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प्राचीन भारत के 16 महाजनपद [UPSC Hindi]

प्राचीन भारत के  इतिहास में 6ठी शताब्दी ई.पू. को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है | इस काल को प्रायः आरंभिक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है | इसी काल में सिन्धु सभ्यता के बाद भारत में नगरीकरण की दूसरी प्रक्रिया प्रारंभ हुई और इसी  समय  बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ | बौद्ध और जैन धर्म  के आरंभिक ग्रंथों में 16 महाजनपद  का उल्लेख मिलता है | जनपद शब्द का अर्थ है ऐसा भू-खंड जहाँ “जन” अथवा लोग अपने पांव रखते हों ,अर्थात बस  गये हों | इस शब्द का प्रयोग संस्कृत एवं प्राकृत दोनों भाषाओँ में मिलता है | और इस प्रकार “महाजनपद” का अर्थ बड़ी राजनैतिक -भौगोलोक इकाइयों के तौर पर लिया जा सकता है | 

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ग्रामीण एवं नगरी दोनों प्रकार की परिधियों के सह -अस्तित्व इन महाजनपदों की विशेषता थी | यह उत्तर -वैदिक काल का वह समय था जब भारत में सिन्धु सभ्यता के बाद दूसरा नगरीकरण हो रहा था | ये सभी महाजनपद आज के उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान से पूर्वी – बिहार तक और दक्षिण भारत में  गोदावरी नदी के बेसिन  तक फैले हुए थे | कालांतर में मगध महाजनपद इन सभी महा जनपदों में सबसे शक्तिशाली उभरा और भारत का प्रथम साम्राज्य बना | बौद्ध ग्रन्थों  में भारत को पाँच भागों में विभाजित किया गया है – उत्तरापथ (पश्चिमोत्तर भाग), मध्यदेश, प्राची (पूर्वी भाग), दक्षिणापथ तथा अपरान्त (पश्चिमी भाग) | यद्यपि महाजनपदों के नाम की सूची इन ग्रंथों में एकसमान नहीं है लेकिन थोड़े- बहुत परिवर्तन के साथ जैन ग्रन्थ भी 16 महाजनपद की पुष्टि करते हैं | ये 16 महा जनपद थे : 1.काशी, 2.कोशल, 3.अंग, 4.मगध, 5.वज्जि, 6.मल्ल, 7.चेदि, 8.वत्स, 9.कुरु, 10.पांचाल (पञ्चाल), 11.मत्स्य (या मछ), 12.शूरसेन, 13.अश्मक, 14.अवन्ति, 15.गांधार तथा 16.कंबोज | इस लेख में आप सभी 16 महा जनपदों की जानकरी पा सकते हैं | 

अभ्यर्थी लिंक किए गए लेख से IAS हिंदी की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । 

16 महाजनपद – उनकी राजधानी एवं भौगोलोक स्थिति 

महाजनपद ,उनकी राजधानी एवं भौगोलोक क्षेत्र 

महाजनपद

राजधानी

वर्तमान भौगोलिक स्थिति

1.अंग  चंपा  भागलपुर /मुंगेर के आस-पास का क्षेत्र -पूर्वी बिहार 
2.मगध  राजगृह,वैशाली,पाटलिपुत्र  पटना /गया (मगध के आस-पास का क्षेत्र ) -मध्य-दक्षिणी बिहार (16 महाजनपद में सर्वाधिक शक्तिशाली)
3.काशी  वाराणसी  आधुनिक बनारस  -उत्तर प्रदेश 
4.वत्स  कौशाम्बी  इलाहाबाद (प्रयागराज)-उत्तर प्रदेश 
5.वज्जी  वैशाली ,विदेह,मिथिला  दरभंगा/मधुवनी के आस-पास का क्षेत्र -बिहार 
6.कोसल  श्रावस्ती  अयोध्या/फैजाबाद के आस-पास का क्षेत्र -उत्तर प्रदेश 
7.अवन्ती  उज्जैन ,महिष्मति  मालवा -मध्य  प्रदेश 
8.मल्ल  कुशावती  देवरिया -उत्तर प्रदेश 
9.पंचाल  अहिछत्र ,काम्पिल्य  उत्तरी उत्तर प्रदेश 
10.चेदी  शक्तिमती  बुंदेलखंड -उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश 
11.कुरु  इंद्रप्रस्थ  दिल्ली,मेरठ एवं हरयाणा के आस-पास का क्षेत्र 
12.मत्स्य  विराट नगर  जयपुर -राजस्थान 
13.कम्बोज  हाटक  राजौरी/हाजरा -उत्तर प्रदेश 
14.शूरसेन  मथुरा  आधुनिक मथुरा -उत्तर प्रदेश 
15.अश्मक  पोतन  द. भारत में गोदावरी नदी घाटी के आस-पास का क्षेत्र (द.भारत का एक मात्र महाजनपद)
16.गंधार  तक्षशिला  पेशावर व रावलपिंडी के आस-पास का क्षेत्र -पाकिस्तान 

