28 अप्रैल 2022 : समाचार विश्लेषण
A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: स्वास्थ्य:
शासन:
C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: अर्थव्यवस्था:
D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E.सम्पादकीय: शिक्षा:
अर्थव्यवस्था:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G.महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
अर्थव्यवस्था:
इंडोनेशिया ने पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया:
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था और इससे संबंधित मुद्दे।
मुख्य परीक्षा: भारत और शेष दुनिया के लिए ताड़ के तेल का महत्व एवं इंडोनेशिया के पाम तेल निर्यात प्रतिबंध का भारत पर प्रभाव।
प्रसंग:
- इंडोनेशिया, जो दुनिया का सबसे बड़ा पाम तेल उत्पादक और निर्यातक देश है, ने जिंस (commodity) के सभी निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया हैं।
विवरण:
- इस प्रतिबंध का उद्देश्य खाना पकाने के तेल की घरेलू कमी को पूरा करना और कमोडिटी की आसमान छूती लागत को कम करना है।
- यह प्रतिबंध क्रूड पाम ऑयल, आरबीडी (रिफाइंड, ब्लीच्ड और डियोडोराइज्ड) पाम ऑयल और यूज्ड कुकिंग ऑयल पर लगाया जाएगा।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में ताड़ के तेल का महत्व:
- पाम तेल दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला वनस्पति तेल है।
- खाद्य तेलों की वैश्विक आपूर्ति में पाम तेल की हिस्सेदारी लगभग 40% है।
- अन्य खाद्य तेलों में सोयाबीन, रेपसीड (कैनोला), और सूरजमुखी का तेल शामिल हैं।
- ताड़ के तेल के व्यापक उपयोग के मुख्य कारण हैं;
- पाम तेल सस्ता होता है।
- क्षेत्रफल की दृष्टि से किसी अन्य वनस्पति तेल की तुलना में ताड़ से अधिक तेल प्राप्त होता है।
- हालांकि ताड़ के तेल का उपयोग मुख्य रूप से खाना पकाने में किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, प्रसंस्कृत भोजन, जैव ईंधन, सफाई उत्पादों आदि के निर्माण में भी किया जाता है।
इंडोनेशिया में ताड़ के तेल का उत्पादन:
- इंडोनेशिया और मलेशिया मिलकर वैश्विक पाम तेल का लगभग 90% उत्पादित करते हैं।
- पाम तेल की वैश्विक आपूर्ति में अकेले इंडोनेशिया का योगदान 60% है।
- (अर्थशास्त्र में पण्य (commodity) ऐसी वस्तु होती है जिसमे उस वस्तु की बराबर मात्रा के अंशों का मूल्य बाज़ार में लगभग बराबर माना जाता है। उदाहरण के लिए सोने के 10 ग्राम के दो टुकड़ों का मूल्य बराबर माना जाता है, चाहे उनका उत्पादन अलग समय में, अलग स्थानों में बिलकुल भिन्न प्रकार से किया गया हो। इसी तरह कपास, गेहूँ, लोहा,पेट्रोल, खुली चाय इत्यादि सभी पण्य हैं। अधिकांश पण्य कच्चे माल के बने होते हैं, यानि प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होते हैं।)
खाद्य तेलों की कीमतों में उछाल के कारण:
- अन्य वनस्पति तेलों की आपूर्ति में कमी के कारण पाम तेल की मांग में वृद्धि हुई है।
- विश्व में दूसरा सबसे अधिक उत्पादित होने वाला तेल सोयाबीन तेल हैं,जिसका सर्वाधिक उत्पादन अर्जेंटीना में होता हैं लेकिन मौसम के अनुकूल न रहने के कारण अब इसका उत्पादन प्रभावित होने लगा है।
- वर्ष 2021 में कनाडा में सूखे के कारण रेपसीड तेल का उत्पादन प्रभावित हुआ है।
- यूक्रेन में युद्ध के कारण सूरजमुखी तेल की आपूर्ति प्रभावित हुई है क्योंकि वैश्विक स्तर पर रूस और यूक्रेन मिलकर सूरजमुखी तेल का लगभग 80% हिस्सा उत्पादित करते हैं।
- COVID महामारी के कारण श्रमिकों की कमी ने भी खाद्य तेलों की कीमतों को बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाई है।
ताड़ के तेल निर्यात प्रतिबंध का भारत पर प्रभाव:
- भारत पाम तेल का सबसे बड़ा आयातक देश है।
- पाम तेल भारत के वनस्पति तेल की खपत का लगभग 40% हिस्सा कवर करता है।
- भारत अपने वार्षिक पाम तेल आयात का लगभग 50% इंडोनेशिया से आयात करता है।
- भारत इंडोनेशिया से सालाना करीब 40 लाख टन पाम तेल का आयात करता है।
- इंडोनेशिया द्वारा पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के कदम से भारत में खाद्य तेल की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- भारत,रूस और यूक्रेन से लगभग 90% सोयाबीन तेल का आयात करता है, जो यूक्रेन में संघर्ष की शुरुआत के बाद से लगभग पूरी तरह से बंद हो गया है, जिससे कीमतों में और वृद्धि हुई है।
- हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इंडोनेशिया द्वारा उठाये गए इस हालिया कदम से भारत में तेल की कीमतों में अल्पकालिक अस्थिरता पैदा होगी, लेकिन यह घरेलू खाद्य तेल रिफाइनरियों के लिए अनुकूल होगा क्योंकि इससे तिलहन की घरेलू पेराई और रिफाइनिंग को बढ़ावा मिलेगा।
- पाम खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमईओ-ओपी) के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:National Mission on Edible Oil-Oil Palm (NMEO-OP)
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
स्वास्थ्य:
बाल और किशोर स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर एक नज़र:
विषय: सामाजिक क्षेत्र/स्वास्थ्य से संबंधित सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
मुख्य परीक्षा: बच्चों के लिए एक समग्र स्वास्थ्य प्रणाली की आवश्यकता और एक व्यापक देखभाल प्रणाली विकसित करने हेतु प्रमुख सिफारिशें।
प्रसंग:
- इस लेख में बच्चों और किशोर स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता पर चर्चा की गई है।
पृष्ठ्भूमि:
- वर्ष 2019 में बच्चों और किशोरों (0-20 वर्ष) की लगभग 86 लाख मौतें हुई हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के प्रमुख पहलुओं में से एक “स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना और सभी के कल्याण को बढ़ावा देना” होने के बाद भी इस बात की आशंका है कि ये देश इन लक्ष्यों को पूरा करने में विफल हो सकते हैं।
- लैंसेट की एक नई रिपोर्ट में बच्चों और किशोर स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के पूर्ण सुधार का आग्रह किया गया है।
व्यापक देखभाल की आवश्यकता:
- 28 सप्ताह के गर्भ से लेकर 20 वर्ष की आयु के बीच के शिशु और बालकों की बड़ी संख्या में मौतें हुईं, जिसे जीवनचक्र में महत्वपूर्ण अवधि माना जाता है जो मानव पूंजी के निर्माण की नींव तैयार करती है।
प्रारंभिक जीवन में गरीबी का बच्चों पर असर:
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में देखा गया है कि प्रारंभिक जीवन में गरीबी का बच्चों के अस्तित्व, पोषण और संज्ञानात्मक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- हालांकि स्वास्थ्य देखभाल में सुधार हुआ है,लेकिन बावजूद इसके अभी भी असमानताएं बहुत अधिक हैं क्योंकि ये हस्तक्षेप कम और मध्यम आय वाले देशों के जरूरतमंद बच्चों के लिए आर्थिक रूप से वहनीय नहीं हैं।
- COVID-19 महामारी ने उन विनाशकारी प्रभावों को भी उजागर किया है जो स्वास्थ्य और शिक्षा में आये अंतराल के कारण बच्चों पर दिखेगा।
सिफारिशें:
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सभी बच्चों की स्वास्थ्य और सामाजिक व्यवस्था में सुधार की तत्काल आवश्यकता है और इन प्रणालियों को बच्चों और परिवारों की उभरती जरूरतों को पूरा करने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित किया जाना चाहिए।
- बच्चों के लिए साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेपों को बढ़ाने में मानसिक स्वास्थ्य, अनजाने में लगी चोटों, गैर-संचारी रोगों और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों जैसे पहलुओं को भी शामिल किया गया है।
- एक अलग दृष्टिकोण के साथ केवल कुछ आयु समूहों की समस्याओं को हल करना,ऐसे संकटों से निपटने का सबसे अच्छा तरीका नहीं है। बजाय इसके एक समग्र देखभाल दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें पोषण, निवारक स्वास्थ्य, शिक्षा और समुदाय शामिल हो ।
- बालक के विकास में परिवार की बड़ी भूमिका होती है विशेष रूप से गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के विकास के प्रासंगिक वर्षों के दौरान जिसे जारी रखने की भी सिफारिश की गई है।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
शासन:
जन्म, मृत्यु रिपोर्टिंग स्वचालित होगी:
विषय:विभिन्न क्षेत्रों में विकास हेतु सरकारी नीतियां,उनमे हस्तक्षेप एवं डिजाइन और कार्यान्वयन से जुड़े मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस)
मुख्य परीक्षा: नागरिक पंजीकरण प्रणाली में प्रस्तावित परिवर्तन एवं इनकी आवश्यकता ।
प्रसंग:
- केंद्र सरकार नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) के पुनर्गठन पर विचार कर रही है।
- सरकार द्वारा उठाये जाने वाले इस कदम से किसी एक स्थान से बहुत कम समय और आसानी से जन्म और मृत्यु का पंजीकरण कराना संभव होगा।
नागरिक पंजीकरण प्रणाली (Civil Registration System (CRS):
- नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) देश में आवश्यक महत्वपूर्ण घटनाओं और विशेषताओं की निरंतर,स्थायी,अनिवार्य और सार्वभौमिक रिकॉर्डिंग की एक एकीकृत प्रक्रिया है।
- सीआरएस में जन्म और मृत्यु का पंजीकरण शामिल है।
- CRS सभी स्तरों पर महत्वपूर्ण सूचना का सर्वोत्तम स्रोत है।
- रजिस्ट्रार जनरल,केंद्र सरकार के स्तर पर रजिस्ट्रार जनरल, भारत (आरजीआई) पूरे देश में पंजीकरण का समन्वय और एकीकरण करता है।
- RGI द्वारा संचालित CRS राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) से जुड़ा है, जिसमें पहले से ही 119 करोड़ लोगों का डेटाबेस है।
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: National Population Register (NPR)
CRS में बदलाव की जरूरत:
- वर्तमान में CRS समयसीमा, दक्षता और एकरूपता से जुड़े विभिन्न मुद्दों का सामना कर रही है।जिसकी वजह से जन्म और मृत्यु के आंकड़ों में विलम्ब और कम कवरेज जैसी समस्याएं आती है।
- हाल ही में राज्यों से ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली से छेड़छाड़ की भी कई रिपोर्टें आई थीं।
CRS में प्रस्तावित बदलाव:
- सरकार ने आईटी-सक्षम बैकबोन के माध्यम से CRS में बदलाव लाने की योजना बनाई है जो न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप के साथ जन्म और मृत्यु के पंजीकरण में मददगार साबित हो।
- नया परिवर्तन प्रक्रिया के स्वचालित करने के संदर्भ में होगा जो सेवा वितरण को समयबद्ध, समान और स्वनिर्णय से मुक्त बनाएगा।
- RGI ने जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम,1969 में बदलाव का प्रस्ताव रखा हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत जन्म और मृत्यु के डेटाबेस को बनाए रखने में मदद करेगा ।
- प्रस्तावित इन परिवर्तनों के अनुसार इस डेटाबेस का उपयोग जनसंख्या रजिस्टर, चुनावी रजिस्टर, आधार, राशन कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस डेटाबेस को अपडेट करने के लिए किया जा सकेगा।
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
सम्पादकीय:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
शिक्षा:
सीखने की क्षमता का पुनर्निर्माण:
विषय: सामाजिक क्षेत्र व शिक्षा से संबंधित सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: ‘द स्टेट ऑफ़ द ग्लोबल एजुकेशन क्राइसिस: ए पाथ टू रिकवरी’ रिपोर्ट।
मुख्य परीक्षा: स्कूल शिक्षा क्षेत्र में महामारी के कारण व्यवधान और सुझाव ।
सन्दर्भ:
- कोविड-19 मामलों में लगातार वृद्धि के कारण कुछ अभिवावाकों के समूह ने कक्षाओं के भौतिक संचालन को बंद करने तथा ऑनलाइन या हाइब्रिड कक्षाओं को पुनः प्रारंभ करने की मांग की है।
पृष्टभूमि:
स्कूली शिक्षा में महामारी के कारण व्यवधान:
- कोविड-19 महामारी विगत 100 वर्षों में स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ा व्यवधान बनकर उभरी है।
- दिसंबर 2021 की यूनेस्को, यूनिसेफ और विश्व बैंक की संयुक्त रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ द ग्लोबल एजुकेशन क्राइसिस: ए पाथ टू रिकवरी’ का अनुमान है कि महामारी के दौरान पहले 21 महीनों में, दुनिया भर में स्कूल या तो आंशिक रूप से या पूरी तरह से औसतन 224 दिनों के लिए बंद रहे।
- भारत में जहां बार-बार महामारी की लहर आई है वहां वहां इसका प्रभाव और अधिक गंभीर रहा है जिसके चलते कक्षाओं को बंद कर दिया गया। मार्च या अप्रैल 2022 की शुरुआत में पुनः स्कूल खोले गए। भारत में स्कूल लगभग 570 दिनों से लेकर 600 दिनों तक स्कूल बंद रहे जो कि एक रिकॉर्ड है ।
- दीर्घकाल तक स्कूल बंद रहने से स्कूली बच्चों पर अल्प, मध्यम और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है। स्कूल बंद होने से बच्चों की पढ़ाई खराब हुई और मानसिक तनाव में वृद्धि हुई है तथा मध्याह्न भोजन योजना पर निर्भर छात्रों की पोषण स्थिति भी प्रभावित हुई है।
स्कूल बंदी के खिलाफ तर्क:
- लेख में हाइब्रिड मोड की पुनर्वापसी या स्कूलों की आंशिक बंदी की मांग तथा स्कूलों को पूरी तरह से खुला रखने के पक्ष में तर्क दिया गया है। लेखक इस दिशा में निम्नलिखित तर्क देता है।
कोविड-19 की उपस्थिति:
- इस तथ्य को देखते हुए कि SARS-CoV-2 निकट भविष्य में उपस्थित रहेगा, ऐसे में उन स्कूलों जहाँ मामलों की संभावना सर्वाधिक है, के ‘खुले और बंद’ मोड पर विचार करना अव्यावहारिक, अनावश्यक और अवैज्ञानिक है।
