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विषयसूची:

  1. सहभागिता मिशन
  2. वेद विज्ञान सम्मेलन
  3. ऑपरेशन कावेरी
  4. पुष्करालु उत्सव

1.सहभागिता मिशन

सामान्य अध्ययन-3

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी:

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण

प्रारंभिक परीक्षा: सहभागिता मिशन के बारे में

संदर्भ:

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए एक सामाजिक भागीदारी और सामूहिक दृष्टिकोण की अपील की।

विवरण:

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मणिपुर के इंफाल में पूर्वोत्तर राज्यों के लिए आर्द्रभूमि पुनर्स्थापन और एकीकृत प्रबंधन के लिए एक क्षेत्रीय परामर्शी कार्यशाला का आयोजन किया है। 
  • मिशन सहभागिता के तहत आयोजित यह कार्यशाला क्षेत्रीय कार्यशालाओं की श्रृंखला में चौथी कार्यशाला है। इससे पहले श्रीनगर, गोवा और कोच्चि  में ये कार्यशालाएं आयोजित हो चुकी हैं। 

सहभागिता मिशन:

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2022 में सहभागिता मिशन शुरू किया था। 
  • सहभागिता मिशन का उद्देश्य देश में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की 75 आर्द्रभूमियों के नेटवर्क का संरक्षण और प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना है, जिसमें एक सर्व-समावेशी ‘संपूर्ण समाज’ और ‘संपूर्ण सरकार’ दृष्टिकोण शामिल है।
  • इसके अंतर्गत पानी और खाद्य सुरक्षा, बाढ़, सूखा, चक्रवात और अन्य चरम घटनाओं से बचाव, रोजगार सृजन, स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की प्रजातियों का संरक्षण, जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन क्रियाएं, और सांस्कृतिक विरासत की मान्यता, संरक्षण और आयोजनों को सहायता दी जाती है। 

आर्द्रभूमि बचाओ अभियान:

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ‘आर्द्रभूमि बचाओ अभियान’ की भी शुरुआत की है। 
  • यह अभियान आर्द्रभूमियों का संरक्षण करने के लिए “सम्पूर्ण  समाज” के दृष्टिकोण के साथ ही समाज के सभी स्तरों पर आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए सकारात्मक कार्यों को सक्षम बनाते हुए समाज के सभी स्तरों को इस अभियान में शामिल करता है। 
  • इस अभियान में आर्द्रभूमि के महत्व के बारे में लोगों को संवेदनशील बनाना, आर्द्रभूमि मित्र के कार्यक्षेत्र को बढ़ाना और आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए नागरिक भागीदारी का निर्माण करना शामिल है।

आर्द्रभूमियों पर रामसर सम्मेलन:

    • यह सम्मेलन एक अंतर-सरकारी संधि है।
    • इस सम्मेलन को 1971 में ईरानी शहर रामसर में अपनाया गया था और यह 1975 में लागू हुआ था।
    • यह आर्द्रभूमि और उनके संसाधनों के संरक्षण और बुद्धिमान उपयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ-साथ राष्ट्रीय कार्रवाई के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।
    • इस सम्मेलन के तहत तैयार की गई रामसर सूची का उद्देश्य आर्द्रभूमि के एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का संरक्षण करना है जो जैविक विविधता और पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
    • ऑस्ट्रेलिया स्थित कोबोर्ग प्रायद्वीप को 1974 में दुनिया की पहले रामसर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी।
    • दुनिया में सबसे अधिक रामसर स्थल यूनाइटेड किंगडम में हैं, जहां इसकी कुल संख्या 175 है। 
  • भारत ने 1 फरवरी, 1982 को इस पर हस्ताक्षर किए थे। 
  • भारत के पास एशिया में रामसर स्थलों का सबसे बड़ा नेटवर्क है। यहां कुल 75 रामसर स्थल हैं। 
  • भारत में तमिलनाडु में रामसर स्थलों की संख्या (14) अधिकतम है। इसके पश्‍चात उत्‍तर प्रदेश का स्थान हैं जहाँ 10 रामसर स्थल हैं।

2.वेद विज्ञान सम्मेलन:

सामान्य अध्ययन-3

कृषि:

विषय: कृषि एवं किसान कल्‍याण

प्रारंभिक परीक्षा: वेदों का महत्त्व और वेद विज्ञान सम्मेलन के बारे में

संदर्भ:

  • विश्व वेद परिषद एवं परमार्थ निकेतन के तत्वावधान में आयोजित दो दिनी वेद विज्ञान महोत्सव का शुभारंभ किया गया। 

विवरण:

  • सम्मेलन वैदिक यज्ञ, मंत्रोच्चारण के साथ प्रारंभ हुआ।
  • वेद सिर्फ ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि हमारी संस्कृति है। वेद तार्किक है, व्यवहारिक है और वेद यथार्थ भी है, जो आज दुनियाभर के लिए अनुसंधान का केंद्र बन चुके हैं।
  • वैज्ञानिकों ने भी माना है कि जो कुछ भी विज्ञान में है, वह वेद के कारण है। उस समय ऋषि-मुनियों ने अपने विचार, ज्ञान व अनुभव, जो वेद के माध्यम से समाज को दिए, वह सत्यार्थ है, सत्य है, यह आज प्रमाणित हुआ है। 
  • चाहे सामाजिक जीवन हो, मानवीय जीवन हो या राष्ट्र जीवन, जीवन की हर जिज्ञासा व आवश्यकताओं को समेटने का काम वेद में है।
  • वेदों के चार भाग- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद की अलग-अलग विद्वानों ने व्याख्या की है जो सीमित दायरे में या कम शब्दों में नहीं हो सकती है। 
  • जीवन जीने की राह और सत्य के मार्ग पर चलने का रास्ता हम वेद-उपनिषद् से प्राप्त कर सकते हैं। 
  • भारत लोकतंत्र की जननी है, यह भी वेद-उपनिषद् से निकली है। बरसों पुराने प्रमाण है कि भारत की संस्कृति, जीवनशैली, कार्यशैली व विचारधार में हमेशा लोकतंत्र रहा है, इसीलिए मदर आफ डेमोक्रेसी के रूप में भारत की पहचान है।
  • कृषि मानव जीवन का आधार है, पुरातन काल से कृषि विज्ञान के बारे में प्रकृति के साथ तालमेल करते हुए कल्पना हमारी संस्कृति में विद्यामान है।  
  • ऋग्वेद बताता है कि खेती का कौशल सीखो, परिश्रम करो और सम्मानजनक धन प्राप्त करो, उससे जीवनयापन करो। 
  • अथर्ववेद में खेती, गौमाता, बैलों, कृषि उपकरण की दृष्टि से सारा उल्लेख मिलता है। साथ ही यह भी कहा गया है कि धरती माता हमें अन्न देती है, खेती करने से पहले उसकी पूजा करो, आशीर्वाद लो। 
  • यजुर्वेद में हमारी फसलों का विवरण मिलता है। 
  • वैदिक पद्धति खेती पर विचार करें तो आज की भारतीय कृषि पद्धति खेती, जिसे हम प्राकृतिक खेती या गाय आधारित खेती कहते हैं, वेदों में वर्णित है। 
  • रासायनिक खेती के कारण जो मृदा क्षरण व पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, जैविक पदार्थों को आघात हो रहा है, उससे बचाव के लिए भी वैदिक ज्ञान जरूरी है।

प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

1.ऑपरेशन कावेरी:

  • ‘ऑपरेशन कावेरी’ सूडान में फंसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित स्वदेश वापस लाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक निकासी अभियान है। 
  • ऑपरेशन कावेरी को संकटग्रस्त सूडान में त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए 24 अप्रैल, 2023 को शुरू किया गया था। 
  • भारतीयों नागरिकों की सूडान से सुरक्षित निकासी हेतु उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने के लिए विदेश मंत्रालय, भारतीय वायु सेना और सूडान स्थित भारतीय दूतावास सहित अन्य अधिकारियों की एक टीम नियुक्त की गई है। 
  • इस दौरान, भारतीयों नागरिकों को सूडान के अलग-अलग हिस्सों से राजधानी खार्तूम ले जाया जा रहा है, जहां से उन्हें वापस भारत पहुंचाया जाएगा।

2.पुष्करालु उत्सव:

  • प्रधानमंत्री ने वीडियो संदेश के माध्यम से उत्तर प्रदेश के काशी में आयोजित गंगा पुष्करालु उत्सव को संबोधित किया।
  • प्रधानमंत्री ने यह रेखांकित किया कि काशी के घाटों पर आयोजित गंगा- पुष्करालु उत्सव गंगा और गोदावरी के संगम के समान है। उन्होंने आगे कहा कि यह भारत की प्राचीन सभ्यताओं, संस्कृतियों और परंपराओं के संगम का उत्सव है।
  • पुष्करालु उत्सव 22 अप्रैल 2023 को वाराणसी में शुरू हुआ था।
  • यह तेलुगु आबादी द्वारा मनाया जाने वाला 12 दिवसीय उत्सव है जिसमें तीर्थयात्री गंगा और अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं।
  • इसका आयोजन 12 साल के अंतराल के बाद किया जा रहा है।

 

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