विषयसूची:
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1. जी-20 सह-कार्यक्रम पर वैश्विक टीका अनुसंधान सहयोगात्मक चर्चा:
सामान्य अध्ययन: 2
स्वास्थ्य:
विषय: स्वास्थ्य से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र/सवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित विषय।
प्रारंभिक परीक्षा: वैश्विक टीका अनुसंधान सहयोग,जी-20।
प्रसंग:
- सिकंदराबाद में तीसरी जी-20 स्वास्थ्य सेवा समूह की बैठक के दौरान, भारत सरकार के फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने जी-20 अध्यक्षता के तहत एक सह-कार्यक्रम का आयोजन करते हुए केंद्रीय रसायन एवं खाद्य और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने “वैक्सीन अनुसंधान और विकास: भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों की रोकथाम तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए आम सहमति: पर वैश्विक वैक्सीन अनुसंधान सहयोगात्मक चर्चा को संबोधित करते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी ने टीके के अनुसंधान और विकास के लिए वैश्विक सहयोग के महत्व को बताया है।
उद्देश्य:
- इस अवसर पर डॉ मांडविया ने कहा कि ग्लोबल वैक्सीन रिसर्च कोलैबोरेटिव (वैश्विक वैक्सीन अनुसंधान सहयोग) उभरते रोगजनकों के लिए वैक्सीन अनुसंधान और विकास को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक तंत्र हो सकता है।
- उभरते रोगजनकों के लिए टीके के विकास को गति देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है और जी-20 प्लेटफॉर्म सरकारों, अनुसंधान संगठनों, दवा निर्माता कंपनियों और अन्य भागीदारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच की भूमिका निभाता है।
विवरण:
- भारत पोलियो, चेचक और खसरा जैसी बीमारियों के लिए टीकों के विकास, उत्पादन और वितरण में अनुभव के साथ कई दशकों तक वैक्सीन अनुसंधान और विकास में, वैक्सीन उत्पादन और वितरण में एक अग्रणी खिलाड़ी के रूप में विश्व का नेतृत्व कर सकता है।
- इसने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के मौजूदा बुनियादी ढांचे का लाभ उठाकर ग्रामीण क्षेत्रों में टीकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए हैं।
- महामारी की तैयारी, दवाओं और टीकों तक पहुंच, और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सहित स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए भारत को इन क्षेत्रों में अपने अनुभव का लाभ उठाना चाहिए तथा विशेष रूप से उभरते और महामारी-संभावित रोगजनकों के लिए टीके के विकास में तेजी लानी चाहिए। कोविड-19 टीकों के उत्पादन और वितरण में भारत का नेतृत्व वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
- भारत परंपरागत रूप से जेनेरिक और बायोसिमिलर श्रेणी में विश्व में अग्रणी रहा है और प्रमुख भारतीय वैक्सीन निर्माता वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति में 50% से अधिक का योगदान करते हैं, कोविड-19 महामारी ने दशकों से वैक्सीन निर्माण की समय-सीमा को एक साल से भी कम करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
- महामारी के दौरान मिली सीख को एक ऐसी प्रणाली में परिवर्तित करने की आवश्यकता है।
- वैश्विक वैक्सीन अनुसंधान सहयोग, की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए कोविड-19 महामारी के दौरान यह देखने को मिला कि वैक्सीन वितरण में असमानता के कारण दुनिया में कुछ देशों को 18 महीने बाद यह टीका प्राप्त हुआ।
पृष्ठ्भूमि:
- फार्मास्यूटिकल्स विभाग एक प्रस्तावित वैश्विक वैक्सीन अनुसंधान के लिए जी-20 सदस्य राज्यों के साथ-साथ विशेष आमंत्रित देशों के विभिन्न हितधारकों के बीच सहमति बनाने और आम सहमति बनाने के लिए स्वास्थ्य में उपयुक्त प्रौद्योगिकी (पैथ) और महामारी तैयारी नवाचारों के लिए गठबंधन (CEPI) के साथ काम कर रहा है।
- यह पहल अगली महामारी से पहले वैक्सीन के विकास के लिए अनुसंधान में प्रमुख अंतराल को दूर करने, बेहतर वैक्सीन के लिए अनुसंधान एवं विकास की तैयारियों के लिए एक संरचना और सिद्धांतों की स्थापना और समन्वय में सुधार के लिए एक तंत्र बनाने के लिए कार्य कर रही है।
- यह वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास के लिए सक्षम वातावरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करेगी।
प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
1.किश्तवाड़ उत्तर भारत का सबसे बड़ा ‘पावर हब’ बनेगा:
- केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि मौजूदा बिजली परियोजनाओं के पूरा होने के बाद जम्मू और कश्मीर का किश्तवाड़ उत्तर भारत का प्रमुख “पावर हब” बन जाएगा, जो लगभग 6,000 मेगावाट बिजली पैदा करेगा।
- किश्तवाड़ और डोडा जिलों में विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा के लिए एक विस्तृत बैठक बुलाई गई।
- किश्तवाड़ से अतिरिक्त बिजली का उपयोग न केवल इस केंद्रशासित प्रदेश के अन्य हिस्सों के लिए किया जाएगा, बल्कि अन्य राज्यों द्वारा भी इसका लाभ उठाया जा सकता है।