- इस तथ्य को स्वीकार करने की आवश्यकता है कि निकट भविष्य में स्कूली बच्चों सहित किसी भी आयु वर्ग में COVID-19 मामले शून्य नहीं होंगे। इसलिए स्कूलों को पूर्ण रूप से बंद करने की परिकल्पना के अनुसार शून्य मामलों के लक्ष्य के बजाय प्रसार को सीमित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
स्कूल पुनः खुलने और मामलों के बढ़ने के बीच कोई संबंध नहीं:
- स्कूलों के पुनः खुलने के बाद बच्चों के कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने की बढ़ती खबरें, मीडिया का ध्यान अधिक अकर्षित कर रहीं है। यह उस प्रश्न को जन्म देता है कि क्या बच्चों में मामलों की वृद्धि स्कूलों के खुलने के कारण हो रही है, ऐसा तर्क सच नहीं है।
- विशेष रूप से, इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि बच्चों को संक्रमण स्कूलों में हुआ है। ज्यादातर मामलों में, बच्चे परिवार के सदस्यों के कारण संक्रमित हुए है। यह भारतीय राज्यों में क्रमिक सेरोप्रवलेंस-सर्वेक्षणों (seroprevalence-surveys) से साबित हुआ है जिसमें बताया गया है कि सभी बच्चों में से लगभग 70% से 90% को स्कूलों के पुनः खुलने से पहले ही संक्रमण हो गया था।
बच्चों को कम खतरा:
- समाज को COVID-19 संक्रमण से प्रभावित बच्चों के बारे में चिंता करना बंद कर देनी चाहिए, क्योंकि बच्चों में COVID-19 का जोखिम बहुत कम है।
- बच्चों को वयस्कों के समान ही SARS-CoV-2 संक्रमण होता है, परन्तु मध्यम से गंभीर बीमारी के प्रतिकूल परिणाम की संभावना बच्चों में बहुत कम होती है। अधिकांश स्वस्थ बच्चों पर गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता हैं।
- इसके अलावा सेरोप्रेवलेंस-सर्वेक्षण के अनुसार भारत में संक्रमित बच्चों की दर पहले से ही उच्च है। इसका मतलब है कि वे संक्रमण का सामना करने में सक्षम थे और इस प्रकार वे भविष्य के संक्रमणों से भी कुछ हद तक सुरक्षित रहेंगे।
पढ़ाई का नुकसान:
- स्कूलों के बार-बार बंद होने से बच्चों की पढ़ाई का भारी नुकसान हो रहा है। अध्ययनों से पता चला है कि स्कूल बंद होने से सीखने की क्षमता में दो गुना कमी आ जाती है।
सुझाव:
सभी बच्चों की स्कूलों में वापसी सुनिश्चित करना:
- यह समझने की जरूरत है कि स्कूलों के पुनः खुलने का मतलब यह नहीं है कि सभी बच्चे स्कूल आ रहे हैं। गरीब, पिछड़े, ग्रामीण, शहरी झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चे और बालिकाएँ कई सामाजिक-आर्थिक कारणों से दोबारा दाखिला नहीं ले सके हैं।
- ऐसे बच्चों के नामांकन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है किसी भी बच्चे की पढाई न छूटे और प्रत्येक पात्र बच्चे का नामांकन आवश्य हो।
सीखने की क्षमता में सुधार:
- दीर्घकालिक स्कूल बंदी ने सीखने की क्षमता को कमजोर किया है, सरकारों और स्कूलों को स्कूली शिक्षा की महत्वपूर्ण प्राथमिकता सीखने की क्षमता पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
- इसके लिए पहले बच्चों के सीखने के स्तर का आकलन करना होगा और फिर सीखने की क्षमता सुधार हेतु प्रासंगिक रणनीति तैयार करनी होगी जैसे कि पाठ्यक्रम का समेकन, शिक्षण समय बढ़ाना और बच्चों के सीखने के स्तर और जरूरतों को समायोजित करने के लिए प्रासंगिक शिक्षक प्रशिक्षण आदि।
- नवोन्मेषी दृष्टिकोण और शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे सामाजिक संगठनों की भागीदारी को भी सीखने की क्षमता में सुधार के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
शिक्षा क्षेत्र में आवंटन बढ़ाएँ:
- शिक्षा के क्षेत्र को महामारी की वजह से जो झटका लगा है, उसे एक चेतावनी के रूप में स्वीकारना चाहिए।
- इस दिशा में केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में अतिरिक्त सरकारी निवेश करना चाहिए।
- भारत में, शिक्षा पर सरकारी खर्च सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3% है, जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों के शिक्षा खर्च के औसत का लगभग आधा है।
स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले स्कूलों की अवधारणा:
- शिक्षा पर ध्यान देने के अलावा, ‘स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले स्कूलों’ की अवधारणा को भी प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। इस दिशा में निम्नलिखित उपायों से मदद मिलेगी।
- महामारी की अवधि में स्कूली बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्यायें दोगुनी हो गई हैं। इसके लिए स्कूली बच्चों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और परामर्श सत्रों जैसी सुविधाओं की आवश्यकता है।
