विषयसूची:
|
1. केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री द्वारा उत्तराखंड में राज्य की बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों के कंप्यूटरीकरण सहित अनेक विकास कार्यों का उद्घाटन किया गया:
सामान्य अध्ययन: 2
शासन:
विषय: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष
मुख्य परीक्षा: सहकारिता के क्षेत्र में सरकार के विभिन्न प्रयास
प्रसंग:
- केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने उत्तराखंड में राज्य की बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों (MPACS) के कंप्यूटरीकरण, संयुक्त सहकारी खेती, जन सुविधा केंद्र और जन औषधि केन्द्रों का उद्घाटन किया।
उद्देश्य:
- सहकारिता के क्षेत्र में पारदर्शिता और लोगों की आसान पहुंच सुनिश्चित करना।
विवरण:
- 30 अक्टूबर, 2021 को पूरे भारत में पहली बार PACS के कंप्यूटरीकरण का काम उत्तराखंड में शुरू हुआ था।
- उत्तराखंड में 95 MPACS बनाने का काम समाप्त भी हो चुका है, इसके साथ ही 95 जन औषधि केंद्र और जन सुविधा केन्द्र भी कोऑपरेटिव सोसायटी में सबसे पहले उत्तराखंड ने शुरू किए हैं।
- प्रधानमंत्री ने सहकार से समृद्धि के सूत्र के साथ देश में एक अलग सहकारिता मंत्रालय बनाया और उसके माध्यम से देश के सभी 65 हज़ार सक्रिय PACS को कंप्यूटरीकृत करने का काम शुरू हुआ।
- इसके साथ ही 307 जिला सहकारी बैंक सहित कई सुविधाओं को कंप्यूटरीकृत किया गया है। आज 307 सहकारी बैंक शाखाओं और 670 MPACS का कंप्यूटरीकरण समाप्त करके उत्तराखंड सरकार ने पूरे देश में सहकारिता क्षेत्र में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।
- कंप्यूटरीकरण से प्रणाली में पूर्ण पारदर्शिता आएगी और ऑडिट भी ऑनलाइन होगा जिससे पैक्स के वित्तीय अनुशासन में सुधार आएगा।
- ये 95 जन सुविधा केन्द्र, केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की 300 से अधिक योजनाओं को प्रत्यक्ष रूप से गांवों में पहुंचाने का काम करेंगे। सहकारी जन औषधि केन्द्रों के माध्यम से लोगों को दवाएं लगभग 50 से 90 प्रतिशत सस्ती मिलेंगी। उत्तराखंड के 95 विकास खंडों में एकीकृत सामूहिक सहकारी खेती के मॉडल का भी शुभारंभ हुआ है।
- सरकार की अन्य पहलों में राष्ट्रीय सहकारिता विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय सहकारिता नीति और सहकारिता डेटाबेस का निर्मण शामिल है।
- इसके साथ ही बीजों के उत्पादन, जैविक खेती की मार्केटिंग और किसानों के उत्पादों के निर्यात के लिए बहुराज्यीय सहकारी समितियां निर्मित हो चुकी हैं।
- आने वाले दिनों में नल से जल की योजना को पैक्स को दिया जा सकेगा क्योंकि भारत सरकार द्वारा भेजे गए मल्टीडाइमेंशनल पैक्स के मॉडल बायलॉज़ में पैक्स गांव की जल व्यवस्था भी कर सकेंगे। पैक्स अब कई प्रकार के काम कर सकेंगे।
2. भारत की G-20 अध्यक्षता: द्वितीय शेरपा बैठक
सामान्य अध्ययन: 2
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
प्रारंभिक परीक्षा: शेरपा बैठक से संबंधित तथ्य
प्रसंग:
- भारत की G-20 अध्यक्षता सचिवालय, भारत सरकार ने भारत में संयुक्त राष्ट्र और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के सहयोग से गुरुवार, 30 मार्च को ‘हरित विकास: 21वीं सदी के लिए महत्वाकांक्षी विजन की आवश्यकता’ पर एक आधिकारिक G-20 शेरपा बैठक नामक पृथक कार्यक्रम की मेजबानी की।
उद्देश्य:
- सतत और हरित विकास के लिए एक नए प्रतिमान पर पैनल परिचर्चा।
विवरण:
- केरल के कुमारकोम के बैकवाटर रिपल्स रिजॉर्ट में आयोजित इस कार्यक्रम में अमिताभ कांत, G-20 शेरपा और अन्य शामिल थे।
