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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 28 April, 2023 UPSC CNA in Hindi

28 अप्रैल 2023 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आपदा प्रबंधन:

  1. समुद्र स्तर के बढ़ने का खतरा:

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

अर्थव्यवस्था:

  1. भारतीय रेलवे का प्रदर्शन

शासन:

  1. पाठ्य पुस्तकों से डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत का हटाया जाना

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

  1. परमाणु ऊर्जा का भविष्य

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. आईएनएस तरकश, आईएनएस सुमेधा और आईएनएस तेग:

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. दिमासा विद्रोही समूह ने केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए:
  2. सांसद के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की शिकायत की जांच:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आपदा प्रबंधन:

समुद्र स्तर के बढ़ने का खतरा

विषय: आपदा और आपदा प्रबंधन।

प्रारंभिक परीक्षा: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और वैश्विक जलवायु स्थिति, 2022 रिपोर्ट के बारे में।

मुख्य परीक्षा: रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष और समुद्र के बढ़ते स्तर से जुड़े मुद्दे।

प्रसंग:

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने हाल ही में अपनी प्रमुख “वैश्विक जलवायु स्थिति, 2022” रिपोर्ट प्रकाशित की है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक समुद्र स्तर अभूतपूर्व और खतरनाक दर से बढ़ रहा है।
  • वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि की बढ़ती दर के अलावा, रिपोर्ट में हिमनदों की हानि, वैश्विक तापमान में निरंतर वृद्धि, ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता के रिकॉर्ड-तोड़ स्तर, पूर्वी अफ्रीका में सूखे जैसी स्थिति, पाकिस्तान में अभूतपूर्व वर्षा और 2022 में यूरोप और चीन में चरम ग्रीष्म लहर जैसे अन्य मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, सूखे, बाढ़ और ग्रीष्म लहर जैसी चरम मौसमी स्थिति ने प्रत्येक महाद्वीप पर जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और इसके महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव भी परिलक्षित हुए हैं।
  • इसके अलावा, रिपोर्ट में बताया गया है कि अंटार्कटिक सागर की बर्फ इतिहास में अपनी निम्नतम सीमा तक घट गई है और यूरोपीय क्षेत्र के कुछ हिमनदों के पिघलने की दर भी काफी अधिक हो गई है।
  • रिपोर्ट में समुद्र के स्तर में वृद्धि के कई जटिल परिणामों के बारे में बात की गई है, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों और समुद्र पर निर्भर समुदायों पर इसके प्रतिकूल प्रभावों के बारे में।

वैश्विक जलवायु स्थिति, 2022 रिपोर्ट के बारे में अधिक जानकारी: State of the Global Climate 2022 report

वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि का विस्तार:

  • 1990 के दशक के बाद से शोधकर्ता और पर्यावरणविद् उपग्रह अल्टीमीटर की मदद से वैश्विक समुद्र-स्तर की वृद्धि का अवलोकन कर रहे हैं और माप रहे हैं।
    • उपग्रह अल्टीमीटर रडार पल्स को समुद्र की सतह की ओर प्रेषित करते हैं और पल्स के परावर्तित होकर वापस आने में लगने वाले समय और साथ ही उनकी तीव्रता में परिवर्तन को भी मापते हैं।
    • अगर समुद्र का स्तर अधिक है, तो वापस आने वाला सिग्नल तीव्र और प्रबल होगा।
  • शोधकर्ता पृथ्वी पर विभिन्न बिंदुओं से इस तरह के डेटा एकत्र करके वैश्विक औसत समुद्र स्तर में परिवर्तन का निर्धारण करने में सक्षम हैं और वैज्ञानिक इससे समुद्र के स्तर में परिवर्तन की दर भी निर्धारित करते हैं।
  • रिपोर्ट बताती है कि “पहले दशक और आखिरी दशक के उपग्रह रिकॉर्ड के अनुसार वैश्विक औसत समुद्र-स्तर की वृद्धि दर दोगुनी हो गई है”।
  • इसके अलावा, रिपोर्ट बताती है कि समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर जो 1993-2002 में 2.27 मिमी/वर्ष थी, 2013-2022 में बढ़कर 4.62 मिमी/वर्ष हो गई है।

समुद्र के स्तर में तीव्र वृद्धि के प्रमुख कारण:

  • WMO की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते वैश्विक समुद्र स्तर के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक हैं:
  • महासागर का गर्म होना: रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र के स्तर में वृद्धि में समुद्र के तापन का 55% योगदान है।
    • कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि ने ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा दिया है और “अतिरिक्त ऊष्मा” का लगभग 90% महासागरों में भंडारित हो गया है। इससे समुद्र का तापमान बढ़ गया है।
    • जैसे-जैसे समुद्र में तापमान बढ़ता है, जल में तापीय प्रसार होता है, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि होती है।
  • हिमनदों और हिम आवरणों से बर्फ की हानि: इसने वैश्विक समुद्र स्तर की वृद्धि में लगभग 36% का योगदान दिया है।
    • रिपोर्ट में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि पृथ्वी का हिममण्डल/क्रायोस्फ़ेयर (हिम आवरण) पतला हो गया है, जिसमें आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्र, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के हिम आवरण, मौसमी हिम आवरण और साथ ही स्थायीतुषार (पर्माफ्रॉस्ट) शामिल हैं।
  • भूमि जल भंडारण में परिवर्तन: भूमि जल के भंडारण में परिवर्तन ने वैश्विक औसत समुद्र स्तर में वृद्धि में 10% से कम का योगदान दिया है।

वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • भूमि और समुद्र का आवरण: समुद्र के स्तर में तीव्र वृद्धि से भूमि के आवरण में भारी बदलाव आएगा।
  • भूमि की कमी: समुद्र के स्तर में वृद्धि का तात्पर्य है कि अधिक भूमि समुद्रों में समाहित हो जाएगी। इससे आने वाले वर्षों में मानव उपयोग के लिए भूमि की भारी कमी होगी और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
  • चक्रवातों के बढ़ते उदाहरण: चक्रवातों की उत्पत्ति खुले समुद्र में होती है और समुद्र के बढ़ते तापमान के साथ वैश्विक औसत समुद्र स्तर में वृद्धि से चक्रवातों की संभावना बढ़ जाएगी।
  • जल संकट: यदि वैश्विक समुद्र स्तर वर्तमान दर से बढ़ता रहा, तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि समुद्र का पानी जमीन में रिस सकता है। इससे भूजल अधिक लवणीय हो सकता है।
    • भूजल, जिसमें आमतौर पर मीठा पानी होता है, के लवणीय हो जाने से जल संकट बढ़ जाएगा और आस-पास के क्षेत्रों में कृषि प्रभावित होगी।
  • तटीय पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन: वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण तटीय पारिस्थितिक तंत्र पूरी तरह से परिवर्तित हो सकता है।
    • समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण सुंदरबन डेल्टा, जो दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव क्षेत्र है, में भूमि का नुकसान हुआ है और कई द्वीप जलमग्न हो गए हैं।
  • समाजों पर प्रभाव: समुद्र के स्तर में वृद्धि तटीय समुदायों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगी तथा भारत और अन्य अफ्रीकी देशों जैसे उष्णकटिबंधीय देशों के लिए बड़ी आर्थिक देयताओं का कारण बनेगी।
    • स्तर में वृद्धि हजारों लोगों के विस्थापन का कारण बनेगी और इनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिरता को खतरे में डालेगी।

यह भी पढ़ें- RSTV – Big Picture: Rising Oceans, Sinking Cities

सारांश:

  • WMO की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक समुद्र स्तर एक अभूतपूर्व दर से बढ़ रहा है और यदि जल्द से जल्द शमन के प्रयास नहीं किए गए, तो बढ़ते समुद्र के स्तर का मौसम के पैटर्न, कृषि, मौजूदा जल संकट और समुदायों के बीच सामाजिक-आर्थिक असमानताओं पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

भारतीय रेलवे का प्रदर्शन

विषय: अवसंरचना-रेलवे

मुख्य परीक्षा: भारत में रेलवे सुधारों की आवश्यकता और महत्व।

संदर्भ:

  • इस लेख में भारतीय रेलवे के प्रदर्शन का विश्लेषण करने के लिए व्यापक मेट्रिक्स/मानक की आवश्यकता पर चर्चा की गई है।

भूमिका:

  • भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक है, जिसकी लंबाई 67,000 किलोमीटर से अधिक है और हर साल 8 बिलियन से अधिक यात्रियों को सेवा प्रदान करता है।
  • यह न केवल परिवहन का एक महत्वपूर्ण साधन है बल्कि भारत के आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  • हाल के दिनों में देश के विभिन्न क्षेत्रों में वंदे भारत ट्रेनों ( Vande Bharat trains) के संचालन के साथ भारतीय रेलवे के सामने आने वाली महत्वपूर्ण चुनौतियों की अनदेखी करना आसान हो सकता है।
  • इसलिए, इसके सभी कार्यों और भूमिकाओं को शामिल करने वाले व्यापक मेट्रिक्स/मानक का उपयोग करके भारतीय रेलवे (Indian Railways) के प्रदर्शन का विश्लेषण करना आवश्यक है।

व्यापक मेट्रिक्स/मानक की आवश्यकता:

  • 2023-24 के बजट में भारतीय रेलवे का वार्षिक योजना परिव्यय 137% बढ़कर 2,60,200 करोड़ रुपये हो गया है। हालांकि, इसके प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए अधिक प्रासंगिक मेट्रिक्स/मानक की आवश्यकता है, क्योंकि क्षमता निर्माण के लिए निवेश को ठोस प्रगति में बदलने की आवश्यकता है।
  • राष्ट्रीय रेल योजना (NRP) 2030 का उद्देश्य माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी को बढ़ाना तथा मालगाड़ियों की औसत गति को बढ़ाना है और माल ढुलाई के लिए टैरिफ दरों को 30% तक कम करना है।
    • 300 किमी से अधिक की दूरी के लिए माल ढुलाई में रेल हिस्सा 2008-09 में 51.5% से घटकर 2018-19 में 32.4% हो गया, और इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि परिवहन की जाने वाली वस्तुओं के विविधीकरण या सड़क परिवहन की तुलना में रेल की हिस्सेदारी में वृद्धि के साथ यातायात उच्च स्तर पर पहुँच रहा है। इसलिए, राष्ट्रीय रेल योजना 2030 में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारतीय रेलवे को एक महत्वपूर्ण अंतराल की भरपाई करने की आवश्यकता है।
  • समयबद्धता भारतीय रेलवे के लिए एक प्रमुख परिचालन सूचकांक है। इसलिए, भारतीय रेलवे को जापानी रेलवे के समान ही समयपालन में अंतरराष्ट्रीय मानकों का लक्ष्य रखना चाहिए, जो अपनी हाई-स्पीड ट्रेनों की समयबद्धता को सेकंड के पैमाने पर मापते हैं।
    • भारतीय रेलवे को बिना किसी समायोजन (adjustment) के निर्धारित समय से पांच मिनट के भीतर पहुंचने का लक्ष्य रखना चाहिए।
    • गंतव्य समयपालन की वर्तमान प्रणाली को सूचना प्रौद्योगिकी और डेटा एनालिटिक्स की मदद से प्रमुख मध्यवर्ती स्टेशनों पर समयबद्धता को दर्शाने वाले एक अधिक व्यापक सूचकांक के साथ प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता है।
  • भारतीय रेलवे को वित्तीय प्रदर्शन, भौतिक प्रदर्शन, सुरक्षा, संगठनात्मक/मानव संसाधन मुद्दों, परियोजना निष्पादन, ग्राहक संबंधों और भारतीय रेलवे प्रणाली की क्षमता पर समर्पित मालभाड़ा गलियारे के प्रभाव के मुद्दों का समाधान करते हुए यात्रियों के अनुभव को बेहतर बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए।
  • सरकार को वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण की तर्ज पर संसद में रेलवे के प्रदर्शन पर एक वार्षिक रिपोर्ट पेश करनी चाहिए।
    • यह रिपोर्ट एक आंतरिक प्रदर्शन लेखापरीक्षा के रूप में कार्य कर सकती है जो रेल परिवहन के क्षेत्र में रुचि रखने वाले नीति निर्माताओं, विद्वानों और शोधकर्ताओं को एक उपयोगी संदर्भ प्रदान करेगी।

सारांश:

  • हाल के दिनों में वंदे भारत ट्रेनों के निरंतर संचालन के कारण भारतीय रेलवे द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख चुनौतियों की अनदेखी हो सकती है। भारतीय रेलवे के प्रदर्शन और क्षमता निर्माण की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए अधिक प्रासंगिक मेट्रिक्स/मानक की आवश्यकता है क्योंकि केवल कुछ निश्चित और अच्छी तरह से प्रचारित सेवाओं के आधार पर भारतीय रेलवे के प्रदर्शन को आंकने की अनुमति देना वैध नहीं है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

पाठ्य पुस्तकों से डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत का हटाया जाना

विषय: शिक्षा से संबंधित सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप

मुख्य परीक्षा: भारतीय शिक्षा पर राजनीति का प्रभाव और संबद्ध चिंताएं

संदर्भ:

  • कक्षा 9 और 10 की विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों से डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत का हटाया जाना।

भूमिका:

  • मई 2022 में, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कोविड-19 महामारी के कारण छात्रों पर “सामग्री भार” (content load) को कम करने के लिए, हाई स्कूल के विज्ञान विषय की पाठ्यपुस्तकों की सामग्री के “युक्तिकरण” (rationalisation) का सुझाव दिया था।
  • उपरोक्त सुझाव के आधार पर, NCERT ने हाल ही में जैविक विकास के अध्ययन के लिए अवधारणाओं और विधियों के लगभग सभी संदर्भों को हटा दिया है, और “आनुवंशिकता और विकास” वाले अध्याय का नाम बदलकर “आनुवंशिकता” कर दिया है।
  • देश भर के 1,800 से अधिक वैज्ञानिकों, शिक्षकों, शिक्षाविशारदों और विज्ञान को लोकप्रिय बनाने वाले लोगों ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के नवीनतम कदम की आलोचना करते हुए एक खुला पत्र लिखा है।
  • इससे पहले इतिहासकारों ने इतिहास की पाठ्यपुस्तकों से मुगल शासन, गुजरात दंगा 2002 जैसी कई महत्वपूर्ण घटनाओं को हटाने पर आपत्ति जताई थी।

विषय पर विवाद:

  • भारतीय पाठ्यपुस्तकों में विज्ञान शिक्षा को लेकर कई विवाद रहे हैं, जिनमें प्रायः राजनेता बहस के केंद्र में रहते हैं। ये विवाद पाठ्यपुस्तकों की सामग्री, विशेष रूप से इतिहास, सामाजिक अध्ययन और विज्ञान के क्षेत्रों में असहमति के कारण उत्पन्न हुए हैं।
  • हाल के वर्षों में सबसे प्रमुख विवादों में से एक NCERT द्वारा 2017 में प्रकाशित विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में आनुवंशिकी पर एक अध्याय को शामिल करना शामिल था। “वंशानुक्रम के आनुवंशिक आधार को समझना” शीर्षक वाले अध्याय की कई राजनेताओं ने आलोचना की, उनका तर्क था कि यह सुजननिकी (eugenics) और कुछ जातियों के प्रति पूर्वाग्रह को बढ़ावा देता है।
  • उन्होंने यह भी दावा किया कि इस अध्याय में प्राचीन भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के योगदान की अनदेखी की गई है।
  • 2018 में, तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री, सत्यपाल सिंह ने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को “वैज्ञानिक रूप से गलत” कहा और कहा कि इसे भारतीय स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम से हटा दिया जाना चाहिए।
  • 2019 में, आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति, नागेश्वर राव गोलपल्ली ने 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस में दावा किया कि डार्विन के सिद्धांत की तुलना में “दशवतार का सिद्धांत” क्रमिक विकास (evolution) की बेहतर व्याख्या करता है।

डार्विन के सिद्धांत की आवश्यकता:

  • डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत विज्ञान में सबसे दृढ़ता से स्थापित सिद्धांतों में से एक है जो दुनिया में मनुष्यों और जीवन के अन्य सभी रूपों की उत्पत्ति की व्याख्या करता है।
    • यह सिद्धांत इस विश्वास से अलग है कि एक ‘बुद्धिमान डिजाइनर’ ने जीवों को बनाया है और उन्हें उनका निश्चित स्थान पर दे दिया है।
  • पाठ्यपुस्तकों से इस अवधारणा को हटाना बच्चों के लिए क्षति है क्योंकि यह उन्हें इस तथ्य के बारे में सीखने के अवसर से वंचित करता है कि परिवर्तन एक अवसर है।
  • ऐतिहासिक और समकालीन दोनों संदर्भों में विज्ञान के बारे में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए स्कूल में छात्रों और शिक्षकों को डार्विन के समय की सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं और विज्ञान की अप्रिय प्रकृति के बारे में सोचना चाहिए।
  • विज्ञान का प्रभावी ढंग से अभ्यास करने के लिए, विचार को जिज्ञासा, रचनात्मकता और कल्पना के साथ संतुलित करना महत्वपूर्ण है। विज्ञान की कक्षाओं में विकास और प्रगति को बढ़ावा देने के लिए समालोचना को अपनाने की संस्कृति को प्रोत्साहित करना चाहिए।

डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत पर प्रभाव:

  • डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत पर प्रभाव जिन्हें अक्सर कक्षाओं में अनदेखा किया जाता है।
  • डार्विन के सिद्धांत को पढ़ाने के लिए हमें हमारे दृष्टिकोण को बदलना चाहिए और हमें लियेल के सिद्धांतों (Lyell’s theories) तथा जीन-बैप्टिस्ट लैमार्क जैसे अन्य पूर्व विचारकों के प्रभाव को अपने दृष्टिकोण में शामिल करना चाहिए जिन्होंने विकास के अपने स्वयं के सिद्धांत प्रतिपादित किए।
  • भूविज्ञानी चार्ल्स लियेल ने अपनी पुस्तक ‘प्रिंसिपल्स ऑफ जियोलॉजी’ में “क्रमिक भूगर्भीय परिवर्तन” की अवधारणा प्रस्तावित की। उन्होंने बताया कि आज तक अवलोकित की गई भूगर्भीय घटनाएं एवं वस्तुएं लंबी अवधि में संचित होने वाले छोटे परिवर्तनों का परिणाम हैं, ठीक वैसे ही जैसे की समय के साथ होने वाले यादृच्छिक उत्परिवर्तन (random mutation) जो कुछ जीवों के लिए लाभकारी होते हैं, जिससे उनका विकास वर्तमान प्रजाति के रूप में होता है।
    • डार्विन ने स्वयं स्वीकार किया था कि लियेल के सिद्धांतों का उनके कार्य पर गहरा प्रभाव है।
  • फ्रांसीसी प्रकृतिविद जीन-बैप्टिस्ट लैमार्क, जिन्होंने विकासवाद का अपना सिद्धांत दिया, ने विकास को एक प्रक्रिया के रूप में वर्णित किया जिसमें समय के साथ परिवर्तनों का संचय शामिल था और इन्होने भी ‘बुद्धिमान डिजाइनर’ की धारणा पर विश्वास नहीं किया।
  • डार्विन अपने समय की सामाजिक मान्यताओं से प्रभावित थे, विशेष रूप से एडम स्मिथ और थॉमस माल्थस के अहस्तक्षेप-अर्थशास्त्र (laissez-faire economics) से।
  • माल्थस के जनसंख्या के सिद्धांत और सीमित संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा ने डार्विन की प्राकृतिक चयन की अवधारणा को प्रभावित किया।
    • डार्विन ने अपनी आत्मकथा में माल्थस के विचारों के प्रभाव को स्वीकार किया है।

