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भारतीय सहकारिता मंत्रालय

भारत सरकार ने केंद्रीय बजट 2021 के दौरान वित्त मंत्री द्वारा की गई प्रतिबद्धता के बाद सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक नए सहकारिता मंत्रालय का निर्माण किया । इससे पहले विषय, ‘सहकारिता’ कृषि मंत्रालय के तत्वावधान में आता था । अमित शाह देश के पहले सहकारिता मंत्री नियुक्त किये गए हैं“सहकार से समृद्धि- Prosperity through cooperation” इस मंत्रालय का आदर्श वाक्य है । अमित शाह अपने वर्तमान गृह मामलों के पोर्टफोलियो के साथ- साथ नव -गठित सहकारिता मंत्रालय के पोर्टफोलियो को भी संभालेंगे ।

नया मंत्रालय, जैसा कि बताया गया,  ‘सहकार से समृद्धि’ (सहकारिता के माध्यम से समृद्धि) के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए बनाया गया है । हमारे देश में सहकारिता आधारित आर्थिक विकास मॉडल महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें प्रत्येक सदस्य जिम्मेदारी की भावना से काम करता है । केंद्र सरकार ने सहकारिता मंत्रालय के निर्माण के साथ समुदाय आधारित विकास व साझेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी जाहिर किया है । उल्लेखनीय है कि सरकार के मंत्रालय/विभाग भारत सरकार (कार्य का आवंटन) नियम, 1961 के तहत प्रधान मंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा बनाए जाते हैं ।

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सहकारिता मंत्रालय का महत्व

सहकारिता मंत्रालय देश में ‘सहकारी आंदोलन’ को मजबूत करने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा । यह जमीनी स्तर तक पहुँचने वाले एक जन -आंदोलन के रूप में सहकारिता को हासिल करने की परिकल्पना करता है । मंत्रालय सहकारी समितियों के लिए ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के लिए प्रक्रियाओं को कारगर बनाने और बहु-राज्य सहकारी समितियों (MSCS) के विकास को सक्षम करने के लिए काम करेगा ।

मल्टी- स्टेट क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी (MSCS) क्या है?

एक बहु -राज्य ऋण सहकारी /मल्टी- स्टेट क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी (MSCS) वह संस्था है जिसके सदस्य एक से अधिक राज्यों में हैं । ऐसी बहु- राज्य सहकारी समितियों को विनियमित करने के लिए एक अधिनियम 2002 में बहु- राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के शीर्षक से पारित किया गया था । इसे सहकारी समितियों के कार्यालय के केंद्रीय रजिस्ट्रार द्वारा विनियमित किया जाता है ।

सहकारिता से हम क्या समझते हैं?

सहकारिता एक व्यवसाय या संगठन है जिसका स्वामित्व और संचालन उन लोगों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है जो इसके लिए काम करते हैं । अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, सहकारी संगठन एक संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी सामान्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए स्वैच्छिक रूप से एकजुट व्यक्तियों का एक स्वायत्त संघ है ।

वर्ष 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सहकारिता का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया था ।

सहकारी समितियों की विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के तहत समझा जा सकता है :- 

  • सहकारी समितियां लाभप्रदता की आवश्यकता सदस्यों की आवश्यकताओं और समुदाय के व्यापक हित से संतुलित होती है ।
  • गरीबों के सहकारी संगठन से सामूहिक रूप से समस्याओं का समाधान होता है ।
  • यह लघु और कुटीर उद्योगों के लिए अनुकूल वातावरण बनाता है ।
  • ये समितियां सभी सदस्यों के पारस्परिक लाभ के लिए गठित की जाती हैं ।
  • एक साथ काम करने से व्यवसाय की शक्ति बेहतर होती है ।
  • सामाजिक विभाजन और वर्ग संघर्ष को कम करने में सहाकरी समितियों की अहम भूमिका है ।
  • जहां राज्य और निजी क्षेत्र लोगों की अधिक सहायत नहीं कर पाते हैं, वहां यह कृषि ऋण और धन प्रदान करता है ।
  • उपभोक्ता समितियाँ रियायती दरों पर अपनी उपभोग आवश्यकताओं को पूरा करती हैं ।

सहकारी समितियां कैसे बनती हैं?

