चक्रवात : विध्वंसकारी झंझावातों को आमतौर पर चक्रवात (Cyclone) कहते हैं । चक्रवात तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं और आक्रामक पवनों के कारण आमतौर पर भारी वर्षा एवं विध्वंस के लिए जाने जाते हैं । ये तूफान हिंद महासागर में ‘चक्रवात’ ; अटलांटिक महासागर में ‘हरीकेन’ ; पश्चिम प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर में ‘टाइफून’ ; जापान में ‘टेफू’ और पश्चिमी आस्ट्रेलिया में ‘विली- विलीज’ के नाम से जाने जाते हैं । भू- मध्य रेखा, जहाँ कोरिओलिस बल प्रभावहीन होता है , वहां ये तूफान नहीं उठते । चक्रवात 2 प्रकार के होते हैं –
- उष्ण-कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones) : ऐसे झंझावात जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों (अर्थात 23°N -23°S अक्षांश के बीच के क्षेत्र) के महासागरों में होती है । भारत ऐसे चक्रवातों से विशेष तौर पर प्रभावित है ।
- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Extra-Tropical or Temperate cyclones) : ऐसे चक्रवात जो उष्ण कटिबंध से दूर, मध्य व उच्च अक्षांशों में (35° N- 65° N एवं 35° S- 65° S अक्षांशों के मध्य) विकसित होते हैं, उन्हें बहिरूष्ण या शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Extra-Tropical or Temperate cyclones) कहते हैं । ये चक्रवात आमतौर पर विनाशकारी नहीं होते हैं ।
एक चक्रवात के केंद्रीय भाग में वायु भार सबसे कम होता है । यहां वातावरण शांत रहता है और हवा की गति भी कम रहती है । इस भाग में मेघ नहीं पाए जाते और यहां तापमान अधिक रहता है । महासागरों से निरंतर होने वाली आर्द्रता की आपूर्ति से ये तूफान अधिक प्रबल होते हैं । चूँकि स्थल पर पहुँचकर आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है, अतः ये तूफान क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं । एक पूर्णतः विकसित उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की विशेषता इसके केंद्र के चारो तरफ प्रबल सर्पिल (Spiral) पवनों का परिसंचरण है । इस परिसंचरण प्रणाली का व्यास 150 से 250 कि.मी. तक हो सकता है ।
प्रति- चक्रवात : प्रति-चक्रवात (anticyclone) की प्रकृति तथा विशेषताएं चक्रवात से ठीक विपरीत होती हैं । इसके केन्द्र में उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है जबकि परिधि की ओर निम्न वायुदाब पाया जाता है । इसके कारण हवाएं केन्द्र से परिधि की ओर प्रवाहित होती हैं । चक्रवात में हवाएं उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में (एंटी क्लॉक वाइज) तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुई की दिशा में (क्लॉक वाइज) बहती है जबकि प्रति चक्रवात में ठीक इसके विपरीत अर्थात उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुई की दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में । चक्रवात के विपरीत यह साफ़ मौसम का द्योतक होता है ।
चक्रवात एवं प्रति- चक्रवात में अंतर
चक्रवात | प्रति- चक्रवात |
1.चक्रवात में हवाएं उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में (एंटी क्लॉक वाइज) तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुई की दिशा में (क्लॉक वाइज) परिसंचरण करती हैं | प्रति -चक्रवात में वायु का प्रवाह उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुरूप (क्लॉक वाइज) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के विपरीत (एंटी क्लॉक वाइज) दिशा में होता है |
2.चक्रवात आमतौर विध्वंसकारी होते हैं | प्रति -चक्रवात का मौसम सम्बन्धी परिस्थितियों पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है और यह यह साफ़ मौसम का द्योतक होता है |
3.चक्रवात के केन्द्र में निम्न वायुदाब का क्षेत्र होता है जबकि परिधि की ओर उच्च वायुदाब पाया जाता है | प्रति -चक्रवात के केन्द्र में उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है जबकि परिधि की ओर निम्न वायुदाब पाया जाता है |
4.हवाएं परिधि से केन्द्र की ओर प्रवाहित होती हैं | हवाएं केन्द्र से परिधि की ओर प्रवाहित होती हैं |
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