डार्विन के सिद्धांत का उपयोग:

  • विकासवाद के सिद्धांत के शिक्षण में एक और गंभीर चूक स्वयं डार्विन और दूसरों के द्वारा उनके सिद्धांत का परिणामी अनुप्रयोग है।
  • हर्बर्ट स्पेंसर के “योग्यतम की उत्तरजीविता” (survival of the fittest) के विचार ने सामाजिक डार्विनवाद और सुजननवाद को जन्म दिया।
  • डार्विन की बाद की पुस्तक, द डिसेंट ऑफ मैन, एंड सिलेक्शन इन रिलेशन टू सेक्स (The Descent of Man, and Selection in Relation to Sex) में सुझाव दिया गया है कि पुरुष अधिक बुद्धिमान होने के लिए विकसित हुए हैं क्योंकि उन्हें शिकार करने और अपनी संतानों की रक्षा करने के लिए अपनी मानसिक क्षमताओं का उपयोग करना होता है।
    • इस पुस्तक में उपयोग और अनुपयोग का लैमार्कियन सिद्धांत का समावेश द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़ में डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत का खंडन करता है।

सारांश:

  • डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत और इसके प्रभावों को समझना जीवन की उत्पत्ति और वैज्ञानिक अनुसंधान के महत्व के बारे में जानने के लिए महत्वपूर्ण है। स्कूल की पाठ्यपुस्तकों से डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत से संबंधित सामग्री (content) को हटाने के हालिया कदम पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

परमाणु ऊर्जा का भविष्य

विषय: परमाणु प्रौद्योगिकी

मुख्य परीक्षा: परमाणु ऊर्जा की वैश्विक संभावनाएं

संदर्भ:

  • इस लेख में परमाणु ऊर्जा के भविष्य पर चर्चा की गई है।

भूमिका:

  • भारत उन देशों में से एक है जो ऊर्जा के स्रोत के रूप में परमाणु ऊर्जा पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • देश 1950 के दशक से परमाणु ऊर्जा पर काम कर रहा है, और वर्तमान में, यह 6,780 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता के साथ 22 परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों का संचालन करता है।
  • भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम तीन चरणों वाली रणनीति पर आधारित है।
  • कुल मिलाकर, परमाणु ऊर्जा भारत के ऊर्जा मिश्रण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और देश की आने वाले वर्षों में अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता का विस्तार जारी रखने की योजना है।

परमाणु ऊर्जा के लिए भविष्य:

  • विश्व स्तर पर, परमाणु ऊर्जा के लिए भविष्य मिश्रित है। एक ओर, जीवाश्म ईंधन के निम्न कार्बन उत्सर्जन वाले विकल्प के रूप में देशों की परमाणु ऊर्जा में रुचि बढ़ रही है, विशेषकर ऐसे समय में जब देश अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं।
  • कुछ देश, जैसे कि चीन और रूस, नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में भारी निवेश कर रहे हैं, जबकि अन्य, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका और कई यूरोपीय देश, अपनी मौजूदा परमाणु अवसंरचना को बनाए रखने और उन्नत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
  • पिछले दो वर्षों में, विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध के बाद, परमाणु शक्ति में पुनरुत्थान हुआ है।
  • चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देश परमाणु ऊर्जा का उपयोग बढ़ा रहे हैं, जापान ने उन रिएक्टरों को फिर से शुरू कर दिया है जो फुकुशिमा दुर्घटना के बाद बंद कर दिए गए थे।
    • ऐसा आंशिक रूप से कोयले और प्राकृतिक गैस के आयात की उच्च लागत के कारण हुआ है। यू.के. में, परमाणु ऊर्जा को विद्युत क्षेत्र को डीकार्बोनाइज़ (कार्बन रहित) करने के लिए आवश्यक माना जाता है।

सौर और पवन ऊर्जा में वृद्धि के प्रभाव:

  • सौर और पवन ऊर्जा में वृद्धि का विश्व स्तर पर और भारत में परमाणु ऊर्जा के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव है।
  • लागत के मामले में सौर और पवन ऊर्जा परमाणु ऊर्जा के साथ प्रतिस्पर्धी होती जा रही है, जिससे नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं रह गई है।
  • अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर बढ़ते फोकस से परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश में कमी आ सकती है, जिससे समय के साथ उद्योग में गिरावट आ सकती है।
  • सुरक्षा और अपशिष्ट निपटान से संबंधित चिंताओं के कारण परमाणु ऊर्जा एक विवादास्पद ऊर्जा स्रोत है। सौर और पवन ऊर्जा में वृद्धि इन चिंताओं को बढ़ा सकती है और परमाणु ऊर्जा के लिए जनता का समर्थन प्राप्त करना अधिक कठिन बना सकती है।
  • परमाणु ऊर्जा की तुलना में सौर और पवन ऊर्जा अधिक लचीली होती है क्योंकि मांग के आधार पर परमाणु ऊर्जा को कम या ज्यादा करना अधिक कठिन है। इसका अर्थ यह है कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत मांग में बदलाव के प्रति अधिक तेज़ी से प्रतिक्रिया कर सकते हैं, जिससे वे ऊर्जा कंपनियों और सरकारों के लिए अधिक आकर्षक बन जाते हैं।
  • हालांकि, मौसम की स्थिति जैसे कारकों के कारण सौर और पवन ऊर्जा हमेशा उपलब्ध नहीं होती हैं। दूसरी ओर, परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगातार बिजली पैदा कर सकते हैं, जो ऊर्जा की मांग को पूरा करने के संदर्भ में एक फायदा है।

