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13 जून 2023 : PIB विश्लेषण

विषयसूची:

  1. PLI योजनाएं उत्पादन, रोजगार सृजन और आर्थिक विकास में वृद्धि का सूचक:  
  2. भारतीय औषधि नियंत्रक ने चोट के न्यूनतम निशान के साथ त्वचा के घावों का उपचार करने के लिए स्वदेशी रूप से विकसित पशुओं से निकाले गए पहले टिश्यू इंजीनियरिंग स्कैफोल्ड को मंजूरी दी:
  3. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण प्रशिक्षण संस्थान, हैदराबाद को “अति उत्तम” के रूप में मान्यता प्राप्त हुई: 
  4. ASW SWC (GRSE) के तीसरे जहाज ‘अंजदीप’ का शुभारंभ:
  5. कट्टुपल्ली में सर्वे वैसल्स (लार्ज) परियोजना के चौथे जहाज ‘संशोधक’ को लॉन्च किया गया:
  6. ट्राई ने TCCCPR 2018 के तहत कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग आधारित यूसीसी_डिटेक्ट सिस्टम लगाने का निर्देश जारी किया:

1. PLI योजनाएं उत्पादन, रोजगार सृजन और आर्थिक विकास में वृद्धि का सूचक:

सामान्य अध्ययन: 3

आर्थिक विकास: 

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों को जुटाने, संवृद्धि और विकास से संबंधित विषय।  

प्रारंभिक परीक्षा: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं।

मुख्य परीक्षा: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं एवं इनका महत्व।   

प्रसंग: 

  • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के कारण देश में उत्पादन, रोजगार सृजन, आर्थिक विकास और निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

उद्देश्य:

  •  उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) ने बताया कि PLI योजनाओं के कारण पिछले वित्त वर्ष 2020-21 (USD 12.09 बिलियन) के मुकाबले वित्त वर्ष 2021-22 में विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई में 76 प्रतिशत (21.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।  

विवरण:  

  • भारत को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के उद्देश्य से PLI योजनाओं को 14 क्षेत्रों के लिए अपनी उत्पादन क्षमताओं को मजबूत करने और वैश्विक चैंपियन बनाने में मदद करने के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपए (लगभग यूएस $ 26 बिलियन) के प्रोत्साहन परिव्यय की नींव पर तैयार किया गया है।
  • जिन क्षेत्रों के लिए PLI योजनाएं मौजूद हैं और वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2022-23 तक एफडीआई प्रवाह में वृद्धि देखी गई है, वे ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स (+46 प्रतिशत), खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (+26 प्रतिशत) और चिकित्सा उपकरण (+91 प्रतिशत) हैं।  
    • PLI योजनाओं ने भारत की निर्यात की सूची को पारंपरिक वस्तुओं से उच्च मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार सामान, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों आदि में बदल दिया है।
  • अब तक, 14 क्षेत्रों में 3.65 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश के साथ 733 आवेदन स्वीकृत किए गए हैं। 
    • बल्क ड्रग्स, मेडिकल डिवाइसेज, फार्मा, टेलीकॉम, व्हाइट गुड्स, फूड प्रोसेसिंग, टेक्सटाइल्स और ड्रोन जैसे क्षेत्रों में PLI लाभार्थियों में 176 MSME शामिल हैं।
  • मार्च 2023 तक 62,500 करोड़ रुपये  का असल निवेश हो चुका है जिसके परिणामस्वरूप 6.75 लाख करोड़ रुपये से अधिक का उत्पादन/बिक्री हुई है और लगभग 3,25,000 का रोजगार सृजन हुआ है।
    • वित्त वर्ष 2022-23 तक निर्यात में 2.56 लाख करोड़ रुपये का इजाफा हुआ।
  • वित्त वर्ष 2022-23 में 8 क्षेत्रों के लिए PLI योजनाओं के तहत करीब 2,900 करोड़ रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में वितरित किए गए। 
    • ये 8 क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण (LSEM), आईटी हार्डवेयर, थोक दवाएं, चिकित्सा उपकरण, फार्मास्यूटिकल्स, दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पाद, खाद्य प्रसंस्करण और ड्रोन और ड्रोन घटक आदि हैं।
  • PLI योजना ने प्रमुख स्मार्टफोन कंपनियों जैसे, फॉक्सकॉन, विस्ट्रॉन और पेगाट्रॉन को अपने आपूर्तिकर्ताओं को भारत में स्थानांतरित करने के लिए प्रेरित किया है। 
    • नतीजतन, भारत में शीर्ष हाई-एंड फोन का निर्माण किया जा रहा है।
    • इसके परिणामस्वरूप बैटरी और लैपटॉप जैसे आईटी हार्डवेयर में महिलाओं के रोजगार और स्थानीयकरण में 20 गुना वृद्धि हुई है। 
    • भारत में मोबाइल विनिर्माण में मूल्यवर्धन 20 प्रतिशत के बराबर है। 
    • भारत 3 साल की अवधि के भीतर मोबाइल निर्माण में मूल्यवर्धन को 20 प्रतिशत तक बढ़ाने में सक्षम हैं, जबकि वियतनाम जैसे देशों ने 15 वर्षों में 18 प्रतिशत मूल्यवर्धन हासिल किया है और चीन ने 25 वर्षों में 49 प्रतिशत मूल्यवर्धन हासिल किया है।  
  • मौजूदा चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP) के साथ LSEM के लिए PLI योजना ने इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में और स्मार्टफोन निर्माण में क्रमश: 23 प्रतिशत और 20 प्रतिशत की वृद्धि की है, जो 2014-15 में नही के बराबर थी। 
    • वित्त वर्ष 2022-23 में USD 101 बिलियन के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में, स्मार्टफोन निर्यात के रूप में इसका हिस्सा USD 11.1 बिलियन सहित USD 44 बिलियन का है।
  • दूरसंचार क्षेत्र में 60 प्रतिशत का आयात प्रतिस्थापन हासिल किया गया है और भारत एंटीना, GPON (गीगाबिट पैसिव ऑप्टिकल नेटवर्क) और CPE (ग्राहक परिसर उपकरण) में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। 
    • ड्रोन क्षेत्र ने PLI योजना के कारण टर्नओवर में 7 गुना वृद्धि देखी है जिसमें सभी MSME स्टार्टअप शामिल हैं।
  • खाद्य प्रसंस्करण के लिए PLI योजना के तहत, भारत से कच्चे माल की सोर्सिंग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिसने भारतीय किसानों और MSME की आय पर सकारात्मक प्रभाव डाला है।
  • PLI योजना के कारण फार्मा क्षेत्र में कच्चे माल के आयात में भारी कमी आई है। 
    • पेनिसिलिन-जी सहित भारत में अद्वितीय मध्यवर्ती सामग्री और थोक दवाओं का निर्माण किया जा रहा है और चिकित्सा उपकरणों जैसे (सीटी स्कैन, एमआरआई आदि) के निर्माण में प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण हुआ है।

2. भारतीय औषधि नियंत्रक ने चोट के न्यूनतम निशान के साथ त्वचा के घावों का उपचार करने के लिए पहले स्वदेशी रूप से विकसित पशुओं से निकाले गए टिश्यू इंजीनियरिंग स्कैफोल्ड को मंजूरी दी:

सामान्य अध्ययन: 3

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: 

विषय:  विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी -विकास एवं अनुप्रयोग और रोजमर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव।  

प्रारंभिक परीक्षा: टिश्यू इंजीनियरिंग स्कैफोल्ड से संबंधित जानकारी, भारतीय औषधि नियंत्रक।

प्रसंग: 

  • स्तनपायी अंगों से स्वदेशी रूप से विकसित प्रथम टिश्यू इंजीनियरिंग स्कैफोल्ड, पशुओं से निकाली गई क्लास डी बायोमेडिकल डिवाइस है, जो त्वचा के घावों को न्यूनतम निशान के साथ कम लागत पर तेजी से उपचार कर सकती है, को भारतीय औषधि नियंत्रक से मंजूरी प्राप्त हुई है।

उद्देश्य:

  • इसके साथ, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) का एक स्वायत्त संस्थान, श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (ACTIMST) श्रेणी-डी चिकित्सा उपकरणों को विकसित करने वाला देश का पहला संस्थान बन गया है, जो भारत सरकार के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की सभी वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करता है।  

विवरण:  

  • उन्नत घाव देखभाल उत्पादों के रूप में पशुओं से निकाली गई सामग्रियों का उपयोग करने की अवधारणा नई नहीं है। 
    • तथापि, औषधि महानियंत्रक की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले गुणवत्ता उत्पादों के निर्माण के लिए अभी तक स्वदेशी तकनीक उपलब्ध नहीं थी। 
    • इसलिए, ऐसे उत्पादों का आयात किया जाता था, जिससे वे महंगे हो जाते थे।
  • विगत 15 वर्षों में प्रभाग में की गई जांच में पिग गॉल ब्लैडर को डीसेल्यूलराइज किया गया और एक्सट्रासेल्यूलर मैट्रिक्स हासिल किया गया। 
    • चोलेडर्म के रूप में पहचाने जाने वाले स्कैफोल्ड के मेम्ब्रेन रूपों ने चूहे, खरगोश या कुत्तों में जले और मधुमेह के घावों सहित विभिन्न प्रकार के त्वचा के घावों का उपचार किया, जो वर्तमान में बाजार में उपलब्ध इसी तरह के उत्पादों की तुलना में कम से कम निशान के रूप में उपलब्ध हैं, जैसा कि टाइप I और टाइप III कोलेजन पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई गहन प्रयोगशाला जांचों द्वारा सिद्ध किया गया है।
    • टीम ने उपचार प्रतिक्रिया के संभावित तंत्र को उजागर किया और प्रदर्शित किया कि ग्राफ्ट-सहायता प्राप्त उपचार को एंटी-इनफ्लेमेटरी (प्रो-रीजेनरेटिव) मैक्रोफेज के एम-2 टाइप के द्वारा विनियमित किया गया था। 
    • वास्तव में, स्कैफोल्ड ने सलक्यूटेनियस, कंकाल की मांसपेशियों और कार्डियक टिश्यू में स्कैरिंग के निशान वाली प्रतिक्रियाओं को संशोधित या कम कर दिया।
  • यह उम्मीद की जाती है कि भारतीय बाजार में कोलेडर्म की शुरुआत के साथ, उपचार की लागत 10,000/- रुपये से घटकर 2,000/- रुपये हो सकती है, जिससे यह आम आदमी के लिए अधिक किफायती हो जाएगा। 
    • इसके अलावा, उपरोक्त निष्कर्षों ने सूअरों के गॉलब्लैडर, जो आमतौर पर बिना किसी मौद्रिक मूल्य के बूचड़खाने का अवशिष्ट होता है, को बायोफार्मास्यूटिकल उद्योग के लिए एक अत्यधिक मूल्य वर्धित कच्चा माल बना दिया, जिससे सुअर पालकों के लिए आय सृजन करने का एक अतिरिक्त अवसर सृजित हुआ।
  • यद्यपि, कार्डियक चोट के उपचार के लिए स्कैफोल्ड के मैम्ब्रेन रूपों का अनुप्रयोग जटिल था। इसलिए    टीम स्कैफोल्ड का इंजेक्टेबल जेल फॉर्मूलेशन विकसित कर रही है जो स्कैफोल्ड के ट्रांसवेनस ऑन-साइट डिलीवरी और पॉलीमेरिक चिकित्सा उपकरणों के सतह संशोधन में सक्षम बनाती है। 
    • इस दावे की पुष्टि करने के लिए पशुओं की कई प्रजातियों में आगे और जांच करना आवश्यक है।
    • यदि यह सही है, तो इन पर्यवेक्षणों से म्योकार्डिअल इंफार्क्शन से पीड़ित रोगियों के प्रबंधन के समकालीन तौर-तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन आने की संभावना है।

प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

1.भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण प्रशिक्षण संस्थान, हैदराबाद को “अति उत्तम” के रूप में मान्यता प्राप्त हुई:

  • खान मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण प्रशिक्षण संस्थान (GSITI) को इसके द्वारा प्रदान की जाने वाली उत्कृष्ट सेवाओं और पृथ्वी विज्ञान प्रशिक्षण के क्षेत्र में उच्च मानकों को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रत्यायन बोर्ड (NABET) द्वारा मान्यता प्रदान की गई है। 
    • इसका मूल्यांकन संस्थान द्वारा विभिन्न स्तरों पर अपनाई गई सभी मानक संचालन प्रक्रियाओं व पद्धतियों के निरीक्षण के आधार पर किया गया था। 
    • क्षमता निर्माण आयोग (CBC), NABET और भारतीय गुणवत्ता नियंत्रण की टीम ने कार्यस्थल पर ही इसका मूल्यांकन किया और अति उत्तम की ग्रेडिंग के साथ प्रत्यायन प्रमाणपत्र प्रदान किया।
  • GSITI का मुख्यालय हैदराबाद में है, जिसे वर्ष 1976 में स्थापित किया गया था। 
    • इसके छह क्षेत्रीय प्रशिक्षण प्रभाग (RTD) हैदराबाद, नागपुर, जयपुर, लखनऊ, कोलकाता और शिलांग में स्थित हैं। 
    • इसके अलावा चित्रदुर्ग (कर्नाटक), रायपुर (छत्तीसगढ़), जावर (राजस्थान) और कुजू (झारखंड) में भी चार क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र (FTC) स्थापित किए गए हैं। 
    • ये केंद्र भूविज्ञान के विभिन्न विषयों में भूविज्ञान पेशेवरों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं और छात्रों को विभिन्न तरह के प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए खान मंत्रालय के दृष्टिकोण के अनुसार स्थापित किए गए हैं। 
    • इस प्रकार से GSITI खान मंत्रालय के तहत एक राष्ट्रीय प्रशिक्षण सुविधा है, जो केंद्रीय और राज्य स्तरीय विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (MECL, ONGC, OIL, NMDC), राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों (आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों व कॉलेजों), विद्यालयों सहित कई हितधारकों को प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण सुविधाएं प्रदान करती है। 
    • संस्थान नियमित रूप से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा प्रायोजित NNRMS कार्यक्रम के तहत रिमोट सेंसिंग पर पाठ्यक्रम आयोजित करता है। 
    • यह अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थान है और विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित ITEC कार्यक्रम के तहत विकासशील देशों के प्रतिभागियों को प्रशिक्षण प्रदान करता है। 
    • संस्थान द्वारा 75 देशों के पेशेवरों को पहले ही प्रशिक्षित किया जा चुका है।
  • GSITI हैदराबाद में अपने केंद्र और देश भर में स्थित RTD तथा FTC के माध्यम से डोमेन विशिष्ट व क्षेत्र आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करता है। 
    • हिमालय सहित विभिन्न भूभागों की मानचित्रण तकनीकों, खनिज क्षेत्रों (सोना, हीरा, तांबा, लिथियम, REE, लोहा, मैंगनीज आदि) को लक्षित करने के लिए अन्वेषण विधियों, फोटो-जियोलॉजी व रिमोट सेंसिंग, भौगोलिक सूचना प्रणाली, पेट्रोलॉजी, जियोक्रोनोलॉजी, भूभौतिकी, रसायन विज्ञान में विश्लेषणात्मक तरीके, पर्यावरण एवं शहरी भूविज्ञान और प्राकृतिक खतरे का शमन तथा रिमोट सेंसिंग व भौगोलिक गतिविधियों में डोमेन दक्षताओं को सुधारने के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की पेशकश की जाती है।

2.ASW SWC (GRSE) के तीसरे जहाज ‘अंजदीप’ का शुभारंभ:

  • भारतीय नौसेना के लिए मैसर्स GRSE द्वारा निर्मित ASW शैलो वाटर क्राफ्ट (SWC) परियोजना के आठ जहाजों में से तीसरे जहाज ‘अंजदीप’ का शुभारम्भ 13 जून, 2023 को मैसर्स L&T, कट्टुपल्ली में किया गया।
  • इस जहाज का नाम कारवार से दूर स्थित अंजदीप द्वीप को दिए गए सामरिक समुद्री महत्व को दर्शाने के लिए अंजदीप रखा गया है। यह द्वीप एक बांध (ब्रेकवाटर) के जरिए मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है और आईएनएस कदंबा का हिस्सा है। 
  • रक्षा मंत्रालय (MoD) और गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE), कोलकाता के बीच आठ ASW SWC जहाजों के निर्माण के लिए अनुबंध पर 29 अप्रैल, 2019 को हस्ताक्षर किए गए थे। 
    • निर्माण रणनीति के अनुसार, GRSE, कोलकाता में चार जहाजों का निर्माण किया जा रहा है और शेष चार जहाजों के निर्माण के लिए मैसर्स L&T शिपबिल्डिंग, कट्टुपल्ली के साथ उप-अनुबंध किया गया है। 
    • अर्नाला श्रेणी के जहाज भारतीय नौसेना के सेवारत अभय वर्ग ASW कॉर्वेट्स की जगह लेंगे। ये तटीय समुद्री इलाकों में पनडुब्बी रोधी ऑपरेशन, लो इंटेंसिटी मैरीटाइम ऑपरेशंस (LIMO) और तटीय जल में उपसतह निगरानी सहित माइन लेइंग ऑपरेशन के लिए डिजाइन किए गए हैं। 
    • 77 मीटर लंबे ASW SWC जहाजों में 25 समुद्री मील की अधिकतम गति और 1800 NM की सहनशक्ति के साथ 900 टन की विस्थापन क्षमता है।
  •  ‘आत्म-निर्भर भारत’ के विज़न के हिस्से के रूप में स्वदेशी जहाज निर्माण के प्रति हमारे संकल्प को मजबूत करता है। 
    • इस परियोजना के तहत निर्मित पहले जहाज को इस साल दिसंबर तक भारतीय नौसेना को सौंपने की योजना है। 
    • ASW SWC जहाजों में 80% से अधिक स्वदेशी सामग्री होगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि बड़े पैमाने पर रक्षा उत्पादन भारतीय विनिर्माण इकाइयों द्वारा पूरा निष्पादित किया जाता है। 
    • इससे रोजगार पैदा होता है और देश की क्षमता में बढ़ोतरी भी होती है।

3.कट्टुपल्ली में सर्वे वैसल्स (लार्ज) परियोजना के चौथे जहाज ‘संशोधक’ को लॉन्च किया गया

  • भारतीय नौसेना के लिए L&T/GRSE द्वारा निर्मित किए जा रहे सर्वे वैसल्स (लार्ज) (SVL) परियोजना के चार जहाजों में से चौथे ‘संशोधक’ को 13 जून 23 को चेन्नई के कट्टुपल्ली में लॉन्च किया गया। 
    • इस समारोह के मुख्य अतिथि भारत सरकार के मुख्य हाइड्रोग्राफर वीएडीएम अधीर अरोड़ा थे। 
    • ‘संशोधक’ नाम का जहाज, जिसका अर्थ है ‘शोधकर्ता’ एक सर्वेक्षण पोत के रूप में जहाज की प्राथमिक भूमिका को दर्शाता है।
  • रक्षा मंत्रालय और कोलकाता के गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) के बीच 30 अक्टूबर, 2018 को चार SVL जहाजों के निर्माण के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे। 
    • निर्माण रणनीति के अनुसार, पहला जहाज कोलकाता के GRSE में बनाया जाएगा और आउटफिटिंग चरण तक शेष तीन जहाजों के निर्माण के लिए कट्टुपल्ली के मैसर्स L&T शिपबिल्डिंग को उप-अनुबंधित किया गया है। 
    • परियोजना के पहले तीन जहाजों, संध्याक, निर्देशक और इक्षक को क्रमशः 5 दिसंबर, 2021, 26 मई, 2022 और 26 नवंबर, 2022 को लॉन्च किया गया था।
  • SVL जहाज समुद्र संबंधी डेटा एकत्र करने के लिए नई पीढ़ी के हाइड्रोग्राफिक उपकरणों के साथ विद्यमान संध्याक वर्ग के सर्वेक्षण जहाजों को प्रतिस्थापित करेंगे। 
    • सर्वे वैसल्स (लार्ज) जहाज 110 मीटर लंबे, 16 मीटर चौड़े और 3,400 टन के विस्थापन की क्षमता से लैस हैं। 
    • इन जहाजों का पतवार स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा निर्मित स्वदेशी रूप से विकसित डीएमआर 249-A स्टील से बना हुआ है।
  • चार सर्वे मोटर बोट और एक इंटिग्रल हेलीकॉप्टर ढोने की क्षमता के साथ, इन जहाजों की प्राथमिक भूमिका बंदरगाहों और नौवहन चैनलों के पूर्ण पैमाने पर तटीय और गहरे पानी के हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने की होगी। 
    • इन जहाजों को रक्षा के साथ-साथ नागरिक अनुप्रयोगों के लिए समुद्र विज्ञान और भू-भौतिकीय डेटा एकत्र करने के लिए भी तैनात किया जाएगा। 
    • अपनी द्वितीयक भूमिका में ये जहाज सीमित रक्षा, एचएडीआर प्रदान करने में सक्षम हैं और आपात स्थिति के दौरान अस्पताल के जहाज के रूप में काम कर सकते हैं।
  • सर्वे वैसल्स लार्ज में लागत के हिसाब से 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री होगी, जो देश में रोजगार सृजन और युद्धपोत निर्माण क्षमता में अतिरिक्त उत्पादों के साथ भारतीय निर्माण इकाइयों द्वारा रक्षा उत्पादन सुनिश्चित करेगी। 
    • चौथे सर्वे वैसल्स का शुभारंभ ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सरकार के विजन के हिस्से के रूप में स्वदेशी जहाज निर्माण के हमारे संकल्प को मजबूत करता है।

4.ट्राई ने TCCCPR 2018 के तहत कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग आधारित यूसीसी_डिटेक्ट सिस्टम लगाने का निर्देश जारी किया:

  • ट्राई ने सभी एक्सेस प्रदाताओं को ऐसे वाणिज्यिक संचार के प्रेषकों का पता लगाने, उनकी पहचान करने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग आधारित यूसीसी_डिटेक्ट सिस्टम तैनात करने का निर्देश दिया है, जो दूरसंचार वाणिज्यिक संचार ग्राहक वरीयता विनियम, 2018 (TCCCPR-2018) के प्रावधानों के अनुसार पंजीकृत नहीं हैं। 
  • वे संस्थाएँ जो एक्सेस प्रोवाइडर्स के साथ पंजीकृत नहीं होती हैं और संदेशों या कॉल के माध्यम से वाणिज्यिक संचार भेजने के लिए 10 अंकों के मोबाइल नंबरों का उपयोग करती हैं, उन्हें अपंजीकृत टेलीमार्केटर्स (UTM) कहा जाता है।
  • ट्राई अवांछित वाणिज्यिक संचार (UCC) को रोकने के लिए कई कदम उठा रहा है जो जनता के लिए असुविधा का एक प्रमुख कारण है।  
    • इसके परिणामस्वरूप, पंजीकृत टेलीमार्केटर्स (RTM) के खिलाफ शिकायतों में कमी आई है।  टीएसपी द्वारा किए गए उपायों के बावजूद अपंजीकृत टेलीमार्केटर्स (UTM) द्वारा यूसीसी अभी भी जारी है। 
    • कई बार ये UTM फर्जी लिंक और टेलीफोन नंबर वाले संदेशों के माध्यम से ग्राहकों को अपनी महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने के लिए फंसाते हैं जिससे ग्राहकों को वित्तीय नुकसान होता है।
  • ऐसे सभी अपंजीकृत टेलीमार्केटर्स (UTM) का पता लगाने, उनकी पहचान करने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए ट्राई एक्सेस सर्विस प्रोवाइडर्स पर ट्राई के टेलीकॉम कमर्शियल कम्युनिकेशन कस्टमर प्रेफरेंस रेगुलेशंस 2018 (TCCCPR-2018) के ढांचे के भीतर अपेक्षित कार्यात्मकताओं के साथ यूसीसी_डिटेक्ट सिस्टम लागू करने पर जोर दे रहा है। 
  • एक्सेस सेवा प्रदाताओं ने अपनी उपयुक्तता और व्यवहार्यता के अनुसार ऐसी पहचान प्रणाली लागू की है।  चूंकि UTM अवांछित संचार भेजने के लिए लगातार नई तकनीकों का विकास कर रहे हैं, इसलिए एक्सेस सेवा प्रदाताओं द्वारा तैनात वर्तमान यूसीसी डिटेक्ट सिस्टम ऐसे UCC का पता लगाने में पूरी तरह से सक्षम नहीं हैं।
  • इसलिए, यूसीसी_डिटेक्ट सिस्टम कार्यान्वयन की एकरूपता के लिए ट्राई ने सभी एक्सेस प्रदाताओं को कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग आधारित यूसीसी_डिटेक्ट सिस्टम को तैनात करने का निर्देश दिया है जो UTM द्वारा उपयोग किए जाने वाले नए हस्ताक्षर, नए पैटर्न और नई तकनीकों से निपटने के लिए लगातार विकसित होने में सक्षम है। 
    • एक्सेस प्रदाताओं को डीएलटी प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वाले अन्य एक्सेस प्रदाताओं के साथ खुफिया जानकारी साझा करने के लिए भी निर्देशित किया गया है। 
    • एक्सेस प्रदाताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया गया है कि ऐसे यूसीसी_डिटेक्ट सिस्टम प्रेषकों का पता लगाएंगे जो थोक में अवांछित वाणिज्यिक संचार भेज रहे हैं और नियमों के प्रावधानों का पालन नहीं कर रहे हैं। 
      • सभी एक्सेस प्रदाताओं को निर्देश दिया जाता है कि वे उपरोक्त निर्देशों का पालन करें और तीस दिनों के भीतर की गई कार्रवाई की अद्यतन स्थिति अग्रेषित करें।

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