‘संघ लोक सेवा आयोग’ (UPSC) द्वारा आयोजित की जाने वाली ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ (IAS) की परीक्षा तीन चरणों में संपन्न की जाती है। इन तीन चरणों में प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार शामिल हैं। इस परीक्षा प्रणाली के तीनों ही चरणों के दृष्टिकोण से अंतरराष्ट्रीय संबंध इसके पाठ्यक्रम का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस पाठ्यक्रम के अंतर्गत संघ लोक सेवा आयोग ने ‘विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के अध्ययन’ टॉपिक का भी उल्लेख किया है। इनके विषय में आईएएस की परीक्षा की तैयारी कर रहे प्रत्येक अभ्यर्थी को पढ़ना होता है क्योंकि इनके बारे में देर सबेर संघ लोक सेवा आयोग द्वारा इस परीक्षा के विभिन्न चरणों में प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। ऐसी स्थिति में, अंतरराष्ट्रीय संबंध के अंतर्गत उल्लेखित टॉपिक ‘विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का अध्ययन’ एक महत्वपूर्ण टॉपिक बन जाता है।
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प्रत्येक अभ्यर्थी को इस परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए इस टॉपिक का गहराई से अध्ययन करना होता है। इस टॉपिक के अंतर्गत कई अन्य विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ ही एक ‘यूरोपीय संघ’ (European Union – EU) नामक अंतरराष्ट्रीय संस्थान का अध्ययन भी करना होता है।
आज अपने इस आलेख के अंतर्गत हम ‘यूरोपीय संघ’ नामक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान से संबंधित विभिन्न पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे। इस दौरान हम कोशिश करेंगे कि अपने इस आलेख के अंतर्गत हम यूरोपीय संघ से संबंधित उन सभी आयामों पर चर्चा कर सकें, जो संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली आईएएस की परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। तो आइए, इस विषय से संबंधित हम अपनी चर्चा की शुरुआत करते हैं।
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यूरोपीय संघ का परिचय
- यूरोपीय संघ वास्तव में एक 28 देशों का ऐसा समूह है, जो यूरोपीय क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए समर्पित है। यह संस्थान यूरोपीय देशों का एक ऐसा राजनीतिक संगठन है, जो आपस में सभी सदस्य देशों को मिलकर यूरोप के विकास की रणनीति बनाने और उसे लागू करने के लिए गठित किया गया है।
- यूरोपीय देशों को दूसरे विश्व युद्ध के बाद ऐसा महसूस हुआ था कि उन्हें एक ऐसी राजनीतिक संरचना का विकास करना चाहिए, जिसमें यूरोप के अधिकांश देश शामिल हों। इसका उद्देश्य यह था कि जिस प्रकार से दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यूरोप के लगभग सभी देश छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट गए थे और एक दूसरे के शत्रु हो गए थे, ऐसी परिस्थिति भविष्य में दोबारा उत्पन्न होने से टालना था। भविष्य में उत्पन्न होने वाली किसी ऐसी समस्या से निपटने के लिए यूरोपीय लोगों ने यूरोपीय संघ नामक राजनीतिक संस्था के गठन का विचार प्रस्तुत किया था और इसे मूर्त रूप प्रदान किया था।
- यूरोपीय संघ के वर्तमान स्वरूप के आधार पर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जिस संस्था के गठन का सपना देखा गया था, यूरोपीय संघ के रूप में वह लगभग साकार हो गया है क्योंकि यूरोपीय संघ के 28 सदस्य देशों में से 19 सदस्य देशों की एक ही मुद्रा है, जिसे ‘यूरो’ (Euro) के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, यूरोपीय संघ के 28 सदस्य देशों में से केवल 9 ही सदस्य देश ऐसे हैं, जिन्होंने यूरो को मुद्रा के रूप में न अपनाकर, राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग अलग मुद्राएँ अपनाई हैं।
- इस संस्था ने अपने गठन के बाद से ही यूरोप के क्षेत्र में शांतिपूर्ण तरीके से विभिन्न कार्यों का संचालन किया है। इसके अलावा, यूरोपीय संघ ने लोकतंत्र और मानव अधिकारों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है, जिसके आधार पर उस क्षेत्र में लंबे समय से शांति व्यवस्था स्थापित है और सभी देश आपस में समृद्धि की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। इन्हीं सब कारणों के चलते वर्ष 2012 में यूरोपीय संघ को नोबेल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
