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आईएएस अधिकारी की शक्तियाँ

‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ (IAS) के अधिकारियों का चयन ‘संघ लोक सेवा आयोग’ (UPSC) द्वारा आयोजित आईएएस परीक्षा के माध्यम से किया जाता है। यूपीएससी इन चयनित अधिकारियों की सूची नियुक्ति की सिफारिश सहित भारत सरकार को भेज देती है और भारत सरकार इन्हें विभिन्न राज्यों में नियुक्त करती है। समस्त आईएएस अधिकारी राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं। आईएएस अधिकारियों की सेवा-शर्तों का निर्धारण भारत सरकार द्वारा किया जाता है, लेकिन ये अधिकारी राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन कार्य करते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो वर्तमान में भारतीय जिला प्रशासन की संरचना मौर्यकालीन जिला प्रशासन के समरूप है। मौर्य काल में जिले को ‘विषय’ कहा जाता था। आईएएस अधिकारियों को जिले के सर्वोच्च प्रशासनिक प्रमुख रूप में नियुक्त किया जाता है और इसका यह साँचा-ढाँचा काफी हद तक ब्रिटिश काल में तैयार किया जा चुका था, हालाँकि समय के साथ-साथ इसमें कुछ परिवर्तन होता रहा है। तो आइये अब क्रमवार तरीके से आईएएस अधिकारी की शक्तियों के बारे में जानते हैं।

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विभिन्न राज्यों में स्थिति

सामान्यतः यूपीएससी द्वारा आयोजित आईएएस परीक्षा के माध्यम से चयनित अधिकारियों को जिलाधीश के पद पर नियुक्त किया जाता है, लेकिन कई अवसरों पर राज्य लोक सेवा के पदोन्नत अधिकारियों को भी इस पद पर नियुक्त किया जाता है। इस अधिकारी को विभिन्न राज्यों में अलग-अलग पदनाम दिए गए हैं। पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में इसे ‘जिला दंडनायक’ (District Magistrate – DM) कहा जाता है, तो पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, असम जैसे राज्यों में इसे ‘उपायुक्त’ (Deputy Commissioner – DC), जबकि राजस्थान जैसे राज्यों में इसे जिलाधीश या जिला कलेक्टर (District Collector) कहा जाता है। जिला स्तर पर यह अधिकारी राज्य सरकार के आँख, कान व भुजाओं के रूप में कार्य करता है। जिलाधीश जिला स्तर पर ‘प्रशासन की धुरी’ होता है।

जिला प्रशासक के रूप में

जिला प्रशासक के रूप में वह जिला स्तरीय प्रशासन में समन्वय स्थापित करता है। तहसीलदार व अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारियों के पदस्थापन, उनके स्थानांतरण, अवकाश इत्यादि की जिम्मेदारी जिला कलेक्टर की होती है। जिले में सरकार के हितों की पूर्ति करना तथा जनता व अधिकारियों में समन्वय स्थापित करना भी जिला कलेक्टर का ही उत्तरदायित्व होता है। अर्थात् कहा जा सकता है कि जिला कलेक्टर ‘राज्य, जिला प्रशासन व जनता’ के बीच की कड़ी का कार्य करता है।

भू-राजस्व अधिकारी के रूप में

जिला कलेक्टर जिले में सर्वोच्च भू-राजस्व अधिकारी की भूमिका भी निभाता है। वह जिले में भूमि संबंधी समस्त कार्यों का प्रबंधन करता है। वह किसी आपदा से नष्ट हुई फसल की क्षतिपूर्ति का आकलन करता है तथा उससे संबंधित राहत प्रदान करने के लिए सरकार को सिफारिश करता है। वह राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर बकाया राशि का भुगतान व उसकी वसूली करता है, मुआवजे का भुगतान करता है तथा जागीर उन्मूलन संबंधी कार्य करता है। जिला कलेक्टर कृषि संबंधी सांख्यिकी तैयार करता है तथा भू-राजस्व का मूल्यांकन करता है। वह कोषालय व उपकोषालय का अधीक्षण भी करता है। अतः कहना गलत नहीं होगा कि जिले में भू-राजस्व संबंधित समस्त कार्य जिला कलेक्टर की देख-रेख में ही संपन्न किए जाते हैं।

राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में

जिला कलेक्टर जिला प्रशासन का मुखिया होने के साथ-साथ जिले में संबंधित राज्य सरकार का प्रतिनिधि भी होता है। वह जिले में राज्य सरकार की आँख, कान व भुजा के रूप में कार्य करता है। वह जिले के किसी भी कार्यालय का औचक निरीक्षण कर सकता है और उन्हें दिशा-निर्देश दे सकता है। वह जनता और सरकार के बीच मुख्य समन्वयक की भूमिका निभाता है। वह राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार की नीतियों को जिले में क्रियान्वित करने के लिए उत्तरदायी होता है। जिला कलेक्टर राज्य विधानमंडल के प्रति उत्तरदाई होता है। वह जनता की समस्याओं की सुनवाई करता है तथा उन समस्याओं से सरकार को अवगत कराता है, ताकि नीति-निर्धारण में जनसमस्याओं के समाधान को महत्व दिया जा सके। अतः कहा जाता है कि जिला कलेक्टर जिले में प्रशासन की धुरी होता है।

जिला दंडनायक (DM) के रूप में

जिला कलेक्टर के पास कुछ मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ भी होती हैं। इनके अंतर्गत वह जेलों के प्रशासन का निरीक्षण कर सकता है। वह जिला पुलिस पर नियंत्रण रखता है तथा पुलिस के माध्यम से कानून एवं व्यवस्था बनाए रखता है। जिले में कानून एवं व्यवस्था अधिक बिगड़ने की स्थिति में वह धारा 144 लागू करने की शक्ति रखता है। जिला कलेक्टर विदेशियों के दस्तावेजों की जाँच करता है। वह वृक्षों की कटाई से संबंधित परमिट जारी करता है तथा जिले में होने वाली हड़तालों से निपटता है।

संकटकालीन प्रशासक के रूप में

जिले में प्राकृतिक आपदाओं के चलते उभरने वाले संकट के समय जिला कलेक्टर की जिम्मेदारी व चुनौतियाँ और बढ़ जाती हैं। इस दौरान पीड़ित लोगों के लिए उपचार की व्यवस्था करना, उनके लिए भोजन, पुनर्वास इत्यादि का प्रबंध करना, विस्थापित हुए लोगों के लिए मुआवजा राशि की व्यवस्था करना आदि जिला कलेक्टर के मुख्य कार्य होते हैं। बाढ़, अकाल, ओलावृष्टि, आगजनी इत्यादि की स्थिति में लोगों को राहत पहुँचाना जिलाधीश का मुख्य कर्तव्य होता है। इसके अलावा, मानवजनित आपदाओं के स्थिति में भी जिला कलेक्टर की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अर्थात् हिंसा, आगजनी, दंगे, लूटपाट, आंदोलन आदि के दौरान समस्त व्यवस्था जिला कलेक्टर को देखनी होती है। अतः संकट की स्थिति में जिलाधीश जिले के निवासियों के लिए एक मसीहा की भूमिका निभाता है।

विकास अधिकारी के रूप में

जिला कलेक्टर जिले में चल रहे समस्त विकास कार्यों का निरीक्षण करता है तथा उनके समयबद्ध क्रियान्वयन का प्रयास करता है। वह सरकार की विकासात्मक परियोजनाओं को जिले में लागू करने के लिए उत्तरदायी होता है। वह परियोजना पर खर्च की जाने वाली राशि का अधीक्षण करता है तथा परियोजना के क्रियान्वयन में आने वाली अड़चनों का समाधान करता है। कहा जा सकता है कि जिला कलेक्टर जिले के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

निर्वाचन अधिकारी के रूप में

जिला कलेक्टर जिले में आयोजित होने वाले संसद, विधानसभा व स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न कराता है। इस दौरान वह जिले का मुख्य चुनाव अधिकारी होता है और चुनाव संबंधित समस्त क्रियाएँ उसी की देखरेख में पूर्ण होती हैं। चुनाव के दौरान लागू होने वाली आचार संहिता के क्रियान्वयन में भी वह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः लोकतंत्र के प्रमुख आयाम ‘निर्वाचन’ को मूर्त रूप देने में जिला कलेक्टर प्रमुख योगदान देता है।

अन्य शक्तियाँ

उपरोक्त चर्चित शक्तियों के अलावा जिला कलेक्टर की अन्य प्रमुख शक्तियाँ भी होती हैं, ये हैं-

  • वह जिले में जनगणना कराने के लिए उत्तरदायी होता है तथा जनगणना संबंधी समस्त कार्यों का निरीक्षण करता है।
  • वह अनुसूचित जाति (SC) व अनुसूचित जनजाति (ST) के लोगों को प्रमाण पत्र जारी करता है।
  • जिला कलेक्टर जिले में मुख्य जनसंपर्क अधिकारी के रूप में कार्य करता है।
  • वह राज्य सरकार व केंद्र सरकार के अधीन ‘सार्वजनिक क्षेत्रक उपक्रमों’ (PSUs) के प्रमुख के तौर पर भी कार्य करता है।
  • वह अपने सेवाकाल में विभिन्न विभागों के निदेशक के रूप में कार्य करता है।
  • किसी राज्य के मुख्य सचिव के तौर पर भी अधिकारी की ही नियुक्ति होती है।
  • आईएएस अधिकारी को केंद्र सरकार में विभिन्न मंत्रालयों विभागों में सचिव के पद पर नियुक्त किया जाता है।
  • भारत सरकार में कैबिनेट सेक्रेटरी के पद पर एक आईएएस अधिकारी की नियुक्ति होती है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त चर्चा के आधार पर कहा जा सकता है कि एक आईएएस अधिकारी देश के प्रशासन के प्रभावी संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह वास्तव में, सरकार व जनता के बीच प्रशासन की धुरी होता है। आईएएस अधिकारी अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्य होते हैं। इन्हें भारत के प्रशासन में ‘इस्पात ढाँचे’ (Steel Frame) की संज्ञा दी जाती है। कानून व्यवस्था बनाए रखने से लेकर जनकल्याण के समस्त कार्य जिलाधीश के रूप में नियुक्त आईएएस अधिकारियों के माध्यम से ही संपन्न कराए जाते हैं। इसके अलावा, वह  जिले में शिक्षा, परिवहन, अर्थव्यवस्था इत्यादि आयामों को भी आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः आईएएस अधिकारी का पद देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने व देश के विकास को गति देने की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण पद है।

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