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दिल्ली सल्तनत में इक्ता प्रथा क्या थी?

दिल्ली सल्तनत में भू- राजस्व संसाधन या सीधे शब्दों में कहें तो भूमि 2 प्रकार की थी- खालिसा और इक्ता । इस काल में राजस्व संसाधन सुल्तान और उसके सामंतों के बीच वितरित कर दिए जाते थे । जिन क्षेत्रों का राजस्व सीधे सुल्तान को जाता था वे “खालिसा” कहलाए, जबकि जो क्षेत्र सामंतों के बीच बांटे जाते थे उन्हें “इक्ता” कहा जाता था । इसी से इक्तेदारी प्रथा का जन्म हुआ । इतिहासकारों ने सल्तनत काल में इक्ता के इतिहास को तीन चरणों में विभाजित किया है । पहले चरण में सुल्तान ने अपने सेनापतियों को विभिन्न क्षेत्र इक्ता के रूप में सौंपे, जिन्हें उससे प्राप्त राजस्व से स्वयं का और अपनी सैन्य टुकड़ियों का रख- रखाव करना होता था । ये सेनापति इक्तादार कहलाते थे । कर एकत्रित करना और इक्ता का प्रशासन संभालना उनकी जिम्मेदारी थी । ये इक्ता एक व्यक्ति से दूसरे को हस्तांतरित भी किए जा सकते थे । 

दूसरे चरण में इक्तादारों की राजस्व शक्तियों पर नियंत्रण करने का प्रयास किया गया और अब उन्हें एकत्र किए गए राजस्व और अपने खर्चे का लेखा-जोखा  सौंपकर शेष राजस्व को राजकीय कोष में जमा कर देना होता था ।

तीसरे चरण में (फिरोज तुगलक के शासनकाल में) इक्तादारों को अनेक रियायतें दी गईं । इक्ता अब  वंशानुगत हो गए । इक्ता के अलावा, सुल्तानों ने अपने राजस्व का एक हिस्सा मुसलमान धर्मतत्त्वज्ञ, विद्वान और शिक्षाविदों के लिए रखा । इन कर मुक्त भूमि अनुदानों को इनाम या मदद -ए-माश कहा जाता था । 

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