- इसके अलावा, यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने एक ‘आंतरिक एकल बाजार’ (Internal Single Market) की व्यवस्था को अपनाया है। यह व्यवस्था एक मानक प्रणाली के आधार पर संचालित होती है। इसके सभी सदस्य देशों ने आपस में सर्व सहमति से मिलकर इस बाजार व्यवस्था को अपनाया है। इसके संबंध में कोई भी निर्णय लेने के लिए सभी सदस्य आपस में सहमत होते हैं और उसका सहजता पूर्वक संचालन करते हैं।
यूरोपीय संघ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- जैसा कि हमने ऊपर जिक्र किया था कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप के विभिन्न देशों ने यह महसूस किया था कि यूरोपीय स्तर पर एक ऐसे राजनीतिक संगठन का निर्माण किया जाना चाहिए, जो यूरोप के साझा हितों को सुनिश्चित कर सके तथा यूरोप के सर्वांगीण विकास को गति प्रदान कर सके। इस उद्देश्य को प्राप्त करने की कवायद विभिन्न यूरोपीय देशों द्वारा दूसरे विश्व युद्ध के समाप्ति के तुरंत बाद आरंभ कर दी गई थी।
- उल्लेखनीय है कि दूसरा विश्व युद्ध 1945 ईस्वी में समाप्त हुआ था और इसके ठीक अगले ही वर्ष, 1946 ईस्वी में, ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने एक सभा में इस बात का उल्लेख किया था कि यूरोप के विभिन्न देशों को आपस में मिलकर संयुक्त राज्य अमेरिका की तर्ज पर ‘संयुक्त राज्य यूरोप’ के गठन का प्रयास करना चाहिए, ताकि यूरोप के समस्त देशों के साझा हितों की सुरक्षा की जा सके।
- इस दिशा में विभिन्न यूरोप के देशों द्वारा दूसरे विश्व युद्ध के तुरंत बाद ही एक ऐसी संस्था के गठन का प्रयास शुरू कर दिया था, जिसकी परिकल्पना यूरोप के तत्कालीन परिवेश में की जा रही थी। इन प्रयासों के अंतर्गत 1951 ईस्वी में ‘पेरिस की संधि’ हस्ताक्षर हुई थी। इस संधि को यूरोप की कुल 6 देशों में हस्ताक्षरित किया था। 1951 ईस्वी की इस संधि के माध्यम से ‘यूरोपीयन कॉल एंड स्टील कम्युनिटी’ (ECSC) की स्थापना की गई थी।
- इसके बाद 1957 ईस्वी में ‘यूरेटम की संधि’ के माध्यम से ‘यूरोपीयन एटॉमिक एनर्जी कम्युनिटी’ (EAEC) की स्थापना की गई थी। इसी वर्ष, 1957 ईस्वी में ही ‘रोम की संधि’ के माध्यम से ‘यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी’ (EEC) भी स्थापित की गई थी।
- आगे चलकर, 1965 ईस्वी में एक ‘विलय संधि’ (Merger Treaty) हस्ताक्षर हुई थी और इसके माध्यम से अभी तक गठित की गई तीनों प्रमुख संस्थाओं का विलय कर दिया गया था। इसके परिणाम स्वरूप ‘यूरोपीयन कम्युनिटी’ (EC) नामक संस्था अस्तित्व में आई थी। इसका अर्थ यह है कि यूरोपियन कम्युनिटी में ‘यूरोपीयन कॉल एंड स्टील कम्युनिटी’ (ECSC), ‘यूरोपियन एटॉमिक एनर्जी कम्युनिटी’ (EAEC) और ‘यूरोपीयन इकोनॉमिक कम्युनिटी’ (EEC) का विलय कर दिया गया था।
- इसके बाद 1992 ईस्वी में यूरोपीयन कम्युनिटी के सदस्य देशों ने ‘मॉस्ट्रिच की संधि’ हस्ताक्षरित की थी। चूँकि यह संधि नीदरलैंड्स के मॉस्ट्रिच नामक शहर में हुई थी, इसीलिए इस संधि को ‘मॉस्ट्रिच की संधि’ कहा जाता है। इसके आधार पर यूरोपीयन कम्युनिटी के सदस्यों ने यह निर्णय लिया था कि अब यूरोप के एकीकरण के लिए और आगे बढ़ना चाहिए। इसी संधि के माध्यम से यूरोपीय कमीशन का नाम बदलकर ‘यूरोपीय संघ’ (European Union) रख दिया गया था। इसी कारण मॉस्ट्रिच की संधि को ‘यूरोपीय संघ पर संधि’ (Treaty on European Union) के नाम से भी जाना जाता है। अतः कहा जा सकता है वर्तमान का यूरोपीय संघ 1992 ईस्वी की मॉस्ट्रिच की संधि के बाद अस्तित्व में आया था।
यूरोपीय संघ के लक्ष्य
- यूरोपीय संघ द्वारा अपने लक्ष्यों की सूची में विभिन्न बिंदु शामिल किए गए हैं। इनमें से मुख्य लक्ष्यों की चर्चा हम यहाँ करेंगे। इसके अंतर्गत सबसे पहला लक्ष्य तो यह है कि यूरोपीय संघ द्वारा यूरोपीय क्षेत्र में शांति और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देना चाहिए और इसके साथ ही यूरोप के नागरिकों के बेहतर वर्तमान और भविष्य के लिए प्रयास करने चाहिएँ।
- इसके अंतर्गत यूरोपीय संघ द्वारा यह भी प्रयास किया जाता है कि यूरोपीय क्षेत्र में सामाजिक विकास का प्रयास किया जाए तथा लोगों के मध्य समाज द्वारा किए जाने वाले विभेद को समाप्त किया जाए, ताकि एक समरसता पूर्ण यूरोपीय समाज का विकास किया जा सके।
