विषयसूची:
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1. आर्थिक समीक्षा 2022-23:
सामान्य अध्ययन: 3
अर्थव्यवस्था:
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास और रोजगार से संबंधित विषय एवं सरकारी बजट।
मुख्य परीक्षा: आर्थिक सर्वेक्षण के महत्व पर प्रकाश डालिये।
प्रसंग:
- केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2023 को संसद में ‘आर्थिक समीक्षा 2022-23’ पेश की।
उद्देश्य:
- आर्थिक सर्वेक्षण भारत के विकास पथ का एक व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करता है जिसमें हमारे राष्ट्र के प्रति वैश्विक आशावाद, अवसंरचना पर ध्यान, कृषि एवं उद्योग के क्षेत्रों में विकास और भविष्योन्मुखी क्षेत्रों पर जोर देना शामिल है।
विवरण:
इस आर्थिक समीक्षा की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:
- आर्थिक हालात 2022-23 : पूर्ण रिकवरी हो गई:
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- महामारी की वजह से दर्ज की गई गिरावट, रूस- यूक्रेन युद्ध के प्रतिकूल असर और महंगाई से उबरने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में अब समस्त क्षेत्रों में उल्लेखनीय बेहतरी देखने को मिल रही है, जिससे यह वित्त वर्ष 2023 में महामारी पूर्व विकास पथ पर अग्रसर हो रही है।
- भारत में GDP वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024 में भी दमदार रहने की आशा।
- वित्त वर्ष 2024 में GDP वृद्धि दर 6-6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान।
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- केन्द्र सरकार का पूंजीगत व्यय और अब कंपनियों की मजबूत बैलेंस शीट की अगुवाई में निजी पूंजीगत व्यय चालू वर्ष के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में काफी मददगार साबित हो रहा है।
- MSME क्षेत्र के लिए कुल ऋणों में वृद्धि जनवरी-नवम्बर 2022 के दौरान औसतन 30.6 प्रतिशत से भी अधिक रही।
- खुदरा महंगाई नवम्बर 2022 में घटकर फिर से RBI के लक्षित दायरे में आ गई है।
- भारतीय रुपये का प्रदर्शन अप्रैल-दिसम्बर 2022 के दौरान अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में काफी बेहतर रहा।
- प्रत्यक्ष कर संग्रह अप्रैल-नवम्बर 2022 के दौरान भी दमदार रहा।
- घटती शहरी बेरोजगारी दर और कर्मचारी भविष्य निधि में तेजी से हो रहे कुल पंजीकरण में बेहतर रोजगार सृजन नजर आ रहा है।
- सार्वजनिक डिजिटल प्लेटफॉर्मों के विस्तारीकरण और विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के उपायों से आर्थिक विकास की गति तेज हो जाएगी।
- भारत का मध्यमकालिक विकास परिदृश्य:
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- भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापक ढांचागत एवं गवर्नेंस सुधार लागू किए गए जिनकी बदौलत वर्ष 2014-22 के दौरान इसकी समग्र दक्षता बढ़ने से अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व मजबूत हो गए हैं।
- बैंकिंग, गैर-बैंकिंग और कॉरपोरेट क्षेत्रों की बेहतर बैलेंस शीट की बदौलत नए सिरे से एक ऋण चक्र बाकायदा शुरू हो चुका है, जो कि विगत महीनों के दौरान बैंक ऋणों में दर्ज की गई दहाई अंकों की वृद्धि दर से पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था इसके साथ ही अपेक्षाकृत अधिक औपचारीकरण, वित्तीय समावेश के बल पर बढ़ती दक्षता और डिजिटल प्रौद्योगिकी आधारित आर्थिक सुधारों से सृजित आर्थिक अवसरों से लाभान्वित होने लगी है।
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- राजकोषीय घटनाक्रम: राजस्व में तेज उछाल:
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- केन्द्र सरकार की वित्तीय स्थिति वित्त वर्ष 2023 के दौरान काफी सुदृढ़ हो गई है जो कि आर्थिक गतिविधियां बढ़ने, प्रत्यक्ष करों एवं GST से होने वाले राजस्व में तेज उछाल और बजट में यथार्थवादी अनुमान लगाए जाने से ही संभव हो पाई है।
- अप्रैल-नवम्बर 2022 के दौरान सकल कर राजस्व में 15.5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई जो कि प्रत्यक्ष करों और वस्तु एवं सेवा कर (GST) में दमदार वृद्धि से संभव हुई है।
- चालू वित्त वर्ष के प्रथम आठ महीनों के दौरान प्रत्यक्ष करों में वृद्धि दरअसल इनके दीर्घकालिक औसत से काफी अधिक रही है।
- GST अब केन्द्र और राज्य सरकारों का एक अहम राजस्व स्रोत बन गया है।
- अप्रैल-दिसम्बर 2022 के दौरान सकल GST संग्रह में वार्षिक आधार पर 24.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
- केन्द्र सरकार का पूंजीगत व्यय GDP के 1.7 प्रतिशत के दीर्घकालिक वार्षिक औसत (वित्त वर्ष 2009 से वित्त वर्ष 2020 तक) से निरंतर बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में GDP का 2.5 प्रतिशत हो गया है।
- केन्द्र सरकार ने ब्याज मुक्त ऋणों और बढ़ी हुई उधारी सीमा के जरिए राज्य सरकारों को भी प्रोत्साहित किया है, ताकि वे पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता दे सकें।
- अवसंरचना क्षेत्रों जैसे कि सड़कों एवं राजमार्गों, रेलवे, आवासन और शहरी कार्य पर विशेष जोर देने से पूंजीगत व्यय में वृद्धि करने के व्यापक सकारात्मक निहितार्थ देश में मध्यमकालिक आर्थिक विकास के लिए हैं।
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- मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता: अच्छा वर्ष साबित हुआ
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- RBI ने अप्रैल 2022 में अपनी मौद्रिक नीति को सख्त बनाना शुरू किया था और उस समय से लेकर अब तक रेपो रेट में 225 आधार बिन्दु की वृद्धि हुई है जिससे अधिशेष तरलता में कमी आई है।
- बैलेंस शीट को दुरुस्त करने से वित्तीय संस्थानों के ऋणों में वृद्धि हुई है।
- ऋणों के उठाव में दर्ज की गई वृद्धि के आगे भी जारी रहने की आशा है, और इसके साथ ही निजी पूंजीगत व्यय बढ़ने से लाभप्रद निवेश चक्र शुरू हो जाएगा।
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) का गैर-खाद्य ऋण अप्रैल 2022 से ही लगातार दहाई अंकों में बढ़ रहा है।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) का कर्ज वितरण भी बढ़ता जा रहा है।
- SCB का सकल गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात घटकर पिछले सात वर्षों के न्यूनतम स्तर 5.0 पर आ गया है।
- पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (CRAR) अब भी 16.0 के उच्च स्तर पर बना हुआ है।
- दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (IBC) के जरिए SCB के लिए रिकवरी दर अन्य चैनलों की तुलना में वित्त वर्ष 2022 में सर्वाधिक रही।
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- कीमतें एवं महंगाई : सफलतापूर्वक संतुलन स्थापित करना
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- जहां एक ओर तीन से चार दशकों के लंबे अंतराल के बाद विकसित देशों में आसमान छूती महंगाई की वापसी देखने को मिली, वहीं दूसरी ओर भारत में मूल्यवृद्धि एक सीमा में बनी रही।
- वैसे तो भारत में खुदरा महंगाई दर अप्रैल 2022 में बढ़कर 7.8 प्रतिशत के शिखर पर पहुंच गई जो कि RBI की 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा से अधिक थी, लेकिन भारत में लक्षित सीमा से बढ़ी हुई महंगाई इसके बावजूद पूरी दुनिया में न्यूनतम में से एक रही।
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- सरकार ने मूल्य वृद्धि को एक दायरे में रखने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपनाई:
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- पेट्रोल और डीजल पर निर्यात शुल्क में कई चरणों में कटौती की गई।
- प्रमुख कच्चे माल पर आयात शुल्क को घटाकर शून्य कर दिया गया, जबकि लौह अयस्क एवं सांद्र के निर्यात पर देय कर को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया।
- कपास के आयात पर देय सीमा शुल्क को 14 अप्रैल 2022 से लेकर 30 सितम्बर 2022 तक माफ कर दिया गया।
- एचएस कोड 1101 के तहत गेहूं उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया और चावल पर निर्यात शुल्क लगाया गया।
- कच्चे एवं परिशोधित पाम ऑयल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर देय बुनियादी शुल्क में कमी की गई।
- RBI द्वारा अग्रिम तौर पर गाइडेंस जारी करके अपेक्षित महंगाई अनुमानों को नियंत्रण में रखने और इसके साथ ही उचित मौद्रिक नीति अपनाने से देश में महंगाई को सही दिशा में रखने में मदद मिली।
- संयोजित आवास मूल्य सूचकांकों (HPI) के आकलन में समग्र रूप से हुई वृद्धि और आवास मूल्य सूचकांकों से संबंधित बाजार मूल्यों से आवास वित्त क्षेत्र में फिर से तेज गति आने के संकेत मिलते हैं।
- भारत का महंगाई प्रबंधन विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है, जो कि विकसित देशों की मौजूदा हालत के ठीक विपरीत है क्योंकि वे अब भी ऊंची महंगाई दर से जूझ रहे हैं।
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- सामाजिक अवसंरचना और रोजगार : विशेष जोर
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- सामाजिक क्षेत्र पर सरकारी खर्च में व्यापक वृद्धि देखने को मिली।
- सामाजिक क्षेत्र पर व्यय वित्त वर्ष 2016 के 9.1 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 (BE) में 21.3 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