भारत में परमाणु ऊर्जा का भविष्य:

  • भारत की परमाणु योजना संवर्धित यूरेनियम की आपूर्ति द्वारा सीमित है।
  • जबकि परमाणु ऊर्जा की भारत के ऊर्जा मिश्रण में बहुत कम हिस्सेदारी है, वहीं देश में जैव विविधता के संरक्षण और भूस्वामियों के पुनर्वास और क्षतिपूर्ति की लागत और कोयले पर बहुत अधिक निर्भर होने के कारण जल विद्युत की क्षमता भी सीमित है।
    • वर्तमान में, भारत की कोल क्षमता 210 गीगावाट है, जो भारत की 73% बिजली का उत्पादन करती है, जबकि परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी 3.2% के आसपास है।
  • शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए, छोटे मॉड्यूलर और बड़े रिएक्टरों के संयोजन की आवश्यकता होगी, लेकिन इसे केवल एक कंपनी द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है (सभी रिएक्टर न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा संचालित हैं)।
  • NTPC (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) जैसी कई सरकारी कंपनियों को नागरिक परमाणु कार्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता है, जिस पर वर्तमान में एक ही कंपनी का अधिकार है। परमाणु क्षेत्र के भीतर और बाहर बेहतर डिज़ाइन के साथ प्रौद्योगिकियों का एक पोर्टफोलियो आवश्यक है।
  • अंततः, भारत की परमाणु ऊर्जा का भविष्य देश की ऊर्जा आवश्यकताओं, पर्यावरण संबंधी चिंताओं, जनमत और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की उपलब्धता सहित कई कारकों पर निर्भर करता है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी व्यापक ऊर्जा नीतियों और लक्ष्यों के संदर्भ में परमाणु ऊर्जा की लागत और लाभों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करे।

सारांश:

  • कुछ देशों द्वारा नए संयंत्रों में निवेश और कुछ के द्वारा मौजूदा संयंत्रों को बनाए रखने के दृष्टिकोण के साथ परमाणु ऊर्जा का वैश्विक भविष्य मिश्रित है। सौर और पवन ऊर्जा की प्रतिस्पर्धात्मकता नए परमाणु संयंत्रों को आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण बना रही है। सीमित यूरेनियम आपूर्ति और वैकल्पिक स्रोतों पर विचार करते हुए भारत का परमाणु भविष्य सतर्क ऊर्जा नीति मूल्यांकन पर निर्भर करता है।

प्रीलिम्स तथ्य:

आईएनएस तरकश, आईएनएस सुमेधा और आईएनएस तेग

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विषय: रक्षा और सुरक्षा:

प्रारंभिक परीक्षा: आईएनएस तरकश, आईएनएस सुमेधा और आईएनएस तेग के बारे में।

प्रसंग:

  • ऑपरेशन कावेरी (Operation Kaveri) के एक भाग के रूप में सूडान से फंसे भारतीयों को निकालने के लिए भारतीय नौसेना के आईएनएस तरकश को तैनात किया गया है।
  • आईएनएस सुमेधा और आईएनएस तेग के बाद निकासी में शामिल होने वाला तीसरा जहाज आईएनएस तरकश है।

आईएनएस तरकश:

  • आईएनएस तरकश भारतीय नौसेना के लिए निर्मित तलवार-वर्ग का दूसरा गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट है।
  • तलवार वर्ग के फ्रिगेट रूस द्वारा निर्मित क्रिवाक III-श्रेणी के संशोधित फ्रिगेट हैं।
  • आईएनएस तरकश रूस के कलिनिनग्राद में यांतर शिपयार्ड में बनाया गया था।
  • आईएनएस तरकश में क्लब-एन (Klub-N) मिसाइलों के स्थान पर ब्रह्मोस मिसाइलों का उपयोग किया जाता है, क्लब-एन (Klub-N) मिसाइलों का इस्तेमाल पहले के जहाजों में किया जाता था।
  • आईएनएस तरकस को नवंबर 2012 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
  • इस जहाज में निम्न रडार क्रॉस सेक्शन को सुनिश्चित करने के लिए स्टील्थ प्रौद्योगिकियों और एक विशेष हल (Hull) डिजाइन का उपयोग किया गया है।

आईएनएस सुमेधा:

  • आईएनएस सुमेधा भारतीय नौसेना की सरयू-श्रेणी के नौसेना अपतटीय गश्ती पोत (NOPV) का तीसरा जहाज है।
  • आईएनएस सुमेधा को गोवा शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित किया गया था।
  • यह अत्याधुनिक हथियार और सेंसर पैकेज से सुसज्जित है।
  • इस जहाज को सहायक अभियानों, तटीय और अपतटीय गश्त, महासागर निगरानी, खोज और बचाव (SAR) अभियानों, तथा मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) जैसे कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • आईएनएस सुमेधा में कई तरह के हथियार और सेंसर हैं और यह उन्नत हल्का लड़ाकू हेलीकाप्टर भी ले जा सकता है।
  • आईएनएस सुमेधा को मार्च 2014 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।

आईएनएस तेग:

  • आईएनएस तेग भारतीय नौसेना के लिए निर्मित तलवार-श्रेणी का चौथा फ्रिगेट है।
  • तलवार-श्रेणी के अन्य युद्धपोतों की तरह, आईएनएस तेग का निर्माण कालिनिनग्राद, रूस में यांतर शिपयार्ड द्वारा किया गया था।
  • जहाज का नाम “तेग” सिखों द्वारा पारंपरिक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली एक धारदार छोटी घुमावदार तलवार के नाम पर रखा गया है।
  • आईएनएस तेग में भी ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल होता है।
  • आईएनएस तेग को अप्रैल 2012 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
  • जहाज का आदर्श वाक्य “अनन्त गौरव की ओर” है।
  • आईएनएस तेग को अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती-रोधी अभियानों, भारत के समुद्री भागीदारों के समुद्र में समुद्री सुरक्षा प्रदान करने, SAR मिशनों और अन्य नौसेनाओं के साथ अभ्यास सहित कई मिशनों में तैनात किया गया है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. दिमासा विद्रोही समूह ने केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए:
  • दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी (DNLA)/दिमासा पीपुल्स सुप्रीम काउंसिल (DPSC), जो दीमा हसाओ जिले में संचालित एक विद्रोही समूह है, ने राज्य सरकार और संघ के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • समझौते के एक हिस्से के रूप में, DNLA के 168 सशस्त्र कैडरों ने आत्मसमर्पण कर दिया है और DNLA के प्रतिनिधियों ने हिंसा छोड़ने, हथियार और गोला-बारूद का समर्पण करने, अपने सशस्त्र संगठन को भंग करने, कब्जे वाले सभी शिविरों को खाली करने और मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की है।
  • नवीनतम समझौते से असम के दीमा हसाओ जिले में विद्रोह के पूरी तरह से रुकने की उम्मीद है।
  • इसके अलावा, असम सरकार लोगों की राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए लोगों की सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान की रक्षा, संरक्षण और प्रोत्साहन देने के लिए एक दिमासा कल्याण परिषद की स्थापना करेगी।
  • यह समझौता भारत के संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक आयोग की नियुक्ति का भी प्रावधान करता है, जो उत्तरी कछार पहाड़ी स्वायत्त परिषद (NCHAC) से सटे अतिरिक्त गांवों को परिषद में शामिल करने की मांग की जांच करेगा।
  • इसके अतिरिक्त, NCHAC और राज्य के अन्य हिस्सों में रहने वाले दिमासा लोगों के सर्वांगीण विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 500-500 करोड़ रूपये का एक विशेष विकास पैकेज भी दिया जाएगा।
  1. सांसद के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की शिकायत की जांच:
  • राज्यसभा के सभापति ने आसन (सभापति) के खिलाफ की गई कथित “अपमानजनक” टिप्पणी के लिए एक सांसद के खिलाफ “विशेषाधिकार उल्लंघन” की शिकायत को एक समिति को भेजा है।
  • समिति को मामले की जांच करने और रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है, जबकि इसके लिए कोई समय सीमा नहीं बताई गई है।

विशेषाधिकार हनन के बारे में पढ़ें: Breach of Privilege

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. विनिर्मित रेत (M-Sand) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर – मध्यम)

  1. विनिर्मित रेत को कठोर ग्रेनाइट पत्थर को पीसकर बनाया जाता है।
  2. विनिर्मित रेत में प्राकृतिक रेत की तुलना में अधिक मात्रा में सूक्ष्म महीन कण (माइक्रोफाइन कण) हो सकते हैं।

विकल्प:

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. दोनों
  4. कोई नहीं

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: विनिर्मित रेत (एम-सैंड) जिसे कृत्रिम रेत के रूप में भी जाना जाता है, कठोर ग्रेनाइट या खदान के पत्थरों से बनाई जाती है।
    • एम-सैंड का उत्पादन करने के लिए कठोर पत्थरों को पीसकर रेत के आकार के असमान कोणीय आकार के कणों में बदल दिया जाता है।
  • कथन 2 सही है: एम-सैंड में इसकी निर्माण प्रक्रिया के कारण प्राकृतिक रेत की तुलना में बड़ी मात्रा में सूक्ष्म महीन कण (माइक्रोफाइन कण) होते हैं।
    • माइक्रोफाइन कणों की उपस्थिति एम-सैंड की मज़बूती और कार्य क्षमता को प्रभावित कर सकती है।