- दुनिया के सबसे गरीब और सबसे कमजोर देशों के लिए सतत विकास के वित्तपोषण के लिए दुनिया को हर साल कम से कम 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का वृद्धिशील लक्ष्य रखना चाहिए।
- ‘पूरी दुनिया पहले से ही 1.1 डिग्री ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रही है, जिस वजह से अनगिनत लोगों की जान चली गई है और बड़ी संख्या में लोगों को अपनी आजीविका गंवानी पड़ी है। COP 28 में एक जन-केंद्रित दृष्टिकोण और अंतर्निहित निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए G-20 की ओर से स्पष्ट प्रतिबद्धता काफी अहम होगी।’
- प्रभावकारी हरित बदलाव सुनिश्चित करने के लिए G-20 द्वारा काम करने के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण निरीक्षण बिंदु उभर कर सामने आए हैं:
- मानव और प्राकृतिक पूंजी में दीर्घकालिक निवेश के वाणिज्यिक मूल्य को स्वीकार करते हुए आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों में सामंजस्य बनाना।
- सबसे कमजोर समुदायों के लिए ऊर्जा सुलभ बनाने के लिए G-20 के प्रयासों में निरंतरता सुनिश्चित करना, कृषि सुधारों को आगे बढ़ाना, और हरित विकास के लिए सिर्फ बदलाव को बढ़ावा देने के अलावा टिकाऊ शहरों और जीवन शैली को सुनिश्चित करना।
- समायोजन करने के अवसरों को पहचानते हुए मजबूती और समानता सुनिश्चित करने के लिए अनुकूलन के लिए ठोस प्रयासों पर जोर देना।
- विभिन्न हितधारकों के बीच बढ़ते सहयोग के माध्यम से विकासशील देशों में जलवायु और विकास वित्त प्रवाह में तेजी लाना।
- SDG लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूंजी के सभी रूपों में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता होगी, जिससे MDB इस उद्देश्य के लिए उपयुक्त हो जाएगा।
- वैश्विक नीति और अंतर्राष्ट्रीय वित्त में अभिसरण सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त दीर्घकालिक निवेश से आर्थिक विकास और रोजगार सृजन की संभावनाओं पर प्रकाश डाला जाना चाहिए, ताकि सतत और हरित बदलाव के लिए अहम राजनीतिक और आर्थिक माहौल का निर्माण हो सके।
3.रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना के लिए उन्नत आकाश अस्त्र प्रणाली और अस्त्रों का पता लगाने वाले 12 स्वाति रडारों के लिए 9,100 करोड़ रुपये से अधिक के अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए:
सामान्य अध्ययन: 3
सुरक्षा:
विषय: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन
मुख्य परीक्षा: आकाश अस्त्र प्रणाली और स्वाति रडारों से संबंधित तथ्य
प्रसंग:
- रक्षा क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ को और बढ़ावा देते हुए, रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना के लिए उन्नत आकाश अस्त्र प्रणाली और अस्त्रों का पता लगाने वाले 12 स्वाति रडारों (मैदानी) की खरीद के लिए 9,100 करोड़ रुपये से अधिक अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए।
उद्देश्य:
- रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और रक्षा प्रणाली को मजबूत करना।
उन्नत आकाश शस्त्र प्रणाली
- सेना वायु सुरक्षा की तीसरी और चौथी रेजीमेंट के लिए उन्नत आकाश अस्त्र प्रणाली जिसमें आधुनिकीकरण के साथ लाइव मिसाइल और लॉन्चर, स्थलीय सहायता उपकरण, वाहन और आधारभूत अवसंरचना शामिल हैं, के लिए भारत डायनेमिक्स लिमिटेड के साथ 8,160 करोड़ रुपये से अधिक के अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए गए।
- उन्नत आकाश अस्त्र प्रणाली (AWS) DRDO द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित एक कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (SRSAM) वायु प्रतिरक्षा प्रणाली है।