- गरीब परिवारों के बच्चों की पोषण सुरक्षा में मध्याह्न भोजन योजना जैसे पूरक पोषण कार्यक्रमों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए ऐसी योजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और उनका विस्तार किया जाना चाहिए। पोषण सुरक्षा से ही बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
- प्रत्येक स्कूल में, खासकर ग्रामीण और सरकारी स्कूलों में, साबुन, हाथ धोने और शौचालय की सुविधाओं में सुधार किया जाना चाहिए। यह स्कूलों को कोविड-19 के संभावित प्रसार को रोकने में सहयक होगा और स्कूली बच्चों में अन्य जल जनित बीमारियों को भी कम करेगा।
- भारतीय राज्यों में शिक्षा और स्वास्थ्य विभागों को स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य जांच जैसी नियमित सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
अर्थव्यवस्था:
हाइड्रोजन द्वारा ऊर्जा आत्मनिर्भरता:
विषय: बुनियादी ढांचा: ऊर्जा।
प्रारंभिक परीक्षा: ग्रीन हाइड्रोजन।
मुख्य परीक्षा: भारत के लिए हाइड्रोजन का महत्व तथा हरित हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र के विकास से संबंधित चुनौतियाँ और सुझाव।
सन्दर्भ:
- भारत की हरित हाइड्रोजन नीति फरवरी 2022 में जारी की गई थी। जिसमे भारत के ऊर्जा संक्रमण को बढ़ावा देने तथा भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग को मुख्यधारा में लाने के लिए विभिन्न नीतियों और पहलों की रूपरेखा है।
- ग्रीन हाइड्रोजन, हाइड्रोजन का वह रूप है जो इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा पानी को विभाजित करके उत्पन्न होता है। इसके द्वारा हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों ही पैदा होती है। इलेक्ट्रोलिसिस के लिए पानी और बिजली की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
भारत के लिए हाइड्रोजन का महत्व:
भारत की ऊर्जा निर्भरता:
- हालांकि वर्तमान में, भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत वैश्विक औसत का लगभग एक-तिहाई है बढ़ती आर्थिक विकास दर और जीवन स्तर निश्चित रूप से भारत की ऊर्जा की मांग में वृद्धि करेगा। यह देखते हुए कि भारत अन्य देशों से ऊर्जा आयात पर निर्भर है जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए शुभ संकेत नहीं है।
- कीमतों में अस्थिरता और आपूर्ति श्रृंखला में अनिश्चितता भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए खतरा बनी हुई है।
- यह देखते हुए कि हाइड्रोजन का निर्माण भारत में किया जा सकता है, इससे अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम होगी। हाइड्रोजन जो कि नए युग का ईंधन, ऊर्जा निर्भरता के लिए भारत का प्रवेश द्वार हो सकता है।
- हाइड्रोजन भारत की ऊर्जा की तीन E आवश्यकताओं को पूरा करता है- ऊर्जा सुरक्षा, ऊर्जा स्थिरता और ऊर्जा पहुंच (energy security, energy sustainability and energy access) ।
निर्यात क्षमता:
- हाइड्रोजन आगामी कुछ दशकों में भारत को एक ऊर्जा आयातक से निर्यातक के रूप में स्थापित कर भारत के ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र को पूरी तरह से बदलने में सहायक होगी। भारत जापान, दक्षिण कोरिया आदि जैसे भविष्य के अनुमानित आयात केंद्रों को निर्यात कर सकता है।
अर्थव्यवस्था का डीकार्बोनाइजेशन:
- हाइड्रोजन भारत के परिवहन क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है। बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों की तुलना में ईंधन सेल वाहनों में हाइड्रोजन का उपयोग फायदेमंद है। इनमें तीव्र ईंधन और दीर्घ ड्राइविंग रेंज होती है। यह उन लंबी दूरी के वाहनों के अनुकूल होगा जो ली-आयन बैटरी पर आधारित थे।
- औद्योगिक क्षेत्र में, हाइड्रोजन ‘हार्ड-टू-एबेट’ क्षेत्रों जैसे लोहा और इस्पात, एल्यूमीनियम, तांबा आदि को डी-कार्बोनाइज कर सकती है।
- इस प्रकार हाइड्रोजन से भारत न केवल 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन प्राप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ेगा, बल्कि पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी दुनिया का नेतृत्व कर सकता है। यह नवीन भारत की नींव रखने में सहायक होगा जिसका लक्ष्य वैश्विक जलवायु प्रतिनिधि बनना है
अक्षय ऊर्जा पूरक:
- बिजली की तुलना में हाइड्रोजन को बृहद पैमाने पर और दीर्घकाल के लिए संग्रहित किया जा सकता है। यह इसे परिवर्तनीय अक्षय ऊर्जा की लगातार बढ़ती आपूर्ति के पूरक के रूप में एक व्यवहार्य विकल्प बनाता है। इसलिए 2030 तक भारत के 500 GW के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को साकार करने में हाइड्रोजन सहायक होगी।
हाइड्रोजन की बहुमुखी प्रतिभा:
- हाइड्रोजन में मेथनॉल, सिंथेटिक केरोसिन और ग्रीन अमोनिया जैसे ईंधन का उत्पादन करने की संभावना प्रबल है।
- उच्च ऊर्जा घनत्व वाले अमोनिया को परिवहन के साधन के रूप में बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
भारत में हाइड्रोजन का उपयोग:
- 2020 में भारत की हाइड्रोजन खपत लगभग 7 मिलियन टन थी और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) के अनुसार, 2050 में इसके लगभग 28 मिलियन टन तक पहुँचने का अनुमान है।
हरित हाइड्रोजन से संबंधित चुनौतियाँ:
- भारत को हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने हेतु इलेक्ट्रोलाइजर्स की क्षमता की तीव्र वृद्धि की आवश्यकता है। वर्तमान में यह क्षमता बहुत कम है।
- इसके अतिरिक्त, भारत को इलेक्ट्रोलिसिस की ऊर्जा मांगों की पूर्ति हेतु बिजली आपूर्ति में तीव्र वृद्धि सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इसके लिए नवीकरणीय ऊर्जा का तीव्र विस्तार करना होगा।
- भारत में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में पानी की कमी एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा 1 किलो हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए लगभग नौ लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
- उपरोक्त कारणों से हरित हाइड्रोजन की लागत उच्च होगी जो इसकी आर्थिक व्यवहार्यता को प्रभावित कर सकती है। प्रारम्भ में ही हरित हाइड्रोजन ईंधन को अपनाने के दौरान विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। मांग की व्यापक कमी इसके शुरुआती निवेश को रोक सकती है।
सुझाव:
- सरकार को प्रारंभिक चरण में हरित हाइड्रोजन की व्यवहार्यता सुनिश्चित करने हेतु प्रभावी उपाय करने चाहिए ताकि बाद में यह बाजार में अपनी प्रभावी भूमिका निभा सकें। मांग और आपूर्ति पक्षों द्वारा इन उपायों को बेहतर ढंग से लागू किया जा सकता है।
मांग पक्ष:
- प्रारम्भ में परिष्कृत उद्योगों जैसे कि रिफाइनिंग और उर्वरकों को हरित हाइड्रोजन को अपनाने के लिए ऐसी नीतियां बनाई जानी चाहिए जो उन्हें हाइड्रोजन के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करे ताकि इसकी मांग बढे ।
- कम उत्सर्जन वाले हाइड्रोजन आधारित उत्पादों का निर्माण करने वाले उद्योगों को सरकारी नीतियों द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जिससे हरित हाइड्रोजन की मांग को बढाया जा सके।
- प्राकृतिक गैस और हाइड्रोजन के सम्मिश्रण के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सम्मिश्रणन अधिदेशों और विनियमों को जारी करना चाहिए।
- ग्रीन हाइड्रोजन की मांग को प्रोत्साहित करने के लिए कार्बन टैरिफ जैसी अवधारणाओं की आवश्यकता है।
आपूर्ति पक्ष:
- हरित हाइड्रोजन उत्पादन में पानी की कमी की चुनौती से निपटने के लिए हाइड्रोजन उत्पादन के वैकल्पिक स्रोतों जैसे बायोगैस से हाइड्रोजन में रूपांतरण की खोज की जानी चाहिए।
- हाइड्रोजन आधारित परियोजनाओं के लिए वायबिलिटी गैप फंडिंग (VGF) योजना शुरू की जानी चाहिए ताकि नई प्रौद्योगिकियों का बृहद पैमाने पर व्यावसायीकरण हो। प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग (PSL) जैसे उपायों के माध्यम से संबंधित उद्योगों और सेक्टर के लिए वहनीय और आसानी से सुलभ वित्तपोषण सुविधाएं सुनिश्चित की जानी चाहिए।
- संबंधित उत्पादों की पर्याप्त उत्पादन क्षमता सुनिश्चित करने के लिए संबंधित क्षेत्रों में उत्पादन लिंक प्रोत्साहन (PLI) जैसी योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिए।
- मांग पर ईंधन की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संख्या में हाइड्रोजन ईंधन स्टेशनों को स्थापित करने की योजना बनाई जानी चाहिए।
- हरित हाइड्रोजन को मुख्यधारा में लाने में लागत कारक की गंभीरता को देखते हुए, इसकी लागत में कमी के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश को तेज किया जाना चाहिए।
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
1. क्वार जलविद्युत परियोजना:
बुनियादी ढांचा:
विषय: ऊर्जा
प्रारंभिक परीक्षा: क्वार हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट।
