विषयसूची:
1. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खरीफ सीजन के लिए फॉस्फेट और पोटास (पीएंडके) उर्वरकों की सब्सिडी (एनबीएस) दरों को मंजूरी दी:
सामान्य अध्ययन: 3
अर्थव्यवस्था,कृषि :
विषय: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां,हस्तक्षेप,उनके डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: फॉस्फेट और पोटास (पीएंडके) उर्वरक,पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस)।
मुख्य परीक्षा: किसानों को कृषि क्षेत्र का समर्थन करने में किस प्रकार मदद मिलेगी?
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने खरीफ सीजन-2022 (01 अप्रैल 2022 से 30 सितम्बर 2022 तक) के लिए फॉस्फेट और पोटास (पीएंडके) उर्वरकों की सब्सिडी (एनबीएस) दरों को मंजूरी दे दी है।
उद्देश्य:
- माल ढुलाई संबंधी सब्सिडी के माध्यम से स्वदेशी उर्वरक के लिए सहायता (एसएसपी) और डीएपी के स्वदेशी उत्पादन व आयात के लिए अतिरिक्त सहायता समेत मंत्रिमंडल द्वारा पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) खरीफ-2022 (01 अप्रैल 2022 से 30 सितम्बर 2022 तक) के लिए मंजूर की गई सब्सिडी 60,939.23 करोड़ रुपये होगी।
विवरण:
- डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और इसके कच्चे माल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि को मुख्य रूप से केंद्र सरकार द्वारा वहन किया गया है।
- केंद्र सरकार ने डीएपी पर 1650 रुपये प्रति बैग की मौजूदा सब्सिडी के स्थान पर 2501 रुपए प्रति बैग की सब्सिडी देने का फैसला किया है, जो पिछले साल की सब्सिडी दरों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक है।
- डीएपी और उसके कच्चे माल की कीमतों में लगभग 80 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
- इससे किसानों को रियायती और उचित दरों पर अधिसूचित पीएंडके उर्वरक और कृषि क्षेत्र का समर्थन करने में मदद मिलेगी।
कार्यान्वयन की रणनीति और लक्ष्य:
- किसानों को सस्ती कीमतों पर इन उर्वरकों की सुगम उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए खरीफ सीजन-2022 (01 अप्रैल 2022 से 30 सितम्बर 2022 तक लागू) के लिए एनबीएस दरों के आधार पर पीएंडके उर्वरकों पर सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
पृष्ठ्भूमि:
- सरकार उर्वरक उत्पादकों/आयातकों के माध्यम से किसानों को रियायती कीमतों पर यूरिया और 25 ग्रेड पीएंडके उर्वरक उपलब्ध करा रही है।
- एनबीएस योजना द्वारा पीएंडके उर्वरकों पर सब्सिडी 01 अप्रैल 2010 से नियंत्रित की जा रही है।
- उर्वरक कंपनियों को स्वीकृत दरों के अनुसार सब्सिडी जारी की जाएगी, ताकि वे किसानों को सस्ती कीमत पर उर्वरक उपलब्ध करा सकें।
2. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिव्यांगता के क्षेत्र में सहयोग के लिए भारत और चिली के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर को मंजूरी दी:
सामान्य अध्ययन: 2
अंतराष्ट्रीय सम्बन्ध:
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से जुड़े या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते ।
प्रारंभिक परीक्षा: भारत-चिली के संबंध ।
मुख्य परीक्षा: यह समझौता भारत और चिली के बीच किस प्रकार द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगा एवं दिव्यांग जान पर इसके प्रभाव।
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने भारत और चिली के बीच दिव्यांगता के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर को मंजूरी दे दी है।
उद्देश्य:
- द्विपक्षीय समझौता ज्ञापन दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग, भारत सरकार और चिली सरकार के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करेगा।
- यह भारत और चिली के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगा।
विवरण:
- दिव्यांगता के क्षेत्र में विशेष रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग की इच्छा व्यक्त करने वाले देशों के बीच एक संयुक्त आशय पत्र पर हस्ताक्षर किए गएः
- दिव्यांगता से जुड़ी नीति और सेवाएं प्रदान करने के बारे में जानकारी साझा करना।
- सूचना और ज्ञान का आदान-प्रदान।
- सहायक उपकरण संबंधी प्रौद्योगिकी में सहयोग।
- दिव्यांगता के क्षेत्र में पारस्परिक हित की परियोजनाओं का विकास।
- दिव्यांगता की प्रारंभ में पहचान और रोकथाम।
- विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और अन्य प्रशासनिक कर्मचारियों का आदान-प्रदान।
- एमओयू इसके तहत गतिविधियों के लिए खर्च के लिए वित्त पोषण के लिए तंत्र प्रदान करता है।
- इस तरह की गतिविधियों के लिए खर्च दोनों सरकार द्वारा और संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर तय किया जाएगा।
- संयुक्त गतिविधियों के लिए अंतरराष्ट्रीय यात्रा/आवास की लागत का वहन अतिथि देश द्वारा किया जाएगा जबकि बैठक आयोजित करने की लागत मेजबान देश द्वारा वहन की जाएगी।
पृष्ठ्भूमि:
- भारत-चिली के संबंध व्यापक मुद्दों पर विचारों की समानता पर आधारित सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण हैं।
- वर्ष 2019-20 दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों का 70वां वर्ष है।
- दोनों देशों की ओर से कई उच्चस्तरीय यात्राओं के साथ द्विपक्षीय संबंध पिछले कुछ वर्षों में मजबूत हुए हैं, जिसमें 2005 और 2009 में चिली के माननीय राष्ट्रपति की दो यात्राएं शामिल हैं।
3. केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने “भारतीय डाक भुगतान बैंक की स्थापना” की संशोधित लागत अनुमान को स्वीकृति दी:
सामान्य अध्ययन: 3
अर्थव्यवस्था:
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना से संबंधित मुद्दे, संसाधन जुटाना, विकास और रोजगार ।
प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय डाक भुगतान बैंक
मुख्य परीक्षा: यह परियोजना किस परिपेक्षय में भारत सरकार के “कम नकदी” वाली अर्थव्यवस्था से संबंधित दृष्टिकोण की पूरक है ?
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय डाक भुगतान बैंक (आईपीपीबी) की स्थापना के लिए परियोजना परिव्यय को 1,435 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2,255 करोड़ रुपये करने की स्वीकृति दे दी है।
उद्देश्य:
- इस परियोजना का उद्देश्य आम आदमी के लिए सबसे सुलभ, किफायती और भरोसेमंद बैंक की स्थापना; बैंकिंग की सुविधा से वंचित लोगों के घरों तक बैंकिंग की सुविधा के जरिए अवसर संबंधी लागत को कम करके वित्तीय समावेशन के एजेंडे को आगे बढ़ाना है।
- यह परियोजना भारत सरकार के “कम नकदी” वाली अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोणकी पूरक है और साथ ही आर्थिक विकास और वित्तीय समावेशन दोनों को बढ़ावा देगी।
विवरण:
- मंत्रिमंडल ने नियामक आवश्यकताओं और तकनीकी उन्नयन के लिए 500 करोड़ रुपये के कोष के लिए भी सैद्धांतिक स्वीकृति दी है।
- भारतीय डाक भुगतान बैंक का 1 सितंबर, 2018 को 650 शाखाओं के साथ देश भर में एक साथ शुभारंभ किया गया था।
- आईपीपीबी ने 1.36 लाख डाकघरों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने में सक्षम बनाया और लगभग 1.89 लाख डाकियों व ग्रामीण डाक सेवकों को स्मार्टफोन और बायोमेट्रिक डिवाइस के माध्यम से घरों तक बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए तैयार किया है।
- आईपीपीबी के शुभारंभ के बाद से, इसमें 82 करोड़ के कुल वित्तीय लेन-देन के साथ 5.25 करोड़ से अधिक खाते खोले गए हैं, जिसमें 1,61,811 करोड़ रुपये के साथ 21,343 करोड़ रुपये के 765 लाख एईपीएस लेन-देन शामिल हैं।
- 5 करोड़ खातों में से 77 प्रतिशत खाते ग्रामीण क्षेत्रों में खोले गए हैं, 48 प्रतिशत महिला ग्राहक हैं जिनके इन खातों में लगभग 1000 करोड़ रुपये जमा हैं।
- लगभग 40 लाख महिला ग्राहकों को उनके खातों में 2500 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) प्राप्त हुआ। स्कूली छात्रों के लिए 7.8 लाख से अधिक खाते खोले गए हैं।
- आकांक्षी जिलों में आईपीपीबी ने 19,487 करोड़ रुपये के कुल 602 लाख लेन-देन वाले 95.71 लाख खाते खोले हैं।
- वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) से प्रभावित जिलों में, आईपीपीबी द्वारा 67.20 लाख खाते खोले गए हैं, जिसमें कुल 426 लाख के लेन-देन के साथ 13,460 करोड़ रुपये जमा किए गए हैं।
- प्रस्ताव के तहत शामिल कुल वित्तीय व्यय 820 करोड़ रुपये है।
- इस निर्णय से भारतीय डाक भुगतान बैंक को डाक विभाग के समूचे नेटवर्क का लाभ उठाते हुए पूरे भारत में वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने के अपने उद्देश्य को पूरा करने में सहायता मिलेगी।
4. कैबिनेट ने पीएम-स्वनिधि को मार्च 2022 से आगे बढ़ाकर दिसंबर 2024 तक जारी रखने को मंजूरी दी:
सामान्य अध्ययन: 2
शासन:
विषय:सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं एवं उनका कमजोर वर्ग पर प्रभाव।
प्रारंभिक परीक्षा: स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम-स्वनिधि) ।
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम-स्वनिधि) को मार्च 2022 से आगे बढ़ाकर दिसबंर 2024 तक जारी रखने को मंजूरी दे दी है।
उद्देश्य:
- इसके परिप्रेक्ष्य में रेहड़ी-फड़ी वालों और उनके परिवारों को बिना किसी जमानत के ऋण उपलब्ध कराने, डिजिटल लेन-देन को बढ़ाने और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास को ध्यान में रखा गया है।
विवरण:
- इस योजना के जरिये रेहड़ी-फड़ी वालों को बिना किसी जमानत के सस्ता ऋण दिया जा रहा है।
- इस योजना में ऋण देने के लिये 5,000 करोड़ रुपये की रकम रखी गई है।
- मंत्रिमंडल की मंजूरी से ऋण की कुल राशि बढ़कर 8,100 करोड़ रुपये हो गई है जिसके परिणामस्वरूप रेहड़ी-फड़ी वालों को कार्यशील पूंजी मिलेगी, ताकि वे अपने व्यापार को बढ़ा सकें और उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकेगा।
- रेहड़ी-फड़ी वालों के लिये कैश-बैक सहित डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने के लिए बजट को भी बढ़ाया गया है।
- आशा की जाती है कि इस मंजूरी से शहरी इलाकों के लगभग 1.2 करोड़ लोगों को लाभ होगा।
- पीएम-स्वनिधि के अंतर्गत, महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की जा चुकी हैं।
- 25 अप्रैल, 2022 तक 31.9 लाख ऋणों को मंजूरी दी गई। इसके अलावा 29.6 लाख ऋणों के हिसाब से 2,931 करोड़ रुपये जारी किये गये।
- जहां तक द्वितीय ऋण का प्रश्न है, तो उसके मद्देनजर 2.3 लाख ऋणों को मंजूरी दी गई और 1.9 लाख ऋणों के हिसाब से 385 करोड़ रुपये जारी किये गये।
- लाभार्थी रेहड़ी-पटरी वालों ने 13.5 करोड़ से अधिक का डिजिटल लेन-देन किया और उन्हें 10 करोड़ रुपये का कैश-बैक भी मिला।
- सब्सिडी ब्याज के रूप में 51 करोड़ रुपये की रकम का भुगतान किया गया।
पृष्ठ्भूमि:
- यह योजना जून 2020 में शुरू हुई थी। उ
- स समय छोटे व्यापार पर महामारी और सम्बन्धित स्थितियों का दबाव रहा, जिसके कारण हालात बेहतर नहीं हो सके थे। इसलिये योजना का प्रस्तावित विस्तार जरूरी हो गया था ।
- ऋण देने की गतिविधि को दिसंबर 2024 तक बढ़ाये जाने से औपचारिक ऋण तक पहुंच बनाने में मदद मिलेगी, रेहड़ी-फड़ी वालों को अपना व्यापार बढ़ाने की योजना बनाने के लिये ऋण मिलना सुनिश्चित हो जायेगा, डिजिटल भुगतान में इजाफा होगा, ऋण प्रदाता संस्थानों के फंसे हुये कर्ज में कमी आयेगी।
5. कैबिनेट ने 540 मेगावॉट वाली क्वार पन बिजली परियोजना के निर्माण को मंजूरी दी:
सामान्य अध्ययन: 3
आर्थिक विकास :
विषय: पन बिजली परियोजना।
प्रारंभिक परीक्षा: क्वार पन बिजली परियोजना।
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर 540 मेगावॉट की क्वार पन बिजली परियोजना के लिये 4,526.12 करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी दे दी है।
उद्देश्य:
- इस परियोजना का क्रियान्वयन मेसर्स चिनाब वैली पावर प्रोजेक्ट्स प्रा. लि. (मेसर्स सीवीपीपीएल) करेगा, जो एनएचपीसी और जेकेएसपीडीसी की संयुक्त उपक्रम कंपनी है। इसमें 27 अप्रैल 2022 के हिसाब से दोनों कंपनियों का क्रमशः 51 प्रतिशत और 49 प्रतिशत का इक्विटी योगदान है।
- परियोजना द्वारा वार्षिक बिजली उत्पादन 90 प्रतिशत के बराबर या उससे अधिक होगा। इस हिसाब से परियोजना 1975.54 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन करेगी।
विवरण:
- केंद्र सरकार प्रौद्योगिकी, कर्मचारी और अन्य अवसंरचनाओं के लिये 69.80 करोड़ रुपये का अनुदान देगी।
- इसके अलावा केंद्र सरकार, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को 655.08 करोड़ रुपये का अनुदान भी प्रदान कर रही है।
- इस अनुदान से जेकेएसपीडीसी कंपनी (49 प्रतिशत) मेसर्स सीवीपीपीपीएल में इक्विटी योगदान करेगी।
- एनएचपीसी 681.82 करोड़ रुपये की अपनी इक्विटी (51 प्रतिशत) अपने आंतरिक स्रोतों से देगी।
- क्वार पन बिजली परियोजना 54 महीनों की अवधि में पूरी हो जायेगी।
- इस परियोजना से जो बिजली पैदा होगी, उससे ग्रिड को संतुलित रखने में मदद मिलेगी और बिजली आपूर्ति की स्थिति में भी सुधार होगा।
- केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सरकार परियोजना को लाभप्रद बनाने के लिये 10 वर्षों तक जल उपयोग शुल्क वसूली से छूट देगी, जीएसटी में राज्य की हिस्सेदारी (यानी एसजीएसटी) का पुनर्भुगतान करेगी और क्रमवार तरीके से हर वर्ष 2 प्रतिशत की दर से मुफ्त बिजली की व्यवस्था करेगी, यानी केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को परियोजना के चालू होने के पहले वर्ष दो प्रतिशत मुफ्त बिजली की छूट मिलेगी।
- उसके बाद हर वर्ष उसमें दो प्रतिशत का इजाफा किया जायेगा तथा छठवें वर्ष से यह दर 12 प्रतिशत हो जायेगी I
- परियोजना की निर्माण गतिविधि से लगभग 2500 लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा।
- इसके कारण केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी योगदान होगा।
- साथ ही केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को लगभग 4,548.59 करोड़ रुपये की मुफ्त बिजली तथा परियोजना के 40 वर्ष के जीवन-चक्र के दौरान क्वार पन बिजली परियोजना से जल उपयोग शुल्कों में 4,941.46 करोड़ रुपये की छूट भी मिलेगी।
6. भारतीय रसायनों के निर्यात में 106 प्रतिशत की वृद्धि हुई:
सामान्य अध्ययन: 3
अर्थव्यवस्था:
विषय: भारत की आयात-निर्यात व्यवस्था।
प्रारंभिक परीक्षा: रसायनों का निर्यात ।
प्रसंग:
- भारतीय रसायनों के निर्यात ने वित्त वर्ष 2013-14 की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 106 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कराई है।
उद्देश्य:
- निर्यात में वृद्धि से आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा मिलेगा।
- भारत 175 से अधिक देशों को रसायनों का निर्यात करता है, नए बाजारों में टर्की, रूस तथा उत्तर पूर्व एशियाई देशों के बाजार शामिल हैं।
- निर्यात में वृद्धि से छोटे एवं मझौले निर्यातकों को लाभ।
- वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान रसायनों के भारतीय निर्यात ने रिकॉर्ड 29296 मिलियन डॉलर का आंकड़ा छू लिया, जबकि वित्त वर्ष 2013-14 में रसायनों का भारतीय निर्यात 14210 मिलियन डॉलर का रहा था।
विवरण:
- रसायनों के निर्यात में वृद्धि जैविक, अजैविक रसायनों, कृषि रसायनों, डाइज तथा डाई इंटरमेडिएट्स, स्पेशियलिटी कैमिकल्स की शिपमेंट में आए उछाल के कारण अर्जित की गई है।
- आज भारतीय रसायन उद्योग एक वैश्विक व्यवसाय बन गया है और यह ‘‘मेक इन इंडिया’’ दृष्टिकोण के साथ विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।
- भारत विश्व में रसायनों का छठा तथा एशिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। रसायनों के निर्यात में भारत का 14वां स्थान है।
- आज भारत डाइज उत्पादन में अग्रणी स्थान पर है तथा विश्व के डाइस्टफ निर्यात में 16 से 18 प्रतिशत का योगदान देता है।
- भारत विश्व में कृषि रसायनों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश है तथा 50 प्रतिशत से अधिक टेक्निकल ग्रेड कीटनाशकों का विनिर्माण करता है।
- कृषि रसायनों का लगभग 50 प्रतिशत विश्व में भारत से निर्यात किए जाते हैं। भारत विश्व में कास्टर ऑयल (आरंडी का तेल) का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है तथा इस श्रेणी में कुल वैश्विक निर्यातों के लगभग 85-90 प्रतिशत के लिए उत्तरदायी है।
- भारत 175 से अधिक देशों को निर्यात करता है तथा उसके शीर्ष गंतव्य देशों में टर्की, रूस शामिल हैं तथा इसमें नए बाजार अर्थात उत्तर पूर्व एशिया के देश (चीन, हांगकांग, जापान, कोरिया गणराज्य, ताइवान, मकाउ, मंगोलिया) के बाजार भी जुड़ गए हैं।
- रसायनिक निर्यातों में उछाल वाणिज्य विभाग, इंडियन मेंबर्स एक्सपोटर्स की तरफ से सतत प्रयासों के कारण आया है।
- इसके अतिरिक्त, बाजार पहुंच पहल स्कीम के तहत अनुदान सहायता, विभिन्न देशों में बी2बी प्रदर्शनियों का आयोजन करने, भारतीय दूतावासों की सक्रिय भागीदारी के साथ उत्पाद विशिष्ट तथा विपणन अभियानों के माध्यम से नए संभावित बाजरों की तलाश करने, विदेशी उत्पाद पंजीकरण आदि में वैधानिक अनुपालन में वित्तीय सहायता प्रदान करने आदि का उपयोग करने के द्वारा केमेक्सिल द्वारा विभिन्न पहलें भी की गई हैं।
- यह निर्यात वृद्धि उच्च माल भाड़ा दरों, कंटेनरों की कमी जैसी अभूतपूर्व लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियों के बावजूद अर्जित की गई है।
- रसायनिक उत्पादों के निर्यात में वृद्धि का लाभ गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश के छोटे तथा मझौले निर्यातकों को प्राप्त हुआ है।
- पिछले कुछ वर्षों के दौरान, यह उद्योग नए मोलेक्यूल्स, प्रौद्योगिकी में नवोन्मेषण, उत्पाद प्रोफाइल तथा वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए एक आधुनिक विश्व स्तरीय रसायनिक उद्योग के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है।
- देश में क्षमताओं का निर्माण करने के माध्यम से, भारत का इरादा वैश्विक बाजारों में बाधाओं में कमी लाने में योगदान देना है।
- उन उत्पादों और वस्तुओं की पहचान करना महत्वपूर्ण है जहां भारत में घरेलू उत्पादन को विस्तारित करने तथा वैश्विक उपलब्धता में वृद्धि करने की क्षमता तथा संभावना है।
- एक आत्म निर्भर भारत एक बड़े पैमाने पर गुणवत्तापूर्ण उत्पादों का उत्पादन सुनिश्चित करेगा, भारत की आवश्यकता की पूर्ति करेगा तथा अधिशेष उत्पादन के निर्यात को बढ़ावा देगा।
7. आईएफएससीए ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (आईएफएससी) में वित्तीय प्रौद्योगिकी (फिनटेक) की रूपरेखा जारी :
सामान्य अध्ययन: 3
अर्थव्यवस्था:
विषय: वित्तीय संस्थान
प्रारंभिक परीक्षा: अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (आईएफएससीए) ।
प्रसंग:
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (आईएफएससीए) ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (आईएफएससी) में वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों को विकसित और विनियमित करने और आईएफएससी में बैंकिंग, बीमा, प्रतिभूतियों और फंड प्रबंधन के लिए वित्तीय प्रौद्योगिकियों (‘फिनटेक’) के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के अपने उद्देश्य के लिए “आईएफएससी में फिनटेक इकाई की एक विस्तृत रूपरेखा को (फ्रेमवर्क)” जारी किया ।
उद्देश्य:
- “इस रूपरेखा” का उद्देश्य अन्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्रों (आईएफसी) के साथ तुलनात्मक स्तर पर जीआईएफटी आईएफएससी में एक विश्व स्तरीय फिनटेक केंद्र की स्थापना करना है।
- इस रूपरेखा में (i) वित्तीय प्रौद्योगिकी (फिनटेक) समाधानों जिसके परिणामस्वरूप आईएफएससीए द्वारा विनियमित वित्तीय सेवाओं से जुड़े क्षेत्रों/गतिविधियों में नए व्यवसाय मॉडल, अनुप्रयोग, प्रक्रिया या उत्पाद सामने आएंगे और (ii) उन्नत/अभिनव तकनीकी समाधानों जो वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों (टेकफिन) से जुड़ी गतिविधियों में सहायता करेंगे, को शामिल करने का प्रस्ताव है।
विवरण:
- यह रूपरेखा फिनटेक उत्पादों या समाधानों के लिए एक समर्पित विनियामक सैंडबॉक्स उपलब्ध कराएगी,जिसका नाम आईएफएससीए फिनटेक विनियामक सैंडबॉक्स है और आईएफएससी में योग्य वित्तीय प्रौद्योगिकी संस्थाओं को फिनटेक विनियामक सैंडबॉक्स के भीतर सीमित उपयोग का अधिकार प्रदान करने के लिए आईएफएससीए को सशक्त बनाएगी।
- यह उन्हें आईएफएससीए फिनटेक प्रोत्साहन योजना 2022 के तहत आवेदन करने और अनुदान प्राप्त करने में सक्षम बनाएगी।
- इसके अलावा, यह उन वर्गों/श्रेणियों में आने वाली प्रौद्योगिकी कंपनियों को भी सक्षम बनाएगी जिनके पास (i) परिनियोजन योग्य उन्नत/अभिनव प्रौद्योगिकी समाधान हो जो वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं, वित्तीय संस्थानों से संबंधित गतिविधियों में सहयोग कर सके और (ii) विनियामक सैंडबॉक्स में जाए बिना आईएफएससीए द्वारा सीधे प्रवेश (आईएफएससीए द्वारा प्राधिकृत) प्राप्त करने के लिए वित्तीय प्रदर्शन सहित भरोसेमंद ट्रैक रिकॉर्ड हो।
- इस रूपरेखा में इंटर ऑपरेशनल रेगुलेटरी सैंडबॉक्स (आईओआरएस) तंत्र भी शामिल होगा ।
- आईओआरएस एक से अधिक वित्तीय क्षेत्र के विनियामकों के विनियामक दायरे में आने वाले नवीन हाईब्रिड वित्तीय उत्पादों/सेवाओं के परीक्षण की सुविधा भी होगी ।
- आईएफएससीए विदेशी बाजारों तक भारतीय फिनटेक की पहुंच और विदेशी फिनटेक की भारत के बाजारों में प्रवेश की सुविधा प्रदान करेगा।
- इस रूपरेखा में एक नियामक रेफरल तंत्र का प्रस्ताव है जो समझौता ज्ञापन (एमओयू) या आईएफएससीए और संबंधित विदेशी नियामकों के बीच सहयोग या विशेष व्यवस्था के प्रावधानों के अनुसार काम करेगा।
- आईएफएससीए फिनटेक फर्मों को अवधारणा के प्रमाण (पीओसी), न्यूनतम व्यवहार्य उत्पाद (एमवीपी), प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षण, व्यावसायीकरण और वैश्विक बाजार तक पहुंच आदि में मदद करेगा ।
- जीआईएफटी-आईएफएससी को भारत के भीतर एक अलग वित्तीय क्षेत्राधिकार है जिसे फेमा के नजरिए से एक अपतटीय क्षेत्राधिकार के रूप में माना जाता है, जिसमें मुद्रा परिवर्तनीयता पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
- आईएफएससीए द्वारा जारी यह रूपरेखा आईएफएससी में बैंकिंग, पूंजी बाजार, बीमा और कोष प्रबंधन के लिए एक एकीकृत विनियामक है जो बैंकिंग, पूंजी या बीमा क्षेत्र में नवीन विचारों या समाधान करने वाली फिनटेक फर्मों को एकल नियामक के साथ सहजता से कामकाज करने में सक्षम बनाएगा।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
8. केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने लिथुआनिया में भारतीय मिशन खोलने की मंजूरी दी:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2022 में लिथुआनिया में एक नए भारतीय मिशन को खोलने की मंजूरी दी है।
- लिथुआनिया में भारतीय मिशन के खुलने से भारत की राजनयिक उपस्थिति का विस्तार करने; राजनीतिक संबंधों और रणनीतिक सहयोग को मज़बूत करने; द्विपक्षीय व्यापार, निवेश व आर्थिक संपर्क में वृद्धि को सक्षम करने; लोगों के बीच परस्पर संपर्क को और मज़बूत करने के लिए सुविधा प्रदान करने; बहुपक्षीय मंचों पर राजनीतिक आउटरीच को अधिक निरंतरता प्रदान करने की अनुमति देने तथा भारतीय विदेश नीति के उद्देश्यों के लिए समर्थन जुटाने में मदद मिलेगी।
- लिथुआनिया में भारतीय मिशन भारतीय समुदाय की बेहतर सहायता करेगा और उनके हितों की रक्षा करेगा।
9. गेहूं की नई किस्म विकसित:
- शोधकर्ताओं ने गेहूं की एक ऐसी किस्म विकसित की है, जिससे नरम और मीठी चपाती बनती है।
- गेहूं की इस किस्म को ’पीबीडब्ल्यू-1 चपाती’ कहा जाता है,पंजाब में इसकी बुवाई की जाएगी।
- गेहूं से बनी यह रोटी प्रोटीन और कैलोरी का एक सस्ता, प्राथमिक स्रोत है और उत्तरी पश्चिमी भारत में लोगों का मुख्य भोजन है।
- लंबी पारंपरिक गेहूं की किस्म सी 306 चपाती की गुणवत्ता के लिए स्वर्णिम मानक रही है। बाद में, पीएयू द्वारा पीबीडब्ल्यू 175 किस्म विकसित की गई और इसमें अच्छी चपाती गुणवत्ता थी।
- हालांकि, ये दोनों धारीदार और भूरे रंग की रतुआ के लिए अतिसंवेदनशील हो गए हैं।
- इस चुनौती को स्वीकार करते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की गेहूं प्रजनन टीम ने पीबीडब्ल्यू 175 की पृष्ठिभूमि में लिंक्ड स्ट्राइप रस्ट और लीफ रस्ट जीन एलआर-57/वाईआर-40 के लिए मार्कर असिस्टेड सेलेक्शन का उपयोग करके एक नई किस्म विकसित की है।
- उन्होंने इस किस्म को विकसित करने के दौरान विविध जैव रासायनिक परीक्षणों का उपयोग करके अलग करने वाली सामग्री का परीक्षण करके चपाती बनाने के मापदंडों को बरकरार रखा है।
- इस नई किस्म के जारी होने तक 1965 में जारी सी-306 अपने आप में एक ब्रांड बन गया था।
- गेहूं की नई किस्म ‘पीबीडब्ल्यू-1 चपाती’ से पहले कोई दूसरी कस्म सी306 के गुणवत्ता मानक से मेल नहीं खाती थी और पिछले कुछ वर्षों से पंजाब के उपभोक्ता मध्यप्रदेश के गेहूं की तरफ मुखातिब होने होने लगे थे, जिसे प्रीमियम आटे के रूप में विज्ञापित किया गया था और इसकी कीमत अधिक थी।
- गेहूं की किस्म ’पीबीडब्ल्यू-1 चपाती’ का मकसद अच्छी चपाती गुणवत्ता, स्वाद में मीठा और बनावट में नरम होने के कारण व्यावसायिक स्तर पर पैदा हुई इस रिक्ति को भरना है।
- चपाती का रंग समान रूप से सफेद होता है और यह घंटों सेंकने के बाद भी नरम रहती है।
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