16 महाजनपद – अवलोकन

1.अवन्ति : इसकी पहचान मध्य प्रदेश के आधुनिक मालवा क्षेत्र से की जा सकती है | विन्ध्य पर्वत श्रृंखला इसे 2  भाग में विभाजित करती थी ― उत्तरी अवन्ति और दक्षिणी अवन्ति | उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी और दक्षिणी अवन्ति की राजधानी माहिष्मति (आधुनिक माहेश्वर) थी | ये  दोनों राजधानियां उत्तर भारत के एक ओर दक्कन से और पश्चिमी समुद्री तट के बंदरगाहों से जोड़ने वाले व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण थीं | प्राचीन काल में यहाँ हैहय वंश का शासन था | प्रद्योत यहाँ का प्रतापी शासक हुआ | 

2.अश्मक या अस्सक :  पाणिनि की “अष्टाध्यायी” ,मार्कण्डेय पुराण ,बृहत् संहिता व कई यूनानी स्रोतों के अनुसार अश्मक का राज्य उत्तर-पश्चिमी भारत में था |  जबकि बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार यह नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच स्थित था और  दक्षिण भारत का एकमात्र महाजनपद था | इस प्रदेश की राजधानी पोटन (जिसे आधुनिक बोधन से चिन्हित किया जा सकता है) थी। इस राज्य के राजा इक्ष्वाकुवंश के थे। इसका अवन्ति के साथ निरंतर संघर्ष चलता रहता था और अंततः  यह राज्य अवन्ति के अधीन हो गया।

3.अंग : यह मगध के पूरब में , बिहार के वर्तमान   मुंगेर और भागलपुर जिले के आसपास का क्षेत्र था | यह चम्पा नदी (आधुनिक चन्दन नदी ) द्वारा मगध से अलग होता था | इसकी राजधानी भी  चंपा ही  थी जिसे पहले मालिनी नाम से भी जाना जाता था । चंपा उस समय भारत के सबसे प्रसिद्ध  नगरों  में से एक थी। अंग का मगध के साथ हमेशा संघर्ष होता रहता था और अंत में मगध ने इस राज्य को पराजित कर अपने में मिला लिया| महाभारत का प्रसिद्द राजा कर्ण इस अंग देश का ही राजा था | दीर्घ निकाय के अनुसार महागोविंद ने इस नगर की निर्माण योजना बनाई थी | बिंबिसार ने अंग के शासक ब्रह्मदत्त को हराकर इस राज्य को मगध साम्राज्य में समाहित कर लिया | तत्पश्चात अजातशत्रु को अंग का उप राजा नियुक्त किया गया |

4.कम्बोज : यह गांधार-कश्मीर के उत्तर में  आधुनिक पामीर का पठार क्षेत्र में स्थित  था जहाँ राजौड़ी व हजड़ा क्षेत्र आते थे  | हाटक या राजापुर इस राज्य की राजधानी थी। वर्तमान में यह भारत से बाहर स्थापित है | चन्द्र वर्धन व सुदाक्ष्ना इसके 2 सबसे प्रसिद्ध शासक हुए | 

5.काशी : काशी  का राज्य उतर में  वरुणा और दक्षिण में  असी नदी के बीच बसा था | इसकी राजधानी उत्तर प्रदेश का वर्तमान बनारस ( वाराणसी-जिसका नाम वरुणा और असि नदियों के नाम पर ही पड़ा है ) था |  23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के ही राजा थे | इसका कोशल,मगध व अंग  राज्य के साथ संघर्ष चलता रहता था | गुत्तिल जातक के अनुसार काशी नगरी 12 योजन विस्तृत थी और भारत वर्ष की सर्वप्रधान नगरी थी | अंततः इसे कोसल राज्य में मिला लिया गया |