- हवाई खतरों से निपटने के उद्देश्य से भारतीय सेना के लिए उत्तरी सीमाओं के लिए इन्हें उन्नत करने के साथ AWS की दो अतिरिक्त रेजीमेंट खरीदी जा रही हैं।
- इस उन्नत आकाश अस्त्र प्रणाली में सीकर टेक्नोलॉजी, सरलता से पता न चलने की विशेषता, सभी दिशाओं में कार्य कर सकने की क्षमता और बेहतर पर्यावरणीय मानक हैं।
- यह परियोजना विशेष रूप से भारतीय मिसाइल निर्माण उद्योग और समग्र रूप से स्वदेशी रक्षा निर्माण इकोसिस्टम को बढ़ावा देगी। परियोजना में कुल स्वदेशी सामग्री 82% है जिसे 2026-27 तक बढ़ाकर 93% किया जाएगा ।
- भारतीय सेना में उन्नत आकाश अस्त्र प्रणाली (AWS) को शामिल करने से कम दूरी की मिसाइल क्षमता में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
- यह परियोजना आयात को बचाकर, देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने और विभिन्न घटकों के निर्माण के माध्यम से भारतीय सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहित करके समग्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में भी अपनी भूमिका निभाएगी।
- अस्त्र प्रणाली की आपूर्ति श्रृंखला को बनाए रखने के लिए परियोजना लागत का लगभग 60% MSME सहित निजी उद्योग को दिया जाएगा, जिससे बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे।
हथियारों का पता लगाने वाले रडार स्वाति
- हथियारों का पता लगाने वाले रडार स्वाति (मैदानी) के लिए अनुबंध पर भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के साथ 990 करोड़ रुपये से अधिक की लागत के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- यह एक स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किया गया ऐसा WLR है जो हमारी सेनाओं पर गोलाबारी कर रही तोपों, मोर्टारों और रॉकेटों की सटीक स्थिति का पता लगाने की क्षमता के साथ ही स्वयं के गोलाबारी संसाधनों द्वारा प्रत्युत्तर में आक्रमण करके उन्हें नष्ट करने की सुविधा से लैस है।
- यह सैनिकों को दुश्मन के किसी भी हस्तक्षेप के बिना अपने परिचालन कार्यों को पूरा करने में सक्षम बनाएगा और उन्हें दुश्मन की गोलाबारी से सुरक्षा भी प्रदान करेगा। इसे आने वाले 24 महीनों में सेना में शामिल करने की योजना है ।
- यह परियोजना रक्षा उद्योग के लिए अपनी क्षमता दिखाने का एक बड़ा अवसर है और रक्षा क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक कदम होगा।
4. रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिए अगली पीढ़ी के 11 समुद्रगामी गश्ती युद्धपोतों और 6 मिसाइल वाहक जहाजों के अधिग्रहण के उद्देश्य से भारतीय शिपयार्ड के साथ 19,600 करोड़ रुपये के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए:
सामान्य अध्ययन: 3
रक्षा:
विषय: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन
प्रारंभिक परीक्षा: समुद्रगामी गश्ती युद्धपोतों और मिसाइल वाहक जहाजों के बारे में
प्रसंग:
- रक्षा मंत्रालय ने रक्षा क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ का लक्ष्य हासिल करने हेतु भारतीय नौसेना की आवश्यकतानुसार एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए अगली पीढ़ी के 11 समुद्रगामी गश्ती युद्धपोतों और 6 मिसाइल वाहक जहाजों के अधिग्रहण के लिए 30 मार्च, 2023 को भारतीय शिपयार्ड के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। इस सौदे की कुल लागत लगभग 19,600 करोड़ रुपये आंकी गई है।
खुले समुद्र में गश्त करने वाले अगली पीढ़ी के युद्धपोत
- अगली पीढ़ी के 11 समुद्रगामी गश्ती युद्धपोतों के अधिग्रहण के लिए होने वाली खरीद कुल 9,781 करोड़ रुपये की लागत से भारतीय-आईडीडीएम श्रेणी के तहत निर्माण हेतु की जा रही है।
