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साइमन कमीशन से संबंधित विभिन्न पक्ष

वर्ष 1919 में भारत में संवैधानिक सुधार करने के उद्देश्य से भारत शासन अधिनियम, 1919 पारित किया गया था। इसमें एक प्रावधान यह भी था कि इस अधिनियम के पारित होने के 10 वर्षों के बाद एक संविधानिक आयोग का गठन किया जाएगा, जो भारत में इस बात की जांच करेगा कि यह अधिनियम किस हद तक सफल हो पाया है तथा भारत में उत्तरदाई शासन स्थापित करने का अभी सही वक्त है अथवा नहीं।

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इसी प्रावधान का पालन करते हुए वर्ष 1927 में साइमन कमीशन का गठन किया गया। उस दौरान ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की सरकार थी और बाल्डविन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे। लेकिन बाल्डविन को यह आशंका थी कि वर्ष 1928 में होने वाले आगामी चुनावों में लेबर पार्टी चुनाव जीत सकती है। ऐसे में, उन्होंने जल्दबाजी दिखाते हुए तय समय से 2 वर्ष पूर्व ही साइमन कमीशन नामक संवैधानिक आयोग का गठन कर दिया था। इस कमीशन का भारतीयों द्वारा तीखा विरोध किया गया था।

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साइमन कमीशन का गठन

  • भारत के राज्य सचिव लॉर्ड बर्किनहेड ने 8 नवंबर, 1927 को सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक संवैधानिक आयोग का गठन किया था। इस आयोग में कुल 7 सदस्य थे और ये सभी सातों सदस्य अंग्रेज थे।
  • साइमन कमीशन के सभी सातों सदस्यों का नाम इस प्रकार है- सर जॉन साइमन, क्लिमेंट एटली, जॉर्ज लेन फॉक्स, डोनाल्ड हावर्ड, एडवर्ड कैडागन, बर्नोन हॉर्टशॉर्न, हैरी लेवी लासन।
  • इस आयोग के सदस्य क्लिमेंट एटली आगे चलकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनते हैं। ये ब्रिटेन की लेबर पार्टी से संबंधित थे, जबकि सर जॉन साइमन ब्रिटेन की उदारवादी पार्टी से संबंधित थे। भारतीयों को साइमन कमीशन से बाहर रखने का निर्णय लॉर्ड इरविन के सुझावों के आधार पर लिया गया था।

साइमन कमीशन के गठन पर भारतीयों की प्रतिक्रिया

  • इसके सभी सदस्य अंग्रेज होने के कारण कांग्रेस ने इसे ‘श्वेत कमीशन’ कहकर इसका विरोध किया था। इलाहाबाद में कांग्रेस ने 11 दिसंबर, 1927 को एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया था, जिसमें साइमन कमीशन के बहिष्कार का निर्णय लिया गया था।
  • कांग्रेस के अलावा, लिबरल फेडरेशन, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, किसान मजदूर पार्टी, फिक्की इत्यादि ने भी साइमन कमीशन का बहिष्कार किया था। लिबरेशन फेडरेशन का गठन तेज बहादुर सप्रू के द्वारा किया गया था।
  • मद्रास की जस्टिस पार्टी, पंजाब की यूनियन पार्टी, भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में कुछ हरिजन संगठनों ने, ऑल इंडिया अछूत फेडरेशन ने और मोहम्मद शफी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग के एक गुट ने साइमन कमीशन के गठन का समर्थन किया था।
  • लखनऊ के कुछ तालुकेदारों ने आयोग के सदस्यों का समर्थन किया था। इसके अलावा, सेंट्रल सिख संघ ने भी साइमन कमीशन का विरोध नहीं किया था।