सहकारी समिति अधिनियम, 1912 के अनुसार, केवल पारस्परिक सहायता और स्व- सहायता सिद्धांतों पर आधारित एक सहकारी समिति बनाने के लिए कम से कम 10 वयस्क सदस्यों की आवश्यकता होती है । सदस्यों को एक दूसरे की मदद करने के मकसद से एक सामान्य हित के लिए काम करना चाहिए । भारत में सहकारी आंदोलनों का लम्बा इतिहास रहा है । भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसने दुनिया के सबसे बड़े सहकारी आंदोलन की नींव रखी । भारतीय किसानों को साहूकारों के चंगुल से राहत दिलाने के लिए 1904 में ब्रिटिश सरकार द्वारा अधिनियमित सहकारी ऋण समिति कानून के माध्यम से भारत में सहकारी समितियों को औपचारिक रूप से पेश किया गया था । इसने भारत में सरकारी प्रायोजन के तहत ‘कृषि ऋण सहकारी’ के गठन को सक्षम बनाया ।

भारत में सहकारी समितियों की सफलता की कई कहानियां रही हैं, जिनमें से दो सबसे महत्वपूर्ण हैं -हरित क्रांति और श्वेत क्रांति । भारत में सहकारी समितियों के उदाहरण “अमूल इंडिया” और “लिज्जत पापड़” भी हैं ।

भारत में सहकारिता आंदोलन

सहकारी समितियों को सबसे पहले यूरोप में शुरू किया गया था और ब्रिटिश सरकार ने भारत में इसे दोहराया । सहकारी समिति शब्द तब अस्तित्व में आया जब पुणे और अहमदनगर के किसानों ने उन साहूकारों के खिलाफ असंतोष का नेतृत्व किया जो ब्याज की अत्यधिक दर वसूल रहे थे । तब ब्रिटिश सरकार ने दक्कन कृषि राहत अधिनियम (1879), भूमि सुधार ऋण अधिनियम (1883) और कृषक ऋण अधिनियम (1884) नाम से 3 अधिनियमों की पेशकश की और उन्हें पारित किया । 1903 में बंगाल सरकार के सहयोग से बैंकिंग में प्रथम साख सहकारी समिति का गठन किया गया । 1904 में सहकारी साख समिति के अधिनियमन से इसे निश्चित आकार मिला।

आजादी के बाद सहकारी समितियां पंचवर्षीय योजनाओं का एक अभिन्न अंग बन गईं । 1958 में, राष्ट्रीय विकास परिषद् (NDC) ने कर्मियों के प्रशिक्षण और सहकारी विपणन समितियों की स्थापना के लिए सहकारी समितियों पर एक राष्ट्रीय नीति की सिफारिश की । समान प्रकार के समाजों को नियंत्रित करने वाले कई  कानूनों को हटाने के लिए, बहु- राज्य सहकारी समिति अधिनियम 1984 में अधिनियमित किया गया था । इसके माध्यम से सबसे महत्वपूर्ण सफलता की कहानियां श्वेत क्रांति की सफलता के पीछे छिपी हैं, जिसने देश को दूध और दुग्ध उत्पादों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बना दिया; और हरित क्रांति जिसने गांवों को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया ।

भारत में सहकारी समितियों पर कानूनों की समयरेखा

1904 – ब्रिटिश सरकार द्वारा पहला सहकारी क्रेडिट सोसाइटी अधिनियम बनाया गया और सहकारीता को एक निश्चित संरचना और आकार दिया गया ।

1912 – सहकारी समिति अधिनियम, एक अधिक व्यापक कानून, अधिनियमित किया गया । इसने सहकारी समितियों के पंजीकरण और समितियों के लिए रजिस्ट्रार के पद के सृजन का प्रावधान किया ।

1919 – सहकारिता प्रांतीय विषय बन गई और मोंटेग चेम्सफोर्ड सुधार, 1919 के तहत अपने स्वयं के सहकारी कानून बनाने के लिए अधिकृत हुई ।

1929 – सहकारी क्षेत्र को बढ़ावा देने और मजबूत करने के लिए एक शीर्ष प्रचारक संगठन, भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ – NCUI की स्थापना की गई ।