- इन लक्ष्यों की सूची में यह भी शामिल है कि यूरोपीय क्षेत्र में यूरोप के लोगों के बीच वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय प्रवृत्ति का विकास किया जाना चाहिए, ताकि इस क्षेत्र का वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी की दृष्टि से विकास किया जा सके और यूरोप के लोगों का उत्थान सुनिश्चित किया जा सके।
- यूरोपीय संघ ने अपने लक्ष्यों की सूची में यह भी शामिल किया है कि यूरोपीय क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता और भाषाई विविधता का सम्मान किया जाए। उस विविधता का संरक्षण किया जाए और निरंतर उसे बढ़ावा दिया जाए, ताकि लोगों के सामाजिक उत्थान के साथ साथ उनका सांस्कृतिक उत्थान भी सुनिश्चित किया जा सके।
- इस अंतरराष्ट्रीय संस्थान द्वारा यह लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है कि यूरोप के लोगों को स्वतंत्रता, सुरक्षा और न्याय प्रदान किया जाएगा। उन लोगों को स्वतंत्रता, सुरक्षा और न्याय प्रदान करने के दौरान यह नहीं देखा जाएगा कि वह व्यक्ति किस देश से संबंध रखता है। यदि वह व्यक्ति किसी ऐसे देश का नागरिक है, जो यूरोपीय संघ का हिस्सा है, तो उसके लिए स्वतंत्रता, सुरक्षा और न्याय प्रदान करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।
- यूरोपीय संघ के लक्ष्यों में इस बात का प्रावधान भी किया गया है कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक और क्षेत्रीय सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया जाएगा। इसके अलावा, यूरोपीय संघ इस बात की भी कोशिश करेगा कि यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों के मध्य एकता सुनिश्चित की जा सके, ताकि किसी भी समस्या से निपटने के लिए यह संगठन अधिक मजबूती के साथ तैयार रह सके।
- यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के मध्य एक आर्थिक और मौद्रिक संघ का भी निर्माण किया जाएगा और इसकी मुद्रा यूरो होगी। जैसा कि हमने ऊपर जिक्र किया था कि यूरोपीय संघ के 28 सदस्य देशों में से 19 सदस्य देशों ने यूरो को अपनी साझा मुद्रा के रूप में स्वीकार किया है, जबकि 28 सदस्य देशों में से केवल 9 सदस्य देश ऐसे हैं, जिन्होंने यूरो की बजाए अपने अपने देश की अलग-अलग मुद्राएँ निर्धारित कर रखी हैं।
यूरोपीय संघ के नैतिक मूल्य
यूरोपीय संघ ने अपने विभिन्न नैतिक मूल्य घोषित किए हैं, जिनके अंतर्गत यूरोपीय संघ ने अंतिम रूप से समाज में समावेशन, न्याय, एकता और सहिष्णुता को निहित करने का प्रयास किया है। इसके अलावा, उसके इन नैतिक मूल्यों का आधार समाज में उपस्थित विभेद कारी प्रवृत्तियाँ भी हैं। इसलिए वह अपने नैतिक मूल्यों के माध्यम से इस सामाजिक विभेद को भी समाप्त करना चाहता है। इस दृष्टिकोण से यूरोपीय संघ ने जो नैतिक मूल्य घोषित किए हैं, उनका विवरण इस प्रकार है-
- यूरोप के लोगों का मानव अधिकार सुनिश्चित करना।
- यूरोप के समाज में मानवीय गरिमा को स्थापित करना तथा उसके हनन की स्थिति को रोकना।
- यूरोपीय संघ के समस्त सदस्य देशों में कानून का शासन स्थापित करना तथा कानून से संबंधित किसी भी मनमानी गतिविधि को रोकना।
- यूरोप के समाज में शासन सत्ता का आधार ‘लोकतंत्र’ को सुनिश्चित करना तथा लोकतंत्र के आधार पर ही विभिन्न यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों में सरकारों के गठन का मार्ग प्रशस्त करना।
- यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों में स्वतंत्रता के सभी रूपों को सुनिश्चित करना और स्वतंत्रता के हनन से संबंधित प्रत्येक गतिविधियों को रोकना।
- यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों में समानता के सिद्धांत को सुनिश्चित किया जाना तथा उसके उल्लंघन की स्थिति में उससे संबंधित हित धारकों की रक्षा करना।
यूरोपीय संघ के कार्य
यूरोपीय संघ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न कानून निर्माण करता है और अनेक कार्यों को संपादित करता है। इस दृष्टिकोण से हम यह देखेंगे कि यूरोपीय संघ विशेष रूप से कौन-कौन से कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है। इन कार्यों का विवरण क्रमवार तरीके से इस प्रकार है-
- यूरोपीय संघ मुख्य रूप से यूरोपीय संघ की विधायी संस्थाओं द्वारा निर्मित किए जाने वाले कानूनों का क्रियान्वयन करता है।
- यूरोपीय संघ इस बात का प्रयास करता है कि यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों के बीच एक आर्थिक सामंजस्य स्थापित किया जा सके, ताकि सभी सदस्य देशों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं का अबाध संचरण सुनिश्चित किया जा सके। इन वस्तुओं और सेवाओं के सीमा पार अबाध संचरण के लिए किसी भी देश द्वारा किसी भी प्रकार का कोई प्रशुल्क नहीं वसूला जाता है।
- यूरोपीय संघ अपने सदस्य देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का अबाद संचरण सुनिश्चित करने के साथ ही इस बात का भी पर भी जोर देता है कि सभी सदस्य देशों के मध्य श्रम का भी बेरोक टोक संचरण सुनिश्चित हो सके। इसका उद्देश्य एक ऐसा ‘श्रम पारिस्थितिक तंत्र’ तैयार करना है कि यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देश आपस में आवश्यकता के अनुसार श्रमिकों का आदान प्रदान कर सकें।
- यूरोपीय संघ के कर्तव्यों में यह भी शामिल किया गया है कि वह अपने सदस्य देशों में लोगों के मानव अधिकार, उनकी स्वतंत्रता, उनके न्याय इत्यादि की पूरी तरह से देख रेख करे। और यदि किसी यूरोपीय संघ के किसी सदस्य देश में नागरिकों के किसी नैतिक मूल्यों या मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण या उल्लंघन किया जाता है, तो ऐसे ही स्थिति में वह नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करे।
- यूरोपीय संघ का एक अन्य कार्य यह सुनिश्चित करना भी है कि वह यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों के मध्य ना सिर्फ एक एकीकृत आर्थिक संघ का गठन करे, बल्कि एक सहज आर्थिक सहयोग को ही बढ़ावा दे। ताकि यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों की आर्थिक समृद्धि और उनका आर्थिक विकास भी सुनिश्चित की जा सके।
यूरोपीय संघ से संबंधित विभिन्न शासी निकाय
यूरोपीय संघ के शासी निकायों (Governing Bodies) के माध्यम से अपने कार्यों का संचालन करता है। ये शासी निकाय यूरोपीय संघ की विभिन्न तरीके से मदद करते हैं, ताकि वह अपने कार्यों को सुचारु तरीके से संचालित कर सके। इनमें से कुछ प्रमुख शासी निकायों का जिक्र हम इस आलेख में आगामी खंड में कर रहे हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-
- यूरोपीय परिषद (European Council) :
- यूरोपीय परिषद यूरोपीय संघ का एक सामूहिक निकाय है। इसका मुख्य उद्देश्य यूरोपीय संघ के सभी राजनीतिक मामलों को दिशा देना तथा विभिन्न राजनीतिक मुद्दों की प्राथमिकता निर्धारित करना है।
- यूरोपीय संघ की पहली औपचारिक बैठक 1975 ईस्वी में आयोजित हुई थी। इसके बाद 2009 ईस्वी में ‘लिस्बन की संधि’ (Treaty of Lisbon) लागू हुई थी। 2009 ईस्वी में लागू होने वाली इस लिस्बन की संधि के माध्यम से यूरोपीय परिषद को एक औपचारिक संस्थान के रूप में स्थापित किया गया था। इससे पहले यूरोपीय परिषद एक अनौपचारिक संस्थान के रूप में ही अस्तित्व में थी।
- यूरोपीय परिषद के सम्मेलन और उसकी बैठक में यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों के ‘सरकार के अध्यक्ष’ (Head of the Government) और ‘राज्य के अध्यक्ष’ (Head of the State) भाग लेते हैं। इसके अलावा, इस संगठन में यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष और ‘यूरोपीय आयोग’ (European Commission) के अध्यक्ष भी हिस्सा लेते हैं। यूरोपीय परिषद की बैठक में लिए जाने वाले सभी निर्णय सदस्यों की सर्वसम्मति से लिए जाते हैं।
- यूरोपीय आयोग (European Commission) :
- यूरोपीय आयोग यूरोपीय संघ का एक ‘कार्यकारी निकाय’ (Executive Body) है। यह निकाय मुख्य रूप से यूरोपीय संघ के निर्णय को लागू करने यूरोपीय संघ की विभिन्न विधियों को क्रियान्वित करने और यूरोपीय संघ के दैनिक क्रियाकलापों को प्रबंधित करने के लिए उत्तरदायी होता है। इस प्रकार, ‘यूरोपीय आयोग’ यूरोपीय संघ का एक ऐसा निकाय है, जो उसके द्वारा सर्वसम्मति से लिए गए निर्णयों को न सिर्फ लागू करता है, बल्कि यूरोपीय संघ के रोजमर्रा के कार्यों की भी देख रेख भी करता है।
- यूरोपीय संसद (European Parliament) :
