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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 03 January, 2023 UPSC CNA in Hindi

03 जनवरी 2023 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

  1. असम द्वारा नया परिसीमन अभ्यास क्या है?

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

  1. सर्वोच्च न्यायालय ने बहुमत के फैसले से 2016 की विमुद्रीकरण प्रक्रिया को सही ठहराया:

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था:

  1. हिंदू मंदिरों पर राज्य के नियंत्रण के विरुद्ध मामला:

राजव्यवस्था एवं शासन:

  1. भारत के बंदीगृह फुटप्रिंट को कम करने की दिशा में प्रयास:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी कोटा:
  2. वन अधिकार अधिनियम पर नए नियमों के प्रभाव पर ST आयोग ने अपना आधार रखा:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

सर्वोच्च न्यायालय ने बहुमत के फैसले से 2016 की विमुद्रीकरण प्रक्रिया को सही ठहराया:

अर्थव्यवस्था:

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास और रोजगार से संबंधित विषय।

प्रारंभिक परीक्षा: भारत में विमुद्रीकरण/नोटबंदी से संबंधित जानकारी।

मुख्य परीक्षा: ₹1,000 और ₹500 के नोटों के विमुद्रीकरण का आलोचनात्मक मूल्यांकन।

संदर्भ:

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 8 नवंबर 2016 को जारी राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से सरकार द्वारा ₹500 और ₹1000 के नोटों के विमुद्रीकरण (demonetise ₹500 and ₹1000 banknotes) की प्रक्रिया की वैधता को बरकरार रखा/सही ठहराया है।

₹500 और ₹1000 के नोटों का विमुद्रीकरण:

  • विमुद्रीकरण की प्रक्रिया केंद्रीय बैंकों या सरकारों के उस मुद्रा नोट की स्थिति को वापस लेने के निर्णय को संदर्भित करती है जिसका उपयोग कानूनी निविदा के रूप में किया जा रहा है।
  • 8 नवंबर 2016 को, भारत के प्रधान मंत्री ने देश में ₹1,000 और ₹500 मूल्यवर्ग के नोटों को विमुद्रीकृत करने की सरकार की योजना की घोषणा की थी।
  • नोटबंदी की घोषणा सरकार द्वारा काले धन को खत्म करने, मनी-लॉन्ड्रिंग और आतंकी-वित्त पोषण से निपटने, भारत में कर चोरी की समस्याओं को दूर करने और भारत में फलती-फूलती भूमिगत अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाने के लिए की गई थी।

₹500 और ₹1000 के नोटों का विमुद्रीकरण से संबंधित अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Demonetisation of ₹500 and ₹1000 banknotes

नोटबंदी की प्रक्रिया पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:

  • सर्वोच्च न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में सरकार की विमुद्रीकरण प्रक्रिया को बरकरार रखा है और यह माना है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण नहीं थी।
  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उन 58 याचिकाओं के एक समूह पर आया, जिन्होंने 2016 के विमुद्रीकरण को चुनौती दी थी।
  • बहुमत के फैसले ने याचिकाकर्ताओं के दो मुख्य तर्कों को खारिज कर दिया कि:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (RBI अधिनियम) की धारा 26(2) में वाक्यांश “कोई भी” की व्याख्या किसी भी मूल्यवर्ग की सभी श्रृंखलाओं के करेंसी नोटों को विमुद्रीकृत करने के लिए सरकार को सशक्त बनाने के लिए “सभी” के रूप में नहीं की जा सकती है।
    • विमुद्रीकरण का प्रस्ताव आरबीआई केंद्रीय बोर्ड द्वारा पुरःस्थापित किया जाना चाहिए न कि केंद्र सरकार द्वारा।
  • याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया था कि विमुद्रीकरण की घोषणा करते समय नियोजित निर्णय लेने की प्रक्रिया “जल्दीबाजी” और “गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण” थी।

चित्र स्रोत: The Hindu

बहुमत की राय:

  • बहुमत के इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यन और बी.आर. गवई शामिल थे।
  • उन्होंने देखा कि आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत वैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन केवल इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड को विमुद्रीकरण की सिफारिश पर विचार करने की सलाह देने की पहल केंद्र सरकार ने की थी।
  • उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि प्रावधान के तहत सरकार को बैंक नोटों की “सभी श्रृंखलाओं” का विमुद्रीकरण करने का अधिकार था।
  • इसके अतिरिक्त, बहुमत की राय में कहा गया है कि नकली मुद्रा, काला धन, आतंकवाद के वित्तपोषण और मादक पदार्थों की तस्करी के संबंध में सर्वोत्तम निर्णयकर्ता केंद्र सरकार है क्योंकि केंद्र के पास सभी आवश्यक इनपुट होते है और इसलिए ऐसे मुद्दों को हल करने के लिए आवश्यक उपायों को आरबीआई के परामर्श से सरकार के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।
  • न्यायमूर्ति गवई के अनुसार विमुद्रीकरण की प्रक्रिया “जल्दबाज़ी” में लिया गया फैसला नहीं था क्योंकि आरबीआई और सरकार विमुद्रीकरण अभ्यास की घोषणा से पहले लगभग छह महीने तक एक दूसरे के साथ इस विषय पर परामर्श कर रहे थे।
  • न्यायमूर्ति ने जल्दबाजी में लिया गया फैसला बताने वाली दलीलों को भी खारिज कर दिया और कहा की इस तरह के उपायों को उच्चतम स्तर की गोपनीयता और तेजी के साथ किया जाना चाहिए, क्योंकि अगर ऐसे उपाय लीक हो गए तो इसके परिणाम विनाशकारी होते हैं।
  • बहुमत की राय में विमुद्रीकरण की कवायद और इसके उद्देश्यों जैसे नकली मुद्रा, काले धन और आतंक के वित्तपोषण का मुकाबला करने के बीच एक “उचित संबंध” भी पाया गया।
  • इसके अलावा बहुमत ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि “नोटबंदी ने नागरिकों के संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन किया”, क्योंकि इन अधिकारों पर युक्ति युक्त (उचित प्रतिबंध) प्रतिबंध लगाए गए हैं।

अल्पमत राय:

  • न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत जारी सरकार की अधिसूचना को गैरकानूनी बताते हुए बहुमत से असहमति जताई।
  • न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि सरकार धारा 26 (2) के तहत एक अधिसूचना तभी जारी कर सकती थी जब आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड द्वारा विमुद्रीकरण के प्रस्ताव को पुरःस्थापित किया गया होता।
    • लेकिन 2016 में सरकार ने आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के बजाय स्वयं नोटबंदी की पहल की थी।
  • न्यायमूर्ति नागरत्ना के अनुसार, जब सरकार विमुद्रीकरण की पहल करती है, तो उसे केंद्रीय बोर्ड की राय लेनी चाहिए और बोर्ड द्वारा दी गई राय “स्वतंत्र और स्पष्ट” होनी चाहिए।
    • हालाँकि, भले ही बोर्ड की राय नकारात्मक हो, फिर भी सरकार प्रक्रिया आगे बढ़ा सकती है, लेकिन ऐसा केवल एक अध्यादेश की घोषणा के माध्यम से या एक संसदीय कानून/विधान पारित करके ही किया जाना चाहिए।
  • न्यायमूर्ति नागरत्ना ने आगे कहा कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड द्वारा ₹500 और ₹1000 बैंक नोटों (जिनकी संख्या उस समय संचलन में रही कुल मुद्रा की 86% से अधिक थी) के विमुद्रीकरण के सरकार के उपाय के लिए “बुद्धि का सार्थक उपयोग” नहीं किया गया था, जिससे एक महत्वपूर्ण वित्तीय संकट और सामाजिक-आर्थिक संकट पैदा हो गया।
  • न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड को विमुद्रीकरण के संबंध में सरकार के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए केवल लगभग 24 घंटे का समय दिया गया था।
  • न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला कि हालाँकि विमुद्रीकरण के उद्देश्य “नेक और सुविचारित” थे, लेकिन इसके लिए अपनाई गई प्रक्रिया सैद्धांतिक तौर पर खराब थी लेकिन अब स्थिति को यथास्थिति (पहले की स्थिति) में बहाल करने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है, परन्तु एक निर्णय भविष्यलक्षी प्रभाव के रूप से कार्य कर सकता है।