- यह किश्तवाड़ क्षेत्र को उत्तर भारत का एक प्रमुख पावर हब बनाता है।
- उल्लेखनीय है कि पाकल दुल परियोजना 1000 मेगावाट क्षमता वाली सबसे बड़ी परियोजना है।
- इसकी अभी तक अनुमानित लागत 8,112.12 करोड़ रुपए है और इसके पूरे होने की अपेक्षित समय-सीमा 2025 है।
- एक अन्य प्रमुख परियोजना 624 मेगावाट की क्षमता वाली किरू जलविद्युत परियोजना है।
- परियोजना की अनुमानित लागत रु. 4,285.59 करोड़ है और इसकी समय सीमा भी 2025 है।
- किश्तवाड़ से लगभग 43 किमी दूर स्थित एक अन्य परियोजना 624 मेगावाट की क्षमता वाली क्वार जलविद्युत परियोजना है।
- इस परियोजना की अनुमानित लागत 4526.12 करोड़ रुपये है और इसकी समय सीमा 54 महीने है।
- किरू जलविद्युत परियोजना के लगभग 25 किलोमीटर अपस्ट्रीम में 930 मेगावाट की क्षमता वाली एक और जलविद्युत परियोजना कीर्थाई-II जलविद्युत परियोजना है।
- वहीं, 850 मेगावाट की रतले परियोजना को केंद्र और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के बीच एक संयुक्त उद्यम के रूप में पुनर्जीवित किया गया है।
- इसके अलावा, मौजूदा दुलहस्ती पावर स्टेशन की स्थापित क्षमता 390 मेगावाट है, जबकि दुलहस्ती-II जलविद्युत परियोजना की क्षमता 260 मेगावाट होगी।
- ये परियोजनाएं न केवल बिजली आपूर्ति की स्थिति में वृद्धि करेंगी, जिससे केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में बिजली आपूर्ति की कमी को पूरा किया जा सकेगा, बल्कि इन परियोजनाओं के निर्माण के लिए किया जा रहा भारी निवेश प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से स्थानीय लोगों के लिए अवसर भी बढ़ाएगा।
2.NCGG ने बांग्लादेश के सिविल सेवकों के 60वें बैच का प्रशिक्षण पूरा किया:
- नेशनल सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस (NCGG) द्वारा विदेश मंत्रालय (MEA) की साझेदारी में आयोजित बांग्लादेश के सिविल सेवकों के लिए दो सप्ताह का 60वां क्षमता निर्माण कार्यक्रम (सीबीपी) 2 जून, 2023 को संपन्न हुआ।
- 1,500 सिविल सेवकों के लिए सीबीपी के पहले चरण में एनसीजीजी ने 2025 तक 1,800 सिविल सेवकों की अतिरिक्त क्षमता बढ़ाने के लिए बांग्लादेश सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
- कोविड 19 महामारी के बाद पिछले दो वर्षों के भीतर एनसीजीजी द्वारा पहले ही बांग्लादेश के 517 अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।
- 21वीं सदी को ‘एशियाई सदी’ कहा जाता है।
- यह दक्षिण एशियाई देशों को स्वयं को विकसित देशों में बदलने और अपने नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
- इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आपसी सीख को बढ़ावा देना और ई-गवर्नेंस को अपनाकर नागरिक केंद्रित सार्वजनिक नीतियों और सुशासन पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है।
- इस मिशन के अनुसरण में, विदेश मंत्रालय ने नेशनल सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस (एनसीजीजी) की पहचान ‘फोकस संस्थान’ के रूप में की है।
- पाठ्यक्रम में 60वें क्षमता निर्माण कार्यक्रम में शामिल विषयों की विविधता:
- इन पहलों में शासन के विभिन्न पहलू, डिजिटल परिवर्तन, विकासात्मक योजनाएँ और स्थायी प्रथाएँ शामिल हैं।
- शामिल किए गए विषयों में गवर्नेंस के बदलते प्रतिमान, पासपोर्ट सेवा और मदद सहित डिजिटल गवर्नेंस पर केस स्टडी, सभी के लिए आवास, विभिन्न विकास योजनाओं से सर्वोत्तम अभ्यास, पर्यावरण के अनुकूल स्मार्ट सिटी प्लानिंग, भारत की समग्र संस्कृति, सुशासन में आधार की भूमिका आपदा प्रबंधन, अखिल भारतीय सेवाओं का अवलोकन, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी परियोजना, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, स्वामित्व योजना, स्वास्थ्य क्षेत्र अनुकूलन, नेतृत्व और संचार, ई-गवर्नेंस, डिजिटल इंडिया, उमंग, पीएम गति शक्ति योजना, सरकार ई-मार्केटप्लेस (जीईएम), ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिए पीएमजीएसवाई, हरित ऊर्जा, कुशल सार्वजनिक सेवा वितरण, सतर्कता प्रशासन, महिला केंद्रित शासन, भ्रष्टाचार विरोधी रणनीति, परिपत्र अर्थव्यवस्था और चुनाव प्रबंधन एवं अन्य विषय शामिल हैं।
- विदेश मंत्रालय और एनसीजीजी के साथ साझेदारी में एनसीजीजी ने बांग्लादेश, केन्या, तंजानिया, ट्यूनीशिया, सेशेल्स, गाम्बिया, मालदीव, श्रीलंका, अफगानिस्तान, लाओस, वियतनाम, नेपाल भूटान, म्यांमार और कंबोडिया 15 देशों के सिविल सेवकों को प्रशिक्षण दिया है।
- बढ़ती मांग को देखते हुए एनसीजीजी देशों की विस्तृत सूची से अधिक से अधिक सिविल सेवकों को समायोजित करने के लिए सक्रिय रूप से अपनी क्षमता का विस्तार कर रहा है।
- इस विस्तार का उद्देश्य बढ़ती मांग को पूरा करना और यह सुनिश्चित करना है कि एनसीजीजी द्वारा प्रदान की जाने वाली विशेषज्ञता और संसाधनों से अधिक राष्ट्र लाभान्वित हो सकें।
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