विषयसूची:
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भारत और जर्मनी के बीच रसायन और उर्वरक पर समझौता :
सामान्य अध्ययन: 2,3
अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध,कृषि:
विषय: कृषि उर्वरक समझौतें का भारतीय कृषि पर प्रभाव एवं महत्व।
प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय रसायन और उर्वरक (आरसीएफ) से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा: भारत और जर्मनी के व्यापारिक संबंधों पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान समझौते पर टिप्पणी कीजिए।
प्रसंग:
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भारत की राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स लिमिटेड और जर्मनी की के प्लस एस मिनरल्स एंड एग्रीकल्चर जीएमबीएच, की सहायक कंपनी मेसर्स के प्लस एस मिडिल ईस्ट एफजेडई डीएमसीसी के बीच समझौता ज्ञापन हस्ताक्षर किए गए हैं।
उद्देश्य:
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इस समझौते का उद्देश्य किसानों के हित में एमओपी की उपलब्धता बढ़ाना और विभिन्न उर्वरकों के स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना है।
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मेसर्स के प्लस एस मिडिल ईस्ट एफजेडई डीएमसीसी भारत को रियायती मूल्य पर 2025 तक सालाना 1,05,000 मीट्रिक टन म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) की आपूर्ति करेगा।
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इस दीर्घकालिक समझौते से भारतीय किसान समुदाय को उचित मूल्य पर एमओपी की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
विवरण:
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गौरतलब है कि इस समझौता ज्ञापन पर 6 अक्टूबर, 2022 को हस्ताक्षर किए गए थे।
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समझौते के अनुसार मैसर्स के प्लस एस 2022 से 2025 की अवधि तक भारत को रियायती मूल्य पर प्रति वर्ष 1,05,000 मीट्रिक टन म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) की आपूर्ति करेगा।
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मैसर्स के प्लस एस अपनी कैप्टिव खपत के साथ-साथ अपने व्यापारिक उद्देश्यों के लिए मैसर्स आरसीएफ को एमओपी की आपूर्ति करेगा।
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यह मात्रा आरसीएफ की कैप्टिव खपत के 60 प्रतिशत की आवश्यकता को पूरा करेगी।
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आरसीएफ द्वारा हस्ताक्षरित यह दीर्घकालिक समझौता भारतीय किसानों को उचित मूल्य पर एमओपी की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
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वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति में जब एमओपी की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में अत्यधिक अस्थिरता देखी गई है, आरसीएफ द्वारा हस्ताक्षरित दीर्घकालिक समझौता देश में एमओपी की कीमत की स्थिरता बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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विद्युत मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक का आयोजन:
सामान्य अध्ययन: 3
ऊर्जा:
विषय: ऊर्जा आधारभूत संरचना।
प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय ग्रिड से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा: ट्रांसमिशन प्रणाली बिजली व्यवस्था का आधार है। कथन की व्याख्या कीजिए।
प्रसंग:
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विद्युत मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक नई दिल्ली में आयोजित की गई।
उद्देश्य:
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बैठक का विषय “भारत में राष्ट्रीय विद्युत ग्रिड का विकास – उसका महत्व” था।
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भारत सरकार ने देश में राष्ट्रीय विद्युत ग्रिड के विकास के लिए विविध कदम उठाए हैं।
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इनमें राष्ट्रीय ग्रिड का विकास और वृद्धि, राष्ट्रीय ग्रिड के लाभ, राष्ट्रीय ग्रिड के लिए योजना, आरई एकीकरण में राष्ट्रीय ग्रिड का महत्व, आरई को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधार और लोड डिस्पैच सेंटर द्वारा ग्रिड प्रबंधन शामिल हैं।
विवरण:
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ट्रांसमिशन प्रणाली बिजली व्यवस्था का आधार है। एकीकृत ट्रांसमिशन नेटवर्क की बदौलत कहीं भी बिजली पैदा की जा सकती है।