6.कुरु : परंपरानुसार यह युधिष्ठिर के परिवार द्वारा शासित था और इसकी राजधानी आधुनिक इन्द्रप्रस्थ (जो बाद में 7वीं सदी में तोमर राजपूतों द्वारा दिल्ली नाम से स्थापित की गई) थी | इस  महा जनपद में  आधुनिक हरियाणा तथा दिल्ली के  यमुना नदी के पश्चिम के क्षेत्र  अंश शामिल थे | जैनों के उत्तराध्ययन सूत्र ग्रन्थ  में यहाँ के इक्ष्वाकु नामक राजा का उल्लेख मिलता है | जातक कथाओं में सुतसोम, कौरव और धनंजय यहाँ के राजा माने गए हैं | कुरुधम्मजातक के अनुसार, यहाँ के लोग अपने सीधे-सच्चे मनुष्योचित बर्ताव के लिए अग्रणी माने जाते थे और दूसरे राष्ट्रों के लोग उनसे धर्म सीखने आते थे | बुद्ध के काल तक  कुरु एक छोटा सा राज्य था जो आगे चलकर एक गण-संघ बना | 

7.कोशल/कोसल  : यह एक शक्तिशाली राज्य था जिसमें वर्तमान उत्तर प्रदेश के अयोध्या , गोंडा ,गोरखपुर और बहराइच जिलों  के क्षेत्र शामिल थे | यह पूर्व में गंडक (जिसे शास्त्रों में सदानीरा कहा गया है),पश्चिम में गोमती, दक्षिण में साईं (सर्पिका नदी ) और उत्तर में हिमालय की तराई के बीच स्थित एक सुरक्षित राज्य था | सरयू नदी इस राज्य को उत्तरी व दक्षिणी 2 हिस्सों में बीच से विभाजित करती थी | उत्तरी कोसल की प्रथम राजधानी अयोध्या थी। श्रावस्ती (जिसकी पहचान आधुनिक सहेत -महेत के रूप में की गई है) इसकी  द्वितीय राजधानी  थी। कुशावती व सिरपुर (आधुनिक श्रीपुर) द.कोसल की राजधानी थी | कोशल के एक राजा कंश को पालिग्रंथों में ‘बारानसिग्गहो’ कहा गया है | उसी ने काशी को जीत कर कोशल में मिला लिया था | कोशल  के सबसे प्रतापी  राजा प्रसेनजित हुए जो बुद्ध के समकालीन थे |

8.गांधार : पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र और कश्मीर के  कुछ भाग इस राज्य में आते थे । इसकी राजधानी तक्षशिला थी जो की एक समकालीन ज्ञान एवं व्यापार की नगरी के रूप में प्रसिद्द थी | यहीं भारत का पहला विश्वविद्यालय स्थापित हुआ था | प्राचीन तक्षशिला एक अत्यंत प्रमुख नगर था जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया को जाने वाले स्थल मार्गों पर पड़ता था और यह नगर सिंधु नदी के द्वारा अरब सागर में स्थित सामुद्रिक मार्गों से भी जुड़ा हुआ था  | महाकाव्यों के अनुसार, इसी स्थान पर जन्मेजय ने प्रसिद्ध नाग यज्ञ करवाया था | बौद्ध, जैन और यूनानी स्रोतों में इस नगर की काफी चर्चा हुई है | इस स्थान पर किये गये पुरातात्त्विक उत्खननों के दौरान तीन प्रमुख बस्तियों को रेखांकित किया गया है जो भीर, सिरकप और सिरसुख के नाम से जाने जाते हैं। भीर का टीला इस नगर की प्राचीनतम बस्ती है जहां 6ठी – 5वीं शताब्दी सा.सं.पू. से लेकर दूसरी शताब्दी सा. .पू. तक के अवशेष मिले हैं | ध्यातव्य हे कि गंधार का यह राज्य   आधुनिक कंदहार से अलग है  जो कि  इस क्षेत्र से  दक्षिण में स्थित था | पुक्कुसती या पुश्करसिन 6ठी सदी में यहाँ का प्रसिद्द शासक हुआ जिसने अवन्ती को पराजित किया था | (तक्षशिला की खोज एलेक्ज़ेंडर कनिंघम नामक पुरातत्वविद ने 1871 में  की थी जो कि भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण (A.S.I) के प्रथम महा -निदेशक थे | इसके अलावा उन्हें  सूघन , अहिछत्र, संगल, विराट, श्रावस्ती ,कौशाम्बी, पद्मावती, वैशाली, नालंदा इत्यादि जैसे ऐतिहासिक स्थलों की भी खोज का श्रेय जाता है)

9.चेदि : चेदी वर्तमान उत्तर प्रदेश के   बुंदेलखंड का क्षेत्र था | इसकी राजधानी शक्तिमती थी जो सेट्ठीवती नगर के नाम से जानी जाती थी | इस राज्य का उल्लेख महाभारत में भी है | शिशुपाल यहाँ का प्रसिद्द राजा था जिसका वध परंपरानुसार भगवन कृष्ण ने किया था |