- यूरोपीय संसद यूरोपीय संघ का एकमात्र संसदीय निकाय है। अर्थात् यूरोपीय संसद के अलावा, यूरोपीय संघ का अन्य कोई भी ऐसा निकाय नहीं है, जो प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुन कर निर्मित किया जाता हो। यूरोपीय संसद एक द्विसदनीय निकाय है, जिसका एक कदम स्वयं यह यूरोपीय संसद ही है, जबकि इसका दूसरा सदन ‘यूरोपीय संघ की परिषद’ (Council of the European Union) के नाम से जाना जाता है।
- यूरोपीय संघ के इस निकाय ‘यूरोपीय संसद’ के सदस्यों का चुनाव लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। इस संस्था के लिए सदस्यों के निर्वाचन में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के सभी व्यक्ति भाग लेते हैं। अर्थात् यूरोपीय संसद के सदस्यों का निर्वाचन सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाता है।
- यूरोपीय संघ की परिषद (Council of the European Union) :
- हमें यह समझा कि यूरोपीय संघ में द्विसदनीय संसदीय व्यवस्था अपनाई गई है। यूरोपीय संसद व्यवस्था का पहला सदन ‘यूरोपीय संसद’ के नाम से जाना जाता है, जबकि दूसरा सदन ‘यूरोपीय संघ की परिषद’ के नाम से जाना जाता है। यूरोपीय संघ की परिषद को प्रचलित रूप में ‘परिषद’ (The Council) के नाम से भी जाना जाता है।
- यूरोपीय संसद और यूरोपीय संघ की परिषद यह दोनों ही सदन मिलकर यूरोपीय संघ के लिए विधायी कार्यों का निष्पादन करते हैं। इस संस्था में यूरोपीय संसद के विपरीत, यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के मंत्री शामिल होते हैं। इस प्रकार, स्पष्ट है कि ‘यूरोपीय संघ की परिषद’ (CEU) नामक संस्था, ‘यूरोपीय परिषद’ (EC) नामक संस्था से पूरी तरह से भिन्न है। लेकिन दोनों ही संस्थाएँ यूरोपीय संघ की ‘शासी निकाय’ (Governing Body) अवश्य हैं।
- यूरोपीय केंद्रीय बैंक (The European Central Bank – ECB) :
- यूरोपीय केंद्रीय बैंक यूरोपीय संघ का एक अन्य शासी निकाय है। यह बैंक यूरोपीय संघ के लिए ठीक उसी तरह से कार्य करता है, जैसे किसी देश का केंद्रीय बैंक उस देश के लिए कार्य करता है।
- यूरोपीय संघ का यह यूरोपीय केंद्रीय बैंक ‘यूरो’ नामक मुद्रा के लिए मौद्रिक नीति का निर्माण करता है तथा उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं को प्रशासित करता है। हम इस बात का उल्लेख पहले ही कर चुके हैं कि यूरोपीय संघ के कुल 28 सदस्य देशों में से केवल 19 सदस्य देशों ने ही यूरो को अपनी मुद्रा के रूप में स्वीकार किया है। अतः यूरो को अपनी राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्वीकार करने वाले इन 19 देशों के संगठन को ‘यूरो जोन’ (Euro Zone) कहा जाता है। ऐसे में, यूरोपीय संघ का यह यूरोपीय केंद्रीय बैंक केवल यूरो जोन के लिए ही अपनी मौद्रिक नीतियाँ निर्मित करता है और उनका प्रशासन करता है।
- यूरोपीय संघ का न्यायालय (The Court of Justice of the European Union – CJEU) :
- यूरोपीय संघ से संबंधित इस न्यायिक संस्था का गठन सबसे पहले 1952 में पेरिस की संधि के माध्यम से किया गया था। उस समय इस न्यायिक संस्था का नाम ‘द कोर्ट ऑफ जस्टिस ऑफ द यूरोपियन कम्युनिटीज’ (The Court of Justice of the European Communities) रखा गया था। लेकिन आगे चलकर वर्ष 2009 में इस संस्था का नाम बदलकर ‘यूरोपीय संघ का न्यायालय’ (The Court of Justice of the European Union – CJEU) कर दिया गया था।
- इस न्यायिक संस्था का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि यह यूरोपीय संघ के कानूनों की व्याख्या करती है। इसके अलावा, यह न्यायिक संस्था इस बात को भी सुनिश्चित करती है कि यूरोपीय संघ के सभी कानून यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों में एक समान रूप से लागू हो रहे हों।
- ‘द कोर्ट ऑफ जस्टिस ऑफ द यूरोपियन यूनियन’ पर यह जिम्मेदारी दी होती है कि वह यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच, इन सदस्य देशों की राष्ट्रीय सरकारों के बीच और यूरोपीय संघ के किन्हीं संस्थानों के बीच, यदि किसी प्रकार के विवाद उभरते हैं, तो वह उनका निपटान करे। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि ‘द कोर्ट ऑफ जस्टिस ऑफ द यूरोपीयन यूनियन’ व्यापक अधिकारों से संपन्न एक न्यायिक संस्था है, जो यूरोपीय संघ से संबंधित सभी लगभग सभी मसलों का समाधान करने के लिए अधिकृत है।
ब्रेक्जिट क्या है? (What is Brexit?)