- आर्थिक समीक्षा में बहुआयामी गरीबी सूचकांक पर UNDP की रिपोर्ट 2022 के निष्कर्षों पर प्रकाश डाला गया है जिनमें कहा गया है कि भारत में 41.5 करोड़ लोग वर्ष 2005-06 और वर्ष 2019-20 के बीच गरीबी से उबर गए।
- असंगठित कामगारों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने के लिए ई-श्रम पोर्टल विकसित किया गया जिसका सत्यापन ‘आधार’ से होता है।
- 31 दिसम्बर, 2022 तक कुल मिलाकर 28.5 करोड़ से भी अधिक असंगठित कामगारों ने ई-श्रम पोर्टल पर अपना पंजीकरण कराया है।
- जैम (जन-धन, आधार, एवं मोबाइल) के साथ-साथ DBT ने समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली से जोड़ दिया है जिससे लोगों को सशक्त करते हुए पारदर्शी एवं उत्तरदायी गवर्नेंस के मार्ग में क्रांति आ गई है।
- ‘आधार’ ने को-विन प्लेटफॉर्म को विकसित करने और टीके की 2 अरब से भी अधिक खुराक लोगों को पारदर्शी ढंग से देने में अहम भूमिका निभाई है।
- शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में श्रम बाजार मुश्किलों से उबर कर कोविड पूर्व स्तर से ऊपर चला गया है।
- यही नहीं, बेरोजगारी दर वर्ष 2018-19 के 5.8 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2020-21 में 4.2 प्रतिशत रह गई है।
- वित्त वर्ष 2022 में स्कूलों में सकल दाखिला अनुपात (GER) में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई और इसके साथ ही बालक-बालिका अनुपात भी बेहतर हो गया।
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- स्वास्थ्य संबंधी संकेतकों में सुधार:
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- आर्थिक समीक्षा में रेखांकित किया गया है कि भारतीय स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क में से एक है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों का अनुमानित व्यय बढ़कर वित्त वर्ष 2023 (BE) में GDP का 2.1 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022 (RE) में GDP का 2.2 प्रतिशत हो गया, जो कि वित्त वर्ष 2021 में GDP का 1.6 प्रतिशत ही था।
- स्वास्थ्य संबंधी कुछ महत्वपूर्ण संकेतकों में सुधार के रूप में एक प्रभावी स्वास्थ्य दृष्टिकोण के परिणाम दिखाई दे रहे है।
- प्रजनन, मातृ, नवजात शिशु, बच्चे, किशोर स्वास्थ्य सहित पोषण (RMNCAH+N) रणनीति के तहत किए गए ठोस प्रयासों के साथ, भारत ने माताओं और बच्चों दोनों की स्वास्थ्य स्थिति में लगातार सुधार करने में काफी प्रगति की है।
- नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2020 तक मातृ मृत्यु दर (MMR) को 100 प्रति लाख जीवित जन्मों से नीचे लाने के बड़े लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल कर लिया है (राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017-19 में निर्धारित) ।
- 2018-20 में जीवित जन्म दर 97 प्रति लाख दर्ज की गई, जबकि 2014-16 में यह दर 130 प्रति लाख थी।
- 2030 तक MMR को 70 प्रति लाख जीवित जन्म से कम करने SDG लक्ष्य को 8 राज्यों से पहले ही हासिल कर लिया है।
- इनमें केरल (19), महाराष्ट्र (33), तेलंगाना (43), आंध्र प्रदेश (45), तमिलनाडु (54), झारखंड (56), गुजरात (57), और कर्नाटक (69) शामिल हैं।
- 6 से 10 साल के आयु वर्ग में आबादी के प्रतिशत के रूप में कक्षा 1 से लेकर कक्षा 5 में प्राथमिक दाखिले को लेकर GER वित्त वर्ष 2022 में बालिकाओं के साथ-साथ बालकों के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार द्वारा उठाए गए अनेक कदमों की वजह से कुल स्वास्थ्य व्यय के प्रतिशत के रूप में व्यक्ति की जेब से होने वाला खर्च वित्त वर्ष 2014 के 64.2 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2019 में 48.2 प्रतिशत रह गया।
- बाल मृत्यु दर (IMR), 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर (U5MR) और नवजात शिशु मृत्यु दर (NMR) में निरंतर गिरावट दर्ज की गई है।
- 6 जनवरी, 2023 तक कोविड टीके की 220 करोड़ से भी अधिक खुराक लोगों को दी गई हैं।
- 4 जनवरी, 2023 तक आयुष्मान भारत योजना के तहत लगभग 22 करोड़ लाभार्थियों का सत्यापन किया गया है।
- जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण : भावी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार करना
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- भारत ने वर्ष 2070 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए ‘नेट जीरो’ का संकल्प व्यक्त किया।
- भारत ने गैर-जीवाश्म ईंधनों से 40 प्रतिशत अधिष्ठापित बिजली क्षमता का अपना लक्ष्य वर्ष 2030 से पहले ही हासिल कर लिया।
- गैर-जीवाश्म ईंधनों से संभावित अधिष्ठापित क्षमता वर्ष 2030 तक 500 GW से भी अधिक हो जाएगी जिससे वर्ष 2014-15 की तुलना में वर्ष 2029-30 तक औसत उत्सर्जन दर में लगभग 29 प्रतिशत की कमी आ जाएगी।
- भारत अपनी GDP की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक 45 प्रतिशत कम कर देगा।
- वर्ष 2030 तक लगभग 50 प्रतिशत संचयी बिजली अधिष्ठापित क्षमता गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों से हासिल होगी।
- पर्यावरण के लिए जीवन शैली ‘लाइफ’ के रूप में जन आंदोलन शुरू किया गया।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन से भारत वर्ष 2047 तक ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा।
- वर्ष 2030 तक कम से कम 5 MMT (मिलियन मीट्रिक टन) की वार्षिक हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता विकसित कर ली जाएगी।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन के आयात में 1 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक की संचयी कटौती की जाएगी और 6 लाख से भी अधिक रोजगार सृजित किए जाएंगे।
- वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में लगभग 125 GW की वृद्धि की जाएगी और GHG के वार्षिक उत्सर्जन में लगभग 50 MMT की कमी की जाएगी।
- आर्थिक समीक्षा में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत आठ मिशनों की दिशा में हुई प्रगति पर प्रकाश डाला गया है, ताकि जलवायु से जुड़ी चिंताओं को दूर किया जा सके और सतत विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
- अधिष्ठापित सौर ऊर्जा क्षमता, जो कि राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत एक अहम पैमाना है, अक्टूबर 2022 में 61.6 GW दर्ज की गई।
- भारत नवीकरणीय ऊर्जा के लिए एक पसंदीदा देश बनता जा रहा है; सात वर्षों में कुल निवेश 78.1 अरब अमेरिकी डॉलर आंका गया है।
- सतत पर्यावास पर राष्ट्रीय मिशन के तहत 62.8 लाख व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों और 6.2 लाख सामुदायिक एवं सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण (अगस्त 2022) किया गया।
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- कृषि एवं खाद्य प्रबंधन:
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- कृषि और संबंधित क्षेत्र का प्रदर्शन पिछले कुछ वर्षों से मजबूत रहा है।
- वर्ष 2020-21 में कृषि क्षेत्र में निजी निवेश 9.3 प्रतिशत बढ़ा।
- वर्ष 2018 से अनिवार्य सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, पूरे भारत में उत्पादन की औसत लागत का 1.5 गुणा निर्धारित किया गया।
- वर्ष 2021-22 में कृषि क्षेत्र के लिए संस्थागत ऋण लगातार बढ़कर 18.6 लाख करोड़ हो गया।
- भारत में खाद्यान्न उत्पादन में निरंतर वृद्धि देखी गई और वर्ष 2021-22 में यह बढ़कर 315.7 मिलियन टन हो गया।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 1 जनवरी, 2023 से एक वर्ष के लिए लगभग 81.4 करोड़ लाभार्थियों के लिए मुफ्त खाद्यान्न।
- योजना के अंतर्गत अप्रैल-जुलाई 2022-23 भुगतान चक्र में लगभग 11.3 करोड़ किसानों को कवर किया गया।
- कृषि अवसंरचना निधि के तहत फसल पश्चात समर्थन और सामुदायिक खेती के लिए 13,681 करोड़ रुपये मंजूर।
- अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष पहल के माध्यम से भारत मोटे अनाजों को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
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- उद्योगः निरंतर सुधार:
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- औद्योगिक क्षेत्र द्वारा समग्र सकल मूल्य संवर्धन (GVW) में 3.7 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई (वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली छमाही के लिए), जो पिछले दशक के पूर्वाद्ध के दौरान हासिल की गई 2.8 प्रतिशत की औसत वृद्धि से अधिक है।
- वर्ष की पहली छमाही के दौरान निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) में मजबूत वृद्धि, निर्यात प्रोत्साहन, संवर्द्धित सार्वजनिक पूंजीगत व्यय और मजबूत बैंक एवं कॉरपोरेट बैलेंस शीट के कारण निवेश की मांग में वृद्धि।
- बढ़ी हुई मांग के प्रति उद्योग की आपूर्ति प्रतिक्रिया मजबूत रही है।
- जुलाई 2021 से 18 महीनों के लिए PMI विनिर्माण विस्तार क्षेत्र में कायम रहा है। औद्योगिक विस्तार सूचकांक में उत्साहवर्धक वृद्धि हुई है।
- सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों को ऋण में जनवरी 2022 से औसतन लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और बड़े उद्योगों में अक्टूबर 2022 से दहाई के आंकड़े में वृद्धि देखी गई है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्यात में वित्त वर्ष 2019 में 4.4 बिलियन डॉलर से वित्त वर्ष 2022 में 11.6 बिलियन तक लगभग तीन गुणा वृद्धि हुई है।
