मुंडा विद्रोह का तात्पर्य बिरसा मुण्डा के विद्रोह से है । बिरसा मुंडा को झारखंड की जनजातियां अपना मसीहा मानती हैं । बिरसा 1893 -94 ई. से अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ झंडा बुलंद करने लगे थे । उन्होंने गाँव की ऊसर जमीन को वन विभाग द्वारा अधिगृहीत किए जाने से रोकने के लिए चलाये जा रहे एक अभियान में हिस्सा लिया था । 1895 ई. में बिरसा ने परमेश्वर के दर्शन होने तथा दिव्य शक्ति प्राप्त होने का दावा किया । लोग बिरसा का उपदेश सुनने के लिए एकत्रित होने लगे । बिरसा को 1895 ई. में दो साल के लिए जेल में डाल दिया गया । किंतु ब्रिटेन की महारानी के हीरक जयंती के अवसर पर उन्हें जेल से रिहा किया गया । जेल से निकलने के बाद बिरसा ने पूरी ताकत से आंदोलन शुरू कर दिया । ब्रिटिश साम्राज्य ने बिरसा और उनकी सेना पर आक्रमण कर दिया । 9 जनवरी, 1900 को झारखण्ड के डोंबारी पर्वत पर बिरसा की सेना एवं अंग्रेजों के बीच मुठभेड़ हुई । बिरसा मुंडा को पकड़ा गया और जेल में डाल दिया गया जहाँ 1902 में उनकी मृत्यु हो गई ।
कारण : ब्रिटिश शासन द्वारा जनजातीय जीवन शैली व सामाजिक संरचना एवं संस्कृति में हस्तक्षेप करना मुंडा विद्रोह का मूल कारण था । जमीन से जुड़े मामलों में हस्तक्षेप करना इस विद्रोह का दूसरा प्रमुख कारण था । ब्रिटिश भू -राजस्व व्यवस्था के अन्तर्गत संयुक्त स्वामित्व वाली या सामूहिक सम्पत्ति की अवधारणा वाली आदिवासी परम्पराओं, जिसे झारखण्ड में खुण्ट-कट्टी व्यवस्था के नाम से जाना जाता है, को क्षीण किया गया । आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ईसाई धर्मप्रचारकों की गतिविधियों की भी प्रतिक्रिया देखी गई । किंतु जिस बात का सबसे ज्यादा रोष जनजातियों में देखा गया वह था ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के साथ-साथ जनजातीय क्षेत्रों में जमींदार , महाजन और ठेकेदारों के एक नए शोषक समूह का उद्भव । जनजातियाँ इन्हें “दिकु” कहती थी । आरक्षित वन सृजित करने और लकड़ी तथा पशु चराने की सुविधाओं पर भी प्रतिबन्ध लगाए जाने के कारण आदिवासी जीवन -शैली प्रभावित हुई क्योंकि आदिवासियों का जीवन सबसे अधिक वनों पर ही निर्भर करता है । 1867 ई. में झूम कृषि पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। नए वन कानून बनाए गये । इन सब कारणों ने ही मुंडा विद्रोह को जन्म दिया ।
हालाँकि सरकार ने मुंडा विद्रोह को दबा दिया, लेकिन यह मुंडा विद्रोह का ही प्रभाव था कि 1908 ई. में छोटा नागपुर टेन्सी एक्ट (C.N.T -छोटा नागपुर रैयत या काश्तकारी कानून) पारित हुआ । इसने खूण्टकट्टी के अधिकारों को मान्यता दी और जबरन बेगारी पर प्रतिबन्ध लगाया । इस कानून के तहत जनजातीय जमीनों का गैर -जनजातीय लोगों को स्थानंतरण बंद कर दिया गया ।
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