- ब्रिटेन भी पहले यूरोपीय संघ का एक प्रमुख सदस्य देश हुआ करता था, लेकिन कुछ वर्षों पहले ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से अलग होने की घोषणा की थी। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने की इसी परिघटना को ‘ब्रेक्जिट’ कहा जाता है। वास्तव में, ब्रेक्जिट (Brexit) दो शब्दों से मिलकर बना है, ये शब्द हैं- ‘ब्रिटेन’ (Britain) और ‘एग्जिट’ (Exit)। इसका शाब्दिक अर्थ यह हुआ कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से ‘बाहर’ (Exit) होने की प्रक्रिया।
- वर्तमान में ब्रिटेन यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं है। ब्रिटिश संसद ने यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर होने की विधायी प्रक्रिया पर मुहर लगा दी है। वास्तव में, ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने के पीछे कुछ प्रमुख वजहें थीं, जिनके कारण ब्रिटेन में आंदोलनों का दौर शुरू हो गया था। ब्रिटेन के लोग यह चाहते थे कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर निकल जाए क्योंकि यूरोपीय संघ की व्यवस्थाओं के कारण ब्रिटेन के संसाधनों पर अन्य देश के लोग कब्जा कर लेते हैं और ब्रिटेन के लोगों को खाली हाथ रह जाना पड़ता है।
- ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर हो जाने के कारण भारत को भी एक समस्या का सामना करना पड़ रहा है। असल में, जब ब्रिटेन यूरोपीय संघ का हिस्सा हुआ करता था, तो भारत को ब्रिटेन से कोई अलग समझौता करने की आवश्यकता नहीं होती थी। उस समय भारत सिर्फ यूरोपीय संघ के साथ ही विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर करता था और वह समझौता अपने आप ही ब्रिटेन सहित यूरोपीय संघ के समस्त देशों के साथ माना जाता था। लेकिन ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर हो जाने के बाद भारत को अब नए सिरे से ब्रिटेन के साथ द्विपक्षीय संबंध स्थापित करने पड़ेंगे और इसमें भारत और ब्रिटेन, दोनों ही देशों को बड़ी मात्रा में संसाधन खर्च करने होंगे। दोनों देशों को आपसी हित साधने के लिए एक दूसरे के साथ लंबे दौर की वार्ताएँ करनी पड़ेंगी और एक दूसरे को समझाना पड़ेगा। इस दृष्टिकोण से ‘ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर होना’ (ब्रेक्जिट) भारत के लिए हितकर नहीं कहा जा सकता है।
- हालाँकि इसके अलावा, भारत और ब्रिटेन के बीच कुछ ऐसे बिंदु भी हैं, जिन पर भारत ब्रिटेन के साथ उस समय सफलतापूर्वक चर्चा नहीं कर सकता था, जब ब्रिटेन यूरोपीय संघ का हिस्सा हुआ करता था। तो ऐसे मुद्दों पर भारत को अब एक सकारात्मक किरण दिखाई दे रही है। अतः ब्रेक्जिट का की परिघटना भारत के लिए वरदान और अभिशाप दोनों के रूप में सामने आई है।
भारत और यूरोपीय संघ के मध्य सहयोग के बिंदु
- भारत और यूरोपीय संघ विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग कर रहे हैं। वास्तव में 1962 में भारत और ‘यूरोपीय कम्युनिटी’ (EC) के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए थे। उस समय यूरोपीय कम्युनिटी के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने वाला ‘भारत’ विश्व का पहला विकासशील देश था।
- लेकिन इसके बाद 1994 ईस्वी में भारत और यूरोपीय संघ के बीच एक सहयोग समझौता हस्ताक्षर होता है। इस सहयोग समझौते के परिणाम स्वरूप भारत और यूरोपीय संघ के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को कानूनी अमलीजामा पहना दिया जाता है। भारत वर्ष 2004 के बाद से ही यूरोपीय संघ का एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार भी है।
- वर्ष 2017 में आयोजित हुई भारत और यूरोपीय संघ की शिखर वार्ता के दौरान यह निर्णय लिया गया था कि दोनों देश मिलकर ‘एजेंडा 2030’ को लागू करने के लिए संयुक्त प्रयास करेंगे। वास्तव में, एजेंडा 2030 सतत विकास लक्ष्यों के क्रियान्वयन से संबंधित है। इसी अवसर पर दोनों पक्षों ने यह निर्णय भी लिया था कि वे भारत और यूरोपीय संघ के मध्य हस्ताक्षर हुए ‘विकास डायलॉग’ (Development Dialogue) को आगे भी जारी रखेंगे।
