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08 जुलाई 2024 : PIB विश्लेषण

विषयसूची:

  1. प्रोजेक्ट पीएआरआई:
  2. केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (बीबीएनजे) समझौते पर भारत द्वारा हस्ताक्षर को मंजूरी दी:
  3. वैज्ञानिकों ने खगोलीय पिंडों से खगोल भौतिकी जेट की गतिशीलता पर प्लाज्मा संरचना के प्रभाव का पता लगाया:
  4. अग्निबाण:

08 July 2024 Hindi PIB
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1. प्रोजेक्ट पीएआरआई:

सामान्य अध्ययन: 1

भारतीय विरासत एवं संस्कृति:

विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।

प्रारंभिक परीक्षा: विश्व धरोहर समिति।

मुख्य परीक्षा: प्रोजेक्ट पीएआरआई।

प्रसंग:

  • भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने 21 -31 जुलाई 2024 तक नई दिल्ली में आयोजित होने वाली विश्व धरोहर समिति की बैठक के 46वें सत्र के अवसर पर प्रोजेक्ट पीएआरआई (भारत की जन- कला) की शुरुआत की है।

उद्देश्य:

  • इसके तहत संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्था ललित कला अकादमी ने देश भर से 150 से अधिक विजुअल कलाकारों को आमंत्रित किया है।
  • प्रोजेक्ट पीएआरआई का उद्देश्य दिल्ली के सौंदर्य और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए एक मंच प्रदान करना है, साथ ही हमारी राष्ट्रीय राजधानी की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत में भव्यता जोड़ना है।

विवरण:

  • ललित कला अकादमी और राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय ऐसी लोक कला को सामने लाना चाहते हैं जो हजारों साल पुरानी कलात्मक विरासत (लोक कला/लोक संस्कृति ) से प्रेरणा लेती हो तथा आधुनिक विषयों और तकनीकों को शामिल करती हो।
  • ये अभिव्यक्तियां भारतीय समाज में कला के अंतर्निहित मूल्य को रेखांकित करती हैं, जो रचनात्मकता और कलात्मक अभिव्यक्ति के प्रति राष्ट्र की स्थायी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
  • ये कलाकार आगामी कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक स्थानों के सौंदर्यीकरण के लिए राष्ट्रीय राजधानी में विभिन्न स्थलों पर काम कर रहे हैं।

प्रोजेक्ट पीएआरआई का महत्व:

  • सार्वजनिक स्थानों पर कला का प्रतिनिधित्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करता है।
    • सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के माध्यम से कला का लोकतंत्रीकरण शहरी परिदृश्यों को सुलभ दीर्घाओं में बदल देता है, जहां कला संग्रहालयों और दीर्घाओं जैसे पारंपरिक स्थानों की सीमाओं को पार कर जाती है।
    • सड़कों, पार्कों और पारगमन केंद्रों में कला को एकीकृत करके, ये पहल सुनिश्चित करती हैं कि कलात्मक अनुभव सभी के लिए उपलब्ध हों।
    • यह समावेशी दृष्टिकोण एक साझा सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देता है और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ाता है, नागरिकों को अपने दैनिक जीवन में कला से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता है।
    • प्रोजेक्ट पीएआरआई का उद्देश्य संवाद, प्रतिबिंब और प्रेरणा को प्रोत्साहित करना है, जो देश के गतिशील सांस्कृतिक ताने-बाने में योगदान देता है।

विजुअल कला का प्रदर्शन:

  • इस सौंदर्यीकरण परियोजना के तहत पारंपरिक कला रूपों के साथ-साथ मूर्तियां, भित्ति चित्र और प्रतिष्ठान भी बनाए गए हैं।
    • इस परियोजना के तहत तैयार की जा रही विभिन्न दीवार पेंटिंग, भित्ति चित्र, मूर्तियां और प्रतिष्ठानों को बनाने के लिए देश भर के 150 से अधिक विजुअल कलाकार एक साथ आए हैं।
    • रचनात्मक कैनवास में फड़ पेंटिंग (राजस्थान), थंगका पेंटिंग (सिक्किम/लद्दाख), लघु चित्रकला (हिमाचल प्रदेश), गोंड कला (मध्य प्रदेश), तंजौर पेंटिंग (तमिलनाडु), कलमकारी (आंध्र प्रदेश), अल्पना कला (पश्चिम बंगाल), चेरियल पेंटिंग (तेलंगाना), पिछवाई पेंटिंग (राजस्थान), लांजिया सौरा (ओडिशा), पट्टचित्र (पश्चिम बंगाल), बनी ठनी पेंटिंग (राजस्थान), वर्ली (महाराष्ट्र), पिथौरा कला (गुजरात), ऐपण (उत्तराखंड), केरल भित्ति चित्र (केरल), अल्पना कला (त्रिपुरा) शामिल हैं।
  • प्रोजेक्ट पीएआरआई के लिए बनाई जा रही प्रस्तावित मूर्तियों में व्यापक विचार शामिल हैं, जैसे प्रकृति चित्रण, नाट्यशास्त्र से प्रेरित विचार, गांधी जी, भारत के खिलौने, आतिथ्य, प्राचीन ज्ञान, नाद या आदिम ध्वनि, जीवन का सामंजस्य, कल्पतरु-दिव्य वृक्ष आदि।
  • इसके अलावा, प्रस्तावित 46वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक के अनुरूप, कुछ कलाकृतियां और मूर्तियां विश्व धरोहर स्थलों जैसे बिम्बेटका और भारत के सात प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थलों से प्रेरित हैं, जिन्हें प्रस्तावित कलाकृतियों में विशेष स्थान दिया गया है।
  • महिला कलाकार प्रोजेक्ट पीएआरआई का अभिन्न अंग रही हैं और बड़ी संख्या में उनकी भागीदारी भारत की नारी शक्ति का प्रमाण है।

पृष्ठ्भूमि:

  • प्रोजेक्ट पीएआरआई दिल्ली को भारत की समृद्ध और विविध कलात्मक विरासत से पूरित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है, साथ ही समकालीन विषयों और अभिव्यक्तियों को भी अपनाती है।
  • जैसे-जैसे शहर विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र की मेजबानी करने की तैयारी कर रहा है, यह पहल न केवल सार्वजनिक स्थानों को सुशोभित करती है, बल्कि कला को लोकतांत्रिक भी बनाती है, जिससे यह सभी के लिए सुलभ हो जाती है।
  • 150 से अधिक विजुअल कलाकारों के सहयोगी प्रयासों से जीवंत हुआ यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण भारतीय कला की गहन और बहुमुखी परंपराओं को प्रदर्शित करता है।
  • नागरिकों को शामिल करके और एक साझा सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देकर, यह पहल न केवल शहरी परिदृश्य को समृद्ध करती है, बल्कि हमारी विरासत के साथ गहरे संबंध को भी प्रेरित करती है।

2. केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (बीबीएनजे) समझौते पर भारत द्वारा हस्ताक्षर को मंजूरी दी:

सामान्य अध्ययन: 3

जैव विविधता:

विषय: जैव विविधता।

प्रारंभिक परीक्षा: जैव विविधता (बीबीएनजे) समझौता, ईईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र),एसडीजी14 (पानी के नीचे जीवन) ।

मुख्य परीक्षा: जैव विविधता (बीबीएनजे) समझौते के भारत हेतु निहितार्थ।

प्रसंग:

  • प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (बीबीएनजे) समझौते पर भारत द्वारा हस्ताक्षर करने की मंजूरी दे दी है।

उद्देश्य:

  • यह ऐतिहासिक निर्णय राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और निरंतर उपयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
  • अक्सर ‘हाई सीज़’ के रूप में उल्‍लेख किए जाने वाले, राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्र समुद्री संसाधनों के स्‍थायी वैश्विक उपयोग वाले क्षेत्र हैं जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैध उद्देश्यों जैसे नेविगेशन, ओवरफ़्लाइट, पनडुब्बी केबल और पाइपलाइन बिछाने आदि के लिए सभी के लिए खुले हैं।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय देश के बीबीएनजे समझौते के कार्यान्वयन की अगुवाई करेगा।
  • बीबीएनजे समझौता भारत को अपने ईईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) से परे क्षेत्रों में अपनी रणनीतिक उपस्थिति बढ़ाने की अनुमति देता है, जो बहुत आशाजनक है।
    • साझे मौद्रिक लाभों के अलावा, यह हमारे समुद्री संरक्षण प्रयासों व सहयोगों को और मजबूत करेगा, वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास के लिए नए रास्ते खोलेगा, नमूनों, अनुक्रमों एवं सूचनाओं तक पहुंच सुनिश्चित करेगा, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आदि, न केवल हमारे लिए बल्कि पूरी मानव जाति के लाभ के लिए।
    • भारत द्वारा बीबीएनजे समझौते पर हस्ताक्षर करना यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है कि हमारे महासागर पर्यावरण अनुकूल और सुदढ़ बने रहें।

विवरण:

  • बीबीएनजे समझौता, या ‘हाई सीज़ संधि’, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
    • इसका उद्देश्य देश की सीमाओं से परे महासागर में समुद्री जैव विविधता के दीर्घकालिक संरक्षण पर बढ़ती चिंताओं को दूर करना है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समन्वय के माध्यम से समुद्री जैव विविधता के स्‍थायी उपयोग के लिए सटीक तंत्र निर्धारित करता है।
    • कोई भी पक्ष राष्‍ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे महासागर से प्राप्त समुद्री संसाधनों पर संप्रभु अधिकारों का दावा या प्रयोग नहीं कर सकते हैं और लाभों का उचित व न्यायसंगत बंटवारा सुनिश्चित करते हैं।
    • यह एहतियाती सिद्धांत पर आधारित एक समावेशी, एकीकृत, इकोसिस्‍टम-केन्‍द्रित दृष्टिकोण का पालन करता है और पारंपरिक ज्ञान व सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान के उपयोग को बढ़ावा देता है।
    • यह क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरणों के माध्यम से समुद्री पर्यावरण पर प्रभावों को कम करने में मदद करता है और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करने के लिए नियम स्थापित करता है।
    • यह कई एसडीजी, विशेष रूप से एसडीजी14 (पानी के नीचे जीवन) को प्राप्त करने में भी योगदान देगा।

पृष्ठ्भूमि:

  • बीबीएनजे समझौता यूएनसीएलओएस के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता होगा, अगर यह लागू होता है, तो इसके सहयोगी कार्यान्वयन समझौतों के साथ: 1994 भाग XI कार्यान्वयन समझौता (जो अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में खनिज संसाधनों की खोज और निष्कर्षण पर ध्यान दिलाता है) और 1995 संयुक्त राष्ट्र मछली स्टॉक समझौता (जो स्ट्रैडलिंग और अत्यधिक प्रवासी मछली स्टॉक के संरक्षण और प्रबंधन पर जोर देता है)।
  • यूएनसीएलओएस को 10 दिसम्‍बर, 1982 को अपनाया गया था और 16 नवम्‍बर, 1994 को लागू हुआ था।
    • यह समुद्रों के पर्यावरण संरक्षण और समुद्री सीमाओं, समुद्री संसाधनों के अधिकारों और विवाद समाधान के लिए महत्वपूर्ण है।
    • यह राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे महासागर तल पर खनन और संबंधित गतिविधियों को विनियमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सीबेड प्राधिकरण की स्थापना करता है।
    • अब तक, 160 से अधिक देशों ने यूएनसीएलओएस की पुष्टि की है। यह दुनिया के महासागरों के उपयोग में व्यवस्था, समानता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
    • बीबीएनजे समझौते पर मार्च 2023 में सहमति हुई थी और सितम्‍बर 2023 से शुरू होने वाले दो वर्षों के लिए हस्ताक्षर के लिए खुला है।
    • 60वें सत्‍यापन, स्वीकृति, अनुमोदन या परिग्रहण के 120 दिन बाद लागू होने के बाद यह एक अंतर्राष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि होगी।
    • जून 2024 तक, 91 देशों ने बीबीएनजे समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, और आठ पक्षों ने इसकी पुष्टि की है।

