भारत की ख्याति शुरू से एक दार्शनिक देश के रूप में रही है ,जहाँ भौतिकतावाद की अपेक्षा धर्म -दर्शन की ओर सामान्य से थोड़ा अधिक झुकाव देखा गया है | यहाँ के ऋषि -महर्षियों ने सृष्टि की रचना, जीवन- मरण का चक्र, आत्मा- परमात्मा ,स्वर्ग- नर्क की अवधारणा ,पुनर्जन्म, जीवन के लक्ष्य इत्यादि सीमांत अवधारणाओं पर गहन चिंतन किया है | भारतीय धार्मिक ग्रंथों में मुक्ति का महत्व सदा अनन्य रहा है | सभी धर्मों में मुक्ति को ही जीवन के अंतिम लक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत किया गया है | इसी संबंध में प्राचीन भारत में मुक्ति की संविधाओं के तौर पर दर्शन के 6 मुख्य मार्ग विकसित हुए जिन्हें षड्दर्शन कहा जाता है | इन 6 दर्शनों के मूल एवं प्रयोजनों में थोड़ा अंतर अवश्य था किंतु सभी मुक्ति के ही साधन थे | इन 6 दर्शनों को 2-2 के तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, क्योंकि उन्हें एक दूसरे का संबंधी एवं अनुपूरक माना जाता है | ये हैं : सांख्य एवं योग, न्याय एवं वैशेषिक तथा मीमांसा एवं वेदांत दर्शन | एक अन्य दर्शन के तौर पर चर्वाक दर्शन भी महत्वपूर्ण है | इस लेख में हम सांख्य दर्शन की चर्चा करेंगे | भारतीय इतिहास पर अन्य उपयोगी लेखों को पढने के लिए लिंक किये गये लेख देखें :
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सांख्य दर्शन
सांख्य दर्शन जिसका शाब्दिक अर्थ संख्या अथवा “अंक” है , षड्दर्शन में सबसे प्राचीन है। इसका उल्लेख प्रत्यक्ष तौर पर भगवद्गीता में भी है और अप्रत्यक्ष रूप में उपनिषदों में भी है। इसके प्रवर्तक कपिल मुनि थे | सांख्य दर्शन जैन धर्म से सम्बन्धित है। इसके अनुसार 25 मूल तत्त्व होते हैं जिनमें प्रकृति, बुद्धि महत,आत्म चेतना (अहंकार), आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, श्रुति, स्पर्श, दृष्टि, स्वाद, गन्ध, पाँच कर्मेन्द्रियां -वाक्, धारणा, गति, उत्सृजन एवं प्रजनन, मस्तिक, पुरुष इत्यादि हैं | मूल तत्वों में प्रकृति प्रथम है। प्रकृति का तात्पर्य यहाँ द्रव्य (matter) से है। इस दर्शन के अनुसार सृष्टि अथवा विकास किसी दैविक शक्ति की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि प्रकृति के अन्तर्वर्ती स्वभाव का परिणाम है। इसके अनुसार प्रकृति से बुद्धि महत का उदय होता है और परिणामतः आत्म चेतना की उत्पत्ति होती है। आत्म चेतना या अहंकार पाँच अन्य सूक्ष्म तत्त्वों को जन्म देता है जो हैं : आकाश, वायु, अग्नि , जल तथा पृथ्वी | इन 5 सूक्ष्म तत्त्वों से 5 भौतिक तत्त्वों अर्थात “पंच-महाभूतों” की उत्पत्ति होती है। पुनः इसके आधार पर 5 ज्ञानेन्द्रियों श्रुति, स्पर्श, दृष्टि, स्वाद एवं गन्ध तथा 5 कर्मेन्द्रियों वाक्, धारणा, गति, उत्सृजन एवं प्रजनन की उत्पति होती है। आत्म चेतना या अहंकार “मस्तिक” को जन्म देता है जो मूल तत्त्वों में 24वाँ है | यह समस्त इन्द्रियों तथा बाह्य संसार के बीच एक मध्यस्थ का कार्य करता है। सांख्य दर्शन के अनुसार शरीर और यहाँ तक कि सम्पूर्ण विश्व आत्म चेतना की ही उपज है | 25वाँ तत्त्व है पुरुष | इसका तात्पर्य “आत्मा” से है।