10.वज्जि या वृजि :  वज्जि का शाब्दिक अर्थ होता है- पशुपालक समुदाय | यह 8 (कुछ स्रोतों के अनुसार 9)  राज्यों का एक संघ था  जो अट्ठकुलिक कहलाते थे | यह गंगा नदी के उत्तर में नेपाल की तराई में स्थित था |  वज्जियों के इन आठ कुलों में वज्जि, लिच्छवि और विदेह और ग्यात्रिक  सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थे | अन्य कुल उम्र,भोग,कौरव ,एच्छवक आदि थे जिनके बारे में अधिक जानकारी नहीं  मिलती | ग्यात्रिक की  राजधानी ‘नादिका’  थी | जैन महावीर इसी कुल के थे | इस संघ  का सर्वाधिक शक्तिशाली गणराज्य वैशाली के लिच्छवियों का था, जो क्षत्रिय थे। इस राज्य की राजधानी वैशाली थी, जिसकी पहचान आधुनिक बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में गंडक नदी के तट पर स्थित वशाढ़ से की गई  है | विदेह की राजधानी मिथिला थी, जो वर्तमान नेपाल की सीमा में जनकपुर नामक कस्बे के रूप में आज भी विद्यमान है | गंगा नदी वज्जि और मगध बीच की सीमा का निर्धारण करती थी | इस संघ में आठ न्यायालय थे | जैन परंपरा के अनुसार, यहां महावीर का जन्म स्थान था और पुराणों में इसे वीसल नामक शासक का नगर बतलाया है,जिसके कारण इसका नाम वैशाली पड़ा  | राजा वीसल का गढ़ कहे जाने वाले पुरातात्विक टीले से पुराने दुर्ग के अवशेष मिले हैं | यहीं से प्राप्त  एक तालाब को लिच्छवियों के राज्याभिषेक से जुड़े  प्रसिद्ध तालाब में माना जाता है |  लिच्छवि गणराज्य को विश्व का पहला गणतंत्र माना जाता है | मगध के शासक अजातशत्रु ने अपने  मंत्री वस्सकार की सहायता से वज्जि कुल पर विजय प्राप्त कर ली । “महावस्तु” से ज्ञात होता है कि महात्मा बुद्ध 11 लिच्छवियों के निमंत्रण पर वैशाली गए थे | वज्जि गण संघ के शासक चेतक त्रिशाला (महावीर की माता) के भाई थे और मगध के राजा बिम्बिसार की पत्नी चेलान्ना के पिता |

11.वत्स या वंश : उत्तर प्रदेश के प्रयाग (आधुनिक इलाहाबाद अथवा प्रयागराज) के आस-पास का क्षेत्र | इसकी राजधानी कौशाम्बी थी जो बौद्ध व जैन दोनों धर्मों का प्रमुख केंद्र थी | यह अपने उत्कृष्ट सूती वस्त्रों के लिए प्रसिद्द था | बुद्ध काल में यहाँ पौरव वंश का शासन था जिसका प्रतापी राजा उदयन हुआ | उसने अवन्ती के शासक चंड प्रद्योत को बंदी बना लिया था | पुराणों के अनुसार, राजा निचक्षु ने यमुना नदी के तट पर अपने राज्यवंश की स्थापना तब की थी जब हस्तिनापुर राज्य का पतन हो गया था |

12.पांचाल : इसके अंतर्गत मध्य गंगा -यमुना दोआब का  पश्चिमी उत्तर प्रदेश समाहित था जिसमे रुहेलखण्ड आता है | यह गंगा नदी द्वारा 2 शाखाओं में विभाजित था ― उत्तरी पंचाल और दक्षणि पंचाल | उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र थी जिसको आधुनिक बरेली के राम नगर से चिन्हित किया जाता है ,और दक्षणि पांचाल की राजधानी काम्पिल्य थी जिसकी पहचान फर्रुखाबाद जिले के काम्पिल्य से की गई है | कन्नौज भी इसी क्षेत्र में स्थित था | चुलानी ब्रह्मदत्त पांचाल देश का एक महान शासक हुआ |

13.मत्स्य या मच्छ : इसमें वर्तमान राजस्थान के अलवर, भरतपुर तथा जयपुर  के क्षेत्र शामिल थे | इसकी राजधानी विराटनगर थी जिसकी पहचान आधुनिक वैराट के रूप में की गई है  | इसका नाम इस राज्य के संस्थापक विराट के नाम पर पड़ा | ऐसा माना जाता है कि अज्ञातवास के दौरान इसी राज्य ने पांडवों को शरण दिया था |