- इस अनुबंध पर गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) और कोलकाता के गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) के साथ हस्ताक्षर किए गए हैं।
- इन 11 जहाजों में से सात को गोवा शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा और चार को गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स द्वारा स्वदेशी रूप से अभिकल्पित, विकसित तथा तैयार किया जाएगा।
- इन युद्धपोतों को भारतीय नौसेना को इस्तेमाल के लिए सितंबर 2026 से सौंपना शुरू किया जायेगा।
- इन नौसैन्य जहाजों के अधिग्रहण से भारतीय नौसेना को अपनी लड़ाकू क्षमता को विस्तार देने और विभिन्न परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिलेगी।
- इनमें समुद्री डकैती का मुकाबला करना, गैरकानूनी व्यापार पर नियंत्रण, घुसपैठ पर रोक लगाना, अनधिकृत जलीय शिकार को रोकना, गैर-लड़ाकू निकास गतिविधि संचालन, तलाश और बचाव (SAR) अभियान व खुले समुद्र में उपस्थित परिसंपत्तियों की सुरक्षा आदि शामिल हैं।
- इन जलपोतों के निर्माण से साढ़े सात साल की अवधि में कुल 110 लाख मानव-दिवस रोजगार अवसर सृजित होंगे।
अगली पीढ़ी के मिसाइल वाहक जहाज
- कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) के साथ 9,805 करोड़ रुपये की लागत से अगली पीढ़ी के 6 मिसाइल वाहक जहाजों (NGMV) के अधिग्रहण के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
- इन युद्धपोतों को मार्च 2027 से भारतीय नौसेना को सौंपना शुरू कर दिया जाएगा।
- ये अगली पीढ़ी के मिसाइल वाहक जहाज रडार से बचने में सक्षम, तेज गति वाले और काफी आक्रामक क्षमता के साथ भारी हथियारों से लैस पोत होंगे।
- मोटे तौर पर इन जहाजों की प्राथमिक भूमिका दुश्मन के युद्धपोतों, अवैध व्यापारी जहाजों और सतही ठिकानों के खिलाफ अपनी रक्षात्मक आक्रामक क्षमता प्रदर्शित करना होगी।
- ये जहाज समुद्री हमले वाली कार्रवाइयों को पूरा करने में सक्षम तथा समुद्र के साथ-साथ बड़े सतही हमलों को अंजाम देने में सहायक होंगे।
- ये युद्धपोत दुश्मन के जहाजों से निपटने के लिए विशेष रूप से चोक पॉइंट्स पर समुद्र में रोक लगाने के एक शक्तिशाली हथियार के रूप में तैनात होंगे।
- रक्षात्मक भूमिका में, इन जहाजों को स्थानीय नौसेना रक्षा संचालन और अपतटीय विकास क्षेत्र के लिए समुद्री रक्षा के अन्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भी प्रयुक्त किया जाएगा।
- इन जहाजों के निर्माण से नौ वर्षों की अवधि में कुल 45 लाख मानव-दिवस का रोजगार सृजन होगा।
- इन युद्धपोतों के स्वदेशी निर्माण से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम सहित भारतीय जलपोत निर्माण एवं उनसे संबद्ध उद्योगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
- स्वदेशी निर्माताओं से प्राप्त अधिकांश उपकरणों और प्रणालियों के साथ ये युद्धपोत ‘आत्मनिर्भर भारत’ के गौरवशाली ध्वजवाहक बनेंगे।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1.‘रक्षा मंत्रालय ने 13 लिंक्स-यू2 फायर कंट्रोल सिस्टम के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किए:
- रक्षा मंत्रालय ने 30 मार्च, 2023 को बैंगलोर में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के साथ भारतीय नौसेना के लिए फायर कंट्रोल सिस्टम की खरीद करने हेतु एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं।
- इस प्रणाली के अंतर्गत 13 लिंक्स-यू2 फायर कंट्रोल सिस्टम खरीदे जाएंगे, जिनकी कुल लागत 1,700 करोड़ रुपये से अधिक है।