सारांश:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने 4:1 के बहुमत के फैसले में सरकार के 2016 के ₹1,000 और ₹500 के मुद्रा नोटों को विमुद्रीकृत करने के फैसले को बरकरार रखते हुए बहुमत के फैसले में कहा कि वर्ष 2016 की अधिसूचना आनुपातिकता के परीक्षण को संतुष्ट करती है और इसे अत्यधिक प्रत्यायोजन के आधार पर असंवैधानिक के रूप में रद्द नहीं किया जा सकता।

असम द्वारा नया परिसीमन अभ्यास क्या है?

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

विषय: विभिन्न निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व

प्रारंभिक परीक्षा: परिसीमन आयोग और अभ्यास से सम्बंधित जानकारी।

मुख्य परीक्षा: पूर्वोत्तर क्षेत्र में परिसीमन से सम्बंधित मुद्दे।

संदर्भ:

  • भारत के चुनाव आयोग (Election Commission of India (ECI)) ने असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन अभ्यास की शुरुआत को अधिसूचित किया है।

परिसीमन अभ्यास:

  • परिसीमन हालिया जनगणना के आधार पर लोकसभा और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने की प्रक्रिया है।
  • परिसीमन की कवायद यह सुनिश्चित करने के लिए की जाती है कि प्रत्येक सीट पर मतदाताओं की लगभग समान संख्या हो और इसे आमतौर पर जनगणना के बाद हर कुछ वर्षों में किया जाता है।
  • परिसीमन अभ्यास परिसीमन आयोग अधिनियम के प्रावधानों के तहत गठित एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है।

परिसीमन आयोग और अभ्यास से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Delimitation Commission and exercise

इस मुद्दे से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए 02 जनवरी 2023 का यूपीएससी परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण देखें।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

हिंदू मंदिरों पर राज्य के नियंत्रण के विरुद्ध मामला:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था:

विषय: भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण प्रावधान- धर्मनिरपेक्षता।

प्रारंभिक परीक्षा: धर्मनिरपेक्षता, अनुच्छेद 25

मुख्य परीक्षा: हिंदू मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण और संबंधित चिंताएँ।

विवरण:

  • मंदिर प्रवेश आंदोलन से अवगत संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर अनुच्छेद 25(2)(b) के तहत एक अलग शक्ति का प्रावधान किया।
    • अनुच्छेद 25(2)(b) सामाजिक कल्याण और सुधार करने या हिंदू धार्मिक संस्थानों को हिंदुओं के सभी वर्गों के लिए खोलने का प्रावधान करने हेतु राज्य को कानून बनाने का अधिकार देता है।
  • इस प्रकार, धार्मिक अभ्यास के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करने का मुद्दा पूजा तक पहुंच प्रदान करने से भिन्न है। यही कारण है कि मंदिर नियंत्रण और मंदिर प्रवेश के लिए अलग-अलग कानून हैं। यह कानून सह-अस्तित्व में हैं और एक दूसरे से स्वतंत्र हैं।

अधिक जानकारी के लिए यह भी पढ़ें: Right to Freedom of Religion [Articles 25 – 28]: Indian Polity Notes for UPSC

पृष्ठभूमि विवरण:

  • शिरूर मठ निर्णय (1954)
    • सर्वोच्च न्यायालय (सात न्यायाधीशों की पीठ) के फैसले में न्यायमूर्ति बी.के. मुखर्जी ने मद्रास हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त (HR&CE) अधिनियम, 1951 को काफी हद तक समाप्त कर दिया, जिसमें विवादित प्रावधानों को चरित्र में “अत्यंत कठोर” करार दिया गया।
    • मद्रास के महाधिवक्ता ने इस अधिनियम के प्रावधानों की वैधता पर भी सवाल उठाया।
  • शिरूर मठ के फैसले के परिणामस्वरूप, तत्कालीन मद्रास राज्य की विधायिका ने 1954 में एक संशोधन अधिनियम अधिनियमित किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बताए गए दोषों को दूर किया गया।
  • सुधीन्द्र तीर्थ स्वामी बनाम कमिश्नर मामला
    • संशोधित अधिनियम को 1955 में मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष फिर से चुनौती दी गई थी। इसे भी रद्द कर दिया गया क्योंकि यह मूल अधिनियम के समान दोषों से ग्रस्त था।
  • श्री जगन्नाथ बनाम उड़ीसा राज्य (1954) और सदाशिव प्रकाश ब्रह्मचारी बनाम उड़ीसा राज्य (1956)
    • उड़ीसा हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम, 1939 को शीर्ष अदालत द्वारा दो बार रद्द किया गया था – पहले श्री जगन्नाथ बनाम उड़ीसा राज्य (1954) और फिर सदाशिव प्रकाश ब्रह्मचारी बनाम उड़ीसा राज्य (1956) में।

मंदिर नियंत्रण कानून का प्रभाव:

  • यह तर्क दिया जाता है कि हिंदू धार्मिक अनुदानों के प्रशासन की आड़ में, राज्य धार्मिक मामलों का अतिक्रमण कर रहा है और मंदिर पूजा भी नहीं कर सकते क्योंकि राज्य ने उनकी आय कम कर दी है। बड़े पैमाने पर धन की हेराफेरी हुई है जिसका पता मंदिर के कार्यकर्ताओं ने लगाया है और यह अब सार्वजनिक रिकॉर्ड का मामला है।
  • 2012-13 के HR&CE पॉलिसी नोट के अनुसार, हिंदू मंदिरों के पास लगभग 4,78,545 एकड़ कृषि भूमि; लगभग 22,599 इमारतें; और लगभग 33,627 साइटें हैं जो 29 करोड़ वर्ग फुट क्षेत्र को कवर करती हैं, जिनका अनुमानित मूल्य लगभग ₹10 लाख करोड़ होगा।
  • हालांकि, तमिलनाडु HR&CE विभाग द्वारा प्राप्त आय केवल ₹120 करोड़ प्रति वर्ष है। यह तुलनात्मक रूप से मंदिरों से ‘प्रशासनिक शुल्क’ के रूप में एकत्र की गई राशि से कम है।
  • इसके अलावा, यह पाया गया है कि HR&CE विभाग ‘कॉमन गुड फंड’ के रूप में सैकड़ों करोड़ रुपये एकत्र करता है, जिस पर न्यायपालिका ने आपत्ति जताई है।
  • विभाग ने स्वयं स्वीकार किया है कि 1986 के बाद से लगभग 47,000 एकड़ हिंदू मंदिर भूमि हड़प ली गई है।
  • मद्रास उच्च न्यायालय ने 2021 के एक फैसले में विरासत संरक्षण, मंदिर की संपत्तियों से होने वाली आय की रक्षा और उसकी वसूली करने, लेखांकन, विग्रहों की सुरक्षा, ट्रस्टियों की नियुक्ति और त्वरित विवाद समाधान के लिए न्यायाधिकरणों के गठन जैसे पहलुओं को शामिल करते हुए 75 निर्देश दिए।
  • हालांकि, आरोप यह है कि एक भी निर्देश का पालन नहीं किया गया। इसके अलावा, राज्य मंदिर के कार्यकर्ताओं के खिलाफ मनमानी आपराधिक कार्रवाई शुरू करके उन्हें चुप करा रहा है।
  • बिना किसी नियुक्ति आदेश के 47 मंदिरों में कार्यरत कार्यकारी अधिकारियों को हटाने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए 12 मई, 2022 को मद्रास हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का आदेश दिया। जिस पर विभाग अब तक एक भी रिकॉर्ड पेश नहीं कर पाया है।
  • इसके अतिरिक्त, HR&CE के तहत मंदिरों का कोई बाह्य लेखांकन नहीं किया जा रहा है, और 1986 से लगभग 1.5 लाख लेखांकन आपत्तियां लंबित हैं।

निष्कर्ष:

  • विशेष रूप से 42वें संशोधन (42nd Amendment) के बाद यह एक सुस्थापित तथ्य है, कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य धर्म के साथ घुलमिल नहीं सकता है।
  • मंदिर प्रबंधन का उद्देश्य समुदाय को शामिल करना है।
  • यह सुझाव दिया जाता है कि ‘धर्मनिरपेक्ष प्रबंधन’ के नाम पर राज्य की बुराइयों को जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए।

संबंधित लिंक:

Secularism in India – Definition, Constitutional Significance, Difference Between Indian & Western Secularism [UPSC GS-II]

सारांश:

  • राज्य द्वारा मंदिर प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य जनता की भागीदारी तथा जनता और मंदिर प्रशासन के बीच आम सहमति बनाना है। हालांकि, राज्य के कुछ अधिकारियों द्वारा मंदिर प्रशासन और उसके धार्मिक कार्यों पर हावी होने के कारण यह कुछ हद तक छिपा हुआ है। इस प्रकार यह सुझाव दिया जाता है कि धर्मनिरपेक्षता की सच्ची भावना को बनाए रखने के लिए ऐसी प्रथाओं को जल्द से जल्द ठीक किया जाना चाहिए।

भारत के बंदीगृह फुटप्रिंट को कम करने की दिशा में प्रयास:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था एवं शासन:

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

मुख्य परीक्षा: भारत में बंदीगृह से जुड़ी चिंताएं।

संदर्भ: दिल्ली के नरेला में एक जेल परिसर स्थापित करने का हालिया प्रस्ताव।

विवरण:

  • संविधान दिवस (Constitution Day) समारोह (26 नवंबर 2022) के दौरान, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत भर की जेलों की यात्राओं के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने उन कैदियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला, जिन्हें छोटे-मोटे अपराधों के लिए लंबे समय तक जेल में रखा गया था और राष्ट्रपति ने उन कैदियों के गरीब परिवारों के संघर्षों पर भी प्रकाश डाला।
  • उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि इस मुद्दे को हल करने के लिए विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने अतिरिक्त कैदियों से भरी जेल की समस्या को हल करने के लिए जेलों के निर्माण पर भी सवाल उठाया।
  • हालाँकि, इसके विपरीत, दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को जिला जेल परिसर बनाने के लिए दिल्ली के जेल विभाग को 1.6 लाख वर्ग मीटर भूमि आवंटित करने का निर्देश दिया गया है।

यह भी पढ़ें: Reforms in Criminal Justice System UPSC – Malimath Committee, Madhav Menon Committee Reports, SC Directives in Prakash Singh Case, and Recent Developments

बंदी गृह निर्माण और संबंधित चिंताएं:

  • दिल्ली की जेल का निर्माण दो चरणों में किया जाएगा- पहला उच्च जोखिम वाले अपराधियों के लिए और दूसरा विचाराधीन कैदियों के लिए।
  • चरण 1 (अप्रैल 2024 तक पूरा होने की उम्मीद) में 250 उच्च जोखिम वाले कैदियों की क्षमता वाली उच्च सुरक्षा जेल शामिल होगी। कैदियों को एक-दूसरे को देखने और आपस में बातचीत करने से रोकने के लिए डिजाइन में कड़े सुरक्षा उपायों जैसे कोठरियों के बीच ऊंची दीवारें, बेहतर निगरानी की सुविधा के लिए कोठरियों के बीच कार्यालय की जगह आदि को शामिल किया जाएगा।
  • फ्रांसीसी दार्शनिक, मिशेल फौकॉल्ट के अनुसार, जेल निर्माण का उपयोग अक्सर कैदियों पर निगरानी रखने, उन्हें यातना देने और उनके आत्मबल को तोड़ने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जाता है। दिल्ली जेल के नए प्रस्तावित डिजाइन के साथ, प्रशासन एकांत कारावास बनाने का प्रयास कर रहा है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इससे कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
  • 2017 में येल स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में स्थापत्य और सामूहिक कारावास विभाग के छात्रों को उनकी अंतिम परियोजना के रूप में बेहद हिंसक अपराधियों के लिए जेल सुविधा तैयार करने के लिए कहा गया था। इस मॉडल में खुले और सांप्रदायिक स्थान, ताजी हवा और परिवारजनों के दौरे और चिकित्सा के लिए स्थान थे।