- यदि विदेशी निवेश की दृष्टि से देखा जाए तो यूरोपीय संघ भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा निवेशक है। पिछले एक दशक में यूरोपीय संघ से भारत की ओर आने वाले निवेश की मात्रा 8 प्रतिशत से बढ़कर 18 प्रतिशत हो गई है। इसका अर्थ है कि पिछले एक दशक में यूरोपीय संघ की ओर से भारत में किए जाने वाले निवेश की मात्रा दोगुनी से भी अधिक बढ़ गई है। यह स्थिति दोनों पक्षों के बढ़ते आपसी विश्वास और सहयोग को दर्शाती है।
- यूरोपीय संघ भारत द्वारा किए जाने वाले सबसे बड़े निर्यात गंतव्यों में से एक है। भारत यूरोपीय संघ को वस्त्र, इंजीनियरिंग वस्तुओं, रसायन और उससे संबंधित उत्पादों इत्यादि का भारी मात्रा में निर्यात करता है। जबकि यूरोपीय संघ की ओर से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं में आभूषण, कीमती पत्थर, इंजीनियरिंग वस्तुएँ, रसायन और उससे संबद्ध उत्पाद इत्यादि प्रमुख हैं।
- भारत और यूरोपीय संघ तकनीक, स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु भागीदारी जैसे मुद्दों पर भी एक दूसरे का व्यापक स्तर पर सहयोग कर रहे हैं। इससे दोनों पक्षों के बीच व्यापारिक रिश्ते निरंतर मजबूत हो रहे हैं।
- इसके अलावा, भारत और यूरोपीय संघ के विभिन्न देश आपस में ‘अनुसंधान और विकास’ (Research and Development) के क्षेत्र में भी सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। ‘भारत’ यूरोप में संचालित किए जा रहे ‘अंतरराष्ट्रीय आई. टी. ई. आर. संलयन परियोजना’ (International ITER Fusion Project) में एक मुख्य भागीदार के रूप में शामिल है। इस प्रकार, भारत और यूरोपीय संघ ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी’ के क्षेत्र में भी बढ़ चढ़कर एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं।
- भारत और यूरोपीय संघ ‘पानी और पर्यावरण’ के क्षेत्र में भी एक दूसरे का व्यापक सहयोग कर रहे हैं। भारत सरकार द्वारा संचालित ‘स्वच्छ गंगा पहल’ (Clean Ganga Initiative) में यूरोपीय संघ अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करा रहा है। इसके अलावा, यूरोपीय संघ और भारत दोनों ही पक्ष, जल से संबंधित अन्य समस्याओं को सुलझाने में भी एक दूसरे का वृहद स्तर पर सहयोग कर रहे हैं। यह दोनों पक्षों के बीच बढ़ते आपसे विश्वास को दर्शाता है। इसके परिणाम स्वरूप दोनों पक्षों के आपसी रिश्ते निरंतर नई ऊँचाइयों को छू रहे हैं।
- यूरोपीय संघ और भारत दोनों ही पक्ष प्रवसन और मोबिलिटी से संबंधित मसलों पर भी एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। इन दोनों पक्षों के बीच इस संबंध में एक समझौता भी हस्ताक्षरित हुआ है। उस समझौते का नाम ‘कॉमन एजेंडा ऑन माइग्रेशन एंड मोबिलिटी’ (Common Agenda on Migration and Mobility – CAMM) है। दोनों पक्ष इसी समझौते के माध्यम से प्रवसन और मोबिलिटी से संबंधित अपने लगभग सभी मुद्दों का समाधान करते हैं।
- भारत और यूरोपीय संघ दोनों ही पक्ष ‘सूचना और संचार प्रौद्योगिकी’ (ICT) के क्षेत्र में भी एक दूसरे का निरंतर सहयोग कर रहे हैं। इस दिशा में भारत और यूरोपीय संघ ने ‘इंडिया ई. यू. साइबर सिक्योरिटी डायलॉग’ (India EU Cyber Security Dialogue) भी हस्ताक्षर कर रखा है। जिसके माध्यम से दोनों पक्ष साइबर सुरक्षा से संबंधित अपने अनेक मामलों को हल करने की कोशिश करते हैं और इस क्षेत्र में निरंतर आपसी सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
- इसके अलावा, यूरोपीय संघ भारत के स्मार्ट सिटी कार्यक्रम में भी सहयोग कर रहा है। इसके अंतर्गत यूरोपीय संघ भारत के कुछ शहरों को यूरोप के कुछ शहरों की तर्ज पर विकसित करने के संबंध में सहायता प्रदान कर रहा है। अर्थात् वर्तमान में अवसंरचनात्मक विकास, सतत् विकास, और नियोजित विकास की दृष्टि से भी दोनों पक्ष एक दूसरे का व्यापक सहयोग कर रहे हैं।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच विवाद के बिंदु
- सबसे पहले तो यूरोपीय संघ भारत को मानव अधिकार के मुद्दे पर अनावश्यक ही घेरता रहता है। वर्ष 2019 में भारत ने अपनी संप्रभुता का इस्तेमाल करते हुए जम्मू कश्मीर से संबंधित भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन किया था। भारत के इस आंतरिक मामले को यूरोपीय संघ ने मानवाधिकार के उल्लंघन के रूप में देखा था और इस पर सवाल उठाया था। यानी यूरोपीय संघ द्वारा भारत के आंतरिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप करना दोनों पक्षों के मध्य विवाद का एक प्रमुख कारण है।