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देश में एक राष्ट्र, एक ग्रिड, एक फ्रीक्वेंसी, एक नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर है।
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भारत की ट्रांसमिशन प्रणाली विश्व का प्रमुख एकीकृत ग्रिड है। वर्तमान में देश में बिजली की खपत 1,400 बिलियन यूनिट है और 2030 तक यह दोगुनी हो जाएगी।
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इसलिए, तदनुसार बिजली का उत्पादन बढ़ाने और ट्रांसमिशन क्षमता को मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
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एकीकृत नेटवर्क (जनरल नेटवर्क एक्सेस) के साथ कहीं से भी बिजली खरीदना और बेचना आसान है।
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सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने के लिए आरई प्रबंधन केंद्र भी खोले हैं।
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पारदर्शिता और समान अवसर के लिए सेंट्रल ट्रांसमिशन यूटिलिटी (सीटीयू) का सृजन किया है।
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भारत के समस्त 5 क्षेत्रीय ग्रिडों को दिसंबर 2013 को जोड़कर राष्ट्रीय ग्रिड बनाया गया था।
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सुदूर लेह क्षेत्र को जनवरी 2019 में राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़ा गया था।
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वर्तमान में, राष्ट्रीय ग्रिड की स्थापित क्षमता 404 गीगावॉट है और पूरी की जाने वाली अधिकतम मांग 216 गीगावॉट है।
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राष्ट्रीय ग्रिड ने 1200 केवी अल्ट्रा हाई वोल्टेज एसी सिस्टम, आरओडब्ल्यू को कम करने के लिए टॉवर डिजाइन, ऐप आधारित पेट्रोलिंग, हॉट लाइन का रखरखाव, लैस लैंड रीजन्स के लिए ट्यूबलर पोल और रखरखाव के लिए गैस इंसुलेटेड स्विचगियर (GIS) जैसी कई प्रौद्योगिकियों को अपनाया है।
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गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा के एकीकरण के लिए उठाए गए कदमों में हरित ऊर्जा गलियारों का निर्माण करना, अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा पार्कों के लिए ट्रांसमिशन प्रणाली, 2022 तक 66.5 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लिए ट्रांसमिशन प्रणाली, आरई उत्पादन की विषमता और अनिश्चितता को दूर करने के लिए 13 आरई प्रबंधन केंद्रों (आरईएमसी) की स्थापना, 2026-27 तक अतिरिक्त 52 गीगावाट संभावित आरईजेड के एकीकरण के लिए ट्रांसमिशन प्रणाली की योजना तैयार करना, 2030 तक अतिरिक्त 181.5 गीगावाट आरईएस के लिए ट्रांसमिशन योजनाओं की योजना बनाना और क्रमिक रूप से इनका क्रियान्वयन शामिल है।
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पावरग्रिड द्वारा 5 राज्यों में 7 सौर पार्कों (6500 मेगावाट) के लिए ट्रांसमिशन प्रणाली शुरू की गई है।
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नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधारों में सौर और पवन ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न बिजली के ट्रांसमिशन पर अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन शुल्क की छूट,तापीय/ हाइड्रो ऊर्जा के साथ नवीकरणीय ऊर्जा को जोड़ना, ग्रीन टर्म-अहेड मार्केट (जीटीएएम), आरई जनरेशन प्रोजेक्ट तक आसान पहुंच- जनरल नेटवर्क एक्सेस शामिल है।
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पोसोको द्वारा ग्रिड प्रबंधन के परिचालन क्षेत्रों में नेशनल ओपन एक्सेस रजिस्ट्री (NOAR) हैं।
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एनओएआर पारदर्शी तरीके से ग्रीन ओपन एक्सेस की सुविधा प्रदान करेगा और एसएलडीसी के साथ एकीकरण भी प्रगति पर है।
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ट्रांसमिशन क्षेत्र में हाल में किए गए सुधार के उपायों के अंतर्गत पारदर्शिता लाने और सभी ट्रांसमिशन डेवलपर्स के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए सीटीयू को पावरग्रिड से अलग किया गया है।
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राष्ट्रीय ग्रिड के भविष्य के लक्ष्यों में आरई के त्रुटिहीन एकीकरण के लिए उत्पादन से पहले ट्रांसमिशन, ओएसओडब्ल्यूओजी : वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड, ग्रीन ओपन एक्सेस को सुगम बनाना तथा आपूर्ति की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना शामिल हैं