सांख्य दर्शन का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त “त्रिगुण सिद्धान्त” है | इसमें मनुष्य के 3 गुणों का वर्णन है ,यथा 1.सतगुण (सदाचार,सत्य, विवेक, सौन्दर्य और सद्भावना आदि) , 2.रजो गुण (वासना,हिंसा, स्फूर्तिव, उग्रता, क्रियाशीलता इत्यादि ) तथा 3.तमस गुण (मूर्खता , उदासी, अप्रसन्नता आदि) | प्रकृति की अविकसित अवस्था में ये तीनों गुण सामान परिमाण में होते हैं; परन्तु जैसे-जैसे सृष्टि का विकास होता है,तीनों में से एक गुण अधिक प्रभावशाली हो जाता है और उनके अनुसार ही मनुष्य सृष्टि की व्याख्या करते हैं। इस त्रिगुणात्मक सिद्धांत ने भारतीय जीवनशैली एवं विचारधारा को अनेक रूपों में प्रभावित किया है | सांख्य दर्शन में 6 अध्याय और 451 सूत्र है। सांख्य दर्शन ने वैदिक के साथ-साथ गैर वैदिक आत्माओं में भी आत्मा के कई प्राचीन सिद्धांतों को प्रभावित किया है। सांख्य दर्शन के तहत विकसित विचारों का उल्लेख भगवद् गीता, उपनिषदों और वेदों जैसे प्रारंभिक हिंदू धर्मग्रंथों में पाया गया है। सांख्य दर्शन ने बौद्ध और जैन अवधारणाओं को भी प्रभावित किया है। सांख्य का उद्देश्य यह दिखाना है कि दर्द के बंधन से आत्मा की अंतिम मुक्ति कैसे प्रभावित की जाती है।
अन्य दर्शनों का संक्षिप्त परिचय
चार्वाक दर्शन अथवा लोकायत : चार्वाक दर्शन केवल भौतिकवाद में विश्वास रखता है | इसके अनुसार भौतिक तत्वों से बना हुआ मनुष्य का भौतिक शरीर ही उसका एकमात्र तत्व है | मृत्यु ही जीवन का अंत है और इसके बाद पुनर्जन्म, स्वर्ग- नर्क जैसी कोई अवधारणा नहीं होती | अतः एक जीवन में अधिक से अधिक सुख की प्राप्ति करना ही इस दर्शन के अनुसार मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिए | यह षड्दर्शन में से एक मात्र ऐसा दर्शन है जो नास्तिक है अर्थात ईश्वर की सत्ता या वेदों की प्रमाणिकता में विश्वास नहीं रखता | अन्य सभी दर्शन आस्तिक हैं | इसके प्रवर्तक चार्वाक ऋषि थे |
वैशेषिक दर्शन : यह भी एक यथार्थवादी तथा विश्लेषणात्मक दर्शन है | इसके प्रवर्तक कणाद या उलूक थे | यह दर्शन विभिन्न प्रकार की परम वस्तुओं में अंतर करने का प्रयत्न करता है और सभी वस्तुओं को पंच-महाभूत (अर्थात पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, और आकाश) के अंतर्गत वर्गीकृत करता है | इन्हीं पंचमहाभूतों के परमाणु जब आपस में जुड़ते हैं तब इस दर्शन के अनुसार सृष्टि का सृजन होता है और जब इन परमाणुओं का विघटन होता है तो इस सृष्टि का अंत हो जाता है |