- इसके अलावा, यूरोपीय संघ ने भारत की संप्रभु संसद द्वारा पारित किए गए ‘नागरिकता (संशोधन) अधिनियम’ पर भी सवाल उठाया था और इसे भी मानव अधिकारों का उल्लंघन करार दिया था। यूरोपीय संघ का यह कार्य भी उसके द्वारा भारत की संप्रभुता में सेंध लगाने का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। इससे भी दोनों पक्षों के आप से रिश्तों में दूरियाँ बढ़ने की संभावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
- भारत और यूरोपीय संघ, दोनों पक्षों के बीच व्यापार असंतुलन की स्थिति है। यह कारक भी दोनों पक्षों के आपसी रिश्तों को मजबूत करने में एक प्रमुख बाधक तत्व के रूप में कार्य करता है। इसीलिए दोनों पक्षों को मिलकर व्यापार असंतुलन को कम करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, ताकि दोनों पक्षों के आपसी रिश्ते और अधिक मजबूत हो सकें तथा दोनों पक्ष इससे अधिक से अधिक लाभ उठा सकें।
- यूरोपीय संघ और भारत के बीच वर्ष 2007 में ही एक ‘द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौता’ (Bilateral Trade and Investment Agreement – BTIA) हस्ताक्षरित हो गया था, लेकिन विभिन्न बाधक तत्व के कारण यह समझौता अभी तक लागू नहीं हो सका है। ऐसे में, दोनों पक्षों को आपस में मिलकर इन सभी बाधक तत्वों का निराकरण करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि दोनों पक्ष अपने व्यापारिक रिश्तों को और अधिक मजबूत कर सकें तथा दोनों पक्ष आर्थिक विकास की ओर आगे बढ़ सकें।
निष्कर्ष
- इस प्रकार, हमने ऊपर की गई अपनी इस चर्चा में भारत और यूरोपीय संघ से संबंधित विभिन्न पहलुओं को विश्लेषणात्मक ढंग से समझने का प्रयास किया है। इस दौरान हमने देखा है कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच विभिन्न बिंदुओं पर बेहतरीन सहयोग किया जा रहा है, लेकिन कुछ बिंदु ऐसे भी हैं, जिन पर दोनों पक्षों के बीच विवाद की स्थिति बानी हुई है। ऐसे में, दोनों पक्षों को आपस में बुद्धिमानी का परिचय देना चाहिए और इन विवादित मसलों को आपसी बातचीत के माध्यम से सुलझाने की तरफ आगे बढ़ना चाहिए। आपसी सहयोग की स्थिति न सिर्फ दोनों पक्षों के व्यापार को और अधिक प्रफुल्लित करने के रूप में सामने आएगी, बल्कि दोनों दोनों पक्षों की आर्थिक, वैज्ञानिक और सामाजिक प्रगति के रूप में भी परिलक्षित होगी। दोनों पक्षों को दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए इन तमाम बिंदुओं को सुलझाने के लिए गंभीरता पूर्वक प्रयास करना चाहिए।
हमने इस आलेख में अपनी उपरोक्त चर्चा में यूरोपीय संघ से संबंधित विभिन्न बिंदुओं को अच्छी तरह से समझने की कोशिश की और निरंतर यह प्रयास किया कि इस आलेख को इस रूप में प्रस्तुत किया जाए कि ‘संघ लोक सेवा आयोग’ (UPSC) द्वारा आयोजित की जाने वाली ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ (IAS) की परीक्षा की दृष्टि से यह आलेख अधिक से अधिक उपयोगी बन सके। इस आलेख में ना सिर्फ हमने यूरोपीय संघ को एक संस्था के रूप में समझने का प्रयास किया, बल्कि उसके भारत के साथ रिश्ते पर भी विस्तार पूर्वक चर्चा की। हमने यूरोपीय संघ से संबंधित अनेक पहलुओं, जैसे- उसके उदय की पृष्ठभूमि, उसके कार्य, उसके उद्देश्य, यूरोपीय संघ के विभिन्न शासी निकाय, ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होना (ब्रेक्जिट) और भारत के साथ यूरोपीय संघ के संबंध इत्यादि को इस आलेख के माध्यम से हमने यथासंभव बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की है।
अतः हमें उम्मीद है कि आईएएस की परीक्षा की तैयारी करने वाले प्रत्येक अभ्यर्थिय को इस आलेख को पढ़ने के बाद बहुत अधिक सहायता मिलेगी और वे इस बात को लेकर सहज महसूस करेंगे कि यदि अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय के ‘यूरोपीय संघ’ नामक टॉपिक से संबंधित कोई प्रश्न आता है, तो परीक्षा के प्रत्येक चरण में आप उसे हल करने की स्थिति में रहेंगे। हमें इस आलेख को लिखते समय हमने इस बात का पर्याप्त ध्यान रखा है कि इसके अंतर्गत लिखी जाने वाली विषय वस्तु को एक वैज्ञानिक ढंग से व्यवस्थित किया जाए, ताकि इसे पढ़ने वाले अभ्यर्थी इसका कम समय में अधिक से अधिक लाभ उठा सकें।
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