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द्वितीय संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कांग्रेस (यूएन –डब्ल्यूजीआईसी) 2022:
सामान्य अध्ययन: 2,3
शासन एवं आर्थिक विकास:
विषय: भू-स्थानिक स्टार्ट-अप्स के माध्यम से रोजगार सर्जन की सम्भावना।
प्रारंभिक परीक्षा: संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कांग्रेस (यूएन –डब्ल्यूजीआईसी) 2022 ,भारतीय सर्वेक्षण विभाग,राष्ट्रीय एटलस और विषयगत मानचित्रण संगठन (एनएटीएमओ), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो–आईएसआरओ) और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र से सम्बंधित तथ्य।
प्रसंग:
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प्रधानमंत्री ने वीडियो संदेश के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस को संबोधित किया।
उद्देश्य:
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इसका आयोजन हैदराबाद में किया जा रहा है।भारत द्वारा इसकी मेजबानी की जा रही हैं।
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भू-स्थानिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं प्रशिक्षित जनशक्ति भारतीय भू-स्थानिक उद्योग के लिए एक अंतरराष्ट्रीय जीआईएस सेवा बाजार को विकसित करने में सहायता करेगी।
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भारत की भू-स्थानिक अर्थव्यवस्था के 2025 तक 12.8% की वृद्धि दर से 63,000 करोड़ रुपये को पार करने और भू-स्थानिक स्टार्ट-अप्स के माध्यम से 10 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलने की सम्भावना है।
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सम्मेलन का विषय, ‘ग्लोबल विलेज को भू-सक्षम बनाना: कोई भी पीछे न रहे’ है।
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भारत में 250 से अधिक भू-स्थानिक स्टार्ट–अप्स भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों को प्रदर्शित करने के लिए अपशिष्ट संसाधन प्रबंधन, वानिकी, शहरी नियोजन और सड़कों के मानचित्रण जैसे कई क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
विवरण:
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प्रधानमंत्री ने समावेश और प्रगति के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वमित्र और आवास जैसी योजनाओं में प्रौद्योगिकी की भूमिका तथा संपत्ति के स्वामित्व और महिला सशक्तिकरण के परिणामों का संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य -गरीबी और लैंगिक समानता- पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
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पीएम गतिशक्ति मास्टर प्लान भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित किया जा रहा है, जो डिजिटल ओसन प्लेटफार्म के समान है।
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प्रधानमंत्री ने भारत के पड़ोस में संचार की सुविधा के लिए दक्षिण एशिया उपग्रह का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने पहले ही भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के लाभों को साझा करने का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
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भू-स्थानिक डेटा का संग्रह, उत्पादन और डिजिटलीकरण का अब लोकतंत्रीकरण किया गया है।
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इन सुधारों के साथ ड्रोन क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया है और निजी क्षेत्र के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलने के साथ-साथ भारत में 5जी की शुरुआत हुई है।
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प्रधानमंत्री ने भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी की अनंत संभावनाओं को रेखांकित किया।
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इनमें स्थायी शहरी विकास, आपदाओं का प्रबंधन और शमन, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की निगरानी, वन प्रबंधन, जल प्रबंधन, मरुस्थलीकरण को रोकना और खाद्य सुरक्षा शामिल हैं।
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भारत की भू-स्थानिक अर्थव्यवस्था के 12.8% की वृद्धि दर से 2025 तक 63,000 करोड़ रुपये को पार करने और इससे 10 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलने की सम्भावना है।
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इस 5 दिवसीय कांग्रेस में लगभग 120 देशों के 700 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों और प्रतिभागियों सहित 2000 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
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इसके अलावा, भारतीय सर्वेक्षण विभाग जैसी राष्ट्रीय मानचित्रण एजेंसियां (एनएमएएस), जिसका 255 वर्षों का गौरवशाली इतिहास है, विश्व भर के वरिष्ठ अधिकारी, गैर-सरकारी संगठन, शिक्षाविद एवं उद्योग, उपयोगकर्ता और निजी क्षेत्र इस भू–स्थानिक कांग्रेस में भाग ले रहे हैं।
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भारत में इस समय लगभग 250 भू-स्थानिक स्टार्टअप्स हैं तथा इस क्षेत्र को और बढ़ावा देने के लिए एक भू- स्थानिक इनक्यूबेटर का अनावरण भी किया गया।
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भारतीय सर्वेक्षण विभाग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, राष्ट्रीय एटलस और विषयगत मानचित्रण संगठन (एनएटीएमओ), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो–आईएसआरओ) और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र जैसे राष्ट्रीय संगठनों ने भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों को प्रदर्शित करने के लिए अपशिष्ट संसाधन प्रबंधन, वानिकी, शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों (डोमेन) में कई जीआईएस-आधारित पायलट परियोजनाओं को लागू किया है।
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सरकार, उद्योग, शोधकर्ता, शिक्षाविद एवं नागरिक समाज प्रमुख समाधान तैयार करने के लिए गुणवत्तापूर्ण भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र (इंडियन जिओ-स्पैचियल इकोसिस्टम) स्थापित करने के लिए एक साथ आ रहे हैं।
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भारतीय भू- स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र का लोकतंत्रीकरण घरेलू नवाचार को बढ़ावा देगा तथा आधुनिक भू- स्थानिक प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर “आत्मनिर्भर भारत” अथवा “स्वयम समर्थ भारत” के सपने को पूरी तरह से साकार करके वैश्विस्तर पर भारतीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धी बनाने में सक्षम बनाएगा।
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भारत जिस तरह से इस तकनीक को अपना कर आगे बढ़ रहा है, उस पर भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालने जा रही है।
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ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मानचित्रों का उपयोग करके 45 लाख किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़कों का मानचित्रण (मैपिंग) किया है, जिसमें जल स्रोतों, हरित क्षेत्रों, भूखंडों और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए आवश्यक अन्य संरचनाओं के बारे में आवश्यक जानकारी का डिजिटलीकरण किया गया है।
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मंत्रालय द्वारा लगभग 2.6 लाख ग्राम पंचायतों को मानचित्रण और डिजिटलीकरण की योजना है।
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भू-स्थानिक क्षेत्र में विकसित प्रौद्योगिकियों के कारण परिवर्तनकारी बदलाव हुए हैं, जिससे भारत में एक इंच भूमि का भी मानचित्रण किया जा सकता है और भारत में भूमि सुधारों के लिए ठोस बैकअप प्रदान किया जा सकता है।
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भारत सरकार ने 2021 में नए भू-स्थानिक डेटा दिशानिर्देश जारी किए, जिनमें अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में भू-स्थानिक डेटा के व्यापक, सटीक, सूक्ष्म एवं निरंतर अद्यतन के लाभों को इस विश्वास के साथ स्वीकार किया गया है कि इससे देश में नवाचार को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा मिलेगा और यह आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए देश की तैयारी को बढ़ा देगा।
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भारत-यूएई उच्च स्तरीय संयुक्त कार्य बल की 10वीं बैठक:
सामान्य अध्ययन: 2
अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:
विषय : भारत के व्यापारिक हितों पर विभिन्न विकसित और विकासशील देशों की नीतियां और राजनीति का प्रभाव।
प्रारंभिक परीक्षा: भारत-यूएई व्यापक आर्थिक साझीदारी समझौते (सीईपीए) से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा: भारत-यूएई संबंधों पर एक लेख लिखिए।
प्रसंग:
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निवेशों पर भारत-यूएई उच्च स्तरीय संयुक्त कार्य बल (‘संयुक्त कार्य बल’) की 10वीं बैठक मुंबई में आयोजित हुई।
उद्देश्य:
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संयुक्त कार्य बल की स्थापना 2013 में भारत और यूएई के बीच व्यापार, निवेश तथा आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए की गई थी।
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भारत-यूएई व्यापक आर्थिक साझीदारी समझौता (सीईपीए) पर हस्ताक्षर किए जाने तथा फरवरी, 2022 में भारत के प्रधानमंत्री मोदी और यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जाएद अल नहयान के बीच संयुक्त भारत-यूएई विजन वक्तव्य के अनावरण के बाद संयुक्त कार्य बल की यह पहली बैठक थी।
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सीईपीए द्विपक्षीय आर्थिक, व्यापार तथा निवेश संबंधों को रूपांतरित करने तथा आर्थिक विकास को गति देने के लिए निर्धारित एक प्रमुख व्यापार समझौता है।
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ये दोनों ऐतिहासिक उपलब्धियां त्वरित गति से दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझीदारी को निरंतर मजबूत बनाने के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा प्रदान करते है।
विवरण:
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इसकी सह-अध्यक्षता भारत सरकार के केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल तथा अबू धाबी अमीरात की कार्यकारी परिषद के सदस्य शेख हमीद बिन जाएद अल नाहयान द्वारा की गई।
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संयुक्त कार्य बल की इस 10वीं बैठक के दौरान, दोनों सह-अध्यक्षों ने मई 2022 में इसके प्रभावी होने के बाद से, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार पर ऐतिहासिक भारत-यूएई सीईपीए के सकारात्मक प्रभाव के आरंभिक रुझानों को स्वीकार किया।
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दोनों सह-अध्यक्षों ने दोनों तरफ के व्यावसायियों से सीईपीए के तहत सृजित अनुकूल व्यापार इकोसिस्टम से ईष्टतम लाभ प्राप्त करने का आग्रह किया।
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सह-अध्यक्षों ने सीईपीए संयुक्त समिति एवं संबंधित उप-समितियों की स्थापना सहित सीईपीए के विभिन्न पहलुओं पर प्रगति का भी उल्लेख किया।
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दोनों प्रतिनिधि मंडलों ने भारत-यूएई द्विपक्षीय निवेश समझौते की वार्ता की स्थिति की समीक्षा की और संतुलित और परस्पर लाभदायक समझौते को शीघ्रता से संपन्न कर लेने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
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खाद्य सुरक्षा, विनिर्माण, अवसंरचना, ऊर्जा एवं प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में द्विपक्षीय निवेश बढ़ाने के तरीकों पर भी चर्चा हुई।
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इस परिप्रेक्ष्य में, यह सहमति हुई कि दोनों देशों में संबंधित प्राधिकारी व्यापार एवं निवेश संबंधित प्रक्रियाओं में लगने वाले समय और लागत में कमी लाने के लिए दक्ष और समेकित सिंगल विंडो सॉल्यूशंस एवं वर्चुअल ट्रेड कॉरिडोर की स्थापना की खोज करने का प्रयास करेंगे।
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भारत में यूएई की संप्रभु निवेश संस्थाओं द्वारा बढ़े हुए निवेश प्रवाह को प्रोत्साहित करने के एक माध्यम के रूप में, दोनों पक्षों ने विद्यमान यूएई-भारत कर समझौते के तहत यूएई की कुछ संप्रभु निवेश संस्थाओं को कर प्रोत्साहन उपलब्ध कराने के संबंध में यूएई के आग्रह तथा भारत के विद्यमान घरेलू कर कानूनों के तहत इसके लिए भारत की प्रतिक्रिया की समीक्षा की।
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इस पर सहमति जताई गई कि एक आपसी रूप से लाभदायक परिणाम पर पहुंचने के लिए द्विपक्षीय चर्चाएं जारी रहनी चाहिए।
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इस परिप्रेक्ष्य में, वित्त अधिनियम 2020 के माध्यम से यूएई की संप्रभु संस्थाओं को उपलब्ध सहायता तथा इसके बाद कर छूट के लिए अधिसूचनाएं जारी किए जाने को नोट किया गया तथा इसकी सराहना की गई।
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चर्चा का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र राष्ट्रीय मुद्राओं में द्विपक्षीय व्यापार करने के लिए एक तंत्र का निर्माण करना था।
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एक कॉमन डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म के रूप में यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) पर भारतीय रिजर्व बैंक एवं संयुक्त अरब अमीरात के सेंट्रल बैंक के बीच चल रही चर्चाओं का उल्लेख करते हुए, दोनों पक्षों ने चर्चाओं को जारी रखने पर सहमति जताई।