न्याय दर्शन : यह दर्शन वैशेषिक दर्शन के पांच मूल तत्वों में एक अन्य तत्व “अभाव” को जोड़ता है | यह उन सभी द्रव्यों को स्वीकार करता है जो वैशेषिक दर्शन द्वारा प्रतिपादित किए गए हैं | इसके अनुसार सृष्टि की रचना ईश्वर ने की है किंतु ईश्वर एक ऐसी आत्मा है जो कर्म और जीवन -मरण के चक्र से मुक्त है | इस दर्शन की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है “प्रमाण” इसके अनुसार चार प्रकार के प्रमाण होते हैं जो हैं : प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, और शब्द (अर्थात साक्ष्य) | इस दर्शन के प्रवर्तक गौतम ऋषि हुए |
योग दर्शन : सभी भारतीय दर्शनों में पतंजलि महर्षि द्वारा प्रतिपादित योग दर्शन ही ऐसा दर्शन है जो न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में सर्वाधिक प्रचलित है | इस दर्शन में आत्म नियंत्रण और यातना को सर्वोपरि माना जाता है | जो व्यक्ति इसके सिद्धांतों को आत्मसात कर लेता है उसे “योगी” कहा जाता है | इस दर्शन के अनुसार सृष्टि की रचना ईश्वर ने नहीं की बल्कि एक उत्कृष्ट ऊर्जा ने की है | इस दर्शन के अनुसार निम्नलिखित 8 क्रियाओं के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है जिसे “अष्टांग योग” कहते हैं – 1. यम अर्थात सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य इत्यादि के द्वारा आत्म नियंत्रण; 2.नियम अर्थात पवित्रता, संतोष, संयम इत्यादि का अनुपालन; 3. आसन अर्थात शरीर की कुछ निर्धारित मुद्राओं के द्वारा योग ; 4. प्राणायाम अर्थात श्वास पर नियंत्रण; 5. प्रत्याहार अर्थात इंद्रियों का प्रशिक्षण; 6. धारणा अर्थात ध्यान को केंद्रित करना; 7. ध्यान अर्थात मन को सांसारिकता से हटाना; तथा 8. समाधि – यह ध्यान की अंतिम अवस्था है जिसमें केवल आत्मा शेष रहती है और संपूर्ण व्यक्तित्व विलीन हो जाता है |
मीमांसा दर्शन या पूर्व मीमांसा : मीमांसा वैदिक साहित्य एवं ब्राह्मण ग्रंथों को ठीक से समझने की एक प्रणाली है | यह मनुष्य के कर्तव्यों के निर्धारण और जीव -प्राणी तथा जगत के बारे में सच्चे ज्ञान की प्राप्ति में वेदों को ही एकमात्र साधन मानता है | इस दर्शन के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति के दो मार्ग बताए गए हैं :- कर्म मार्ग तथा ज्ञान मार्ग ( अन्य दर्शनों में मुक्ति का एक तीसरा मार्ग भी बताया गया है जो कि भक्ति मार्ग है) | इसके प्रवर्तक जैमिनी थे |
वेदांत दर्शन या उत्तर मीमांसा : इस दर्शन के प्रवर्तक बादरायण हुए और इस दर्शन का मूल ग्रंथ उनके द्वारा रचित ब्रह्म -सूत्र है | वेदांत दर्शन का आधार उपनिषद है | इसे अद्वैतवाद भी कहा जाता है | इसके अनुसार सृष्टि के निर्माण, पालन- पोषण और विनाश के लिए ईश्वर के तीन अलग-अलग नाम और रूप हैं जो कि क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) हैं | यह दर्शन मानता है कि संपूर्ण जगत एक माया है, अथवा मिथ्या है | केवल ब्रह्म ही परम सत्य है | इसीलिए इसे “अद्वैतवाद” कहते हैं | प्राचीन भारत के महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य का वेदांत शास्त्रीय (classical) वेदांत है |
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