- भारत वैश्विक स्तर पर मोबाइल फोन का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन गया है। यहां हैंडसेट का उत्पादन वित्त वर्ष 2015 में 6 करोड़ यूनिट से बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में 29 करोड़ तक पहुंच गया।
- फार्मा उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में चार गुणा वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2019 में 180 मिलियन डॉलर से बढ़कर यह वित्त वर्ष 2022 में 699 मिलियन डॉलर हो गया।
- भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल करने के लिए PLI योजनाएं अगले पांच वर्षों में अनुमानित चार लाख करोड़ पूंजीगत व्यय के साथ 24 श्रेणियों में शुरू की गई हैं।
- वित्त वर्ष 2022 में PLI योजनाओं के अंतर्गत 47,500 करोड़ का निवेश देखा गया,जो कि वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्य का 106 प्रतिशत था।
- PLI योजनाओं के कारण 3.85 लाख करोड़ रुपए मूल्य की उत्पादन/बिक्री और 3.0 लाख का रोजगार का सृजन हुआ है।
- जनवरी 2023 तक 39,000 से अधिक अनुपालनों में कमी आई है और 3500 से अधिक प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से हटाया गया है।
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- सेवाएं- सुदृढ़ता का स्त्रोत:
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- वित्त वर्ष 2022 में 8.4 प्रतिशत (वर्ष दर वर्ष) की तुलना में वित्त वर्ष 2023 में सेवा क्षेत्र के 9.1 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है।
- जुलाई 2022 से PMI सेवाओं,जोकि सेवा क्षेत्र की गतिविधियों का संकेतक है, में जबरदस्त विस्तार देखा गया।
- भारत 2021 में शीर्ष दस सेवा निर्यात करने वाले देशों में शामिल था, विश्व वाणिज्यिक सेवाओं के निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 2015 में 3 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 4 प्रतिशत हो गई।
- कोविड-19 महामारी के दौरान और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच डिजिटल समर्थन, क्लाउड सेवाओं और बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण की उच्च मांग द्वारा प्रेरित भारत का सेवा निर्यात सशक्त बना रहा।
- जुलाई 2022 से सेवा क्षेत्र के लिए ऋण में 16 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
- वित्त वर्ष 2022 में सेवा क्षेत्र में 7.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश इक्विटी का प्रवाह।
- वित्त वर्ष 2023 में संपर्क-गहन सेवाएं महामारी से पहले के स्तर की वृद्धि दर को पुनः हासिल करने के लिए तैयार हैं।
- रियल एस्टेट क्षेत्र में निरंतर वृद्धि 2021 और 2022 के बीच 50 प्रतिशत की वृद्धि के साथ, आवास की बिक्री को महामारी के पूर्व-स्तर पर ले जा रही है।
- होटल ऑक्यूपेंसी दर अप्रैल 2021 में 30-32 प्रतिशत से बढ़कर नवंबर 2022 में 68-70 प्रतिशत हो गई है।
- वित्त वर्ष 2023 में भारत में विदेश पर्यटकों के आगमन के साथ-साथ निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की बहाली और कोविड-19 नियमों में ढील के साथ पर्यटन क्षेत्र के पुनर्जीवित होने के संकेत मिल रहे हैं।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म भारत की वित्तीय सेवाओं में बदलाव ला रहे हैं।
- भारत का ई-कॉमर्स बाजार 2025 तक सालाना 18 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है।
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- बाहरी क्षेत्र:
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- अप्रैल-दिसम्बर 2022 के दौरान व्यापार निर्यात 332.8 बिलियन डॉलर रहा।
- भारत ने अपने बाजार को विभिन्न वर्गों में विविधिकृत किया और ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब के लिए अपने निर्यात में बढ़ोतरी की।
- बाजार के विस्तार और बेहतर पहुंच सुनिश्चित करने के लिए, 2022 में UAE के साथ CEPA और ऑस्ट्रेलिया के साथ ECTA लागू हुआ।
- भारत, 2022 में 100 बिलियन डॉलर प्राप्त करने के द्वारा विश्व में प्रेषण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता रहा। सेवा निर्यात के बाद प्रेषण बाह्य वित्त पोषण का दूसरा सबसे बड़ा प्रमुख स्रोत है।
- दिसम्बर, 2022 तक विदेशी मुद्रा भंडार 9.3 महीनों के आयात को कवर करते हुए 563 बिलियन डॉलर पर रहा।
- नवम्बर, 2022 के अंत तक भारत विश्व में छठा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार धारक है।
- बाह्य ऋण का वर्तमान स्टॉक विदेशी मुद्रा भंडार के आरामदायक स्तर से अच्छी तरह सुरक्षित है।
- भारत का सकल राष्ट्रीय आय की प्रतिशतता के रूप में कुल ऋण का अपेक्षाकृत निम्न स्तर तथा कुल ऋण की प्रतिशतता के रूप में अल्प अवधि ऋण है।
- भौतिक और डिजिटल अवसंरचना:
- अवसंरचना विकास के लिए सरकार का दृष्टिकोण
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- सार्वजनिक निजी भागीदारी:
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- VGF योजना के लिए 2014-15 से 2022-23 के दौरान 56 परियोजनाओं को सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी दी गई, जिनकी कुल परियोजना लागत 57,870.1 करोड़ रुपये है।
- वित्त वर्ष 2023-25 के लिए, 150 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ IIPDF को केन्द्रीय क्षेत्र की योजना के रुप में अधिसूचित किया गया।
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- राष्ट्रीय अवंसरचना पाइपलाइन:
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- कुल 141.4 लाख करोड़ रुपये की 89,151 परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में है।
- 5.5 लाख करोड़ रुपये की 1009 परियोजनाएं पूरी की गईं।
- NIP और परियोजना निगरानी समूह (PMG) पॉर्टल को आपस में जोड़ने से परियोजनाओं की मंजूरी/स्वीकृति में तेजी।
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- राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन:
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- 9.0 लाख करोड़ रुपये की संचयी निवेश क्षमता का निर्माण।
- वित्त वर्ष 2022 के दौरान 0.8 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुकाबले 0.9 लाख करोड़ रुपये के मुद्रीकरण का लक्ष्य हासिल किया गया।
- वित्त वर्ष 2023 के लिए लक्ष्य 1.6 लाख करोड़ रुपये (कुल NMP लक्ष्य का 27 प्रतिशत)।
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- विद्युत और नवीकरणीय क्षेत्र:
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- 30 सितम्बर, 2022 तक सरकार ने 16 राज्यों में 59 सोलर पार्कों के विकास को मंजूरी दी है, जिसकी कुल लक्ष्य क्षमता 40 GW है।
- वित्त वर्ष 2022 के दौरान 17.2 लाख GWh विद्युत का उत्पादन हुआ।
- कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता (उद्योग, जिनकी मांग एक मेगावाट (MW) और अधिक है), 31 मार्च, 2021 के 460.7 GW के मुकाबले 31 मार्च, 2022 को 482.2 GW हो गयी।
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- गतिशक्ति:
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- पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के लिए एकीकृत योजना निर्माण और तालमेल आधारित कार्यान्वयन के संदर्भ में व्यापक डेटाबेस का निर्माण करता है।
- लोगों और सामानों के निर्बाध आवागमन की कमियों को दूर करते हुए मल्टीमोडल परिवहन और लॉजिस्टिक कार्यकुशलता को बेहतर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
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- भारतीय लॉजिस्टिक क्षेत्र को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना:
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- तेज और समावेशी विकास के लिए राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति देश में एक तकनीक सक्षम, एकीकृत, किफायती, लचीली, सतत और विश्वसनीय लॉजिस्टिक इकोसिस्टम को विकसित करने की परिकल्पना करती है।
- राष्ट्रीय राजमार्गों और सड़कों के निर्माण में तेजी; वित्त वर्ष 2016 के 6061 किलोमीटर की तुलना में वित्त वर्ष 2022 के दौरान 10,457 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों/सड़कों का निर्माण किया गया।
- तेज और समावेशी विकास के लिए राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति देश में एक तकनीक सक्षम, एकीकृत, किफायती, लचीली, सतत और विश्वसनीय लॉजिस्टिक इकोसिस्टम को विकसित करने की परिकल्पना करती है।
- वित्त वर्ष 2020 के 1.4 लाख करोड़ रुपये की तुलना में बजट परिव्यय बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 2.4 लाख करोड़ रुपये हो गया।
- इस प्रकार पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई।
- अक्टूबर 2022 तक 2359 किसान रेलों ने लगभग 7.91 लाख टन सब्जियों/फलों का परिवहन किया।
- 2016 में शुरु होने के बाद, एक करोड़ से ज्यादा हवाई यात्रियों ने उड़ान स्कीम का लाभ प्राप्त किया है।
- आठ वर्षों में प्रमुख पत्तनों की क्षमता दोगुनी हुई।
- सौ साल पुराने अधिनियम के स्थान पर अंतरदेशीय पोत अधिनियम 2021 लागू किया गया, ताकि अंतरदेशीय जल परिवहन को बढ़ावा देने के साथ पत्तनों की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित की जा सके।
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- भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना:
- एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI):
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- 2019-22 के दौरान UPI आधारित लेन-देन के लिए मूल्य के संदर्भ में 121 प्रतिशत की वृद्धि और मात्रा के संदर्भ में 115 प्रतिशत की वृद्धि, इससे UPI को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनाए जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- टेलीफोन और रेडिया– डिजिटल सशक्तिकरण:
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- भारत में कुल टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या 117.8 करोड़ (सितम्बर 2022 तक) है, 44.3 प्रतिशत उपभोक्ता ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।
- कुल टेलीफोन उपभोक्ताओं में से 98 प्रतिशत मोबाइल फोन द्वारा जुड़े हुए हैं।
- मार्च 2022 में भारत का कुल टेली– घनत्व 84.8 प्रतिशत है।
- 2015 से 2021 के दौरान ग्रामीण इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में 200 प्रतिशत की वृद्धि।
- प्रसार भारती (भारत का स्वायत्त लोक प्रसारक) 479 स्टेशनों के माध्यम से 23 भाषाओं और 179 उप-भाषाओं में अपने कार्यक्रम प्रसारित करता है, जिसकी पहुंच 92 प्रतिशत क्षेत्र और कुल आबादी के 99.1 प्रतिशत तक है।
5G सेवा का शुभारंभ, एक प्रमुख उपलब्धि:
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- आर्थिक समीक्षा के अनुसार भारत में दूरसंचार क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि 5G सेवाओं के शुभारंभ के रूप में प्राप्त हुई।
- एक प्रमुख सुधार उपाय के रूप में भारतीय टेलीग्राफ राइट ऑफ वे (संशोधन) नियम, 2022 5G सेवा शुरू करने के लिए टेलीग्राफ अवसंरचना की तेज और आसान स्थापना की सुविधा प्रदान करेगा।
- सरकार ने नवाचार, विनिर्माण और निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न फ्रीक्वेंसी बैंड को लाइसेंस मुक्त करने सहित वायरलेस लाइसेंसिंग में प्रक्रियात्मक सुधार किए हैं।
- राष्ट्रीय फ्रीक्वेंसी आवंटन योजना 2022 (NFAP) एक व्यापक नियामक ढांचा प्रदान करता है।
- आर्थिक समीक्षा के अनुसार भारत में दूरसंचार क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि 5G सेवाओं के शुभारंभ के रूप में प्राप्त हुई।
- डिजिटल रूप से सार्वजनिक कल्याण:
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- 2009 में आधार के शुभारंभ के साथ कम खर्च पर पहुंच हासिल की गई।
- मेरी योजना, TRADS, जेम, ई-नाम, उमंग से मार्किट प्लेस में बदलाव आया है और नागरिक विभिन्न क्षेत्र में सेवाओं तक पहुंच प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं।
- अनुमति आधारित डेटा साझाकरण रूपरेखा वर्तमान में 110 करोड़ बैंक खातों में संचालित की जा रही है।
- ओपन डिजिटल एनेबलमेंट नेटवर्क, डिजिटल ऋण आवेदनों को शुरु से अंत तक अनुमति देने के साथ ऋण प्रक्रियाओं के लोकतंत्रीककरण का लक्ष्य रखता है।
- राष्ट्रीय एआई पोर्टल ने 1520 लेख प्रकाशित किए हैं, 262 वीडियो निर्मित किए हैं और 120 सरकारी पहलों की शुरुआत हुई है, जिन्हें विभिन्न भाषाओं के कारण होने वाली समस्याओं के समाधान अर्थात् ‘भाषिणी’ के रूप में देखा जा रहा है।
- उपयोगकर्ता की निजता को बढ़ाने के लिए नियम बनाए गए हैं और मजबूत डेटा शासन के लिए एक ऐसे इकोसिस्टम का निर्माण किया जा रहा है, जो मानक आधारित, खुला तथा आपस में संचालन योग्य नियमों का अनुपालन करता हो।
2. आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 का सारांश:
सामान्य अध्ययन: 3
अर्थव्यवस्था:
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास और रोजगार से संबंधित विषय एवं सरकारी बजट।
प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक सर्वेक्षण के महत्वपूर्ण निष्कर्ष।
प्रसंग:
- केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2023 को संसद में ‘आर्थिक समीक्षा 2022-23’ पेश किया, जिसका अनुमान है कि GDP विकास दर वित्त वर्ष 2024 के लिए वास्तविक आधार पर 6.5 प्रतिशत रहेगी।
उद्देश्य:
- आर्थिक सर्वेक्षण भारत के विकास पथ का एक व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करता है जिसमें हमारे राष्ट्र के प्रति वैश्विक आशावाद, अवसंरचना पर ध्यान, कृषि एवं उद्योग के क्षेत्रों में विकास और भविष्योन्मुखी क्षेत्रों पर जोर देना शामिल है।
विवरण:
- इस अनुमान की बहुपक्षीय एजेंसियों जैसे विश्व बैंक, IMF, ADB और घरेलू तौर पर RBI द्वारा किए गए अनुमानों से तुलना की जा सकती है।
- सर्वेक्षण कहता है कि वित्त वर्ष 2024 में विकास की गति तेज रहेगी क्योंकि कॉरपोरेट और बैंकिंग क्षेत्र के लेखा विवरण पत्रों के मजबूत होने से ऋण अदायगी और पूंजीगत निवेश के शुरु होने का अनुमान है।
- आर्थिक विकास को लोक डिजिटल प्लेटफॉर्म के विस्तार तथा ऐतिहासिक उपायों जैसे पीएम गतिशक्ति, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से समर्थन मिलेगा, जो निर्माण उत्पादन को बढ़ावा देंगे।
- सर्वेक्षण कहता है कि वास्तविक स्तर पर मार्च, 2023 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए अर्थव्यवस्था में 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि होगी। पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान विकास दर 8.7 प्रतिशत रही थी।
- कोविड-19 के तीन लहरों तथा रूस-यूक्रेन संघर्ष के बावजूद एवं फेडरल रिजर्व के नेतृत्व में विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के केन्द्रीय बैंकों द्वारा महंगाई दर में कमी लाने की नीतियों के कारण अमेरिकी डॉलर में मजबूती दर्ज की गई है और आयात करने वाली अर्थव्यवस्थाओं का चालू खाता घाटा (CAD) बढ़ा है।
- दुनियाभर की एजेंसियों ने भारत को सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था माना है, जिसकी विकास दर वित्त वर्ष 2023 में 6.5 – 7.0 प्रतिशत रहेगी।
- सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 के दौरान भारत के आर्थिक विकास का मुख्य आधार निजी खपत और पूंजी निर्माण रहा है, जिसने रोजगार के सृजन में मदद की है।
- यह शहरी बेरोजगारी दर में कमी तथा कर्मचारी भविष्य निधि के कुल पंजीकरण में तेजी के माध्यम से दिखाई पड़ती है।
- भारत के विकास दृष्टिकोण को निम्न से बढ़ावा मिला है:
- चीन के कोविड-19 संक्रमण के वर्तमान लहर से पूरी दुनिया के प्रभावित होने की तुलना में भारत में स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर अपेक्षाकृत कम असर पड़ा है, जिससे आपूर्ति श्रृंखलाएं सामान्य रही हैं।
- चीन की अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने की संभावना न तो महत्वपूर्ण है और न ही निरंतर है।
- विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी के रुझानों से मौद्रिक मजबूती में कमी आई है; भारत में घरेलू मुद्रास्फीति दर 6 प्रतिशत से कम रही है, जिससे देश में पूंजीगत प्रवाह बढ़ा है तथा
- उद्योग जगत का रुझान बेहतर हुआ है, जिससे निजी क्षेत्र निवेश में वृद्धि हुई है।
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- सर्वेक्षण कहता है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उध्यम (MSME) क्षेत्र के लिए ऋण में तेज वृद्धि दर्ज की गई है, जो जनवरी-नवम्बर, 2022 के दौरान औसत आधार पर 30.6 प्रतिशत रही और इसे केन्द्र सरकार की आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ECLGS) का समर्थन मिला।
- MSME क्षेत्र में रिकवरी की गति तेज हुई है, जो उनके द्वारा भुगतान किए जाने वाले वस्तु एवं सेवाकर (GST) की धनराशि से परिलक्षित होती है।
- उनकी आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ECLGS) ऋण संबंधी चिंताओं को आसान कर रही है।
- इसके अलावा बैंक ऋण में हुई वृद्धि, उधार लेने वालों के बदलते रुझानों से भी प्रभावित हुई है, जो जोखिम भरे बॉन्ड मार्किट में निवेश कर रहे हैं, जहां धन अर्जन अधिक होता है।
- यदि मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2024 में कम होती है और ऋण की वास्तविक लागत नहीं बढ़ती है तो वित्त वर्ष 2024 के लिए ऋण वृद्धि तेज रहेगी।
- केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) वित्त वर्ष 2023 के पहले 8 महीनों में 63.4 प्रतिशत तक बढ़ गया, जो चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का प्रमुख घटक रहा है।
- 2022 के जनवरी-मार्च तिमाही से नीजि पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है।
- निजी पूंजीगत निवेश में भी वृद्धि होने का अनुमान है, क्योंकि कॉपोरेट जगत के लेखा विवरण पत्र मजबूत हुए हैं जिससे ऋण देने में वृद्धि होगी।
- सर्वेक्षण ने महामारी के कारण निर्माण गतिविधियों में आई बाधाओं को रेखांकित किया है।
- सर्वेक्षण कहता है कि टीकाकरण से प्रवासी श्रमिकों को शहरों में वापस आने में सुविधा मिली है। इससे आवास बाजार मजबूत हुआ है।
- यह इस बात से परिलक्षित होता है कि विनिर्माण सामग्री के भंडार में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई है, जो पिछले साल के 42 महीनों के मुकाबले वित्त वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में 33 महीने रह गया है।
- सर्वेक्षण कहता है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार प्रदान कर रही है और अप्रत्यक्ष तौर पर ग्रामीण परिवारों को अपनी आय के स्रोतों में बदलाव लाने में मदद कर रही है।
- पीएम किसान और पीएम गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाएं देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है और इनके प्रभावों को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने भी अनुशंसा प्रदान की है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के परिणामों ने भी दिखाया है कि वित्त वर्ष 2016 से वित्त वर्ष 2020 तक ग्रामीण कल्याण संकेतक बेहतर हुए हैं, जिनमें लिंग, प्रजनन दर, परिवार की सुविधाएं और महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों को शामिल किया गया है।
- सर्वेक्षण उम्मीद करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी के प्रभावों से मुक्त हो चुकी है और वित्त वर्ष 2022 में दूसरे देशों की अपेक्षा तेजी से पहले की स्थिति में आ चुकी है।
- कुल स्वास्थ्य व्यय में सरकारी स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा वित्त वर्ष 2014 में 28.6 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में 40.6 प्रतिशत हो गया है।
- कुल स्वास्थ्य व्यय का प्रतिशत (वित्त वर्ष 2014) के 64.2 प्रतिशत से घटकर (वित्त वर्ष 2019) 48.2 प्रतिशत हो जाने से जेब से किए जाने वाले व्यय में कमी आई है।
- सामाजिक सेवा पर होने वाले कुल व्यय में स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय के हिस्से में वृद्धि, वित्त वर्ष 2019 में 21 प्रतिशत से वित्त वर्ष 2023 (BE) में 26 प्रतिशत होने का अनुमान।
- स्वास्थ्य क्षेत्र पर केन्द्र और राज्य सरकारों का बजट व्यय 2023 (BE) में GDP के 2.1 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2021 में 1.6 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022 में 2.2 प्रतिशत था।
- स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय वित्त वर्ष 2014 में 6 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में 9.6 प्रतिशत हो गया।
- भारतीय अर्थव्यवस्था अब वित्त वर्ष 2023 में महामारी-पूर्व के विकास मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है।
- सरकार और RBI के द्वारा किए गए उपायों और वैश्विक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में आई कमी से नवंबर, 2022 से खुदरा मुद्रास्फीति को RBI की लक्ष्य-सीमा से नीचे लाने में मदद मिली।
- हालांकि, रुपए में मूल्यहास की चुनौती अधिकांश अन्य मुद्राओं की तुलना में हमारी मुद्रा बेहतर निष्पादन कर रही है, यूएस फेड द्वारा नीतिगत दरों में और वृद्धि किए जाने की संभावना बनी हुई है।
- CAD का बढ़ना भी जारी रह सकता है क्योंकि वैश्विक जिंस की कीमतों में उच्चता बनी हुई है और भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास गति भी मजबूत बनी हुई है।
- निर्यात प्रोत्साहन का नुकसान आगे भी संभव है क्योंकि धीमी पड़ती वैश्विक समृद्धि और व्यापार ने चालू वर्ष की दूसरी छमाही में वैश्विक बाजार के आकार को कम करती है।
- इस प्रकार से वर्ष 2023 में वैश्विक संवृद्धि में गिरावट का अनुमान लगाया गया है और इसके बाद के वर्षों में भी आमतौर पर कमजोर रहने की संभावना है।
- यह सब महामारी से प्रभावित वैश्विक उत्पादन में आई कमी से प्रारंभ हुआ जिसे रूस-यूक्रेन संघर्ष ने विश्व को मुद्रास्फीति की ओर अग्रसर कर दिया फिर फेडरल रिजर्व के पीछे-पीछे अर्थव्यवस्थाओं के केन्द्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए समकालिक नीतिगत दरों में वृद्धि की।
- यूएस फेड द्वारा दरों में की गई वृद्धि ने अमेरिकी बाजारों में पूंजी को आकर्षित किया, जिससे अधिकांश मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर का मूल्य बढ़ गया।
- परिणामस्वरूप चालू घाटा CAD बढ़ गया और निबल आयातक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति दबाव में वृद्धि आई।
- दर में वृद्धि और सतत मुद्रास्फीति ने IMF द्वारा विश्व आर्थिक आउटलुक के अक्टूबर 2022 के अपडेट में 2022 और 2023 के लिए वैश्विक विकास पूर्वानुमानों को कम कर दिया।
- चीनी अर्थव्यवस्ता की क्षीणता ने आगे विकास के पूर्वानुमानों को और कमजोर किया।
- मौद्रिक तंगी के अलावा धीमी वैश्विक वृद्धि भी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से उत्पन्न वित्तीय संक्रमण का कारण बन सकती हैं जहां गैर-वित्तीय क्षेत्र का ऋण वैश्विक वित्तीय संकंट के बाद से सबसे अधिक बढ़ गया है।
- चीनी अर्थव्यवस्ता की क्षीणता ने आगे विकास के पूर्वानुमानों को और कमजोर किया।
- सर्वेक्षण कहता है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उध्यम (MSME) क्षेत्र के लिए ऋण में तेज वृद्धि दर्ज की गई है, जो जनवरी-नवम्बर, 2022 के दौरान औसत आधार पर 30.6 प्रतिशत रही और इसे केन्द्र सरकार की आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ECLGS) का समर्थन मिला।
- भारत का आर्थिक लचीलापन और विकास संचालक:
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- भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक सख्ती, CAD का बढ़ना, और निर्यात की स्थिर वृद्धि अनिवार्य रूप से यूरोप में भू-राजनीतिक विवाद का परिणाम है।
- जैसा कि इन गतिविधियों ने वित्त वर्ष 23 में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए नकारात्मक जोखिम पैदा किया है, दुनिया भर में कई एजेंसियां रूक-रूक कर भारतीय अर्थव्यवस्था के अपने विकास पूर्वानुमान को नीचे की ओर संशोधित कर रही हैं।
- NSO द्वारा जारी किए गए अग्रिम अनुमानों सहित ये पूर्वानुमान अब मोटे तौर पर 6.5-7.0 प्रतिशत की सीमा में हैं।
- IMF का अनुमान है कि भारत 2022 में तेजी से बढ़ती शीर्ष दो महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा।
- मजबूत वैश्विक विपरीत परिस्थितियों और कड़ी घरेलू मौद्रिक नीति के बावजूद, यदि भारत अभी भी 6.5 और 7.0 प्रतिशत के बीच बढ़ने की उम्मीद करता है, और अर्थव्यवस्था के विकास चालकों को पुनः प्राप्त करने, नवीनीकृत करने और फिर से सक्रिय करने की इसकी क्षमता है।
- निर्यात में वृद्धि वित्त वर्ष 2023 की दूसरी छमाही में कम हो सकती है।
- खपत में फिर से वृद्धि को पेंट-अप मांग के बाहर निकलने के भी समर्थन मिला है।
- चूंकि भारत में प्रयोज्य आय में खपत का हिस्सा अधिक है इसलिए महामारी के कारण खपत को कम करने से बहुत अधिक परावर्तक की शक्ति का निर्माण हुआ।
- इसलिए खपत पुनर्वद्धि स्थायी शक्ति हो सकती है।
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- भारतीय अर्थव्यवस्था में मैक्रोइकॉनॉमिक और विकास संबंधी चुनौतियां:
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- भारत पर महामारी के प्रभाव के कारण वित्त वर्ष 21 में एक महत्वूपर्ण GDP संकुचन देखा गया था।
- अगले वर्ष, वित्तीय वर्ष 22 में भारतीय अर्थव्यवस्था जनवरी 2022 की ओमिक्रॉन लहर के बावजूद इस तीसरी लहर ने भारत में आर्थिक गतिविधियों को उतना प्रभावित नहीं किया, जितना महामारी की पिछली लहरों ने जनवरी 2020 में इसका प्रकोश शुरू होने पर प्रभावित किया था।
- यूरोपीय संघर्ष ने वित्त वर्ष 23 में आर्थिक संवृद्धि और मुद्रास्फीति की प्रत्याशा में एक संशोधन आवश्यक कर दिया।
- जनवरी 2022 में देश की खुदरा मद्रास्फीति RBI की स्वीकार्य सीमा से ऊपर चली गई थी।
- यह नवंबर से 6 प्रतिशत के लक्ष्य सीमा के ऊपरी छोर से नीचे लौटने से पहले दस महीनों के लिए लक्ष्य सीमा से ऊपर रही।
- उन दस महीनों के दौरान, अत्यधिक गर्मी और बेमौसम बारिश जैसे स्थीनय मौसम के चरम पर होने के बावजूद भी बढ़ती अंतराष्ट्रीय वस्तुओं की कीमतों ने भारत की खुदरा मद्रास्फीति में योगदान दिया, जिससे खाद्य कीमतों में वृद्धि हुई।
- सरकार ने उत्पाद और सीमा शुल्क में कटौती की और मुद्रास्फीती को नियंत्रित करने के लिए निर्यात को प्रतिबंधित किया, जबकि अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह RBI ने रेपो दरों में वृद्धि की और अतिरिक्त नकदी को वापस ले लिया।
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- अनुमान-2023-24:
- 2023-24 के लिए अनुमान के विवरण में समीक्षा में बताया गया है कि महामारी से भारत की भरपाई अपेक्षाकृत तीव्र थी और ठोस घरेलू मांग के समर्थन और पूंजीगत निवेश में वृद्धि से आगामी वर्षों में प्रगति होगी।
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- समीक्षा के अनुसार, वित्त वर्ष 16 से वित्त वर्ष 23 तक पिछले 7 वर्षों में बजटीय पूंजीगत व्यय में 2.7 गुणा वृद्धि हुई, जिससे पूंजीगत व्यय को मजबूती मिली।
- वस्तु एवं सेवा कर की शुरुआत और दिवाला एवं दीवालियापन संहिता जैसे रचनात्मक सुधारों से अर्थव्यवस्था की क्षमता और पारदर्शिता बढ़ी और वित्तीय अनुशासन एवं बेहतर अनुपालन सुनिश्चित हुआ।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक, अक्टूबर 2022 के अनुसार, वैश्विक विकास का वर्ष 2023 में 3.2 प्रतिशत से धीमा होकर वर्ष 2023 में 2.7 प्रतिशत होने का अनुमान है।
- आर्थिक उत्पादन में धीमी वृद्धि के साथ बढ़ती अनिश्चितता व्यापार वृद्धि को कम कर देगी।
- वैश्विक व्यापार में वृद्धि के संबंध में विश्व व्यापार संगठन द्वारा वर्ष 2022 में 3.5 प्रतिशत से 2023 में 1.0 प्रतिशत गिरावट का पूर्वानुमान किया गया है।
- बाह्य दृष्टि से चालू खाता शेष के जोखिम अनेक स्रोतों से उत्पन्न होते हैं, जबकि वस्तुओं की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई से कम हो गई हैं, वे अभी भी संघर्ष-पूर्व के स्तर से ऊपर हैं।
- वस्तुओं की उच्च कीमतों के बीच मजबूत घरेलू मांग से भारत के कुल आयात बिल में वृद्धि होगी और चालू खाता शेष में अलाभकारी विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- वैश्विक मांग में कमी के कारण निर्यात वृद्धि को स्थिर करके इन्हें और बढ़ाया जा सकता है। यदि चालू खाता घाटे में और वृद्धि होती है तो मुद्रा पर मूल्यह्रास का दबाव बढ़ेगा।
- बढ़ी हुई मुद्रास्फीति सख्ती की प्रक्रिया को लंबा कर सकती है और इसलिए, उधार लेने की लागत “लंबे समय तक अधिक” रह सकती है।
- ऐसे परिदृश्य में, वैश्विक अर्थव्यवस्था में वित्तीय वर्ष 2024 में कम वृद्धि हो सकती है। तथापि धीमे वैश्विक विकास के परिदृश्य से दो उम्मीदें पैदा होती हैं- तेल की कीमतें कम रहेंगी, और भारत का CAD वर्तमान के स्तर से बेहतर होगा।
- समीक्षा के अनुसार, वित्त वर्ष 16 से वित्त वर्ष 23 तक पिछले 7 वर्षों में बजटीय पूंजीगत व्यय में 2.7 गुणा वृद्धि हुई, जिससे पूंजीगत व्यय को मजबूती मिली।
- भारत का समावेशी विकास:
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- बेरोजगारी दर 2018-19 में 5.8 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 4.2 प्रतिशत पर आयी।
- ग्रामीण महिला श्रमबल सहभागिता दर 2018-19 के 19.7 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 27.7 प्रतिशत तक पहुंची।
- महिलाओं के लिए कार्य के माप का दायरा विस्तारित करने की आवश्यकता।
- ई-श्रम पोर्टल पर 28.5 करोड़ असंगठित श्रमिक पंजीकृत।
- 2019-20 के मुकाबले 2020-21 में स्वरोजगार वाले लोगों का हिस्सा बढ़ा और नियमित मजदूरी/वेतनभोगी श्रमिकों के हिस्से में गिरावट।
- EPFO के तहत शुद्ध औसत मासिक सब्सक्राइबर की संख्या अप्रैल-नवम्बर, 2021 के 8.8 लाख से बढ़कर अप्रैल-नवम्बर, 2022 में 13.2 लाख तक पहुंची।
- समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया है कि विकास तब समावेशी होता है, जब यह रोजगार सृजित करता है।
- आधिकारिक और गैर-आधिकारिक दोनों स्रोत इस बात की पुष्टि करते हैं कि चालू वित्त वर्ष में रोजगार के स्तर में वृद्धि हुई है।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) से पता चलता है कि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए शहरी बेरोजगारी दर सितंबर 2021 को समाप्त तिमाही में 9.8 प्रतिशत से घटकर एक वर्ष बाद (सितंबर 2022 को समाप्त तिमाही में) 7.2 प्रतिशत हो गई।
- इसके साथ-साथ श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में भी सुधार हुआ है।
- यह वित्त वर्ष 2023 की शुरुआत में अर्थव्यवस्था के महामारी से प्रेरित मंदी से उभरने की पुष्टि करता है।
- वित्तीय वर्ष 21 में, सरकार ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना की घोषणा की। यह योजना सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को वित्तीय संकट से बचाने में सफल रही।
- CIBIL की एक हालिया रिपोर्ट (ECLGS अंतर्दृष्टि, अगस्त 2022) ने दिखाया कि इस योजना ने MSME को कोविड झटके का सामना करने में मदद की है, जिसमें 83 प्रतिशत उधारकर्ताओं ने ECLGS का सूक्ष्म-उद्यमों के रूप में लाभ उठाया है।
- इन सूक्ष्म इकाइयों में, आधे से अधिक का समग्र जोखिम 10 लाख रुपए से कम था।
- इसके अलावा, CIBIL डेटा से भी यह पता चलता है कि ECLGS उधारकर्ताओं की अनुपयोज्य संपत्ति दरें उन उद्यमों की तुलना में कम थीं जो ECLGS के लिए पात्र थे, लेकिन इसका लाभ नहीं उठाया।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत सरकार द्वारा लागू की गई योजना किसी भी अन्य श्रेणी की तुलना में “व्यक्तिगत भूमि पर काम” के संबंध में तेजी से अधिक संपत्ति का सृजन कर रही है।
- इसके अतिरिक्त, ग्रामीण आबादी के आधे हिस्से को कवर करने वाले परिवारों के लिए लाभकारी पीएम-किसान जैसी योजनाएं और पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना ने देश में गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- जुलाई 2022 की UNDP रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हाल ही में मुद्रास्फीति के प्रकरण में:
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- सरकार द्वारा किए गए सक्रिय उपायों से मुद्रास्फीति RBI की सहनशीलता सीमा के भीतर आयी।
- दिसम्बर, 2022 में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति और थोक मूल्य मुद्रास्फीति में क्रमशः 5.7 प्रतिशत और 5.0 प्रतिशत की गिरावट आयी।
- वैश्विक वस्तु मूल्य से मुद्रास्फीति जोखिमों के वित्त वर्ष 2024 में कम रहने की उम्मीद।
- अच्छे लक्षित समर्थन के कारण गरीबी पर कम प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) वित्तीय वर्ष 2016 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2020 में ग्रामीण कल्याण संकेतकों में सुधार को दर्शाता है, जिसमें लिंग, प्रजनन दर, घरेलू सुविधाओं और महिला सशक्तिकरण जैसे पहलुओं को कवर किया गया है।
- अब तक भारत के लिए आर्थिक लचीलापन के प्रति देश के विश्वास को मजबूत किया है।
- अर्थव्यवस्था ने इस प्रक्रिया में विकास की गति को खोए बिना रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण हुए बाहरी असंतुलन को कम करने की चुनौती का सामना किया है।
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा की गई निकासी से प्रभावित हुए बगैर चालू वर्ष 2022 में भारत के शेयर बाजारों में सकारात्मक वापसी हुई।
- क्रय शक्ति समता (PPP) के अनुसार भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बाजार विनिमय दरों में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- इतने बड़े एक राष्ट्र की अपेक्षा के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था ने उसे ‘पुनः प्राप्त’ किया है, जो खो गया था, उसे ‘नवीनीकृत’ किया है, जो रुका हुआ था और उसे ‘पुनः सक्रिय’ किया है, जो वैश्विक महामारी के दौरान और यूरोप में संघर्ष के बाद से धीमा हो गया था।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था विशिष्ट चुनौतियों का सामना कर रही है:
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- समीक्षा में बताया गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था लगभग 6 चुनौतियों का सामना कर रही है।
- कोविड-19 से संबंधित चुनौतियों के कारण रुकावट आई, रूस-यूक्रेन संघर्ष और इसके प्रतिकूल प्रभाव के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखला, मुख्य रूप से खाद्य, ईंधन तथा उर्वरक की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुई और महंगाई को रोकने के लिए फेडरल रिजर्व की दरों में वृद्धि के कारण विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के सामने समस्याएं उत्पन्न हुईं।
- इसके परिणामस्वरूप अमेरीकी डॉलर में उछाल आया और सकल आयात अर्थव्यवस्थाओं में चालू खाता घाटा बढ़ा।
- वैश्विक गतिरोध की संभावनाओं का सामना करते हुए, राष्ट्रों ने अपने संबंधित आर्थिक स्थिति की रक्षा करने के लिए मजबूरी महसूस की, सीमापार व्यापार धीमा कर दिया, जिसने विकास के लिए चौथी चुनौती पेश की।
- शुरुआत से पांचवीं चुनौती बढ़ रही थी, क्योंकि चीन ने अपनी नीतियों से प्रेरित काफी मंदी का अनुभव किया।
- विकास के लिए छठी मध्यम अवधि की चुनौती को शिक्षा और आय अर्जन के अवसरों के नुकसान से उत्पन्न महामारी से डरा हुआ देखा गया।
- समीक्षा में बताया गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था लगभग 6 चुनौतियों का सामना कर रही है।
- समीक्षा में बताया गया है कि दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह, भारत ने भी इन असाधारण चुनौतियों का सामना किया, लेकिन अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में इसने उनका बेहतर तरीके से सामना किया।
- पिछले ग्यारह महीनों में, विश्व अर्थव्यवस्था ने लगभग उतने ही व्यवधानों का सामना किया है, जितना दो वर्षों में महामारी के कारण हुआ है।
- संघर्ष के कारण कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, उर्वरक और गेहूं जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई।
- इसने मुद्रास्फीति के दबावों को बढ़ाया, जिससे वैश्विक आर्थिक सुधार शुरू हो गया था, जो 2020 में उत्पादन संकुचन को सीमित करने के लिए बड़े पैमाने पर राजकोषीय प्रोत्साहन और अति-समायोजन कार्य मौद्रिक नीतियों से समर्थित था।
- उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (AE) में मुद्रास्फीति, जो अधिकांश वैश्विक राजकोषीय विस्तार और मौद्रिक सहजता के लिए जिम्मेदार है, ने ऐतिहासिक ऊंचाइयों को पार कर लिया है।
- समीक्षा में बताया गया है कि मुद्रास्फीति और मौद्रिक तंगी ने सभी अर्थव्यवस्थाओं में बॉन्ड प्रतिफल को सख्त कर दिया और इसके परिणामस्वरूप दुनियाभर की अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं से इक्विटी पूंजी का बहिर्वाह अमेरीका के पारंपरिक रूप से सुरक्षित आश्रय बाजार में हो गया।
- पूंजी उड़ान ने बाद में अन्य मुद्राओं के प्रति अमेरिकी डॉलर को मजबूत किया- जनवरी और सितंबर 2022 के बीच अमेरिकी डॉलर सूचकांक 16.1 प्रतिशत मजबूत हुआ।
- अन्य मुद्राओं को परिणामी मूल्यह्रास CAD को बढ़ा रहा है और शुद्ध आयातक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति के दबावों को बढ़ा रहा है।
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- आर्थिक समीक्षा में ग्रामीण विकास की प्राथमिकता को रेखांकित किया गया:
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- ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक समान और समावेशी विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया।
- मनरेगा के तहत परिसंपत्तियों का कृषि उत्पादकता और ग्रामीणों की आय पर सकारात्मक असर- प्रवास और ऋण में डूबने वालों की संख्या में कमी।
- ग्रामीण महिला श्रमिक बल हिस्सेदारी दर में 19.7 प्रतिशत (2018-19) से 27.7 प्रतिशत (2020-21) की महत्वपूर्ण वृद्धि।
- समीक्षा के अनुसार, देश की आबादी का कुल 65 प्रतिशत (2021 डाटा) हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है और कुल 47 प्रतिशत आबादी अपने जीवन यापन के लिए कृषि कार्यों पर निर्भर है।
- ऐसे में सरकार का ध्यान ग्रामीण विकास पर प्रमुखता से केन्द्रित है।
- सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक समान और समावेशी विकास के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर को बढ़ावा देने पर ज़ोर दे रही है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सरकार की सहभागिता का उद्देश्य ग्रामीण भारत के सापेक्ष सामाजिक-आर्थिक समावेशन, एकीकरण और सशक्तिकरण के माध्यम से लोगों के जीवन तथा जीवन स्तर में परिवर्तन लाना है।
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- भारत का अनाज उत्पादन 2021-22 में रिकॉर्ड 315.7 मिलियन टन तक पहुंचा:
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- वर्ष 2021-22 में भारत में कुल अनाज उत्पादन रिकॉर्ड 315.7 मिलियन टन तक पहुंच गया। दालों का उत्पादन भी पिछले पांच वर्षों के औसत 23.8 मिलियन टन से बहुत अधिक रहा है।
- 2021-22 में रिकॉर्ड 342.3 मिलियन टन बागवानी फसलों का हुआ उत्पादन।
- प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के लिए 20,050 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान किया गया है।
- 1 जनवरी, 2023 से एक वर्ष तक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त अनाज बांटे जाएंगे।
- सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में वन नेशन वन राश कार्ड योजना को लागू किया गया।
- कृषि अवसंरचना के लिए 13,681 करोड़ रुपये मंजूर किए गए।
- ई-नाम पोर्टल पर 1.7 करोड़ से अधिक किसानों और 2.3 लाख व्यापारियों को पंजीकृत किया गया।
- भारत में मोटा अनाज मूल्य श्रृंखलाओं में 500 से अधिक स्टार्ट-अप्स कंपनियां काम कर रही है।
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- सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2022 में 8.4 प्रतिशत रही:
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- ‘आर्थिक समीक्षा 2022-23’ में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सेवा क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2022 में बड़ी तेजी से अपनी वापसी करते हुए 8.4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की है, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष में इसमें 7.8 प्रतिशत का संकुचन या गिरावट दर्ज की गई थी।
- लोगों के गहन संपर्क वाले सेवा उप-क्षेत्र में अच्छी वृद्धि होने से ही सेवा क्षेत्र की यह तेज वापसी संभव हो पाई है जिसमें 16 प्रतिशत की क्रमिक वृद्धि दर्ज की गई है।
- सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2023 में 9.1 प्रतिशत रहने की आशा है। सेवा क्षेत्र में 7.1 अरब अमेरिकी डॉलर का FDI इक्विटी प्रवाह हुआ।
- सेवा क्षेत्र को बैंक ऋण 21.3 प्रतिशत बढ़ा।
- आईटी-बीपीएम राजस्व में 15.5 प्रतिशत की वृद्धि। ‘जेम’ के जरिए 1 लाख करोड़ रुपये मूल्य की वार्षिक खरीद।
- भारत वित्त वर्ष 2021 के चिकित्सा पर्यटन सूचकांक में पूरी दुनिया में शीर्ष 46 देशों में 10वें स्थान पर रहा। भारत में फिनटेक अपनाने की दर 87 प्रतिशत है, जबकि वैश्विक औसत 64 प्रतिशत ही है।
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- सामाजिक क्षेत्र में सरकारी व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई:
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- सामाजिक क्षेत्र व्यय वित्त वर्ष 2016 में 9.1 लाख करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 (BE) में 21.03 लाख करोड़ हो गया है।
- 2005-06 और 2019-20 के बीच 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर हुए।
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- सामाजिक क्षेत्र व्यय:
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- वित्त वर्ष 2016 से देश के नागरिकों के सामाजिक हित के कई पहलुओं पर ध्यान देते हुए सामाजिक सेवाओं पर सरकार के व्यय में वृद्धि दर्शायी गई है।
- सरकार के कुल व्यय में सामाजिक सेवाओं में व्यय का हिस्सा वित्त वर्ष 2018 से वित्त वर्ष 2020 तक लगभग 25 प्रतिशत रहा है।
- वित्त वर्ष 2023 (BE) में यह बढ़कर 26.6 प्रतिशत हो गया है।
- केन्द्र और राज्य सरकारों का सामाजिक क्षेत्र व्यय परिव्यय 2015-16 में 9.15 लाख करोड़ था यह धीरे-धीरे बढ़कर वित्त वर्ष 2023 (BE) में 21.3 लाख करोड़ हो गया।
- आर्थिक समीक्षा के अनुसार सामाजिक सेवाओं के कुल व्यय में स्वास्थ्य पर खर्च का हिस्सा वित्त वर्ष 2019 के 21 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 (BE) में 26 प्रतिशत हो गया है।
- 15वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि संघ और राज्यों का एक साथ मिलाकर प्रगतिशील तरीके से सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय 2025 तक GDP के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाया जाना चाहिए (FFC रिपोर्ट पैरा 9.41, III)।
- इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र पर केन्द्र और राज्य सरकारों का बजटीय व्यय वित्त वर्ष 2023 (BE) में GDP के 2.1 प्रतिशत तथा वित्त वर्ष 2022 (RE) में 2.2 प्रतिशत तक पहुंच गया जबकि वित्त वर्ष 2021 में यह 1.6 प्रतिशत था।
गरीबी:
- गरीबी की माप मुख्य रूप से एक अच्छे जीवन यापन के लिए मौद्रिक साधनों की कमी के रूप में की जाती है।
- हालांकि, परिभाषा के अनुसार ‘गरीबी’ के व्यापक निहितार्थ हैं और एक ही समय में कई नुकसान होते हैं- जैसे कि खराब स्वास्थ्य एवं कुपोषण, स्वच्छता, स्वच्छ पेयजल या बिजली, शिक्षा की खराब गुणवत्ता आदि की कमी।
- इसलिए अधिक व्यापक तस्वीर बनाने के लिए बहुआयामी गरीबी मापों का उपयोग किया जाता है।
- MPI पर UNDP की 2022 की रिपोर्ट अक्तूबर, 2022 में जारी की गई थी और इसमें 111 विकासशील देशों को शामिल किया गया था।
- जहां तक भारत का संबंध है, 2019-21 के सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग किया गया है।
- इन अनुमानों के आधार पर, भारत में 16.4 प्रतिशत आबादी (2020 में 228.9 मिलियन लोग) बहुआयामी रूप से गरीब हैं जबकि अतिरिक्त 18.7 प्रतिशत को बहुआयामी गरीबी (2020 में 260.9 मिलियन लोग) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि भारत में 2005-06 और 2019-21 के बीच 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले।
- यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि राष्ट्रीय परिभाषाओं के अनुसार 2030 तक गरीबी में रहने वाले सभी उम्र के पुरूषों, महिलाओं एवं बच्चों के अनुपात को कम से कम आधा करने के SDG लक्ष्य 1.2 को उसके सभी आयामों में अर्जित करना संभव है।
3. औद्योगिक क्षेत्र सकल मूल वृद्धि (GVA) वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में 3.7 प्रतिशत दर्ज की गई:
सामान्य अध्ययन: 3
अर्थव्यवस्था:
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास और रोजगार से संबंधित विषय एवं सरकारी बजट।
प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक सर्वेक्षण से संबधित तथ्य।
प्रसंग:
- केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2023 को संसद में ‘आर्थिक समीक्षा 2022-23’ पेश करते हुए बताया कि उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र सकल मूल वृद्धि (GVA) वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में 3.7 प्रतिशत दर्ज की गई है।
उद्देश्य:
- यह पिछले दशक की पहली छमाही में 2.8 प्रतिशत की औसत वृद्धि से अधिक है।
विवरण:
औद्योगिक क्षेत्र का सारांश:
- संसद में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा के अनुसार वित्त वर्ष 2023 में उद्योग क्षेत्र में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।
- वित्त वर्ष 2022 में यह 10.3 प्रतिशत थी।
- यह निवेश मूल्य के दबाव, आपूर्ति श्रृंखला में बाधा और चीन में लॉकडाउन के प्रभाव से आवश्यक निवेश में कमी तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के धीमे होने के कारण हुआ है।
- समीक्षा में PLI योजना से विनिर्माण क्षमता में वृद्धि, निर्यात में तेजी, आयात पर निर्भरता में कमी और रोजगार सृजन में वृद्धि को रेखांकित किया गया है।
- समीक्षा के अनुसार निवेश मूल्य में आसानी और मांग की स्थितियों मे वृद्धि से समग्र रूप से औद्योगिक वृद्धि में मदद मिलेगी।
औद्योगिक विकास के लिए मांग में प्रोत्साहन:
- समीक्षा के अनुसार वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में GDP के हिस्से के रूप में निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) वित्त वर्ष 2015 के बाद सबसे अधिक थी।
- भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में निर्यात प्रोत्साहन में मजबूती दिखाई दी, जबकि GDP के हिस्से के रूप में वस्तु एवं सेवा निर्यात वित्त वर्ष 2016 के बाद वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में सर्वाधिक था।
- समीक्षा में मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में निर्यात में वृद्धि में कमी आने की चेतावनी दी गई है। घरेलू खपत में मजबूत वृद्धि और निवेश में सुधार से औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि जारी रहेगी।
- समीक्षा में वित्त वर्ष 2023 में अप्रैल से दिसंबर के बीच नये निवेश की घोषणा वित्त वर्ष 2020 की इसी अवधि की तुलना में पांच गुना अधिक होने पर बल दिया गया है।
- इसमें कहा गया है कि विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग बढ़ रहा है, जिससे नये निवेश से अतिरिक्त क्षमता तैयार होगी।
उद्योग की आपूर्ति प्रतिक्रिया:
- क्रेता के विनिर्माता सूचकांक (PMI) जुलाई, 2021 से 18 महीनों के लिए विस्तारित क्षेत्र बना हुआ है और इसके उप-सूचकांकों ने निवेश लागत दबावों की आसान गति, आपूर्तिकर्ता वितरण समय में सुधार, मजबूत निर्यात आदेश और भविष्य के आउटपुट का संकेत समीक्षा में प्रमुखता से दिया गया है।
PMI विनिर्माण में वृद्धि जारी:
- समीक्षा के अनुसार कोयला, उर्वरक, इस्पात, बिजली, रिफाइनरी उत्पाद, कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस के आठ प्रमुख उद्योगों में उत्पादन की मांग पूरा करना महत्वपूर्ण है।
- समीक्षा के अनुसार उत्पादन आउटपुट की निरंतर वृद्धि समग्र औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) उत्पादक टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं में दबी हुई खपत मांग की साथ दिखाई दी।
- पूंजीगत वस्तुओं और बुनियादी ढांचे की वस्तुओं के उत्पादन में मजबूत वृद्धि अगले वित्त वर्ष में निजी क्षेत्र में निवेश की शुरुआत का संकेत है।
उद्योग के लिए बैंक ऋण में मजबूत वृद्धि:
- समीक्षा के अनुसार उद्योग जगत के सकल ऋण में जनवरी, 2020 की तुलना में बढ़कर जुलाई, 2022 में दोहरे अंकों में वृद्धि हुई।
- इसके अनुसार आपात ऋण संबद्ध गारंटी योजना (ECLGS) की घोषणा के बाद MSME क्षेत्र के ऋण में भी महत्वपूर्ण वृद्धि दिखाई दी।
विनिर्माण क्षेत्र में लचीला FDI प्रवाह:
- विनिर्माण क्षेत्र में FDI निवेश वित्त वर्ष 2021 के 12.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 21.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि FDI में निवेश महामारी पूर्व के स्तर से ऊपर रहा है।
औद्योगिक समूह की विशेषताएं:
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME):
- समीक्षा के अनुसार MSME का विनिर्माण क्षेत्र में योगदान वित्त वर्ष 2021 की तुलना में कुछ कम होकर 36 प्रतिशत पर आ गया।
- आत्मनिर्भर भारत पैकेज के माध्यम से सरकार ने MSME पर महामारी के आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
- समीक्षा के अनुसार महामारी के झटके से MSME क्षेत्र की बहाली इन इकाइयों के GST भुगतान रुझान से स्पष्ट है।
- वित्त वर्ष 2022 में क्षेत्र द्वारा किया गया भुगतान वित्त वर्ष 2020 में महामारी के पहले स्तर को पार कर गया।
- इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग:
- समीक्षा के अनुसार नवंबर, 2022 में इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं में सकारात्मक निर्यात वृद्धि दिखाई दी। इसके अनुसार मोबाइल फोन के मामले में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन गया है।
- वित्त वर्ष 2015 में जहां 6 करोड़ मोबाइल फोन बनते थे, वित्त वर्ष 2022 में इनकी संख्या 31 करोड़ हो गई।
- इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में तेज वृद्धि।
- कोयला उद्योग:
- वित्त वर्ष 2023 में कोयला का उत्पादन बढ़कर 911 मिलियन टन होने का अनुमान है।
- पिछले वर्ष की तुलना में यह लगभग 17 प्रतिशत अधिक है।
- कोयला उद्योग के वित्त वर्ष 2026 तक एक बिलियन टन और 2030 तक 1.5 बिलियन टन तक पहुंचने की आशा है।
- इस्पात उद्योग:
- आर्थिक समीक्षा में मौजूदा वित्त वर्ष में इस्पात क्षेत्र के प्रदर्शन में मजबूती को रेखांकित किया गया है। अप्रैल से दिसंबर, 2022 के दौरान तैयार इस्पात का कुल उत्पादन और उपभोग 88 मिलियन टन और 86 मिलियन टन पर पहुंच गया है। यह पिछले चार वर्ष की अवधि में वृद्धि को प्रदर्शित करता है।
- वित्त वर्ष 2020 के महामारी-पूर्व के स्तर की तुलना में लोहे और इस्पात का निर्यात अधिक रहा है।
- वस्त्र उद्योग:
- चालू वित्त वर्ष में वस्त्र उद्योग वित्त वर्ष 2022 की तुलना में निर्यात में धीमी गति का सामना कर रहा है। इसी अवधि के दौरान रेडीमेड गारमेंट के निर्यात में साल दर साल आधार पर 3.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
- वस्त्र उद्योग की संपूर्ण मूल्य श्रृंखला के लिए सरकार ने सात पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन और अपैरल (पीएम मित्रा) पार्कों की स्थापना को स्वीकृति दी और 10,683 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ अगले पांच वर्षों के लिए वस्त्र PLI योजना की शुरूआत की।
- औषधि उद्योग:
- समीक्षा के अनुसार भारतीय औषधि निर्यात में वित्त वर्ष 2021 में 24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
- इसके अनुसार भारत का घरेलू औषधि बाजार के वर्ष 2021 में 41 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 2024 तक 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की आशा है।
- इसके वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
- सितंबर, 2022 में औषधि क्षेत्र में संचयी FDI 20 बिलियन अमेरीकी डॉलर को पार कर गई।
- इसके अलावा FDI अंतर्वाह पांच वर्षों में चार गुना बढ़कर सितंबर, 2022 तक 699 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- ऑटो मोबाइल उद्योग:
- आर्थिक समीक्षा के अनुसार भारत दिसंबर, 2022 में जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर बिक्री के मामले में तीसरा सबसे बड़ा ऑटो मोबाइल बाजार बन गया है।
- 2021 में भारत सबसे बड़ा दोपहिया और तिपहिया वाहन निर्माता तथा यात्री कार के मामले में चौथा सबसे बड़ा निर्माता था।
- घरेलू इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) बाजार के 2022 और 2030 के बीच 49 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ने की आशा है और इसके 2030 तक 10 मिलियन इकाइयों की वार्षिक बिक्री तक पहुंचने की आशा है। इससे 2030 तक 5 करोड़ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर सृजित होंगे।
नवाचार को प्रोत्साहन:
- समीक्षा के अनुसार वर्ष 2016 से 2021 के दौरान पेटेंट की घरेलू फाइलिंग में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो ज्ञान आधारित व्यवस्था की ओर भारत के अग्रसर होने का संकेत है।
- डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईआईटी) से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप (सेल्फ-रिपोर्टेड) से 9 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां सृजित हुई हैं।
- पिछले तीन वर्षों में सृजित की गई नई नौकरियों की औसत संख्या की तुलना में 2022 में 64 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
उद्योग 4.0:
- समीक्षा के अनुसार उद्योग 4.0 के अंतर्गत क्लाउड कम्प्यूटिंग, आईओटी, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) जैसी नई तकनीकों को विनिर्माण प्रक्रियाओं में एकीकृत करता है, जिससे मूल्य श्रृंखला प्रभावित होती है।
- सरकार द्वारा की गई समर्थ (स्मार्ट एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग एंड रैपिड ट्रांसफॉर्मेशन हब) उद्योग भारत 4.0 शामिल है।
- इसका उद्देश्य जागरुकता कार्यक्रमों और प्रदर्शन के माध्यम से भारतीय विनिर्माण इकाइयों के लिए तकनीकी समाधान को बढ़ावा देना है।
मेक इन इंडिया 2.0:
- समीक्षा के अनुसार मेक इन इंडिया 2.0 इस समय 27 क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है। इनमें 15 विनिर्माण क्षेत्र और 12 सेवा क्षेत्र हैं।
उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना:
- PLI योजना से अगले पांच वर्ष के दौरान लगभग चार लाख करोड़ रुपये के निवेश की आशा है।
- इससे भारत में 60 लाख नौकरियों के अवसर सृजित होने की संभावना है।
- यह योजना 14 क्षेत्रों में फैली है।
- इसके वित्त वर्ष 2023 में वार्षिक विनिर्माण निवेश में 15 से 20 प्रतिशत वृद्धि की आशा है।
- समीक्षा के अनुसार लगभग वित्त वर्ष 2022 के दौरान 47,500 करोड़ रुपये (6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का वास्तविक निवेश हुआ।
- उत्पादन/बिक्री 3.85 लाख करोड़ रुपये (47 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का रहा, जबकि 3 लाख के आसपास रोजगार के अवसर सृजित हुए।
- समीक्षा के मुताबिक थोक औषधि चिकित्सा उपकरण, दूरसंचार, दुग्ध उत्पाद और खाद्य प्रसंस्करण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सौ से अधिक MSME PLI योजना के लाभार्थी हैं।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1.खेलो इंडिया यूथ गेम्स का भोपाल में शुभारंभ:
- खेलो इंडिया यूथ गेम्स का भोपाल में शुभारंभ हुआ।
- यह इंडिया यूथ गेम्स का पाचंवा संस्करण है।
- 9 शहरों में 13 दिन तक यह आयोजन चलेगा और इसमें 6 हजार खिलाड़ी हिस्सा लेंगे।
- यह मध्य प्रदेश में होगा।
- खेलो इंडिया यूथ गेम्स पिछली बार हरियाणा में हुआ था जिसमें 12 रिकॉर्ड टूटे थे इनमें से 11 रिकॉर्ड लड़कियों ने तोड़े थे।
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