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भारत और यूएई के बीच व्यापक एवं बढ़ते व्यापार एवं निवेश संबंध द्वारा उपलब्ध कराई गई सकारात्मक पृष्ठभूमि में विशिष्ट मुद्दों एवं एक-दूसरे देश में निवेश करते समय कंपनियों के सामने आने वाली कठिनाइयों के समाधान के लिए एक फोरम के रूप में संयुक्त कार्य बल के महत्व को स्वीकार किया।
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भारत में यूएई की कंपनियों तथा निवेशकों के सामने आने वाले मुद्दों की पहचान करने, उनका समाधान करने तथा उनमें तेजी लाने के लिए भारत ने 2018 में एक यूएई प्लस डेस्क गठित किया है तथा 2019 में एक फास्ट ट्रैक तंत्र की स्थापना की।
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भारत में यूएई स्पेशल डेस्क की सभी सेक्टरों में यूएई निवेशों को आगे बढ़ाने एवं उन्हें सुगम बनाने के प्रयासों के लिए सराहना की गई।
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इस संबंध में, सहमति जताई गई कि भारतीय पक्ष लंबित मुद्दों एवं भारत में प्रचालन करने वाली यूएई की कई कंपनियों तथा बैंकों के सामने आने वाली कठिनाइयों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करने के लिए भारत में यूएई फास्ट ट्रैक तंत्र को आवश्यक सहायता प्रदान करेगा।
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इस पर भी सहमति जताई गई कि यूएई में भारतीय निवेशकों से संबंधित मुद्दों के तत्काल समाधान के लिए तथा यूएई में निवेश करते समय भारत कंपनियों को बाजार में प्रवेश और विस्तार में सहायता प्रदान करने के लिए यूएई में भी इसी प्रकार का एक भारत फास्ट ट्रैक तंत्र की स्थापना की जाएगी।
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प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
- भारत में फ्लेक्सी-फ्यूल स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (एफएफवी-एसएचईवी) पर अपनी तरह की पहली पायलट परियोजना का शुभारंभ:
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केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने 11 अक्टूबर को भारत में फ्लेक्सी-फ्यूल स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (एफएफवी-एसएचईवी) पर टोयोटा की अपनी तरह की पहली पायलट परियोजना का शुभारंभ किया, जो 100% पेट्रोल के साथ-साथ 20 से 100% मिश्रित इथेनॉल और विद्युत शक्ति पर चलेगी।
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उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के लिए कृषि विकास दर में 6 से 8 प्रतिशत की वृद्धि आवश्यक है। उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त खाद्यान्न और चीनी को इथेनॉल में परिवर्तित करने के महत्व पर जोर दिया।
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अन्नदाताओं’ को ‘ऊर्जादाता’ बनने के लिए प्रोत्साहित करते हुए इस पायलट परियोजना की सफलता इलेक्ट्रिक वाहनों का एक इको-सिस्टम तैयार करेगी और इन इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में न्यू इंडिया को वैश्विक नेता बनाएगी।
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ऐसी प्रौद्योगिकियां अभिनव, क्रांतिकारी, टिकाऊ, लागत प्रभावी, ऊर्जा कुशल हैं और ये नए भारत में परिवहन क्षेत्र को पूरी तरह से बदल देंगी।
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- उच्च शिक्षा पर भारत-नॉर्वे संयुक्त कार्यदल की बैठक आयोजित:
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भारत ने 11 अक्टूबर 2022 को नई दिल्ली में ‘उच्च शिक्षा पर भारत-नॉर्वे संयुक्त कार्यदल’ की छठी बैठक की मेजबानी की।
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25 अप्रैल 2022 को भारत और नॉर्वे के बीच उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग पर हस्ताक्षरित सहमति पत्र (MoU) के कार्यान्वयन की निगरानी और देख-रेख के लिए ही उपर्युक्त संयुक्त कार्यदल का गठन किया गया था।
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दोनों पक्षों ने वर्ष 2014 में हस्ताक्षरित पिछले भारत-नॉर्वे एमओयू के दायरे में रहकर तैयार किए गए ‘भारत-नार्वे सहयोग कार्यक्रम’ के तहत अब तक हुई प्रगति की समीक्षा की और इसके साथ ही दोनों पक्षों ने समग्र उच्च शिक्षा नीति एवं प्राथमिकताओं, विद्यार्थियों/संकाय के एक-दूसरे के यहां प्रवेश अथवा आने-जाने और कौशल विकास के क्षेत्र में सहयोग पर विचार-विमर्श किया।
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- “संजीवनी – लाइफस्टाइल क्लिनिक” का उद्घाटन:
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11 अक्टूबर 2022 को नई दिल्ली स्थित सशस्त्र बल क्लिनिक में “संजीवनी – लाइफस्टाइल क्लिनिक” नामक एक एकीकृत सुविधा का उद्घाटन किया।
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इस क्लिनिक में सभी सेवारत और सेवानिवृत्त सेनाकर्मियों और उनके आश्रितों को जीवन शैली संबंधी रोगों के खिलाफ व्यापक निवारक और उपचारात्मक देखभाल के बारे में आहार, व्यायाम और व्यवहार परामर्श दिया जाएगा।
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जीवनशैली में आ रहे बदलावों के साथ देश की जनता में मोटापा, उच्च रक्तचाप, डिस्लिपिडेमिया और मधुमेह जैसी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं और सशस्त्र बलों के सदस्य इसका अपवाद नहीं हैं।
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इस तरह के गैर-संचारी रोगों को बहु-विषयक और गैर-औषधीय तरीकों का उपयोग करके रोका जा सकता है।
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“संजीवनी – लाइफस्टाइल क्लिनिक” का उद्देश्य सशस्त्र बलों के कर्मियों और आश्रितों को जीवन शैली संबंधी विकारों के बारे में जागरूक करना, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और मोटापा आदि जैसे रोगों को रोकना और उनका प्रबंधन करना है तथा शिक्षा, व्यायाम और सकारात्मक प्रेरणा के अलावा बिना औषधीय हस्तक्षेप के आहार के माध्यम से एक स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देना है।
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लाइफस्टाइल डिजीज क्लिनिक टीम में एक डायटीशियन, फिजिकल ट्रेनर और एक काउंसलर होंगे, जिन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल होगी।
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स्वास्थ्य में समय के साथ होने वाली प्रगति पर नज़र रखने के लिए बेसलाइन और फॉलो-अप पर एंथ्रोपोमेट्रिक मापदंडों को रिकॉर्ड करने के लिए क्लिनिक में “हेल्थ कियोस्क” नामक एक स्वचालित उपकरण भी लगाया गया है।
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भारतीय सेना की यह अनूठी पहल, निवारक स्वास्थ्य देखभाल की एक विधि के रूप में स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देगी और पेट और पाचन संबंधी विभिन्न रोगों को दूर करने के लिए सुरक्षित और दवा मुक्त चिकित्सा सुनिश्चित करेगी।
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यह पहल प्रभावित सेवारत सैनिकों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के जीवन की गुणवत्ता और आत्मविश्वास में सकारात्मक बदलाव लाएगी।
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- प्रधानमंत्री ने उज्जैन में महाकाल लोक परियोजना का पहला चरण राष्ट्र को समर्पित किया:
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प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में श्री महाकाल लोक में महाकाल लोक परियोजना का पहला चरण राष्ट्र को समर्पित किया।
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महाकाल लोक परियोजना का पहला चरण, विश्व स्तरीय आधुनिक सुविधाएं प्रदान करके यहां मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों के अनुभव को समृद्ध करने में मदद करेगा।
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इस परियोजना का उद्देश्य इस पूरे क्षेत्र में भीड़भाड़ को कम करना और विरासत संरचनाओं के संरक्षण और जीर्णोद्धार पर विशेष जोर देना है।
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इस परियोजना के तहत मंदिर परिसर का करीब सात गुना विस्तार किया जाएगा। इस पूरी परियोजना की कुल लागत लगभग 850 करोड़ रुपये है। इस मंदिर का मौजूदा फुटफॉल वर्तमान में लगभग 1.5 करोड़ प्रति वर्ष है, इसके दोगुना होने की उम्मीद है।
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इस परियोजना के विकास की योजना दो चरणों में बनाई गई है।
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यहां महाकाल पथ में 108 स्तंभ हैं जो भगवान शिव के आनंद तांडव स्वरूप (नृत्य रूप) को दर्शाते हैं।
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महाकाल पथ के किनारे भगवान शिव के जीवन को दर्शाने वाली कई धार्मिक मूर्तियां स्थापित की गई हैं।
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इस पथ के साथ-साथ बने भित्ति चित्र शिव पुराण में वर्णित सृजन के कार्य, गणेश के जन्म, सती और दक्ष की कहानियों पर आधारित है।
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इस प्लाजा का क्षेत्रफल 2.5 हेक्टेयर में फैला हुआ है और एक ये कमल के तालाब से घिरा हुआ है जिसमें पानी के फव्वारे के साथ शिव की मूर्ति है।