3. वैज्ञानिकों ने खगोलीय पिंडों से खगोल भौतिकी जेट की गतिशीलता पर प्लाज्मा संरचना के प्रभाव का पता लगाया:

सामान्य अध्ययन: 3

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:

विषय: विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियां;देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।

प्रारंभिक परीक्षा: ब्लैक होल।

मुख्य परीक्षा: खगोल भौतिकीय जेट क्या होते हैं एवं इनका महत्व ?

प्रसंग:

  • वैज्ञानिकों ने खगोल भौतिकीय जेटों की प्लाज्मा संरचना के प्रभाव का पता लगाया है जो आयनित पदार्थ के आउटफ्लो हैं जो ब्लैक होल, न्यूट्रॉन सितारों और पल्सर जैसे खगोलीय पिंडों से विस्तारित किरणों के रूप में उत्सर्जित होते हैं।

उद्देश्य:

  • भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एआरआईईएस) के वैज्ञानिकों ने एक सापेक्षतावादी अवस्था समीकरण का इस्तेमाल किया, जिसे उनके द्वारा जेट के वास्तविक विकास में सापेक्षतावादी प्लाज्मा की संरचना की भूमिका पर पहले के एक पेपर में आंशिक रूप से प्रस्तावित किया गया था।

विवरण:

  • वर्षों के शोध के बावजूद, यह ज्ञात नहीं है कि खगोलभौतिकीय जेट किस प्रकार के पदार्थ से बने होते हैं – क्या वे नंगे इलेक्ट्रॉनों (bare electrons) या प्रोटॉन से बने होते हैं या क्या पॉज़िट्रॉन नामक सकारात्मक रूप से चार्ज किए गए इलेक्ट्रॉन भी मौजूद होते हैं।
    • जेट संरचना को जानना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों के पास काम करने वाली सटीक भौतिक प्रक्रिया को इंगित करने की अनुमति देगा।
    • सामान्य तौर पर, सैद्धांतिक अध्ययनों में द्रव्यमान घनत्व, ऊर्जा घनत्व और दबाव जैसी जेट की थर्मोडायनामिक मात्राओं के बीच संबंध में संरचना की जानकारी नहीं होती है।
    • इस प्रकार के संबंध को इक्‍वेशन ऑफ स्‍टेट ऑफ द जेट मैटर कहा जाता है।
  • इस शोध का नेतृत्व एआरआईईएस के राज किशोर जोशी और डॉ इंद्रनील चट्टोपाध्याय ने किया और इसे एस्ट्रोफिजिकल जर्नल (एपीजे) में प्रकाशित किया गया है।
    • लेखकों ने डॉ चट्टोपाध्याय द्वारा पहले विकसित एक संख्यात्मक सिमुलेशन कोड को अपग्रेड किया, इलेक्ट्रॉनों, पॉज़िट्रॉन (धनात्मक रूप से आवेशित इलेक्ट्रॉन) और प्रोटॉन के मिश्रण से बने खगोल भौतिकी जेट की गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए उक्त अवस्था समीकरण का उपयोग किया।