भारतीय बंदीगृहों की स्थिति:

  • भारत में जेलों का प्रशासन, कारागार अधिनियम, 1894 द्वारा होता है, जो एक औपनिवेशिक कानून है। यह तर्क दिया जाता है कि यह कैदियों को दोयम दर्जे का नागरिक मानता है, और सजा को पुनर्वास के बजाय प्रतिशोध के रूप में कानूनी आधार प्रदान करता है।
  • यह भी सुझाव दिया गया है कि कानून अत्यधिक जातिवादी हैं और निर्माण के बाद से काफी हद तक अपरिवर्तित रहे हैं। उदाहरण के लिए, कुछ जेल मैनुअल अभी भी जाति व्यवस्था द्वारा निर्धारित शुद्धता पर जोर देते हैं, और जेल में काम कैदी की जाति पहचान के आधार पर सौंपा जाता है।
  • इसके अलावा, भारतीय जेलों में दलितों और आदिवासियों की संख्या अधिक है। नेशनल दलित मूवमेंट फॉर जस्टिस और नेशनल सेंटर फॉर दलित ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट ‘जाति की छाया में आपराधिक न्याय’ इसका कारण सामाजिक, प्रणालीगत, कानूनी और राजनीतिक बाधा को मानती है।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि आदतन अपराधी अधिनियम और भिक्षावृत्ति कानून जैसे कानून रिपोर्ट किए गए अपराधों के लिए उन्हें लक्षित करते हैं।
  • भारत में भीड़भाड़ वाली जेलों के पीछे मुख्य कारण यह है कि सरकार ने वास्तव में अपराध को रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किया है। सरकार द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण निवारक के बजाय प्रकृति में प्रतिक्रियाशील है।

जेल सुधारों पर अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें:23 Oct 2018: UPSC Exam Comprehensive News Analysis

भावी कदम:

  • भारत की राष्ट्रपति ने अपने संविधान दिवस के भाषण के दौरान उल्लेख किया है कि प्रगति जेलों की स्थापना के विरोधात्मक है। इस प्रकार जेलों में भीड़भाड़ को गैर-कारागार तरीकों से संबोधित किया जाना चाहिए। अस्वस्थ/वृद्ध बंदियों को रिहा करना, जुर्माने को कम करना, सस्ती कीमत पर जमानत की अनुमति देना, सुनवाई में तेजी लाना आदि कुछ इसके उपाय हो सकते हैं।
  • सार्वजनिक धन को सार्वजनिक वस्तुओं जैसे आवास, शिक्षा और रोजगार के लिए उपयोग किया जाना चाहिए ताकि लोग अपराध करने के लिए मजबूर न हों।
  • न्यायमूर्ति यू.यू. ललित ने मौत की सजा को कम करते हुए अपने एक हालिया फैसले (सर्वोच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की बेंच) में ऑस्कर वाइल्ड को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘हर संत का एक अतीत होता है, और हर पापी का एक भविष्य होता है’ को आत्मसात किया जाना चाहिए।

संबंधित लिंक:

Reforms in Criminal Justice System UPSC – Malimath Committee, Madhav Menon Committee Reports, SC Directives in Prakash Singh Case, and Recent Developments

सारांश:

  • भारत की राष्ट्रपति के भाषण ने गरीब कैदियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला है। यह सुझाव दिया जाता है कि भीड़ भाड़ वाली जेलों के मुद्दे को हल करने के लिए नई इमारतों के निर्माण के बजाय भारत में सदियों पुराने जेल कानूनों में सुधार के प्रयास किए जाने चाहिए।

प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी कोटा:
  • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण के बिना शहरी स्थानीय निकाय के चुनाव कराने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर अपील को सर्वोच्च न्यायालय ने सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है।
  • इस मामले ने महत्व प्राप्त कर लिया है क्योंकि इसमें सवाल उठाया गया है कि क्या शहरी स्व-शासी निकायों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व के कोटा को सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़े वर्गों के लिए उच्च शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के बराबर किया जा सकता है।
  • उत्तर प्रदेश सरकार का मानना है कि राज्य लोक सेवा (एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1994 में सूचीबद्ध 79 पिछड़ा वर्ग समुदायों को स्थानीय निकायों के अध्यक्षों के पदों के संबंध में आरक्षण देने में कोई दोष नहीं है।
    • हालांकि वर्ष 1994 का अधिनियम उच्च शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण प्रदान करने के लिए इन पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए बनाया गया था न कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व के उद्देश्य से।
  • इसके अलावा वर्ष 2010 के कृष्णमूर्ति बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा गया था कि स्थानीय निकायों के संबंध में आरक्षण की प्रकृति और उद्देश्य उच्च शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार के संबंध में उससे अलग हैं।
    • अदालत ने यह भी कहा था कि राजनीतिक रूप से अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वाले पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन एकमात्र मानदंड नहीं हो सकता।

स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण के सवाल के संबंध में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: The question of OBC reservation in local bodies

  1. अनुसूचित जनजाति आयोग ने वन अधिकार अधिनियम पर नए नियमों के प्रभाव पर अपना पक्ष रखा:
  • वन (संरक्षण) नियम, 2022 को लेकर सरकार और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes (NCST) ) के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है।
  • NCST ने पर्यावरण मंत्रालय को लिखे अपने पत्र में वन (संरक्षण) नियम, 2022 (Forest (Conservation) Rules, 2022) के संबंध में विभिन्न चिंताओं पर प्रकाश डाला था, जिसमें उन प्रावधानों के बारे में चिंताएं शामिल थीं, जो अन्य उद्देश्यों के लिए वन भूमि के डायवर्जन के लिए अनिवार्य सहमति के खंड को खत्म करना चाहते हैं।
  • आयोग ने इस ओर इशारा किया था की चरण 1 की मंजूरी से पहले या चरण 2 की मंजूरी के बाद भी ग्राम सभाओं की सहमति लेने के खंड को हटाने से परियोजना प्रस्तावकों को केवल आंशिक मंजूरी प्राप्त करने के बावजूद राज्य सरकारों को “जल्द से जल्द डायवर्जन” के लिए दबाव डालने में मदद मिलेगी।
  • पैनल के अनुसार, यह वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) ( Forest Rights Act, 2006) के तहत अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
  • हालांकि, पर्यावरण मंत्री ने कहा था कि नियम वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के आधार पर तैयार किए गए थे और NCST की इन नियमों के FRA के उल्लंघन की चिंता कानूनी रूप से तर्कसंगत नहीं है।
  • NCST के अध्यक्ष ने कहा है कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इन चिंताओं को खारिज करने के बाद भी नए नियमों पर पैनल की स्थिति वही रहेगी।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (स्तर – कठिन)

  1. कनिक्करण केरल और तमिलनाडु में पाया जाने वाला एक आदिवासी समुदाय है।
  2. वे केरल और तमिलनाडु में नीलगिरी पर्वतमाला के जंगलों में रहते हैं।
  3. कनिक्कर नृथम समूह नृत्य का एक रूप है जिसे ग्रामीण अर्पण के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।

विकल्प:

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: कनिक्करण/कनिककरण एक आदिवासी समुदाय है जो केरल और तमिलनाडु के दक्षिणी भागों में निवास करता है।
  • कथन 2 गलत है: कनिक्करण आदिवासी समुदाय केरल में तिरुवनंतपुरम और कोल्लम के पास जंगलों में और तमिलनाडु में कन्याकुमारी और तिरुनेलवेली जिलों में रहता है।
  • कथन 3 सही है: कनिक्कर नृथम एक समूह नृत्य है जो एक आनुष्ठानिक अर्पण के रूप में किया जाता है।
    • नर्तकियों के कदम हाथों के हिलने और ढोल की थाप के साथ पूरी तरह से तालमेल बिठाते हैं।

प्रश्न 2. वाइब्रेंट विलेजेज़ प्रोग्राम (Vibrant Villages Programme) का प्राथमिक उद्देश्य है ? (स्तर – मध्यम)

(a) ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित करके आधुनिक, समृद्ध गांवों का निर्माण करना।

(b) सीमावर्ती गांवों में विकास और संचार को बढ़ावा देना।

(c) कृषि में बाधाओं को दूर करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना।

(d) नवाचार की भावना पैदा करने के लिए वैज्ञानिक जागरूकता फैलाना।

उत्तर: b

व्याख्या:

  • वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम (Vibrant Villages Programme (VVP)) में उत्तरी सीमा पर विरल आबादी, सीमित कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे वाले सीमावर्ती गांवों को कवरेज प्रदान करने की परिकल्पना की गई है, जो अक्सर विकास के लाभ से वंचित रह जाते हैं।
  • इस कार्यक्रम की घोषणा केंद्रीय बजट 2022 के माध्यम से की गई थी।

प्रश्न 3. सरकार ने निम्नलिखित प्रावधानों के तहत ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने का प्रस्ताव दिया है – (स्तर – मध्यम)

(a) गेम्ब्लिंग की रोकथाम अधिनियम।

(b) सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021।

(c) भारतीय दंड संहिता।

(d) लॉटरी (विनियमन) अधिनियम।

उत्तर: b

व्याख्या:

  • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में मसौदा संशोधन जारी किया है।
  • इस मसौदे को यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया गया है कि ऑनलाइन गेम भारतीय कानूनों के अनुरूप पेश किए जाएं और ऐसे गेम के उपयोगकर्ताओं को संभावित नुकसान से बचाया जाए।

प्रश्न 4. गुणवत्ता अनुसंधान के लिए हाल ही में शुरू की गई ‘स्मार्ट’ पहल किस क्षेत्र पर केंद्रित है? (स्तर – मध्यम)

(a) इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स

(b) टीका विकास

(c) आयुर्वेद

(d) शहरी विकास

उत्तर: c

व्याख्या:

  • नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन (NCISM) और सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज (CCRAS) ने ‘स्मार्ट’ (स्कोप फॉर मेनस्ट्रीमिंग आयुर्वेद रिसर्च इन टीचिंग प्रोफेशनल्स) कार्यक्रम शुरू किया है।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य आयुर्वेद कॉलेजों और अस्पतालों के माध्यम से प्राथमिकता वाले स्वास्थ्य अनुसंधान क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देना है।
  • NCISM और CCRAS क्रमशः चिकित्सा शिक्षा को विनियमित करने और वैज्ञानिक अनुसंधान करने के लिए आयुष मंत्रालय के तहत दो प्रमुख संस्थान हैं।

प्रश्न 5. एशियाई आधारिक-संरचना निवेश बैंक [एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक (AIIB)] के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः PYQP (2019) (स्तर – मध्यम)

  1. AIIB के 80 से अधिक सदस्य राष्ट्र हैं।
  2. AIIB में भारत सबसे बड़ा शेयरधारक है।
  3. AIIB में एशिया से बाहर का कोई सदस्य नहीं है।

ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: a

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: AIIB में लगभग 105 सदस्य देश हैं।
  • कथन 2 गलत है: चीन AIIB का सबसे बड़ा शेयरधारक है जिसके बाद भारत और रूस का स्थान आता हैं।
  • कथन 3 गलत है: AIIB में क्षेत्रीय (एशियाई) और गैर-क्षेत्रीय दोनों देश सदस्य हैं।
    • AIIB एक बहुपक्षीय विकास बैंक है जो विकासशील एशिया पर केंद्रित है लेकिन इसके सदस्य पूरी दुनिया से हैं।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. मंदिरों के राज्य प्रबंधन को अक्सर उपासकों और पुजारियों के लिए मंदिरों तक पहुंच सुनिश्चित करने के तरीके के रूप में उचित ठहराया जाता है। समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) [जीएस-2, राजव्यवस्था]

प्रश्न 2. भीड़भाड़ वाली जेल की स्थिति राज्यों के लिए कई कानूनी, वित्तीय और नैतिक समस्याएं पैदा करती हैं। वैकल्पिक दंड का प्रावधान करना और कानून सुधार को प्रोत्साहित करना समय की मांग है। टिप्पणी कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) [जीएस-2, राजव्यवस्था एवं शासन]