- इन्हें भारतीय – आईडीएमएम (स्वदेशी रूप से अभिकल्पित, विकसित और निर्मित) श्रेणी के तहत क्रय किया जा रहा है।
- लिंक्स-यू2 सिस्टम एक नौसैनिक गोलीबारी नियंत्रण प्रणाली है, जिसे स्वदेशी आवश्यकता के अनुरूप निर्धारित रूपरेखा के अनुसार रूपांकित तथा विकसित किया गया है। यह अवांछित समुद्री गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के साथ-साथ हवा तथा सतह के लक्ष्यों की सटीकता से जानकारी हासिल करने और फिर उनको भेदने में सक्षम है।
- लिंक्स-यू2 फायर कंट्रोल सिस्टम, चौथी पीढ़ी की और पूर्ण रूप से स्वदेशी प्रणाली है। इसे गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स और गोवा शिपयार्ड लिमिटेड के आपसी तालमेल से स्वदेशी रूप से निर्मित होने वाले नई पीढ़ी के समुद्रगामी गश्ती जहाजों पर तैनात किया जाएगा।
- इस अनुबंध के माध्यम से आगामी चार वर्षों की अवधि में दो लाख मानव-दिवस का रोजगार सृजित होगा। इससे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम सहित विभिन्न भारतीय उद्योगों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहन प्राप्त होगा। इस प्रकार रक्षा मंत्रालय अपने अनुबंध के माध्यम से ‘आत्मनिर्भरता’ प्राप्त करने के सरकार के प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
2.सभी दुर्लभ रोगों के उपचार के संबंध में निजी उपयोग के लिये सभी आयातित औषधियों व खाद्य सामग्रियों को सीमाशुल्क से पूरी छूट:
- केंद्र सरकार ने सामान्य छूट अधिसूचना के जरिये राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति 2021 के तहत सूचीबद्ध सभी दुर्लभ रोगों के उपचार के संबंध में निजी उपयोग के लिये विशेष चिकित्सा उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये सभी आयातित औषधियों व खाद्य सामग्रियों को सीमा शुल्क से पूरी छूट दे दी है।
- इस छूट को प्राप्त करने के लिये, वैयक्तिक आयातक को केंद्रीय या राज्य निदेशक स्वास्थ्य सेवा या जिले के जिला चिकित्सा अधिकारी/सिविल सर्जन द्वारा प्राप्त प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा।
- दवाओं/औषधियों पर आम तौर से 10 प्रतिशत बुनियादी सीमा शुल्क लगता है, जबकि प्राण रक्षक दवाओं/वैक्सीनों की कुछ श्रेणियों पर रियायती दर से पांच प्रतिशत या शून्य सीमा शुल्क लगाया जाता है।
- स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी या ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के उपचार के लिये निर्धारित दवाओं के लिये छूट प्रदान की जाती है, लेकिन सरकार को ऐसे कई प्रतिवेदन मिल रहे थे, जिनमें अन्य दुर्लभ रोगों के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाओं और औषधियों के लिये सीमा शुल्क में राहत का अनुरोध किया गया था।
- इन रोगों के उपचार के लिए दवाएं या विशेष सामग्रियां बहुत महंगी हैं तथा उन्हें आयात करने की जरूरत होती है।
- एक आकलन के अनुसार 10 किलोग्राम वजन वाले एक बच्चे के मामले में कुछ दुर्लभ रोगों के उपचार का वार्षिक खर्च 10 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये से अधिक तक हो सकता है। यह उपचार जीवन भर चलता है तथा आयु व वजन बढ़ने के साथ-साथ दवा तथा उसका खर्च भी बढ़ता जाता है।
- इस छूट से खर्च में अत्यंत कमी और बचत होगी तथा मरीजों को जरूरी राहत भी मिल जायेगी।
- सरकार ने भिन्न-भिन्न प्रकार के कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाले पेमब्रोलीजूमाब (केट्रूडा) को भी बुनियादी सीमा शुल्क से मुक्त कर दिया है।
30 March PIB :- Download PDF Here
लिंक किए गए लेख में 29 मार्च 2023 का पीआईबी सारांश और विश्लेषण पढ़ें।
सम्बंधित लिंक्स:
Comments