चित्र स्रोत: PIB

  • लेखकों ने दिखाया कि प्लाज्मा संरचना में परिवर्तन से जेट के प्रसार वेग में अंतर आता है, भले ही जेट के लिए प्रारंभिक पैरामीटर समान रहें।
    • अपेक्षा के विपरीत, इलेक्ट्रॉनों और पॉज़िट्रॉन से बने जेट प्रोटॉन वाले जेट की तुलना में सबसे धीमे पाए गए।
    • प्रोटॉन इलेक्ट्रॉनों या पॉज़िट्रॉन की तुलना में लगभग दो हजार गुना अधिक भारी होते हैं।
  • जेट की प्लाज्मा संरचना को समझना आवश्यक है क्योंकि प्लाज्मा संरचना में परिवर्तन जेट की आंतरिक ऊर्जा को बदलता है जो प्रसार गति में परिवर्तन में परिलक्षित होता है।
    • इसके अलावा, प्लाज्मा संरचना जेट संरचनाओं को भी प्रभावित करती है जैसे कि रीकॉलिमेशन शॉक की संख्या और ताकत, रिवर्स शॉक का आकार और गतिशीलता इत्यादि।
    • रीकॉलिमेशन शॉक जेट बीम में वे क्षेत्र हैं जो जेट बीम के बैकफ़्लोइंग सामग्री के साथ संपर्क के कारण बनते हैं।
  • इलेक्ट्रॉन-पॉज़िट्रॉन जेट अधिक स्पष्ट अशांत संरचनाएँ दिखाते हैं।
    • इन संरचनाओं के विकास के परिणामस्वरूप जेट की गति में भी कमी आती है।
    • अशांत संरचनाओं का निर्माण और विकास जेट की स्थिरता को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है।
    • इसलिए, प्लाज्मा संरचना जेट की दीर्घकालिक स्थिरता को भी प्रभावित कर सकती है।

प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

1.अग्निबाण:

  • आईआईटी मद्रास में विकसित और इनक्यूबेट किये गये भारत के पहले पेटेंटीकृत सिंगल-पीस 3डी-प्रिंटेड सेमी-क्रायोजेनिक इंजन द्वारा संचालित एक नवोन्मेषी दो-चरण कक्षीय प्रक्षेपण यान अग्निबाण को 30 मई 2024 को लॉन्च किया गया। यह देश के अंतरिक्ष इको-सिस्टम के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
  • अत्याधुनिक प्रक्षेपण यान भारत के लिए निरंतर मिशनों का मार्ग प्रशस्त करता है और साथ ही देश को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक वाणिज्यिक हब भी बनाता है।
  • प्रक्षेपण यान को अंतरिक्ष-तकनीक में एक स्टार्टअप अग्निकुल द्वारा विकसित किया गया है।
  • अग्निकुल को आईआईटी मद्रास के इनक्यूबेशन सेल (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित एक टीबीआई) में इनक्यूबेट किया गया है और अगस्त 2022 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्टार्टअप उत्सव के दौरान स्टार्टअप एक्सपो में प्रदर्शित किया गया है।
  • स्टार्टअप आईआईटी मद्रास में राष्ट्रीय कम्बस्टन अनुसंधान और विकास केंद्र (एनसीसीआरडी) के साथ मिलकर काम करता है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा समर्थित है।
  • डीएसटी द्वारा समर्थित एनसीसीआरडी कम्बस्टन अनुसंधान में अत्याधुनिक क्षमताओं का विकास करता है।
  • यह ऑटोमोटिव, थर्मल पावर और एयरोस्पेस प्रोपल्सन, फायर रिसर्च और माइक्रोग्रैविटी कम्बस्टन पर काम करने वाला विश्व का सबसे बड़ा कम्बस्टन अनुसंधान केंद्र है।
  • एनसीसीआरडी के साथ मिलकर काम करते हुए, चेन्नई स्थित स्टार्टअप ने कई ऐसी प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं जो अंतरिक्ष इंजनों की विश्वसनीयता में सुधार कर सकती हैं और उनके निर्माण में तेज़ी ला सकती हैं, जिससे अंतरिक्ष मिशनों को व्यवस्थित करना सरल हो जाता है।
    • स्टार्टअप ने अपना पहला उद्घाटन मिशन – अग्निबाण एसओआरटीईडी सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।
    • अग्निबाण एसओआरटीईडी (अग्निबाण सब-ऑर्बिटल टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर) एक सिंगल-स्टेज व्हीकल है जो एक सिंगल सेमी-क्रायोजेनिक प्रेशर-फेड इंजन द्वारा संचालित होता है जिसका उपयोग अग्निबाण के लिए किया गया है।
    • यह प्रयास भारत के पहले निजी लॉन्चपैड एसडीएससी एसएचएआर से किया गया।
  • डीएसटी द्वारा समर्थित एनसीसीआरडी अग्निकुल के लिए प्रशिक्षण स्थल रहा है, जहां उन्होंने रॉकेट बनाने की पेचीदगियों को सीखा और इससे स्टार्टअप को शुरुआती चरणों में प्रौद्योगिकी का पता लगाने में मदद मिली।
  • डीएसटी द्वारा वित्त पोषित एक अन्य टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब (टीआईएच), आईआईटी मद्रास से प्रवर्तक टेक्नोलॉजीज अंतरिक्ष और डीप स्पेस के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास और व्यावसायीकरण के लिए उनके साझीदार बन गए।
  • निजी कम्पनियों के लिए सरकार द्वारा अंतरिक्ष बाजार खोलने से इस क्षेत्र में एक अवसर सृजित हुआ। आईआईटी मद्रास रिसर्च पार्क स्थित कंपनी की एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग सुविधा केंद्र, जिसे लोकप्रिय रूप से अग्निकुल रॉकेट फैक्ट्री – 01 कहा जाता है और जिसका उद्घाटन 2022 में किया गया था, में इंजनों का विनिर्माण आरंभ करने के लिए स्वविकसित प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया।
  • अग्निकुल की अभूतपूर्व उपलब्धि वह इंजन है जो अलग-अलग कम्पोनेंट को जोड़ता है। यह विशेषता इसे अनूठा बनाती है। इसे उच्च श्रेणी की एयरोस्पेस सामग्री से निर्मित किया जाता है जो इसे अधिक विश्वसनीय बनाती है। इससे रियलाइजेशन टाइम भी कम हो जाता है और पारंपरिक रूप से विनिर्मित इंजनों की तुलना में तेजी से विनिर्माण की सुविधा मिलती है।
  • डीएसटी के टीबीआई समर्थित स्टार्टअप ने श्रीहरिकोटा रेंज में मिशन कंट्रोल सेंटर के साथ भारत का पहला निजी लॉन्चपैड स्थापित किया।
  • लॉन्चपैड के निर्माण की योजना, डिजाइन और क्रियान्वयन पूरी तरह से इन-हाउस किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त, कंपनी द्वारा विकसित ऑटोपायलट सॉफ्टवेयर यह सुनिश्चित करता है कि यह व्हीकल सभी बाहरी दबावों के बावजूद मिशन पथ पर बना रहे, जो किसी भी मिशन के लिए महत्वपूर्ण है।
  • लॉन्च व्हीकल, अग्निबाण भारत का पहला लॉन्च व्हीकल है जो एक शक्तिशाली और कॉम्पैक्ट इलेक्ट्रिक ड्राइव के माध्यम से प्रोपेलैंट्स को फीड करता है।
  • इन-हाउस तरीके से विकसित हाई-स्पीड मोटर कंट्रोलर हाई फ्रीक्वेंसी पर उच्च शक्ति प्रदान कर सकता है और उच्च वोल्टेज की ओर बदलाव से पैदा शोर को समुचित शील्डिंग और अर्थिंग द्वारा कम किया जाता है।
  • विश्व के पहले सिंगल-पीस 3डी प्रिंटेड इंजन और कॉन्फ़िगर करने योग्य व्हीकल सहित विभिन्न प्रौद्योगिकियों ने लॉन्च की लागत को पेलोड मास के स्पेक्ट्रम में समान – 30 किलोग्राम से 300 किलोग्राम- बना दिया है।
  • डीएसटी-टीबीआई समर्थित स्टार्टअप द्वारा अग्निबाण सब-ऑर्बिटल टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर के लांच ने सिंगल पीस पेटेंटेड रॉकेट इंजन, भारत की पहली अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन फ्लाइट, ईथरनेट-आधारित एवियोनिक्स ढांचे के साथ पहली फ्लाइट के साथ, विश्व की पहली फ्लाइट बनाने में मदद की है और इसका नाम भारत की पहली कंट्रोल्ड एसेंट फ्लाइट के रूप में शामिल है।

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