14.मल्ल : यह 9 कुलों का एक  गण संघ था जो  पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया  और गोरखपुर के आसपास विस्तृत  था | मल्लों की दो शाखाएँ थीं | एक की राजधानी कुशीनारा थी जो वर्तमान कुशीनगर या कसिया  है तथा दूसरे की राजधानी पावा या पव थी जो वर्तमान फाजिलनगर है | प्रारंभ में मल्ल  का राज्य एक  राजतंत्र था जो कि बाद में गणतंत्र में परिवर्तित हो गया | कुश  जातक में गोकाक को वहां का प्रसिद्ध राजा बताया गया है |

15.सुरसेन या शूरसेन : यह प.उत्तर प्रदेश में स्थित था जिसकी राजधानी मथुरा थी | प्रारंभिक ऐतिहासिक काल के प्रमुख नगरों में मथुरा का स्थान आता है | महाभारत और पुराणों में इस स्थान को यादव वंशो से जोड़ा गया जिनमें वृष्णी भी  एक कुल था जिसमें कृष्ण का जन्म हुआ था | यह नगर गंगा के उबर मैदानों के द्वार पर स्थित और उत्तरापथ का एक प्रमुख केन्द्र है क्योंकि यहां से उत्तरापथ दक्षिणवर्ती दिशा में मालवा की और जाता था और एक मार्ग पश्चिमी तट को और मथुरा नगर के उत्तर में यमुना के निकट अंबरोश टोला को मथुरा के सांस्कृतिक स्तर विन्यास में कालखंड से जोड़ा गया है | बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अवंति पुत्र यहाँ का राजा था जो बुद्ध का शिष्य था | उसी के प्रयासों से इस राज्य में बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ | पुराणों में मथुरा के राजवंश को यदुवंश कहा जाता था |

16.मगध :  मगध महाजनपद दक्षिण बिहार के वर्तमान  पटना व गया जिले में  स्थित था व सभी 16 महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली सिद्ध हुआ क्योंकि धीरे धीरे अन्य सभी राज्यों को स्वंय में समाहित कर यह भारत का प्रथम साम्राज्य बना  | मगध का प्रथम स्पष्ट उल्लेख अथर्व वेद में मिलता है | हालांकि ऋग्वेद में मगध का प्रत्यक्ष उल्लेख तो नहीं किंतु कीकट जाती और उसके राजा परमअंगद की चर्चा है जो कि संभवत इसी क्षेत्र से संबंधित है | मगध के बारे में अधिक जानकारी हमें महाभारत और पुराणों से मिलती है | शतपथ ब्राह्मण में भी  इस क्षेत्र को  ‘कीकट’ कहा गया है | गंगा नदी घाटी के क्षेत्र में आने के कारण यह एक अत्यंत उपजाऊ क्षेत्र भी  था |  इसकी प्रारम्भिक राजधानी राजगृह (वर्तमान राजगीर) थी जो चारो तरफ से पर्वतो से घिरी होने के कारण गिरिब्रज के नाम से भी  जानी जाती थी और सामरिक रूप से बहुत सुरक्षित थी  | राजगीर के ऐतिहासिक महत्त्व को बौद्ध एवं जैन दोनों धर्मों से जोड़ा गया है | यहाँ दो नगरों को रेखांकित किया जा सकता है- प्राचीन राजगीर एवं नवीन राजगीर | प्राचीन राजगीर पांच पहाड़ियों के बीच स्थित था जिसके चारों तरफ़ दोहरे पत्थर के सुरक्षा घेरे बने हुए थे जो बिम्बिसार के द्वारा बनवाए गए थे | नवीन राजगीर भी पत्थर की दीवारों से घिरा था और प्राचीन राजगीर के उत्तर में बसाया गया था | यह सुरक्षा घेरे 25 से 30 मील के दायरे में फैले थे और संभवतः अजातशत्रु  के द्वारा बनवाए गए थे |  बाद में वैशाली एवं पाटलिपुत्र इसकी राजधानियां बनी |