साइमन कमीशन का भारत आगमन

  • साइमन कमीशन 3 फरवरी, 1928 को भारत में बंबई पहुंचा था। उसके बंबई पहुंचने पर लोगों द्वारा उसे काले झंडे दिखाए गए थे और ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाए गए थे। इसके अलावा, बंबई ने हड़ताल भी आयोजित की गई थी।
  • लखनऊ में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए जवाहर लाल नेहरू और गोविंद बल्लभ पंत को पुलिस की लाठियां खानी पड़ी थी। इसके अलावा लखनऊ में खलीकुज्जमा ने भी साइमन कमीशन का विरोध किया था।
  • मद्रास में साइमन कमीशन का विरोध टी प्रकाशम के नेतृत्व में किया गया था। पंजाब में साइमन कमीशन का विरोध लाला लाजपत राय कर रहे थे। लाला लाजपत राय को शेर-ए-पंजाब भी कहा जाता था। लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा 31 अक्टूबर, 1928 को साइमन कमीशन का विरोध किया जा रहा था और इस दौरान उन पर पुलिस ने लाठियों से वार किया था। इस दौरान सिर पर चोट लगने के कारण वे घायल हो गए और कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई थी।
  • लाहौर के पुलिस अधीक्षक स्कॉट ने लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसाई थी। अपने घायल अवस्था में मृत्यु से पूर्व लाला लाजपत राय ने कहा था कि “मेरे ऊपर जिस लाठी से प्रहार किए गए हैं, वही लाठी एक दिन ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी।”
  • लाला लाजपत राय की मृत्यु पर मोतीलाल नेहरू ने श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘प्रिंस अमंग पीस मेकर्स’ कहकर पुकारा था। जबकि मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि “इस क्षण लाला लाजपत राय की मृत्यु भारत के लिए एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है।”
  • महात्मा गांधी ने भी लाला लाजपत राय की मृत्यु पर खेद प्रकट करते हुए कहा था कि “लाला जी की मृत्यु ने एक बहुत बड़ा शून्य उत्पन्न कर दिया है, जिसे भरना अत्यंत कठिन है। वे एक देशभक्त की तरह मरे हैं और मैं अभी भी नहीं मानता हूँ कि उनकी मृत्यु हो चुकी है, वे अभी भी जिंदा है।” इसके अलावा, महात्मा गांधी ने लाला लाजपत राय की मृत्यु पर यह भी कहा था कि “भारतीय सौर मंडल का एक सितारा डूब गया है।”
  • लाला लाजपत राय की मृत्यु पर शोक प्रकट करते हुए साइमन कमीशन के अध्यक्ष जॉन साइमन ने खुद कहा था कि “एक उत्साही सामाजिक कार्यकर्ता और एक मुख्य राजनीतिक कार्यकर्ता का अवसान हो गया है।”

साइमन कमीशन द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट

  • साइमन कमीशन ने कुल 2 बार भारत का दौरा किया था। पहली बार वह फरवरी-मार्च 1928 में भारत आया था, जबकि दूसरी बार वह अक्टूबर 1928 में भारत आया था। साइमन कमीशन ने मई 1930 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी और यह रिपोर्ट 27 मई, 1930 को ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रकाशित की गई थी।
  • साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा था की भारत में उच्च न्यायालय को भारत सरकार के अधीन रखा जाना चाहिए। इसके अलावा, प्रांतों में उत्तरदाई शासन लागू करने की प्रक्रिया आरंभ करनी चाहिए।
  • इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि वर्मा को भारत से अलग कर देना चाहिए तथा सिंध और उड़ीसा को नए प्रांतों के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा, साइमन कमीशन ने इस बात की भी सिफारिश अपनी रिपोर्ट में की थी कि भारत परिषद को अभी बनाए रखा जाना चाहिए, लेकिन उसके अधिकारों में कमी की जानी चाहिए।
  • इसी रिपोर्ट पर विचार विमर्श करने के लिए तथा भारत की संवैधानिक समस्या का समाधान निकालने के लिए ही लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन किया गया था। लेकिन कांग्रेस में सिर्फ दूसरे गोलमेज सम्मेलन में ही भाग लिया था।

इस प्रकार, साइमन कमीशन का गठन और उसके द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट भारत की समस्या का समाधान नहीं कर सकी। बल्कि इसने भारत की संवैधानिक समस्या को और अधिक उलझा दिया तथा इसी घटना के कारण भारत को लाला लाजपत राय जैसा अपना एक कर्मठ व राष्ट्रवादी नेता भी खोना पड़ा। साइमन कमीशन का गठन भी अंग्रेजों की औपनिवेशिक चाल का ही एक हिस्सा था।

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