प्रसंग:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने 540 मेगावाट की क्वार जलविद्युत परियोजना के लिए 4,526.12 करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी दी हैं।
क्वार जलविद्युत परियोजना:
- जलविद्युत परियोजना जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर बनाई जा रही है।
- यह परियोजना चिनाब वैली पावर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा बनाई जा रही है,जो नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) और जम्मू और कश्मीर स्टेट पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के बीच एक संयुक्त उद्यम है।
- इस परियोजना का वार्षिक बिजली उत्पादन 90 प्रतिशत के बराबर या उससे अधिक होगा। इस हिसाब से परियोजना 1975.54 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन करेगी।
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महत्वपूर्ण तथ्य:
1. SSLV की ‘विकास उड़ानें’ (development flights) 2022 में संभावित:
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 2022 में लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) की तीन विकास उड़ानों की योजना बना रहा है।
- SSLV जिसे ‘मांग पर लॉन्च’ (‘launch on demand’) के रूप में डिजाइन किया गया है और इसमें कक्षा में छोटे पेलोड रखने के लिए सस्ते विकल्प के तौर पर नैनो, सूक्ष्म और छोटे उपग्रहों के लिए कई विकल्प होंगे।
- SSLV के सभी तीन चरण ठोस प्रणोदन चरण होंगे। साथ ही इसके निजी भागीदारी के साथ विकसित होने के कारण, एसएसएलवी 500 किलोग्राम पेलोड को पृथ्वी की निम्न कक्षा में रखने में सक्षम होगा।
- केंद्र ने विकास परियोजना के लिए कुल 169 करोड़ रुपये मंजूर किए थे, जिसमें एसएसएलवी-डी1, एसएसएलवी-डी2 और एसएसएलवी-डी3 नामक तीन नियोजित विकास उड़ानों के माध्यम से विकास की लागत, वाहन प्रणालियों की योग्यता और उड़ान प्रदर्शन शामिल हैं।
2. श्रम कोड (Labour codes)जल्द ही लागू किए जाएंगे:
- केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री ने कहा कि संसद द्वारा 2019 – 2020 में पारित चार श्रम संहिताओं को जल्द ही लागू किया जाएगा।
- गौरतलब हैं कि मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा और औद्योगिक संबंधों पर लगभग 29 केंद्रीय अधिनियमों को चार संहिताओं में समाहित कर दिया गया है।
- श्रम संहिता के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:Labour Codes
3. वामपंथी उग्रवाद वाले क्षेत्रों में 4जी के उन्नयन की योजना:
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वामपंथी उग्रवाद (वामपंथी उग्रवाद) क्षेत्रों में सुरक्षा स्थलों पर 2जी मोबाइल सेवाओं को 4जी में अपग्रेड करने के लिए एक यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (Universal Service Obligation Fund (USOF) ) परियोजना को मंजूरी दी हैं।
- सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए स्वदेशी 4जी दूरसंचार उपकरणों के विकास को बढ़ावा देने के लिए परियोजना के लिए बीएसएनएल को चुना है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:(स्तर: मध्यम)
- राज्यों के राज्यपालों की क्षमादान शक्ति न्यायिक समीक्षा से प्रतिरक्षित है।
- अनुच्छेद 161 राज्यपाल को मृत्युदंड से संबंधित मामले में क्षमादान की शक्ति प्रदान करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a)केवल 1
(b)केवल 2
(c)1 और 2 दोनों
(d)न तो 1 , न हीं 2
उत्तर: d
व्याख्या:
- कथन 1 सही नहीं है: एपुरु सुधाकर मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा क्षमा शक्ति का प्रयोग या गैर-अभ्यास न्यायिक समीक्षा से प्रतिरक्षित नहीं है”।
- SC ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 72 या अनुच्छेद 161 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपाल के आदेश की न्यायिक समीक्षा निम्नलिखित आधारों पर की जा सकती है:
- कि आदेश बिना सोचे समझे दिया गया है
- कि आदेश दुर्भावनापूर्ण है
- कि आदेश बाहरी या पूरी तरह अप्रासंगिक प्रमाणों के आधार पर दिया गया है
- प्रासंगिक सामग्री पर विचार नहीं किया गया है
- कि आदेश मनमाने तरीके से दिया गया है।
- कथन 2 सही नहीं है: अनुच्छेद 161 में उल्लेख किया गया है कि किसी राज्य के राज्यपाल के पास उस विषय संबंधी, जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, किसी विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति है ।