मगध का संक्षिप्त इतिहास

  • मगध के सबसे प्राचीन वंश बर्हद्रथ  वंश का  संस्थापक वृहद्रथ था | उसने गिरिब्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी बनाई थी | महाभारत का शक्तिशाली राजा जरासंध वृहद्रथ का पुत्र था |
  • बर्हद्रथ  वंश  6ठी सदी ई.पू. समाप्त हो गया और हर्यक वंश का  संस्थापक बिम्बिसार मगध की गद्दी पर 544 ई० पू०  बैठा | वह बुद्ध का समकालीन था और  बौद्ध धर्म का अनुयायी बना | उसने ब्रह्मदत्त को हराकर अंग राज्य को मगध में मिला लिया। राजगृह का निर्माण कर उसे अपनी राजधानी बनाया | बिम्बिसार ने मगध पर करीब 52 वर्षों तक शासन किया | महात्मा बुद्ध की सेवा में बिम्बिसार ने ही  राजवैद्य जीवक को भेजा | इतिहास में  बिम्बिसार की प्रसिद्धि इसलिय है की उसने वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। इसने कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला से, वैशाली के चेटक की पुत्री वेल्लना से तथा मद्र देश (आधुनिक पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा से विवाह कर इन  राज्यों से मगध के अच्छे सम्बन्ध स्थापित किये | विवाह में उपहार के स्वरुप उसे कई क्षेत्र भी इन राजाओं से मिले | कौशल नरेश प्रसेनजीत से उसे दहेज स्वरूप काशी प्राप्त हुआ जो कि आर्थिक रूप से एक अत्यंत ही समृद्ध नगर हुआ करता था | दूसरी पत्नी राजकुमारी चेलान्ना  के कारण उसके साम्राज्य की उत्तरी सीमा सुरक्षित हो गई | 
  • विम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने कर दी और वह 493 ई० पू० में मगध की गद्दी पर बैठा |   अजातशत्रु का उपनाम कुणिक था |  अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक मगध पर शासन किया | अजातशत्रु प्रारंभ में जैनधर्म का अनुयायी था | किंतु बुद्ध के सम्पर्क में आ कर उसने बौद्ध धर्म अपना लिया | अजातशत्रु के कुशल  मंत्री का नाम वर्षकार या वरस्कार  था जिसकी सहायता से अजातशत्रु ने वैशाली पर विजय प्राप्त की | अजातशत्रु की प्रसिद्धि रथ – मूसल एवं महा -शीला- कंटक नामक दो नए अस्त्रों के प्रयोग के कारण है जिसका प्रयोग उसने वैशाली के विरुद्ध अपने युद्ध में किया था | अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदायिन ने 461 ई० पू० में कर दी और वह मगध की गद्दी पर बैठा | 
  • उदायिन को ही  पाटिलग्राम की स्थापना का श्रेय जाता है जो आगे चलकर पटना बना | उदायिन  जैनधर्म का  अनुयायी था | उदायिन का पुत्र नागदशक हर्यक वंश का अंतिम राजा  हुआ |
  • नागदशक को उसके मंत्री  शिशुनाग ने 412 ई० पू० में अपदस्य करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की |
  • शिशुनाग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से हटाकर वैशाली में स्थापित की | शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक या काकवर्ण पुनः राजधानी को पाटलिपुत्र ले  गया | शिशुनाग वंश का अंतिम राजा नंदिवर्धन था | इसके बाद मगध में  नंदवंश की स्थापना हुई | 
  • नन्दवंश का संस्थापक महापद्म नंद था | कई ग्रन्थों में उसे उग्रसेन कहा गया है | जबकि  नंदवंश का अंतिम शासक घनानंद  सिकन्दर के आक्रमण के समय मगध का सम्राट था | चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने कूटनीति गुरु चाणक्य (कौटिल्य अथवा विष्णुगुप्त ) की सहायता से घनानंद को पदस्थ कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की | इसके बाद कई शताब्दियों तक मगध भारत का शक्ति केंद्र रहा | 

मगध के उत्थान के कारण 

हम पाते हैं कि महा जनपदों की कुल संख्या 16 थी ,किंतु  कालांतर में मगध महाजनपद इन सभी महा जनपदों को परास्त कर इनमें से  सबसे शक्तिशाली हो कर उभरा और भारत का प्रथम साम्राज्य बना | इतिहासकारों ने मगध के साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में उत्थान के पीछे  निम्न कारण बताए हैं :