1935 – भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत सहकारी समितियों को प्रांतीय विषयों के रूप में माना गया ।

1942 – ब्रिटिश भारत ने उन सहकारी समितियों के लिए बहु -इकाई सहकारी समिति अधिनियम पारित किया जिनकी एक से अधिक राज्यों में इकाइयाँ थीं ।

1945 – देश में सहकारी समितियों के विकास की योजना बनाने के लिए सरकार द्वारा सहकारी योजना समिति नियुक्त की गई ।

1958 – सहकारी विपणन समितियों की स्थापना की गई और राष्ट्रीय विकास परिषद – NDC द्वारा सहकारी समितियों पर एक राष्ट्रीय नीति की सिफारिश की गई ।

1984 – बहु -राज्य सहकारी अधिनियम 1942 को बहु -राज्य सहकारी अधिनियम 1984 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया ।

2002 – भारत सरकार ने सहकारी समितियों पर एक राष्ट्रीय नीति की घोषणा की । मल्टी -स्टेट कोऑपरेटिव्स एक्ट 2002 को मल्टी- स्टेट कोऑपरेटिव्स एक्ट 1984 में संशोधन और बढ़ाने के लिए अधिनियमित किया गया था । इस अधिनियम ने सहकारी समितियों को संचालन की अधिक स्वतंत्रता और निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधिक स्वायत्तता प्रदान की । इसने बोर्डों पर सरकार के नामांकन को भी कम कर दिया ।

निष्कर्ष: लोगों को उन्नत और उभरती प्रौद्योगिकियों से परिचित कराने में सहकारी समितियां बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती हैं । सहकारी आंदोलन में लोगों की समस्याओं को हल करने की क्षमता है क्योंकि इसका सिद्धांत सभी को एकजुट करने पर केंद्रित है । हालाँकि सहकारी समितियों में अनियमितताओं की जांच के लिए सख्त नियम लागू करने की आवश्यकता है । किसानों के साथ -साथ सहकारी समितियों के लिए बाजार संपर्क प्रदान करके सहकारी समितियों को मजबूत करने की भी आवश्यकता है । यदि ऐसा नहीं किया गया तो ये समितियां भ्रष्टाचार से ग्रसित हो जाएंगी जिसकी चेतावनी श्रीलाल शुक्ल ने अपनी कालजयी रचना “राग दरबारी” के माध्यम से पहले ही दे रखी है ।

सहकारिता सोसाइटी के प्रकार  उद्देश्य
उपभोक्ता सहकारिता सोसाइटी (Consumer Cooperative Society) – उपभोक्ता हितों का संरक्षण,

– यह सुनिश्चित करना कि उत्पादों का मूल्य उचित हो,

– बिचौलियों से मुक्ति, 

उत्पादक सहकारिता सोसाइटी Producer Cooperative Society – छोटे उत्पादकों के  हितों का संरक्षण
हाऊसिंग सहकारिता सोसाइटी Housing Cooperative Society – निम्न आय वाले लोगों को उचित मूल्य पर हाऊसिंग की सुविधा उपलब्ध कराना
साख सहकारिता सोसाइटी Credit Cooperative Society – कम दर पर साख (ऋण) की सुविधा प्रदान कर लोगों की सहायता करना जिससे की लोग उच्च दर वसूलने वाले निजि सूदखोरों से बच सकें 
विपणन सहकारिता सोसाइटी Marketing Cooperative Society – लोगों को विपणन (मार्केटिंग) के लिए एक उचित मंच प्रदान करना 

भारत में सहकारी समितियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान  

राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy) सहकारी समितियों के प्रसार के लिए संविधान में अनुच्छेद 43B जोड़ा गया ।
संविधान का 97वां संशोधन अधिनियम, 2011 – यह सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा एवं संरक्षण प्रदान करता है ।
अनुच्छेद 19(1)(c)  – ‘यूनियन’ और ‘असोसिएशन’ के साथ कॉपरेटिव शब्द भी जोड़ा गया ।
7वीं अनुसूची – संविधान की 7वीं अनुसूची में सहकारी समितियों को राज्य सूचि के विषय के अंतर्गत रखा गया है ।

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