- पहले केवल राष्ट्रपति ही मौत की सजा को माफ कर सकता था,राजयपाल नहीं।लेकिन हाल ही में अगस्त 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी राज्य का राज्यपाल मौत की सजा पाने वाले कैदियों सहित अन्य कैदियों को कम से कम 14 साल की जेल की सजा काटने से पहले ही माफ कर सकते हैं।
प्रश्न 2. भारत के महान्यायवादी (AG) के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? (स्तर: सरल)
- राष्ट्रपति की नजर में एक प्रख्यात न्यायविद को महान्यायवादी (AG) के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
- जब वह भारतीय संसद की कार्यवाही में भाग लेता है तो उसे वोट देने का अधिकार होता है क्योंकि वह संघ की कार्यकारिणी का हिस्सा होता है।
- वह निजी तौर पर भी प्रैक्टिस कर सकता है क्योंकि उसे निजी कानूनी प्रैक्टिस से वंचित नहीं किया गया है।
विकल्प:
(a)केवल 1 और 2
(b)केवल 2 और 3
(c)केवल 1 और 3
(d)1, 2 और 3
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: भारत के राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद के लिए योग्य व्यक्ति की नियुक्ति की जाती हैं।
- कथन 2 सही नहीं है: AG को संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने का अधिकार है, लेकिन जब वह भारतीय संसद की कार्यवाही में भाग लेता है तो उसे वोट देने का कोई अधिकार नहीं है।
- कथन 3 सही है: AG निजी तौर पर भी अभ्यास कर सकता है क्योंकि उसे निजी कानूनी अभ्यास से वंचित नहीं किया गया है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:(स्तर: मध्यम)
- नाट्य शास्त्र के अनुसार, ‘ओधरा मगध’ वर्तमान ओडिसी नृत्य का सबसे प्रारंभिक रूप है।
- त्रिभंग, ओडिसी के साथ निकटता से जुड़ा है।
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
(a)केवल 1
(b)केवल 2
(c)1 और 2 दोनों
(d)न तो 1,न हीं 2
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: नाट्य शास्त्र के अनुसार, ‘ओधरा मगध’ वर्तमान ओडिसी नृत्य का सबसे प्रारंभिक रूप है।
- कथन 2 सही है: त्रिभंग एक अत्यंत नारीत्व भंगिमा वाली स्थिति है जहां शरीर को गर्दन, मध्य और घुटनों पर मोड़ दिया जाता है। त्रिभंगा की शारीरिक मुद्रा ओडिसी शास्त्रीय नृत्य शैली से जुड़ी है।
प्रश्न 4. लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर: कठिन)
- SSLV तीन चरणों वाला रॉकेट है।
- पहला और तीसरा चरण ठोस प्रणोदन प्रणालियों द्वारा तथा दूसरा तरल इंजन द्वारा संचालित होता है।
विकल्प:
(a)केवल 1
(b)केवल 2
(c)1 और 2 दोनों
(d)न तो 1 , न हीं 2
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) तीन चरणों वाला प्रक्षेपण यान है।
- कथन 2 सही नहीं है: SSLV के सभी तीन चरण ठोस प्रणोदन चरण होंगे।
- SSLV को तीन ठोस प्रणोदन चरणों और एक तरल प्रणोदन-आधारित वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (Velocity Trimming Module (VTM)) के साथ एक टर्मिनल चरण के रूप में समनुरूप किया गया है।
प्रश्न 5. ‘ताड़ के तेल’ (पाम आयल) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः(स्तर: मध्यम) PYQ (2021)
- ताड़ के तेल का वृक्ष दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है।
- ताड़ का तेल, लिपस्टिक और इत्र बनाने वाले कुछ उद्योगों के लिए कच्चा माल है।
- ताड़ के तेल का उपयोग बायोडीजल के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(a)केवल 1 और 2
(b)केवल 2 और 3
(c)केवल 1 और 3
(d)1, 2 और 3
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 सही नहीं है: ताड़ के तेल का पेड़ अफ्रीकी मूल का वृक्ष हैं और एक सजावटी पेड़ के रूप में दक्षिण-पूर्व एशिया में लाया गया था।
- कथन 2 सही है: ताड़ के तेल का उपयोग लिपस्टिक और इत्र उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
- कथन 3 सही है: ताड़ के तेल का उपयोग बायोडीजल के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न 1. ‘नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल – पाम ऑयल’ के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं? यह मिशन दीर्घकाल में खाद्य तेल आयात पर भारत की निर्भरता को कम करना कैसे सुनिश्चित करेगा? (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस III – आर्थिक विकास)
प्रश्न 2. इलेक्ट्रिक बैटरी से चलने वाले वाहनों के बजाय स्थायी भविष्य के लिए हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस III – प्रौद्योगिकी)
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