  • मगध की भौगोलिक स्थिति:- मगध की राजधानी राजगृह एवं पाटलिपुत्र प्राकृतिक सीमाओं से सुरक्षित थी | राजगृह पहाड़ियों से और पाटलिपुत्र नदियों से घिरा हुआ था | इसलिए इस पर बाहरी आक्रमण सम्भव नहीं था | अतः यहाँ के राजाओं को राज्य विस्तार का अवसर प्राप्त हुआ, जिसका लाभ उन लोगों ने उठाया | साथ ही वे बाहरी आक्रमणों से भी बहुत हद तक सुरक्षित रहे |
  • आर्थिक सम्पन्नता:- इस राज्य में कृषि, उद्योग और व्यापार की उन्नत स्थिति थी | मगध का राज्य गंगा के उपजाऊ मैदान में आता था और साथ ही यहाँ लोहे के भी प्रचुर खान उपलब्ध थे (जिनमें से अधिकांश अब झारखण्ड में आते हैं) जो कृषि तथा औजार दोनों में अत्यंत लाभाकरी थे  | राज्य को भरपूर कर की प्राप्ति होती थी, जिसके बल पर सेना का गठन कर साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया गया |
  • सैनिक संगठन:- मगध में सुदृढ़ सैन्य व्यवस्था थी | इसके पास हाथी की टुकड़ी थी, जो दलदली  क्षेत्र में घोड़े से अधिक उपयुक्त थी | युद्ध के नए अस्त्र-शस्त्रों से मगध की सेना सुसज्जित थी | मगध की सैनिक सर्वोच्चता ने मगध के उत्कर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई।
  • आरंभिक जैन और बौद्ध लेखकों ने मगध की महत्ता का कारण विभिन्न शासकों की नीतियों को बताया है | इन लेखकों के अनुसार बिंबिसार, अजातसत्तु ,अशोक , चन्द्रगुप्त और महापद्मनंद जैसे प्रसिद्ध राजा अत्यंत महत्त्वाकांक्षी शासक थे, और इनके मंत्री उनकी नीतियाँ लागू करते थे | मगध में अनेक साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के शासक हुए, जिन्होंने युद्ध एवं कूटनीति द्वारा मगध की सीमा का विस्तार किया। बिम्बिसार की “विवाह के द्वारा कुटनीतिक प्रसार की नित “ अत्यंत सफल रही | 

नगरीकरण : महाजनपदों में व्यापार एवं जीवन 

छठी सदी ईसा पूर्व का काल आर्थिक प्रगति एवं द्वितीय नगरीकरण का काल कहलाता है | इस काल में कृषि में लोहे का प्रयोग शुरू हुआ ,पक्की ईंटों का प्रयोग अधिक किया जाने लगा और सैन्य हथियारों में भी लोहे के प्रयोग के कारण एक क्रांति आई | साम्राज्य का उदय प्रारंभ हुआ और इस प्रकार नगरों के विकास के कारण रोजगार एवं व्यवसाय के भी नए-नए सृजन हुए | अरण्यकों  में पहली बार “नगर” शब्द का उल्लेख आया है | इस काल में कुल 60 नगरों की जानकारी मिलती है | बुद्ध कालीन 6  प्रमुख नगर राजगिरी, चंपा, कौशांबी, साकेत, श्रावस्ती एवं वाराणसी थे | 

महा जनपदों में से अधिकांश व्यापारिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण थे क्योंकि वे भरत के मुख्य व्यापारिक मार्गों पर स्थित थे और इनके सहारे बहुमूल्य सामानों का यातायात होता था | महा जनपदों में इस समय तक विभिन्न प्रकार के व्यवसाय भी प्रचलित हो चुके थे जिनमे व्यापार व कृषि के अतिरिक्त पशुपालक ,दर्जी,हजाम ,रसोइये,धोबी,रंगरेज इत्यादि का नाम उल्लेखनीय है | 

शासकों के द्वारा विभिन्न प्रकार के विशेषज्ञों को भी बहाल किया जाता था जिनमें  पैदल योद्धा, धनुर्धारी ,घुड़सवार, हाथी पर युद्ध करने वाले तथा रथ चलाने वाले  सभी थे | नगरीय व्यवसायों में वैद्य, शल्य चिकित्सक  तथा लेखाकार भी सम्मिलित थे मुद्रा विनिमय-करता  और गणना भी  नगरीय व्यवसाय में आता था | नट (कलाकार या रंगकर्मी), नटक (नर्तक), शोकजयिक (जादूगर),नगाड़ा बजाने वाले , भविष्यवक्ता  इत्यादि की भी चर्चा ऐतिहासिक स्रोतों में की गयी है। मेले भी आयोजित होते थे जिन्हें “समाज” कहा जाता था | विभिन्न प्रकार के शिल्पों का भी उल्लेख हमें मिलता है |  इनको बनाने वाले शिल्पकार नगरों में रहते थे | इनमें यानकार, दंतकार (हाथी दांत की वस्तु बनाने वाले), कर्मकार (धातु का काम करने वाले), स्वर्णकार, कोशीयकार (रेशम का काम करने वाले), पालकण्ड (बढ़ई), सूचीकार (सुई बनाने वाले), नलकार और मालाकार तथा कुम्भकार(कुम्हार) प्रमुख हैं | विभिन्न प्रकार के श्रेणी सन्गठन (guilds) का होना भी इस काल की एक प्रमुख विशेषता थी | इस काल की एक अन्य अहम विशेषता है इतिहास में पहली बार मुद्रा का प्रयोग | 

