।
  • ‘लोगों और धरती के लिए ऊर्जा को नया स्वरूप देना’ की विषयवस्तु पर आधारित इस चार दिवसीय कांग्रेस का आयोजन विश्व ऊर्जा क्षेत्र में विश्व ऊर्जा परिषद की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया है।
  • परिषद के अनुसार यह कांग्रेस एक ऐसे विश्व संदर्भ में वैश्विक ऊर्जा रूपांतरण को आगे बढ़ाने में आपस में जुड़े ऊर्जा समाजों की भूमिका का पता लगाना चाहती है, जो कम पूर्वानुमानित, अधिक अशांत और तेजी से स्थानांतरित होने वाला है।

विश्व ऊर्जा परिषद भारत:

  • विश्व ऊर्जा परिषद- भारत, विश्व ऊर्जा परिषद (डब्ल्यूईसी) का एक सदस्य देश है, जो 1923 में स्थापित एक वैश्विक निकाय है।
  • इसका उद्देश्य ऊर्जा की स्थायी आपूर्ति और उपयोग को बढ़ावा देना है।
  • डब्ल्यूईसी- भारत विश्व ऊर्जा परिषद के शुरुआती सदस्यों में से एक है, जो साल 1924 में परिषद में शामिल हुआ था।
  • यह भारत सरकार के कोयला, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस व विदेश मंत्रालय के सहयोग से विद्युत मंत्रालय के संरक्षण में कार्य करता है।

5. टेक्‍नोलॉजी एग्नोस्टिक पीएलआई योजना:

  • भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा 24 जनवरी, 2024 को घोषणा की गई 10 गीगावाट एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (एसीसी) विनिर्माण के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) की रि-बीडिंग के लिए वैश्विक निविदा के तहत सात बोलीदाताओं से बोलियां प्राप्त हुई हैं।
  • मई 2021 में, मंत्रिमंडल ने 18,100 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ एसीसी की पचास गीगावाट ऑवर की विनिर्माण क्षमता प्राप्त करने के लिए ‘एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (एसीसी) बैटरी स्टोरेज पर राष्ट्रीय कार्यक्रम’ पर टेक्‍नोलॉजी एग्नोस्टिक पीएलआई योजना को मंजूरी दी थी।
  • इसके अलावा, भारी उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना ‘नेशनल प्रोग्राम ऑन एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (एसीसी) बैटरी स्टोरेज’ के तहत बोलीदाताओं की शॉर्टलिस्टिंग और चयन के लिए 24 जनवरी, 2024 को प्रस्ताव के लिए अनुरोध जारी किया था।
  • इसके तहत, 3,620 करोड़ रुपये के अधिकतम बजटीय परिव्यय के साथ 10 गीगावाट ऑवर की कुल विनिर्माण क्षमता वाली एसीसी विनिर्माण इकाइयों की स्‍थापना की जानी है।

6. पृथ्वी दिवस मनाने के लिए सीएसआईआर मुख्यालय में भारत की सबसे बड़ी जलवायु घड़ी सक्रिय की गई:

  • वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने पृथ्वी दिवस समारोह के एक भाग के रूप में नई दिल्ली में सीएसआईआर मुख्यालय भवन में भारत की सबसे बड़ी जलवायु घड़ी स्थापित और सक्रिय की।
  • यह आयोजन जलवायु परिवर्तन और इसके दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के सीएसआईआर के उद्देश्य को दर्शाता है।
  • देश के प्रत्येक नागरिक को ऊर्जा साक्षर होने की तत्काल आवश्यकता है। अतः प्रत्येक नागरिक को यथासंभव ऊर्जा के उपयोग से बचने या कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
  • सीएसआईआर-एनर्जी स्वराज फाउंडेशन एमओयू के तहत, सीएसआईआर में बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों और कर्मचारियों ने ऊर्जा साक्षरता प्रशिक्षण लिया है।
  • फाउंडेशन द्वारा प्रदान की गई जलवायु घड़ियाँ अधिकांश सीएसआईआर प्रयोगशालाओं में स्थापित की गई हैं।

पृथ्वी दिवस:

  • पृथ्वी दिवस एक वार्षिक आयोजन है जिसे 22 अप्रैल को दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए आयोजित किया जाता है।
  • पृथ्वी दिवस का उद्देश्य है “लोगों और ग्रह के लिए परिवर्तनकारी परिवर्तन लाने के लिए दुनिया के सबसे बड़े पर्यावरण आंदोलन का निर्माण करें।” आंदोलन का मिशन “दुनिया भर में पर्यावरण आंदोलन में विविधता लाना, शिक्षित करना और सक्रिय करना है।” इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी। अब इसे 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है।
  • पृथ्वी दिवस का महत्व इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि, इस दिन हमें ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पर्यावरणविदों के माध्यम से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलता है।
  • पृथ्वी दिवस जीवन संपदा को बचाने व पर्यावरण को ठीक रखने के बारे में जागरूक करता है।
  • जनसंख्या वृद्धि ने प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक बोझ डाला है, संसाधनों के सही इस्तेमाल के लिए पृथ्वी दिवस जैसे कार्यक्रमों का महत्व बढ़ गया है।[
  • वर्ष 2024 की पृथ्वी दिवस की थीम “प्लेनेट वर्सेस प्लास्टिक” (Planet vs Plastic) है, यानी ग्रह बनाम प्लास्टिक है।
  • इस साल की थीम का मकसद लोगों को प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए प्रेरित करना और प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करने के लिए प्रोत्साहित करना है।

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