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सर्विलांस कैमरों की मदद से इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर द्वारा इस पूरे परिसर की चौबीसों घंटे निगरानी की जाएगी।
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- बांग्लादेश के 1,800 सिविल सेवकों को 2025 तक प्रशिक्षण दिया जाएगा:
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बांग्लादेश के सिविल सेवकों के लिए क्षेत्रीय प्रशासन में दो सप्ताह के 53वें क्षमता निर्माण कार्यक्रम का मसूरी स्थित राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (एनसीजीजी) में उद्घाटन किया गया।
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2019 से पहले, बांग्लादेश के पंद्रह सौ सिविल सेवकों को एनसीजीजी में प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
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चरण-I के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद, बांग्लादेश के अन्य 1,800 सिविल सेवकों की क्षमता निर्माण का काम शुरू किया गया है, जिसे 2025 तक पूरा करने की योजना है।
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यह देश का ऐसा एकमात्र संस्थान है जिसने बांग्लादेश सिविल सेवा के 1,727 क्षेत्रीय स्तर के अधिकारियों जैसे कि सहायक आयुक्त, उप-जिला निर्भय अधिकारी/एसडीएम और अतिरिक्त उपायुक्त आदि को प्रशिक्षित किया है।
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संस्थान में बांग्लादेश के उस समय पदस्थ सभी उपायुक्तों को भी प्रशिक्षित किया गया था।
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इन क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को शुरू हुए एक दशक हो गया है और इस प्रकार कई प्रशिक्षु अधिकारी बांग्लादेश सरकार में अतिरिक्त सचिव और सचिव के स्तर तक पहुंच गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच शासन में तालमेल कायम है।
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भारत सरकार ने 2014 में राष्ट्रीय सुशासन केंद्र की स्थापना देश के एक शीर्ष संस्थान के रूप में की थी।
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इस संस्थान में सुशासन, नीति सुधार, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पर ध्यान दिया जाता है और यह एक थिंक टैंक के रूप में भी काम करता है।
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इसने विदेश मंत्रालय के साथ साझेदारी में कई अन्य देशों के सिविल सेवकों के क्षमता निर्माण का कार्य हाथ में लिया है।
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इनमें बांग्लादेश, केन्या, तंजानिया, ट्यूनीशिया, सेशेल्स, गाम्बिया, मालदीव, श्रीलंका, अफगानिस्तान, लाओस, वियतनाम, भूटान, म्यांमार और कंबोडिया जैसे 15 देश शामिल हैं।
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यहां प्रशिक्षण लेने आने वाले अधिकारियों ने इन प्रशिक्षण सत्रों को अत्यधिक उपयोगी पाया है।
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विकासशील देशों के सिविल सेवकों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम का लक्ष्य उन्हें इस जटिल और परस्पर निर्भर दुनिया में प्रभावी सार्वजनिक नीति बनाने और लागू करने के लिए अत्याधुनिक ज्ञान, कौशल और उपकरणों से लैस करना है।
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उम्मीद की जाती है कि यह प्रशिक्षण सुशासन और अंततः सतत विकास प्राप्त करने के साथ-साथ समृद्ध क्रॉस-कंट्री अनुभव प्रदान करने में सहायक होगा।
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प्रशिक्षण के दौरान केंद्र विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों तथा अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए देश में की जा रही ई-गवर्नेंस, डिजिटल इंडिया, सार्वजनिक सेवाओं का सार्वभौमिकरण, सतत विकास लक्ष्यों के लिए दृष्टिकोण, सेवा वितरण में आधार का उपयोग, लोक शिकायत निवारण तंत्र और आपदा प्रबंधन जैसी पहलों को साझा कर रहा है।
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कार्यक्रम के दौरान, प्रतिभागियों को दिल्ली मेट्रो, स्मार्ट सिटी, मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान, केंद्रीय सूचना आयोग, भारत निर्वाचन आयोग आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में किए जा रहे विकास कार्यों को देखने के लिए भी ले जाया जाएगा।
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