इस काल में निर्मित सिक्कों को आहत सिक्का कहा जाता था जो आमतौर पर चांदी के होते थे | इसी समय कार्षापन,पाद ,मासिक,काकिर्ण आदि सिक्कों का भी उल्लेख मिलता है | किंतु आहत सिक्का जिसे पंचमार्क सिक्का भी कहते हैं, भारत का प्राचीनतम सिक्का है | इसके प्रथम प्रमाण तक्षशिला में मिलते हैं | क्योंकि तक्षशिला गांधार क्षेत्र में आता था इसीलिए कई बार इसे गांधारण सिक्का  भी कहा जाता है | 

महाजनपदों की राजनैतिक व्यवस्था 

महाजनपदों में आमतौर पर राजतन्त्र था जहाँ  राजा का शासन होता था लेकिन गण और संघ के भी उल्लेख ऐतिहासिक स्रोतों में मिलते हैं | ऐसे  राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था और  इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था | जैन  महावीर और गौतम  बुद्ध ऐसे ही गणों से संबंधित थे | जैन महावीर वज्जी संघ के ग्यात्रिक  कुल के थे, जबकि बुद्ध का सम्बन्ध शक्य गण से था | बुद्ध के पिता सुद्दोधन कपिलवस्तु के शाक्य गण के राजा थे | इनके अतिरिक्त कई अन्य महत्वपूर्ण गण इस प्रकार थे : 

  1. रामग्राम के कोलिय- यह राज्य शाक्यों के पूर्व में बसा हुआ था | दोनों राज्यों की विभाजक रेखा रोहिणी नदी थी और  नदी-जल के बँटवारे के लिए दोनों राज्यों में संघर्ष चलते रहते थे  
  2. पावा के मल्ल- यह महावीर की निर्वाण स्थली थी 
  3. कुशीनारा के मल्ल- यह गौतम बुद्ध की निर्वाण स्थली थी  
  4. मिथिला के विदेह- विदेह की राजधानी मिथिला थी |  यह वज्जि संघ का ही एक  घटक राज्य था
  5. पिप्पलीवन के मोरिय- यह गणराज्य नेपाल की तराई में स्थित था और  मौर्यों से इनका  सम्बन्ध जोड़ा जाता है
  6. सुसुमार के भग्ग- यह राज्य आधुनिक  मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश के निकट स्थित  था 
  7. अल्लकप्प के वुलि- वुलि,शाहाबाद और मुजफ्फरपुर के मध्य बसा हुआ  अल्लकप्प राज्य का भाग था
  8. केसपुत्त के कालाम- यह एक छोटा-सा गणराज्य था | गौतम बुद्ध के गुर  आलार कलाम यहीं के आचार्य थे | यहाँ का प्रसिद्ध नगर केसपुत्त गोमती नदी के तट पर बसा हुआ था 
  9. वैशाली के लिच्छवि- यह गण वृज्जि संघ का घटक था। इस संघ में सबसे प्रमुख लिच्छवि ही थे |  लिच्छवियों को  परम्परा पर आधारित न्याय-व्यवस्था के लिए जाना जाता है | लिच्छवि गणराज्य को विश्व का पहला गणतंत्र माना जाता है | 

वज्जि संघ की ही भाँति कुछ राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे | यद्यपि स्रोतों के अभाव में इन राज्यों के इतिहास की पूरी जानकारी  नहीं मिलती  लेकिन ऐसे कई राज्य लगभग एक हज़ार साल तक बने रहे | प्रत्येक महाजनपद की राजधानी को  प्राय: किले से घेरा जाता था | किलेबंद राजधानियों के रख-रखाव और प्रारंभी सेनाओं और नौकरशाही के लिए  आर्थिक राजस्व स्रोत की भी  आवश्यकता होती थी जिसके लिए शासक व्यापारियों,शिकारियों ,चरवाहों ,कृषकों  और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलते थे | इन राजाओं ने नियमित सेनाएँ  रखीं | फसलों पर आमतौर पर उनके मूल्य के 1/6 भाग पर कर लगाया जाता था | इन राज्यों की कुछ विशेषताएं भी थी | इनका प्रमुख एक निर्वाचित राजा होता था जिसके कारण गण में विद्रोह की संभावना कम रहती थी | जनता आमतौर पर अनुशासन प्रिय थी एवं राज-आज्ञा का पालन करना अपना धर्म समझती थी | बदले में प्रशासन भी उदार हुआ  करता था और जनता के हित में होता था | न्याय एवं सुरक्षा पर विशेष बल दिया जाता था | साथ ही आपसी सद्भाव भी कायम रखना इन गणों का दायित्व था |

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