प्रश्न 2. विशेषाधिकार हनन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – मध्यम)

  1. भारतीय संसद के किसी भी सदन और उसके सदस्यों तथा समितियों की शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 105 में किया गया है।
  2. सदन का कोई सदस्य राजनीतिक दल के सचेतक (व्हिप) की सहमति से विशेषाधिकार हनन से संबंधित प्रश्न उठा सकता है।
  3. विशेषाधिकारों के उल्लंघन या अवमानना का दोषी पाए गए व्यक्ति को फटकार लगाई जा सकती है, चेतावनी दी जा सकती है या जेल भेजा जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 2 और 3
  3. केवल 1 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में संसद के सदनों और उसके सदस्यों और समितियों की शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों का उल्लेख है।
  • कथन 2 सही नहीं है: सदन का कोई सदस्य सदन के अध्यक्ष या सभापति की सहमति से विशेषाधिकार हनन से संबंधित प्रश्न उठा सकता है।
  • कथन 3 सही है: विशेषाधिकारों के उल्लंघन या अवमानना का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को फटकार लगाई जा सकती है, चेतावनी दी जा सकती है या जेल भेजा जा सकता है।

प्रश्न 3. अन्नपूर्णा पर्वत के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से गलत है/हैं? (स्तर – कठिन)

  1. यह उत्तर-मध्य नेपाल के गंडकी प्रांत की अन्नपूर्णा पर्वत श्रृंखला में स्थित एक पर्वत है।
  2. यह दुनिया का दसवां सबसे ऊंचा पर्वत है।

विकल्प:

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. दोनों
  4. कोई नहीं

उत्तर: d

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: अन्नपूर्णा एक पर्वत है जो उत्तर-मध्य नेपाल के गंडकी प्रांत की अन्नपूर्णा पर्वत श्रृंखला में स्थित है।
  • कथन 2 सही है: समुद्र तल से 8,091 मीटर की ऊंचाई के साथ यह दुनिया का दसवां सबसे ऊंचा पर्वत है और इसे इसकी चढ़ाई में शामिल कठिनाई और खतरे के लिए जाना जाता है।

प्रश्न 4. हाल ही में चर्चा में रही ‘रैपिड सिक्योरिटी फोर्सेज’ निम्नलिखित में से किस देश से संबंधित है? (स्तर – सरल)

  1. ईरान
  2. इजराइल
  3. सूडान
  4. सीरिया

उत्तर: c

व्याख्या:

  • रैपिड सपोर्ट फ़ोर्सेस (RSF) सूडान सरकार द्वारा संचालित अर्धसैनिक बल हैं।
  • यद्यपि औपचारिक रूप से इसे 2013 में स्थापित किया गया था, लेकिन RSF की जड़ें जंजावीड मिलिशिया से संबंधित हैं, जो मुख्य रूप से पश्चिमी सूडान में स्थित अरब जनजातियों का एक समूह है।
  • यह पहला सशस्त्र बल था और 1980 के दशक की शुरुआत में सरकार को पड़ोसी गृहयुद्ध-ग्रस्त चाड में अपने प्रभाव का विस्तार करने में मदद करने के लिए संगठित किया गया था।

प्रश्न 5. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: PYQ (2008) (स्तर – मध्यम)

  1. न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर भारत के मुख्य न्यायाधीश थे।
  2. न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर को भारतीय न्यायिक प्रणाली में जनहित याचिका (PIL) के जनकों में से एक माना जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 सही नहीं है: न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्णा अय्यर एक भारतीय न्यायाधीश थे जिन्होंने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार किया और उन्हें न्यायिक सक्रियता का अग्रणी माना जाता है।
    • न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्णा अय्यर ने केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया था। हालांकि, उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त नहीं किया गया था।
  • कथन 2 सही है: न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर के साथ न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती को भारतीय न्याय व्यवस्था में जनहित याचिका (PIL) की अवधारणा का अग्रदूत माना जाता है।
    • जनहित याचिका “जनहित” की सुरक्षा के लिए कानून की अदालत में दायर याचिका को संदर्भित करती है।
    • कोई भी मामला जहां बड़े पैमाने पर जनता का हित प्रभावित होता है, जैसे प्रदूषण, आतंकवाद, सड़क सुरक्षा, निर्माण संबंधी खतरे आदि, उसका कानून की अदालत में जनहित याचिका दायर करके निवारण किया जा सकता है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. समुद्र के स्तर में वृद्धि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और दुनिया भर में इस वृद्धि के प्रभाव पर चर्चा कीजिए।Link

(15 अंक, 250 शब्द) [जीएस-1, भूगोल]

प्रश्न 2. परमाणु ऊर्जा एक ऐसी ऊर्जा है जो स्वच्छ हो सकती है लेकिन साथ ही खतरनाक भी साबित हो सकती है। उपरोक्त कथन के संदर्भ में, भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए।Link

(15 अंक, 250 शब्द) [जीएस-3, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी]